मुक्तिका:
संजीव
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कुदरत से मत दूर जाइये।
सन्नाटे को तोड़ गाइये।।
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मतभेदों को मत छुपाइये
मन से मन मन भर मिलाइये।।
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पाना है सचमुच ही कुछ तो
जो जोड़ा है वह लुटाइये।।
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घने तिमिर में राह न सूझे
दीप यत्न का हँस जलाइये।।
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एक-एक को जोड़ सकेंगे
अंतर से अंतर मिटाइये।।
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बुला रहा बासंती मौसम
बच्चे बनकर खिलखिलाइये।।
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महानगर का दिल पत्थर है
गाँवों के मन में समाइये।।
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दाल दलेगा हर छाती पर
दलदल में नेता दबाइये।।
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अवसर का वृन्दावन सूना
वेणु परिश्रम की बजाइये।।
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राका कारा अन्धकार की
आशा की उषा उगाइये।।
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स्नेह-सलिल का करें आचमन
कण-कण में भगवान पाइये।।
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