कुल पेज दृश्य

kundali purnima burman sanjiv salil लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
kundali purnima burman sanjiv salil लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

कुंडली पूर्णिमा बर्मन संजीव सलिल

रचना एक : रचनाकार दो
वासंती कुंडली
दोहा: पूर्णिमा बर्मन
रोला: संजीव वर्मा
*
वसंत-१
ऐसी दौड़ी फगुनहट, ढाँणी-चौक फलाँग।
फागुन झूमे खेत में, मानो पी ली भाँग।।
मानो पी ली भाँग, न सरसों कहना माने।
गए पड़ोसी जान, बचपना है जिद ठाने।।
केश लताएँ झूम लगें नागिन के जैसी।
ढाँणी-चौक फलाँग, फगुनहट दौड़ी ऐसी।।
*
वसंत -२
बौर सज गये आँगना, कोयल चढ़ी अटार।
चंग द्वार दे दादरा, मौसम हुआ बहार।।
मौसम हुआ बहार, थाप सुन नाचे पायल।
वाह-वाह कर उठा, हृदय डफली का घायल।।
सपने देखे मूँद नयन, सर मौर बंध गये।
कोयल चढ़ी अटार, आँगना बौर सज गये।
*
वसंत-३
दूब फूल की गुदगुदी, बतरस चढ़ी मिठास।
मुलके दादी भामरी, मौसम को है आस।।
मौसम को है आस, प्यास का त्रास अकथ है।
मधुमाखी हैरान, लली सी कली थकित है।।
कहे 'सलिल' पूर्णिमा, रात हर घड़ी मिलन की।
कथा कही कब जाए, गुदगुदी डूब-फूल की।।
*