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शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

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नवगीत:
संजीव।
.
सांताक्लाज!
बड़े दिन का उपहार
न छोटे दिलवालों को देना
.
गुल-काँटे दोनों उपवन में
मधुकर कलियाँ खोज
दिनभर चहके गुलशन में ज्यों
आयोजित वनभोज
सांताक्लाज!
कभी सुख का संसार 
न खोटे मनवालों को देना
.
अपराधी संसद में बैठे
नेता बनकर आज
तोड़ रहे कानून बना खुद
आती तनिक न लाज
सांताक्लाज!
करो जान पर उपकार
न कुर्सी धनवालों को देना
.
पौंड रहे मानवता को जो
चला रहे हथियार
भू को नरक बनाने के जो
नरपशु जिम्मेदार
सांताक्लाज!
महाशक्ति का वार 
व लानत गनवालों को देना
.

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

जनक छंदी सलिला: २ -- संजीव 'सलिल'

जनक छंदी सलिला: २                                                                         

संजीव 'सलिल'
*
शुभ क्रिसमस शुभ साल हो,
   मानव इंसां बन सके.
      सकल धरा खुश हाल हो..
*
दसों दिशा में हर्ष हो,
   प्रभु से इतनी प्रार्थना-
       सबका नव उत्कर्ष हो..
*
द्वार ह्रदय के खोल दें,
   बोल क्षमा के बोल दें.
      मधुर प्रेम-रस घोल दें..
*
तन से पहले मन मिले,
   भुला सभी शिकवे-गिले.
      जीवन में मधुवन खिले..
*
कौन किसी का हैं यहाँ?
   सब मतलब के मीत हैं.
      नाम इसी का है जहाँ..
*
लोकतंत्र नीलाम कर,
   देश बेचकर खा गये.
      थू नेता के नाम पर..
*
सबका सबसे हो भला,
   सभी सदा निर्भय रहें.
      हर मन हो शतदल खिला..
*
सत-शिव सुन्दर है जगत,
   सत-चित -आनंद ईश्वर.
      हर आत्मा में है प्रगट..
*
सबको सबसे प्यार हो,
  अहित किसी का मत करें.
     स्नेह भरा संसार हो..
*
वही सिंधु है, बिंदु भी,
   वह असीम-निस्सीम भी.
      वही सूर्य है, इंदु भी..
*
जन प्रतिनिधि का आचरण,
   जन की चिंता का विषय.
      लोकतंत्र का है मरण..
*
शासन दुश्शासन हुआ,
   जनमत अनदेखा करे.
      कब सुधरेगा यह मुआ?
*
सांसद रिश्वत ले रहे,
   क़ैद कैमरे में हुए.
      ईमां बेचे दे रहे..
*
सबल निबल को काटता,
   कुर्बानी कहता उसे.
      शीश न निज क्यों काटता?
*
जीना भी मुश्किल किया,
   गगन चूमते भाव ने.
      काँप रहा है हर जिया..
*