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मंगलवार, 14 जून 2022

हास्य गीत, बाल गीत, लघुकथा, मुक्तक, दोहा, सदोका

सदोका सलिला 
*
ई​ कविता में
करते काव्य स्नान ​
कवि​-कवयित्रियाँ। 
सार्थक​ होता
जन्म निरख कर
दिव्य भाव छवियाँ।१। 
*
ममता मिले
मन-कुसुम खिले,
सदोका-बगिया में।
क्षण में दिखी
छवि सस्मित मिले
कवि की डलिया में।२। 
*
​न​ नौ नगद ​
न​ तेरह उधार,
लोन ले, हो फरार।
मस्तियाँ कर
किसी से मत डर
जिंदगी है बहार।३। 
*
धूप बिखरी
कनकाभित छवि
वसुंधरा निखरी।
पंछी चहके
हुलस, न बहके
सुनयना सँवरी।४। 
* ​
श्लोक गुंजित
मन भाव विभोर,
पूज्य माखनचोर।
उठा हर्षित
सक्रिय नीरव भी
क्यों हो रहा शोर?५। 
*
है चौकीदार
वफादार लेकिन
चोरियाँ होती रही।
लुटती रहीं
देश की तिजोरियाँ
जनता रोती रही।६। 
*
गुलाबी हाथ
मृणाल अंगुलियाँ
कमल सा चेहरा। 
गुलाब थामे
चम्पा सा बदन
सुंदरी या बगिया?७। 
*

शांति-राज स्व-पुस्तकालय योजना
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में नई पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति प्रेम तथा भारतीय संस्कारों के प्रति लगाव तभी हो सकता है जब वे बचपन से सत्साहित्य पढ़ें। इस उद्देश्य से पारिवारिक पुस्तकालय योजना आरम्भ की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत निम्न में से ५००/- से अधिक की पुस्तकें मँगाने पर मूल्य में ४०% छूट, पैकिंग व डाक व्यय निशुल्क की सुविधा उपलब्ध है। राशि अग्रिम पे टी एम द्वारा चलभाष क्रमांक ९४२५१८३२४४ में जमाकर पावती salil.sanjiv@gmail.com  पर ईमेल करें। इस योजना में पुस्तक सम्मिलित करने हेतु salil.sanjiv@gmail.com या ७९९९५५९६१८/९४२५१८३२४४ पर संपर्क करें।
पुस्तक सूची
०१. मीत मेरे कविताएँ -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' १५०/-
०२. काल है संक्रांति का गीत-नवगीत संग्रह -आचार्य संजीव 'सलिल' १५०/-
०३. कुरुक्षेत्र गाथा खंड काव्य -स्व. डी.पी.खरे -आचार्य संजीव 'सलिल' ३००/-
०४. पहला कदम काव्य संग्रह -डॉ. अनूप निगम १००/-
०५. कदाचित काव्य संग्रह -स्व. सुभाष पांडे १२०/-
०६. Off And On -English Gazals -Dr. Anil Jain ८०/-
०७. यदा-कदा -उक्त का हिंदी काव्यानुवाद- डॉ. बाबू जोसफ-स्टीव विंसेंट
०८. Contemporary Hindi Poetry - B.P. Mishra 'Niyaz' ३००/-
०९. महामात्य महाकाव्य -दयाराम गुप्त 'पथिक' ३५०/-
१०. कालजयी महाकाव्य -दयाराम गुप्त 'पथिक' २२५/-
११. सूतपुत्र महाकाव्य -दयाराम गुप्त 'पथिक' १२५/-
१२. अंतर संवाद कहानियाँ -रजनी सक्सेना २००/-
१३. दोहा-दोहा नर्मदा दोहा संकलन -सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा २५०/-
१४. दोहा सलिला निर्मला दोहा संकलन -सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा २५०/-
१५. दोहा दिव्य दिनेश दोहा संकलन -सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा ३००/-
१६. सड़क पर गीत-नवगीत संग्रह आचार्य संजीव 'सलिल' ३००/-
१७. The Second Thought - English Poetry - Dr .Anil Jain १५०/-
१८. मौसम अंगार है नवगीत संग्रह -अविनाश ब्योहार १६०/-
१९. सार्थक लघुकथाएँ -सं. संजीव सलिल-कांता रॉय प्रकाशनाधीन
२०. आदमी अभी जिन्दा है लघुकथा संग्रह -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' २५०/-
२१. दिव्य गृह - खंड काव्य -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' १५०/- यंत्रस्थ
(रोमानियन काव्य लुसिआ फेरुल का दोहा भावानुवाद)
२२. हस्तिनापुर की बिथा-कथा (बुंदेली महाकाव्य ) डॉ. मुरारीलाल खरे ३००/-
२३. २१ श्रेष्ठ लोक कथाएँ मध्य प्रदेश - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' १५०/-
२४. २१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ मध्य प्रदेश - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' १५०/-
२५. ओ मेरी तुम, श्रृंगार गीत संग्रह - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ३००/-

***
हास्य रचना:
मेरी श्वास-श्वास में कविता
*
मेरी श्वास-श्वास में कविता
छींक-खाँस दूँ तो हो गीत।
युग क्या जाने खर्राटों में
मेरे व्याप्त मधुर संगीत।
पल-पल में कविता कर देता
पहर-पहर में लिखूँ निबंध।
मुक्तक-क्षणिका क्षण-क्षण होते
चुटकी बजती काव्य प्रबंध।
रस-लय-छंद-अलंकारों से
लेना-देना मुझे नहीं।
बिंब-प्रतीक बिना शब्दों की
नौका खेना मुझे यहीं।
धुंआधार को नाम मिला है
कविता-लेखन की गति से।
शारद भी चकराया करतीं
हैं; मेरी अद्भुत मति से।
खुद गणपति भी हार गए
कविता सुन लिख सके नहीं।
खोजे-खोजे अर्थ न पाया
पंक्ति एक बढ़ सके नहीं।
एक साल में इतनी कविता
जितने सर पर बाल नहीं।
लिखने को कागज़ इतना हो
जितनी भू पर खाल नहीं।
वाट्स एप को पूरा भर दूँ
अगर जागकर लिख दूँ रात।
गूगल का स्पेस कम पड़े,
मुखपोथी की क्या औकात?
ट्विटर, वाट्स एप, मेसेंजर
मुझे देख डर जाते हैं।
वेदव्यास भी मेरे सम्मुख
फीके से पड़ जाते हैं।
वाल्मीकि भी पानी भरते
मेरी प्रतिभा के आगे।
जगनिक और ईसुरी सम्मुख
जाऊँ तो पानी माँगे।
तुलसी सूर निराला बच्चन
से मेरी कैसी समता?
अब के कवि खद्योत सरीखा
हर मेरे सम्मुख नमता।
किस्में क्षमता है जो मेरी
प्रतिभा का गुणगान करे?
इसीलिये मैं खुद करता हूँ,
धन्य वही जो मान करे.
विन्ध्याचल से ज्यादा भारी

अभिनंदन
के पत्र हुए।
स्मृति-चिन्ह अमरकंटक सम
जी से प्यारे लगें मुए।
करो न चिता जो व्यय; देकर
मान पत्र ले, करूँ कृतार्थ।
लक्ष्य एक अभिनंदित होना,
इस युग का मैं ही हूँ पार्थ।
***
१४.६.२०१८
बाल गीत
सूरज
*
पर्वत-पीछे झाँके ऊषा
हाथ पकड़कर आया सूरज।
पूर्व प्राथमिक के बच्चे सा
धूप संग इठलाया सूरज।
*
योग कर रहा संग पवन के
करे प्रार्थना भँवरे के सँग।
पैर पटकता मचल-मचलकर
धरती मैडम हुईं बहुत तँग।
तितली देखी आँखमिचौली
खेल-जीत इतराया सूरज।
पूर्व प्राथमिक के बच्चे सा
नाक बहाता आया सूरज।
*
भाता है 'जन गण मन' गाना
चाहे दोहा-गीत सुनाना।
झूला झूले किरणों के सँग
सुने न, कोयल मारे ताना।
मेघा देख, मोर सँग नाचे
वर्षा-भीग नहाया सूरज।
पूर्व प्राथमिक के बच्चे सा
झूला पा मुस्काया सूरज।
*
खाँसा-छींका, आई रुलाई
मैया दिशा झींक-खिसियाई।
बापू गगन डॉक्टर लाया
डरा सूर्य जब सुई लगाई।
कड़वी गोली खा, संध्या का
सपना देख न पाया सूरज।
पूर्व प्राथमिक के बच्चे सा
कॉमिक पढ़ हर्षाया सूरज।
***
लघुकथा:
एकलव्य
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'
-हाँ बेटा.'
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'
*****
- आचार्य संजीव 'सलिल' संपादक दिव्य नर्मदा समन्वयम , २०४ विजय अपार्टमेन्ट, नेपिअर टाऊन, जबलपुर ४८२००१ वार्ता:०७६१ २४१११३१ / ९४२५१ ८३२४४
***
मुक्तक
पलकें भिगाते तुम अगर बरसात हो जाती
रोते अगर तो ज़िंदगी की मात हो जाती
ख्वाबों में अगर देखते मंज़िल को नहीं तुम
सच कहता हूँ मैं हौसलों की मात हो जाती
१४-६-२०१४
***
दोहा सलिला
आम खास का खास है......
*
आम खास का खास है, खास आम का आम.
'सलिल' दाम दे आम ले, गुठली ले बेदाम..

आम न जो वह खास है, खास न जो वह आम.
आम खास है, खास है आम, नहीं बेनाम..

पन्हा अमावट आमरस, अमकलियाँ अमचूर.
चटखारे ले चाटिये, मजा मिले भरपूर..

दर्प न सहता है तनिक, बहुत विनत है आम.
अच्छे-अच्छों के करे. खट्टे दाँत- सलाम..

छककर खाएं अचार, या मधुर मुरब्बा आम .
पेड़ा बरफी कलौंजी, स्वाद अमोल-अदाम..

लंगड़ा, हापुस, दशहरी, कलमी चिनाबदाम.
सिंदूरी, नीलमपरी, चुसना आम ललाम..

चौसा बैगनपरी खा, चाहे हो जो दाम.
'सलिल' आम अनमोल है, सोच न- खर्च छदाम..

तोताचश्म न आम है, तोतापरी सुनाम.
चंचु सदृश दो नोक औ', तोते जैसा चाम..

हुआ मलीहाबाद का, सारे जग में नाम.
अमराई में विचरिये, खाकर मीठे आम..

लाल बसंती हरा या, पीत रंग निष्काम.
बढ़ता फलता मौन हो, सहे ग्रीष्म की घाम..

आम्र रसाल अमिय फल, अमिया जिसके नाम.
चढ़े देवफल भोग में, हो न विधाता वाम..

'सलिल' आम के आम ले, गुठली के भी दाम.
उदर रोग की दवा है, कोठा रहे न जाम..

चाटी अमिया बहू ने, भला करो हे राम!.
सासू जी नत सर खड़ीं, गृह मंदिर सुर-धाम..
***
सामयिक दोहा मुक्तिका:
संदेहित किरदार.....
*
लोकतंत्र को शोकतंत्र में, बदल रही सरकार.
असरदार सरदार सशंकित, संदेहित किरदार..

योगतंत्र के जननायक को, छलें कुटिल-मक्कार.
नेता-अफसर-सेठ बढ़ाते, प्रति पल भ्रष्टाचार..

आम आदमी बेबस-चिंतित, मूक-बधिर लाचार.
आसमान छूती मँहगाई, मेहनत जाती हार..

बहा पसीना नहीं पल रहा, अब कोई परिवार.
शासक है बेफिक्र, न दुःख का कोई पारावार..

राजनीति स्वार्थों की दलदल, मिटा रही सहकार.
देश बना बाज़ार- बिकाऊ, थाना-थानेदार..

अंधी न्याय-व्यवस्था, सच का कर न सके दीदार.
काले कोट दलाल- न सुनते, पीड़ित का चीत्कार..

जनमत द्रुपदसुता पर, करे दु:शासन निठुर प्रहार.
कृष्ण न कोई, कौन सकेगा, गीता-ध्वनि उच्चार?

सबका देश, देश के हैं सब, तोड़ भेद-दीवार.
श्रृद्धा-सुमन शहीदों को दें, बाँटें-पायें प्यार..

सिया जनास्था का कर पाता, वनवासी उद्धार.
सत्ताधारी भेजे वन को, हर युग में हर बार..

लिये खडाऊँ बापू की जो, वही बने बटमार.
'सलिल' असहमत जो वे भी हैं, पद के दावेदार..

'सलिल' एक है राह, जगे जन, सहे न अत्याचार.
अफसरशाही को निर्बल कर, छीने निज अधिकार..
१४-६-२०११
***
मुक्तक सलिला
*
कलम तलवार से ज्यादा, कहा सच वार करती है.
जुबां नारी की लेकिन सबसे ज्यादा धार धरती है.
महाभारत कराया द्रौपदी के व्यंग बाणों ने-
नयन के तीर छेदें तो न दिल की हार खलती है..
*
कलम नीलाम होती रोज ही अखबार में देखो.
खबर बेची-खरीदी जा रही बाज़ार में लेखो.
न माखनलाल जी ही हैं, नहीं विद्यार्थी जी हैं-
रखे अख़बार सब गिरवी स्वयं सरकार ने देखो.
*
बहाते हैं वो आँसू छद्म, छलते जो रहे अब तक.
हजारों मर गए पर शर्म इनको आई ना अब तक.
करो जूतों से पूजा देश के नेताओं की मिलकर-
करें गद्दारियाँ जो 'सलिल' पाएँ एक भी ना मत..
*
वसन हैं श्वेत-भगवा किन्तु मन काले लिए नेता.
सभी को सत्य मालुम, पर अधर अब तक सिए नेता.
सभी दोषी हैं इनको दंड दो, मत माफ़ तुम करना-
'सलिल' पी स्वार्थ की मदिरा सतत, अब तक जिए नेता..
*
जो सत्ता पा गए हैं बस चला तो देश बेचेंगे.
ये अपनी माँ के फाड़ें वस्त्र, तन का चीर खीचेंगे.
यही तो हैं असुर जो देश से गद्दारियाँ करते-
कहो कब हम जागेंगे और इनको दूर फेंकेंगे?
*
तराजू न्याय की थामे हुए हो जब कोई अंधा.
तो काले कोट क्यों करने से चूकें सत्य का धंधा.
खरीदी और बेची जा रही है न्याय की मूरत-
'सलिल' कोई न सूरत है न हो वातावरण गन्दा.
*
१४-६-२०१०

शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

हास्य रचना: मेरी श्वास-श्वास में कविता

हास्य रचना:
मेरी श्वास-श्वास में कविता
*
मेरी श्वास-श्वास में कविता, छींक-खाँस दूँ तो हो गीत।
युग क्या जाने खर्राटों में, मेरे व्याप्त मधुर संगीत।

पल-पल में कविता कर देता, क्षण-क्षण में मैं लिखूँ निबंध।
मुक्तक-क्षणिका क्षण-क्षण होते, चुटकी बजती काव्य प्रबंध।

रस-लय-छंद-अलंकारों से लेना-देना मुझे नहीं।
बिंब-प्रतीक बिना शब्दों की, नौका खेना मुझे यहीं।

धुंआधार को नाम मिला है, कविता-लेखन की गति से।
शारद भी चकराया करतीं हैं; मेरी अद्भुत मति से।

खुद गणपति भी हार गए, कविता सुन लिख सके नहीं।
खोजे-खोजे अर्थ न पाया, पंक्ति एक बढ़ सके नहीं।

एक साल में इतनी कविता, जितने सर पर बाल नहीं।
लिखने को कागज़ इतना हो, जितनी भू पर खाल नहीं।

वाट्स एप को पूरा भर दूँ, अगर जागकर लिख दूँ रात।
गूगल का स्पेस कम पड़े, मुखपोथी की क्या औकात?

ट्विटर, वाट्स एप, मेसेंजर, मुझे देख डर जाते हैं।
वेदव्यास भी मेरे सम्मुख, फीके से पड़ जाते हैं।

वाल्मीकि भी पानी भरते, मेरी प्रतिभा के आगे।
जगनिक और ईसुरी सम्मुख, जाऊँ तो पानी माँगे।

तुलसी सूर निराला बच्चन, से मेरी कैसी समता?
अब का कवि खद्योत सरीखा, हर मेरे सम्मुख नमता।

किसमें क्षमता है जो मेरी, प्रतिभा का गुणगान करे?
इसीलिये मैं खुद करता हूँ, धन्य वही जो मान करे। 

विन्ध्याचल से ज्यादा भारी, अभिनंदन के पत्र हुए। 
स्मृति-चिन्ह अमरकंटक सम, जी से प्यारे लगें मुए।

करो न चिता जो व्यय; देकर मान पत्र ले, करूँ कृतार्थ।
लक्ष्य एक अभिनंदित होना, इस युग का मैं ही हूँ पार्थ।
***
१४.६.२०१८, ७९९९५५९६१८
salil.sanjiv@gmail.com

सोमवार, 2 नवंबर 2020

हास्य गीत दीवाली और दीवाला

हास्य गीत 
दीवाली और दीवाला 
संजीव 
*
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
दूने दाम बेच दिन दूना
होता लाला, घोटाला है
*
धन ते रस, बिन धन सब सूना,
निर्धन हर त्यौहार उपासा
नरक चौदहों दिन हैं उसको,
निर्जल व्रत बिन भी है प्यासा
कौन बताये, किससे पूछें?
क्यों ऐसा गड़बड़झाला है?
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
छोड़ विष्णु आयी है लछमी,
रिद्धि-सिद्धि तजकर गणेश भी
एक साथ रह पुजते दोनों
विस्मित चूहा, चुप उलूक भी
शेष करें तो रोक रहा जग
कहता करते मुँह काला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
समय न मिलता, भूमि नहीं है
पाले गाय कब-कहाँ बोलो
गोबर धन, गौ-मूत्र कौन ले?
किससे कहें खरीदो-तोलो?
'गो वर धन' बोले मम्मी तो
'जा धन कमा' अर्थ आला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
अन्न कूटना अब न सुहाता
ब्रेड-बटर-बिस्कुट भाता है
छप्पन भोग पचायें कैसे?
डॉक्टर डाइट बतलाता है
कैलोरी ज्यादा खाई तो
खतरा भी ज्यादा पाला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
भाई दूज का मतलब जानो
दूजा रहे हमेशा भाई
पहला सगा स्वार्थ निज जानो
फिर हैं बच्चे और लुगाई
बुढ़ऊ-डुकरिया से क्या मतलब?
निज कर्तव्य भूल टाला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
चित्र गुप्त, मूरत-तस्वीरें
खुद गढ़ पूज रहे हैं लाला
दस सदस्य पर सभा बीस हैं
घर-घर काट-छाँट घोटाला
घरवाली हावी दहेज ला
मन मारे हर घरवाला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
३१-१०-२०१६ 
*

शनिवार, 20 जून 2020

हास्य गीत

हास्य गीत 
*
प्रभु जी! हम जनता, तुम नेता
हम हारे, तुम भए विजेता।।
प्रभु जी! सत्ता तुमरी चेरी
हमें यातना-पीर घनेरी ।।
प्रभु जी! तुम घपला-घोटाला
हमखों मुस्किल भयो निवाला।।
प्रभु जी! तुम छत्तीसी छाती
तुम दुलहा, हम महज घराती।।
प्रभु जी! तुम जुमला हम ताली
भरी तिजोरी, जेबें खाली।।
प्रभु जी! हाथी, हँसिया, पंजा
कंघी बाँटें, कर खें गंजा।।
प्रभु जी! भोग और हम अनशन
लेंय खनाखन, देंय दनादन।।
प्रभु जी! मधुवन, हम तरु सूखा
तुम हलुआ, हम रोटा रूखा।।
प्रभु जी! वक्ता, हम हैं श्रोता
कटे सुपारी, काट सरोता।।
(रैदास से क्षमा प्रार्थना सहित)
***
२०-११-२०१५
चित्रकूट एक्सप्रेस, उन्नाव-कानपूर

बुधवार, 14 सितंबर 2016

हास्य गीत

एक रचना 
*
छंद बहोत भरमाएँ 
राम जी जान बचाएँ 
*
वरण-मातरा-गिनती बिसरी 
गण का? समझ न आएँ 
राम जी जान बचाएँ 
*
दोहा, मुकतक, आल्हा, कजरी, 
बम्बुलिया चकराएँ 
राम जी जान बचाएँ 
*
कुंडलिया, नवगीत, कुंडली, 
जी भर मोए छकाएँ 
राम जी जान बचाएँ 

मूँड़ पिरा रओ, नींद घेर रई 
रहम न तनक दिखाएँ 
राम जी जान बचाएँ 

कर कागज़ कारे हम हारे 
नैना नीर बहाएँ 
राम जी जान बचाएँ 
*
ग़ज़ल, हाइकू, शे'र डराएँ 
गीदड़-गधा बनाएँ 
राम जी जान बचाएँ 
*
ऊषा, संध्या, निशा न जानी 
सूरज-चाँद चिढ़ाएँ 
राम जी जान बचाएँ 
*