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मंगलवार, 30 जुलाई 2019

सवैया मुक्तक

सवैया मुक्तक  :
चाँद का इन्तिजार करती रही, चाँदनी ने 'सलिल' गिला न किया.  
तोड़ती है समाधि शिव की नहीं, शिवा ने मौन हो सहयोग दिया.  

नर्मदा नेह की बहा शीतल, कंठ में शिव ने ज़हर धार लिया- 
मान्यता इंद्र-भोग की न तनिक, लोक ने शिव को ईश मान लिया  

salil.sanjiv@gmail.com

गुरुवार, 25 जुलाई 2019

सवैया, मुक्तक

एक मुक्तक 
भावो- अभावों का है तालमेल दुनिया 
ममता मन में धार अकेले चल दे तू 
गैरों में भी तुझको मिल जाएँ अपने 
अपनापन सिंगार साजकर चल दे तू 
***

सवैया
*
नाक के बाल ने, नाक रगड़कर, नाक कटाने का काम किया है
नाकों चने चबवाए, घुसेड़ के नाक, न नाक का मान रखा है
नाक न ऊँची रखें अपनी, दम नाक में हो तो भी नाक दिखा लें 
नाक पे मक्खी न बैठन दें, है सवाल ये नाक का, नाक बचा लें
नाक के नीचे अघट न घटे, जो घटे तो जुड़े कुछ नाक बजा लें
नाक नकेल भी डाल सखे हो, न कटे जंजाल तो नाक चढ़ा लें
छंद का नाम और लक्षण बताइए.
***
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

शनिवार, 13 जुलाई 2019

नवान्वेषित सवैया

नवान्वेषित सवैया:
गणसूत्र : स भ भ म र य र  ल ग।
पद भार : ११२-२११-२११-२२२-२१२-१२२-२१२-१-२।
*
सुधियों की दहरी पर, यादों के दीप बाल, दीवाली मना रहा
कलियों से अँजुरी भर, वेणी से गूँथ बाल, दीवानी बना रहा
अँखियों ने सखियों सँग, की मस्ती छेड़-छाड़, दोगाना कहा-सुना
अधरों ने अधरों पर, नातों के चिन्ह छाप, ना को हाँ  बना लिया
***
नवान्वेषित सवैया:
गणसूत्र : म त य भ भ म य  ।
पद भार : २२२-२२१-१२२-२११-२११-२२२-१२२।
*
ना पानी हो व्यर्थ बचा यारों! अब कूप-नदी में डालना है
लूटा था तो जीवन देना है, शुक-कोयल को भी पालना है 
बूढ़ों से ही है घर की शोभा, फलती बस सेवा भावना है
जाओ तो ना कर्ज रहे बाकी, कुछ शेष न देना पावना है
*
संजीव
१२-७-२०१९   

रविवार, 14 अप्रैल 2019

सवैया

रसानंद दे छंद नर्मदा २५ : १४-०४-२०१६ 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

दोहा, सोरठा, रोला, आल्हा, सार, ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई, हरिगीतिका, उल्लाला, गीतिका, घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात तथा कुण्डलिनी छंदों से साक्षात के पश्चात् अब मिलिए सवैया छन्द से.
दोहा, सोरठा, रोला, आल्हा, सार, ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई, हरिगीतिका, उल्लाला, गीतिका, घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात तथा कुण्डलिनी छंदों से साक्षात के पश्चात् अब मिलिए सवैया छन्द से.
सरस सवैया रच पढ़ें
गण की आवृत्ति सात हों, दो गुरु रहें पदांत।
सरस सवैया नित पढो, 'सलिल' न तनिक रसांत।।

बाइस से छब्बीस वर्णों के (सामान्य वृत्तो से बड़े और दंडक छंदों से छोटे) छंदों को सवैया कहा जाता है। सवैया वार्णिक छंद हैं। विविध गणों में से किसी एक गण की सात बार आवृत्तियाँ तथा अंत में दो दीर्घ अक्षरों का प्रयोग कर सवैये की रचना की जाती है। यह एक वर्णिक छन्द है। सवैया को वार्णिक मुक्तक अर्थात वर्ण संख्या के आधार पर रचित मुक्तक भी कहा जाता है। इसका कारन यह है की सवैया में गुरु को लघु पढ़ने की छूट है। जानकी नाथ सिंह ने अपने शोध निबन्ध 'द कंट्रीब्युशन ऑफ़ हिंदी पोयेट्स टु प्राजोडी के चौथे अध्याय में सवैया को वार्णिक सम वृत्त मानने का कारण हिंदी में लय में गाते समय 'गुरु' का 'लघु' की तरह उच्चारण किये जाने की प्रवृत्ति को बताया है। हिंदी में 'ए' के लघु उच्चारण हेतु कोई वर्ण या संकेत चिन्ह नहीं है। रीति काल और भक्ति काल में कवित्त और सवैया बहुत लोकप्रिय रहे हैं. कवितावलि में तुलसी ने इन्हीं दो छंदों का अधिक प्रयोग किया है। कवित्त की ही तरह सवैया भी लय-आधारित छंद है।
विविध गणों के प्रयोग के आधार पर इस छन्द के कई प्रकार (भेद) हैं। यगण, तगण तथा रगण पर आधारित सवैये की गति धीमी होती है जबकि भगण, जगण तथा सगण पर आधारित सवैया तेज गति युक्त होता है। ले के साथ कथ्य के भावपूर्ण शब्द-चित्र अंकित होते हैं। श्रृंगार तथा भक्ति परक वर्ण में विभव, अनुभव, आलंबन, उद्दीपन, संचारी भाव, नायक-नायिका भेद आदि के शब्द-चित्रण में तुलसी, रसखान, घनानंद, आलम आदि ने भावोद्वेग की उत्तम अभिव्यक्ति के लिए सवैया को ही उपयुक्त पाया। भूषण ने वीर रस के लिए सवैये का प्रयोग किया किन्तु वह अपेक्षाकृत फीका रहा।
प्रकार-
सवैया के मुख्य १४ प्रकार हैं। 
१. मदिरा, २. मत्तगयन्द, ३. सुमुखि, ४. दुर्मिल, ५. किरीट, ६. गंगोदक, ७. मुक्तहरा, ८. वाम, ९. अरसात, १०. सुन्दरी, ११. अरविन्द, १२. मानिनी, १३. महाभुजंगप्रयात, १४. सुखी सवैया।

मत्तगयंद (मालती) सवैया
इस वर्णिक छंद के चार चरण होते हैं। हर चरण में सात भगण (S I I) के पश्चात् अंत में दो गुरु (SS) वर्ण होते हैं।
उदाहरण:
१.
धूरि भरे अति सोभित स्यामजू, तैंसी बनी सिर सुन्दर चोटी। 
खेलत-खात फिरें अँगना, पग पैंजनिया, कटी पीरि कछौटी।। 
वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों ली गयो माखन-रोटी।।

२.
यौवन रूप त्रिया तन गोधन, भोग विनश्वर है जग भाई।
ज्यों चपला चमके नभ में, जिमि मंदर देखत जात बिलाई।। 
देव खगादि नरेन्द्र हरी मरते न बचावत कोई सहाई।
ज्यों मृग को हरि दौड़ दले, वन-रक्षक ताहि न कोई लखाई।।

३.
मोर पखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गले पहिरौंगी।
ओढ़ी पीताम्बर लै लकुटी, वन गोधन गजधन संग फिरौंगी।। 
भाव तो याहि कहो रसखान जो, तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।

दुर्मिल (चन्द्रकला) सवैया
इस वर्णिक छंद के चार चरणों में से प्रत्येक में आठ सगण (I I S) और अंत में दो गुरु मिलाकर कुल २५ वर्ण होते हैं.
उदाहरण:
बरसा-बरसा कर प्रेम सुधा, वसुधा न सँवार सकी जिनको।
तरसा-तरसा कर वारि पिता, सु-रसा न सुधार सकी जिनको।।
सविता-कर सी कविता छवि ले, जनता न पुकार सकी जिनको।
नव तार सितार बजा करके, नरता न दुलार सकी जिनको।।

उपजाति सवैया (जिसमें दो भिन्न सवैया एक साथ प्रयुक्त हुए हों) तुलसी की देन है। सर्वप्रथम तुलसी ने 'कवितावली' में तथा बाद में रसखान व केशवदास ने इसका प्रयोग किया। 
मत्तगयन्द - सुन्दरी
प्रथम पद मत्तगयन्द (७ भगण + २ गुरु) - "या लटुकी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुरको तजि डारौ"। तीसरा पद सुन्दरी (७ सगन + १ गुरु) - "रसखानि कबों इन आँखिनते, ब्रजके बन बाग़ तड़ाग निहारौ"।

मदिरा - दुर्मिल 
तुलसी ने एक पद मदिरा का रखकर शेष दुर्मिल के पद रखे हैं। केशव ने भी इसका अनुसरण किया है। पहला मदिरा का पद (७ भगण + एक गुरु) - "ठाढ़े हैं नौ द्रम डार गहे, धनु काँधे धरे कर सायक लै"। दूसरा दुर्मिल का पद (८ सगण) - "बिकटी भृकुटी बड़री अँखियाँ, अनमोल कपोलन की छवि है"।

मत्तगयन्द-वाम और वाम-सुन्दरी की उपजातियाँ तुलसी (कवितावली) में तथा केशव (रसिकप्रिया) में सुप्राप्य है। कवियों ने भाव-चित्रण में अधिक सौन्दर्य तथा चमत्कार उत्पन्न करने हेतु ऐसे प्रयोग किये हैं।
आधुनिक कवियों में भारतेंदु हरिश्चन्द्र, लक्ष्मण सिंह, नाथूराम शंकर आदि ने इनका सुन्दर प्रयोग किया है। जगदीश गुप्त ने इस छन्द में आधुनिक लक्षणा शक्ति का समावेश किया है।
______

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

हाइकु, सदोका नवगीत, दोहा, सवैया

आज की रचना- 
हाइकु 
हिंदी का फूल 
मैंने दिया, उसने 
अंग्रेजी फूल।
*
सदोका
है चौकीदार
वफादार लेकिन
चोरियाँ होती रही।
लुटती रहीं
देश की तिजोरियाँ
जनता रोती रही।
*
नवगीत:
अंतर में
पल रही व्यथाएँ
हम मुस्काएँ क्या?
*
चौकीदार न चोरी रोके
वादे जुमलों को कब टोंके?
संसद में है शोर बहुत पर
नहीं बैंक में कुत्ते भौंके।
कम पहनें
कपड़े समृद्ध जन
हम शरमाएँ क्या?
*
रंग बदलने में हैं माहिर
राजनीति में जो जगजाहिर।
मुँह में राम बगल में छूरी
कुर्सी पूज रहे हैं काफिर।
देख आदमी
गिरगिट लज्जित
हम भरमाएँ क्या?
*
लोक फिर रहा मारा-मारा,
तंत्र कर रहा वारा-न्यारा।
बेच देश को वही खा रहे
जो कहते यह हमको प्यारा।।
आस भग्न
सांसों लेने को भी
तड़पाएँ क्या?
***
दोहा
शुभ प्रभात अरबों लुटा, कहो रहो बेफिक्र।
चौकीदारी गजब की, सदियों होगा जिक्र।।
*
पिया मेघ परदेश में, बिजली प्रिय उदास।
धरती सासू कह रही, सलिल बुझाए प्यास।।
*
बहतरीन सर हो तभी, जब हो तनिक दिमाग।
भूसा भरा अगर लगा, माचिस लेकर आग।।
*
नया छंद : अठमग सवैया
विधान: ८ मगण + गुरु लघु
प्रकार: २६ वार्णिक, ५१ मात्रिक छंद
बातों ही बातों में, रातों ही रातों में, लूटेंगे-भागेंगे, व्यापारी घातें दे आज
वादों ही वादों में, राजा जी चेलों में, सत्ता को बाँटेंगे, लोगों को मातें दे आज
यादें ही यादें हैं, कुर्सी है प्यादे हैं, मौका पा लादेंगे, प्यारे जो लोगों को आज
धोखा ही धोखा है, चौका ही चौका है, छक्का भी मारेंगे, लूटेंगे-बाँटेंगे आज
***

बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

haiku, sadoka, navgeet, doha, savaiya


विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर

- : समकालिक दोहा संकलन- "दोहा दुनिया" : -

विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में समकालिक दोहाकारों का प्रतिनिधि संकलन 'दोहा दुनिया १' शीघ्र ही प्रकाशित किया जाना है। संकलन में सम्मिलित प्रत्येक दोहाकार के १०० दोहे, चित्र, संक्षिप्त परिचय (नाम, जन्म तिथि व स्थान, माता-पिता, जीवनसाथी के नाम, शिक्षा, लेखन विधा, प्रकाशित कृतियाँ, पूरा पता, चलभाष, ईमेल आदि) १० पृष्ठों में प्रकाशित किया जाएगा। हर सहभागी के दोहों की संक्षिप्त समीक्षा तथा दोहा पर आलेख भूमिका में होगा। संपादन वरिष्ठ दोहाकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा किया जा रहा है। दोहे स्वीकृत होने पर प्रत्येक सहभागी को ३०००/- सहयोग राशि अग्रिम देना होगी। संकलन प्रकाशित होने पर विमोचन कार्यक्रम में हर सहभागी को सम्मान पत्र तथा ११ प्रतियाँ निशुल्क भेंट की जाएँगी। प्राप्त दोहों में आवश्यकतानुसार संशोधन का अधिकार संपादक को होगा। दोहे unicode में भेजने हेतु ईमेल- salil.sanjiv@gmail.com . चलभाष ७९९९५५९६१८, ९४२५१८३२४४
दोहा लेखन विधान: १. दोहा में दो पंक्तियाँ (पद) होती हैं। २. हर पद में दो चरण होते हैं। ३. विषम (पहला, तीसरा) चरण में १३-१३ तथा सम (दूसरा, चौथा) चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं। ४. तेरह मात्रिक पहले तथा तीसरे चरण के आरंभ में एक शब्द में जगण (लघु गुरु लघु) वर्जित होता है। ५. विषम चरणों की ग्यारहवीं मात्रा लघु हो तो लय भंग होने की संभावना कम हो जाती है। ६. सम चरणों के अंत में गुरु लघु मात्राएँ आवश्यक हैं। ७. हिंदी में खाय, मुस्काय, आत, भात, डारि जैसे देशज क्रिया रूपों का उपयोग न करें। ८. दोहा मुक्तक (अपने आप में पूर्ण) छंद है। कथ्य (जो बात कहना चाहें वह) एक दोहे में पूरी हो जाना चाहिए। ९. श्रेष्ठ दोहे में लाक्षणिकता, संक्षिप्तता, मार्मिकता (मर्मबेधकता), आलंकारिकता, स्पष्टता, लयबद्धता, पूर्णता तथा सरसता होना चाहिए। १०. दोहे में संयोजक शब्दों और, तथा, एवं आदि का प्रयोग न करें। ११. दोहे में कोई भी शब्द अनावश्यक न हो। हर शब्द ऐसा हो जिसके निकालने या बदलने पर दोहा न कहा जा सके। १२. दोहे में कारक का प्रयोग कम से कम हो। १३. दोहा में विराम चिन्हों का प्रयोग यथास्थान अवश्य करें। १४. दोहा सम तुकान्ती छंद है। सम चरण के अंत में समान तुक आवश्यक है। १५. दोहा में लय का महत्वपूर्ण स्थान है। लय के बिना दोहा नहीं कहा जा सकता। *****
मात्रा गणना नियम-१. किसी ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है।२. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएं गिनी जाती हैंं।३. अ, इ, उ, ऋ तथा इन मात्राओं से युक्त वर्ण की एक मात्रा गिनें। उदाहरण- अब = ११ = २, इस = ११ = २, उधर = १११ = ३, ऋषि = ११= २, उऋण १११ = ३ आदि।४. शेष वर्णों की दो-दो मात्रा गिनें। जैसे- आम = २१ = ३, काकी = २२ = ४, फूले २२ = ४, कैकेई = २२२ = ६, कोकिला २१२ = ५, और २१ = ३आदि। ५. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। जैसे गृह = ११ = २, क्षमा = १२ =३आदि।६. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहले के अक्षर के साथ गिनें। जैसे- क्षमा १+२, वक्ष २+१, प्रिया १+२, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १२१ = ४ आदि। ७. रेफ को आधे अक्षर की तरह गिनें। बर्रैया २+२+२आदि। ८. हिंदी दोहाकार हिंदी व्याकरण नियमों का पालन करें। ९. अपवाद स्वरूप कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है। जैसे- कन्हैया = क+न्है+या = १२२ = ५ आदि। १०. अनुस्वर (आधे म या आधे न के उच्चारण वाले शब्द) के पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई अंतर नहीं होता। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २१ = ३. कुंभ = कुम्भ = २१ = ३, झंडा = झन्डा = झण्डा = २२ = ४आदि। ११. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = ११ = २आदि। हँस = ११ =२, हंस = २१ = ३ आदि। मात्रा गणना करते समय शब्द का उच्चारण करने से लघु-गुरु निर्धारण में सुविधा होती है।

अब तक दोहा सहमत हुए सहभागियों के वर्ण क्रमानुसार नाम - सर्व श्री / श्रीमती

१. अनिल मिश्र
२.अरुण अर्णव खरे
३. अरुण शर्मा
४. कांति शुक्ल
५. छगनलाल गर्ग
६. छाया सक्सेना
७. जयप्रकाश श्रीवास्तव
८. बसंत शर्मा
९. मिथलेश बड़गैया
१०. लता यादव
११. विजय बागरी
१२. विश्वम्भर शुक्ल
१३. श्यामल सिन्हा
१४. शोभित वर्मा
१५. सरस्वती कुमारी
१६. सुनीता सिंह
१७. सुरेश तन्मय
*

आज की रचना-

हाइकु
हिंदी का फूल
मैंने दिया, उसने
अंग्रेजी फूल।
*
सदोका
है चौकीदार
वफादार लेकिन
चोरियाँ होती रही।
लुटती रहीं
देश की तिजोरियाँ
जनता रोती रही।
*
नवगीत:
अंतर में
पल रही व्यथाएँ
हम मुस्काएँ क्या?
*
चौकीदार न चोरी रोके
वादे जुमलों को कब टोंके?
संसद में है शोर बहुत पर
नहीं बैंक में कुत्ते भौंके।
कम पहनें
कपड़े समृद्ध जन
हम शरमाएँ क्या?
*
रंग बदलने में हैं माहिर
राजनीति में जो जगजाहिर।
मुँह में राम बगल में छूरी
कुर्सी पूज रहे हैं काफिर।
देख आदमी
गिरगिट लज्जित
हम भरमाएँ क्या?
*
लोक फिर रहा मारा-मारा,
तंत्र कर रहा वारा-न्यारा।
बेच देश को वही खा रहे
जो कहते यह हमको प्यारा।।
आस भग्न
सांसों लेने को भी
तड़पाएँ क्या?
***
दोहा
शुभ प्रभात अरबों लुटा, कहो रहो बेफिक्र।
चौकीदारी गजब की, सदियों होगा जिक्र।।
*
पिया मेघ परदेश में, बिजली प्रिय उदास।
धरती सासू कह रही, सलिल बुझाए प्यास।।
*
बहतरीन सर हो तभी, जब हो तनिक दिमाग।
भूसा भरा अगर लगा, माचिस लेकर आग।।
*
नया छंद
जाति: सवैया
विधान: ८ मगण + गुरु लघु
प्रकार: २६ वार्णिक, ५१ मात्रिक छंद
बातों ही बातों में, रातों ही रातों में, लूटेंगे-भागेंगे, व्यापारी घातें दे आज
वादों ही वादों में, राजा जी चेलों में, सत्ता को बाँटेंगे, लोगों को मातें दे आज
यादें ही यादें हैं, कुर्सी है प्यादे हैं, मौका पा लादेंगे, प्यारे जो लोगों को आज
धोखा ही धोखा है, चौका ही चौका है, छक्का भी मारेंगे, लूटेंगे-बाँटेंगे आज
***

सोमवार, 6 नवंबर 2017

naye chhand 29-30

हिन्दी के  नए छंद २९-३०   
*
प्रस्तुत छंद के समान मात्रिक-वर्णिक पदभार गति-यति युक्त छंद यदि आपने पढ़े हों तो कृपया, उनका सन्दर्भ, विधान व उदाहरण salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४ पर भेजें। 
नव रचनाकार इन छंदों का अभ्यास करें। 
*
नए छंद २९ 
.
कन्हैया! कन्हैया!! बजा बाँसुरी, रूठ राधा न जाए, बजा बाँसुरी माधव!
मना राधिका नाज़ लेना उठा, रास लेना रचा तू, चला आ दिखा लाघव.
चलो ग्वाल-बालों!, नहीं बात टालो, करें रासलीला, नहीं चूको, करें गायन.
सुना फ़ाग-रासें, लला रंग डालें, लली भाग जाएँ करो बाँसुरी वादन.
***
नए छंद ३० 
जगो रे!, उठो रे!!, खिलो फ़ूल जैसे, सुगंधें बिखेरो, सवेरे-सवेरे चलो.
न सोना, न खोना, नहीं मीत रोना, न हाथों धरो हाथ, मौके न  खोना, चलो.
नदी सा बहो रे!, न मौजे तहो रे! उठा शंख-सीपी, न भागो, गहो रे चलो.
तुम्हीं को पुकारें, तुम्हीं को निहारें, भुला मन्ज़िले दें न, जीतो सितारे चलो. 
***
salil.sanjiv@gmail.com, ७९९९५५५९६१८
www.divyanarmada.in, #हिंदी_ब्लोगर

रविवार, 5 नवंबर 2017

naye chhand- 25, 26, 27, 28

हिन्दी के नए छंद २५, २६, २७, २८
हिन्दी के नए छंद २५
*
प्रस्तुत छंद के समान मात्रिक-वर्णिक पदभार गति-यति युक्त छंद यदि आपने पढ़े हों तो कृपया, उनका सन्दर्भ, विधान व उदाहरण salil.sanjiv@gmail.com पर भेजें।
नव रचनाकार इन छंदों का अभ्यास करें।
*
कहेगा-सुनेगा हमारा फ़साना, हमेशा ज़माना कहो जाने-जां।
नहीं भौंह तानो, न रूठो, न मानो, मिलेगा मजा भी सुनो जाने-जां।।
ज़रा पास आओ, नहीं दूर जाओ, गले से लगाओ-लगो जाने-जां।
नहीं जान देना, नहीं जान लेना, सदा साथ होना, हमें जाने-जां।।
***

हिन्दी के नए छंद २६
*
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नव रचनाकार इन छंदों का अभ्यास करें।
*
न जाओ, न जाओ, बुलाएँ-बिठाएँ, गले से लगाएँ, पुकारें सितारे।
चलो! नील आकाश देखें-निहारें, कहाँ थे?, कहाँ हैं?, निहारें सितारे।।
न भूलो, न भागो, न भोगो, न त्यागो, रहो साथ यारों! सिखाएँ सितारे
न गली, न दंगा, न वादा, न पंगा, न छीनें, न फेंकें, लुभाएँ सितारे।।
***

हिन्दी के नए छंद २७
*
प्रस्तुत छंद के समान मात्रिक-वर्णिक पदभार गति-यति युक्त छंद यदि आपने पढ़े हों तो कृपया, उनका सन्दर्भ, विधान व उदाहरण salil.sanjiv@gmail.com पर भेजें।
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*
न पौधे लगाएँ, न पानी पिलाएँ, न पीड़ा मिटाएँ, करें वोट की माँग।
गरीबी मिटी क्या?, अशिक्षा हटी क्या?, कुरीती तजी क्या?, धरे संत का स्वाँग।।
न भूषा, न भाषा, निराशा-हताशा, न बाकी सुआशा, न छोड़ें अड़ी टाँग।
न लेना, न देना, चबाओ चबेना, भगा दो- भुला दो, पिला दो इन्हें भाँग।।
***

हिन्दी के नए छंद २८
*
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*
कहाँ वो छिपेगी?, कहीं तो मिलेगी, कभी तो मिलेगी, हसीना लुभाए जो।
छलावा-भुलावा?, नहीं वो दिखावा, अदाएँ हजारों, दिखाती-सुहाती जो।।
गुलाबी-गुलाबी, शराबी-शराबी, नशीली-नशीली सूरा सी पिलाती हो।
न भूला उसे मैं, न भूली मुझे वो, भले बाँह में ले, गले ना लगाती हो।।
***
salil.sanjiv@gmail.com, ७९९९५५५९६१८
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