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रविवार, 6 मार्च 2016

navgeet

नवगीत-
आज़ादी 
*
भ्रामक आज़ादी का 
सन्निपात घातक है 
*
किसी चिकित्सा-ग्रंथ में
वर्णित नहीं निदान
सत्तर बरसों में बढ़ा
अब आफत में जान
बदपरहेजी सभाएँ,
भाषण और जुलूस-
धर्महीनता से जला
देशभक्ति का फूस
संविधान से द्रोह
लगा भारी पातक है
भ्रामक आज़ादी का
सन्निपात घातक है
*
देश-प्रेम की नब्ज़ है
धीमी करिए तेज
देशद्रोह की रीढ़ ने
दिया जेल में भेज
कोर्ट दंड दे सर्जरी
करती, हो आरोग्य
वरना रोगी बचेगा
बस मसान के योग्य
वैचारिक स्वातंत्र्य
स्वार्थ हितकर नाटक है
भ्रामक आज़ादी का
सन्निपात त्राटक है
*
मुँदी आँख कैसे सके
सहनशीलता देख?
सत्ता खातिर लिख रहे
आरोपी आलेख
हिंदी-हिन्दू विरोधी
केर-बेर का संग
नेह-नर्मदा में रहे
मिला द्वेष की भंग
एक लक्ष्य असफल करना
इनका नाटक है
संविधान से द्रोह
लगा भारी पातक है
भ्रामक आज़ादी का
सन्निपात घातक है
*****

शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

geet: kab honge azad -sanjiv

गीत:
कब होंगे आजाद 
इं. संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
कब होंगे आजाद? 
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.
भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..
मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे 
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद.
कब होंगे आजाद? 
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.
धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..
आँख दिखाते सभी पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों 
अपना घर 
करते हम बर्बाद.
कब होंगे आजाद? 
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
खाप और फतवे हैं अपने मेल-जोल में रोड़ा.
भष्टाचारी चौराहे पर खाए न जब तक कोड़ा. 
तब तक वीर शहीदों के हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो 
समाज में 
ध्वस्त न हो मर्याद.
कब होंगे आजाद? 
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
पनघट फिर आबाद हो सकें, चौपालें जीवंत. 
अमराई में कोयल कूके, काग न हो श्रीमंत.
बौरा-गौरा साथ कर सकें नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच 
गाँव में 
विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद? 
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
रीति-नीति, आचार-विचारों भाषा का हो ज्ञान. 
समझ बढ़े तो सीखें रुचिकर धर्म प्रीति विज्ञान.
सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग तभी तो 
हो पायेगा
धरती पर आबाद.
कब होंगे आजाद? 
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

गुरुवार, 15 अगस्त 2013

azadi ka Alha : Bairagi

Amitabh Tripathi <amitabh.ald@gmail.com>

 आज़ादी का आल्हा
 
एक मेरी ही तरह राज्यकर्मचारी जिन्होने यह आल्हा लिखा है। इसे बैरागी के छद्मनाम से प्रस्तुत कर रहा हूँ।

आजादी का दिवस आ गया फिर से होगी जयजयकार।
लाल किले पर फहरायेंगे झण्डा स्वामिभक्त सरदार॥
भानुमती के कुनबे के हैं सबसे ऊँचे सिपहसलार।
करें बंदगी साँझ सवेरे माता जी हैं प्राण - आधार॥
दस वर्षों के महाकाल में किया देश का खस्ताहाल।
रुपया डूब रसातल पहुँचा लेकिन कुनबा मालामाल॥
हुये घोटालों पर घोटाले फिर घोटालों की पड़्ताल।
कोर्ट कचेहरी दिन दो दिन की रहे रूपया सालों साल॥
है शहीद होने पर अपने वीरों को भारी अफ़सोस।
गदहे सभी पँजीरीं फाँके नौ दिन चलें अढ़ाई कोस॥
उनकी स्मृतियों को बिसार कर करते हैं सब गर्दभ गान।
और दुलत्ती एक दूसरे को देकर करते जलपान॥
सीमा पर ऐसी तैयारी देखी हमने अबकी सा्ल।
अपने घर हमें घूमने से ही रोके पूँजी लाल॥
एक पड़ोसी सीमा में घुस मारे अपने वीर जवान।
और हमारे नेता जी के मुख पर पंचशील मुस्कान॥
इनकी बात यहीं पर छोड़ें चलिये अवधपुरी दरबार।
सत्ता पर बच्चा बैठा कर चाचा ताऊ करें शिकार॥
लूट खसोट बढ़ रही प्रतिदिन कोई करे कहाँ फरियाद।
बाहुबली सब बाँह सिकोड़े चौराहों पर करें फसाद॥
है ईमान मुअत्तल देखो भ्रष्ट फिर रहे सीना तान।
अन्धे की रेवड़ी बना कर बाँट रहे पदवी-सम्मान॥
लैपटाप का कर्जा सिर पर बिजली का भरा न जाय।
सूबे के आला वज़ीर की गिनती करते सर चकराय॥
जातिवाद औऽ सम्प्रदाय के वोट बैंक का सब नुकसान।
उठा रहा है देश वृहत्तर कुछ लोगों की चली दुकान॥
यही दशा यदि रही बहुत दिन मित्रो! जरा दीजिये ध्यान।
आज़ादी पर संकट है यह विफल राष्ट्र का है अभियान॥
स्वतन्त्रता-दिन के अवसर पर इतना ले यदि मन में ठान।
अगली बार उन्हें चुनना है जिन्हें देश की हो पहचान॥
घोर निराशा के बादल हैं राष्ट्र क्षितिज पर चारों ओर।
फिर भी यही कामना अपनी ना्चे आज़ादी का मोर॥

-बैरागी

रविवार, 8 जुलाई 2012

कविता:: आज़ादी के दीवानों जैसा --गुलाम कुन्दनम

कविता::
आज़ादी के दीवानों जैसा
गुलाम कुन्दनम 
आज़ादी के दीवानों जैसा...
हमारे ही प्रतिनिधि
हमें आँख दिखाते हैं.
जनता की एकता देख
अब सांसद भय खाते हैं.

संसद चल रहा हो तो
जनता घर में रहेगी?
भ्रष्टाचार और महंगाई,
घुट घुट कर सहेगी?

भ्रष्टों के भय से
कब तक भागेंगे.
उदासीनता की तन्द्रा
से कब हम जागेंगे.

सबको इस बार सड़क
पर आना होगा.
आज़ादी के दीवानों जैसा
जेल भी जाना होगा. ........

.... आज़ादी के दीवानों जैसा
जेल भी जाना होगा. .......

Jai Anna….. Jai Awam..…
Jai Janta.....Jai Janlokpal...
ॐ . ੴ . اللّٰه . † …….
Om.Onkar. Allâh.God…..
Jai Hind! Jai Jagat (Universe)!

(सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन :- दल विहीन लोकतंत्र की स्थापना , लाभ रहित विशुद्ध समाज सेवा वाली राजनैतिक व्यवस्था, वर्ग विहीन समाज की स्थापना, सबके लिए समान और निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था, गरीबी उन्मूलन कोष की स्थापना [धर्म स्थलों की आमदनी भी इसी कोष में जमा हो], जनलोकपाल, चुनाव सुधार तथा काला धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने जैसे क़ानून, सभी करों को समाप्त कर एक समान कर प्रणाली ट्रांजेक्सन टैक्स लगाना, सभी तरह के लेन-देन बैंक, चेक या मोबाइल के द्वारा किया जाना सुनिश्चित करना, बड़े नोटों का प्रचलन बंद करना....सरकार के निर्णयों में जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी... ग्राम स्वराज और मोहल्ला स्वराज की स्थापना ... ये सब कुछ नए और विचाराधीन समाधान हैं .....जो भारत और भारत के लोगों को संच्चाई, ईमानदारी और मानवता पर आधारित एक नए युग में ले जायेंगे.)