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बुधवार, 26 दिसंबर 2018

laghukatha

लघुकथा

एकलव्य

संजीव वर्मा 'सलिल'

*
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'

- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'

- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'

-हाँ बेटा.'

- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'
*****

रचनाकार परिचय:-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।
आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।
आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि। वर्तमान में आप अनुविभागीय अधिकारी, मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग के रूप में कार्यरत हैं।

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बुधवार, 4 अक्टूबर 2017

लघुकथा:
एकलव्य
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'
-हाँ बेटा.'
- 'काश वह आज भी होता.'
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salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogdpot.com
#hindi_blogger

शनिवार, 14 जून 2014

laghukatha: eklavya -sanjiv

लघुकथा:
एकलव्य
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?' 
-हाँ बेटा.' 
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'
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- आचार्य संजीव 'सलिल' संपादक दिव्य नर्मदा समन्वयम , २०४ विजय अपार्टमेन्ट, नेपिअर टाऊन, जबलपुर ४८२००१ वार्ता:०७६१ २४१११३१ / ९४२५१ ८३२४४ 

सोमवार, 31 दिसंबर 2012

लघुकथा: एकलव्य संजीव 'सलिल' *

लघुकथा:
एकलव्य
संजीव 'सलिल'
*
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'
-हाँ बेटा.'
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'
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salil.sanjiv@gmail.com

शनिवार, 12 मई 2012

लघुकथा: एकलव्य --संजीव 'सलिल'

लघुकथा:
एकलव्य

संजीव 'सलिल'
*
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'
-हाँ बेटा.'
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'
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-सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम / दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन

बुधवार, 7 सितंबर 2011

लघु कथा: गुरु दक्षिणा संजीव 'सलिल'

लघुकथा:                                                                                
गुरु दक्षिणा
संजीव 'सलिल'
*
एकलव्य का अद्वितीय धनुर्विद्या अभ्यास देखकर गुरुवार द्रोणाचार्य चकराये कि अर्जुन को पीछे छोड़कर यह श्रेष्ठ न हो जाए.

उन्होंने गुरु दक्षिणा के बहाने एकलव्य का बाएँ हाथ का अँगूठा माँग लिया और यह सोचकर प्रसन्न हो गए कि काम बन गया. प्रगट में आशीष देते हुए बोले- 'धन्य हो वत्स! तुम्हारा यश युगों-युगों तक इस पृथ्वी पर अमर रहेगा.

'आपकी कृपा है गुरुवर!' एकलव्य ने बायें हाथ का अँगूठा गुरु दक्षिणा में देकर विकलांग होने का प्रमाणपत्र बनवाया और छात्रवृत्ति का जुगाड़ कर लिया. छात्रवृत्ति के रुपयों से प्लास्टिक सर्जरी कराकर अँगूठा जुड़वाया, द्रोणाचार्य एवं अर्जुन को ठेंगा बताते हुए 'अंगूठा' चुनाव चिन्ह लेकर चुनाव समर में कूद पड़ा.

तब से उसके वंशज आदिवासी द्रोणाचार्य से शिक्षा न लेकर अँगूठा लगाने लगे.

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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

शिक्षक दिवस पर: कहाँ गया गुरु?... --- संजीव 'सलिल'

शिक्षक दिवस पर:
कहाँ गया गुरु?...
संजीव 'सलिल'
*
गुरु था गंगा ज्ञान की, अब है गुरु घंटाल.
मेहनत चेलों से करा, खूब उड़ाये माल..

महागुरु बन हो गया, गुरु से संत महंत.
पीठाधीश बना- हुआ, गुरु-शुचिता का अंत..

चेले-चेली पालकर, किया बखेड़ा खूब.
कृष्ण स्वघोषित हो गया, राधाओं में डूब..

करी रासलीला हुआ, दस दिश में बदनाम.
शिक्षा लेना भूलकर, दे शिक्षा बेकाम..

शिक्षक करता चाकरी, चकरी सा नित घूम.
अफसर-चमचे मजे कर, रहे मचाते धूम..

दुश्चक्री फल-फूलकर, कहें सत्य को झूठ.
शिक्षा के रथचक्र की, थामे कर में मूठ..

आई.ए.एस. बन नियंता, नचा रहे दिन-रात.
नाच रहे अँगुलियों पर, शिक्षक पाकर मात..

टीचर टीच न कर हुए, सिर्फ फटीचर आज.
गुरु कह पग वंदन करें, कैसे आती लाज?

शब्दब्रम्ह के निकट जा, दें पुनि अक्षर-ज्ञान.
अभय बने जब शिष्य तब, देगा गुरु को मान..

हिंदी से रोजी जुटा, इंग्लिश लिखते रोज.
कोंवेंट बच्चे पढ़ें, क्यों? करिए कुछ खोज..

जूता पहने पूजते, सरस्वती बेशर्म.
नकल कराते, क्या नहीं, दण्डयोग्य दुष्कर्म?

मूल्यांकन करते गलत, देते गलत हिसाब.
श्वेत हो चुके बाल पर, मलकर रोज खिजाब..

कथनी-करनी में हुआ, अंतर जबसे व्याप्त.
तब से गुरुमुख से नहीं, मिला ज्ञान कुछ आप्त..

कहाँ गया गुरु? द्रोण से, पूछ रहा था कर्ण.
एकलव्य को देखकर, गुरु-मुख हुआ विवर्ण..

सत्ता का चाकर नहीं, होगा जब गुर मुक्त.
तब ही श्रृद्धा-आस्था, पुनि होगी संयुक्त..

कलम करे पगवन्दना, कहें योग्य है कौन?
प्रश्न रहा पुनि अनसुना, प्रभु-मूरत है मौन..

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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

रविवार, 26 दिसंबर 2010

लघुकथा एकलव्य संजीव वर्मा 'सलिल'

लघुकथा                                                                                       

एकलव्य

संजीव वर्मा 'सलिल'

*
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'

- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'

- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'

-हाँ बेटा.'

- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'

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बुधवार, 4 नवंबर 2009

लघुकथा एकलव्य आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

लघुकथा

एकलव्य

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'

- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'

- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'

-हाँ बेटा.'

- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'


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