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शनिवार, 6 जून 2020

दोहा दुनिया

दोहा दुनिया
शब्द विशेष :बाग़ बगीचा वाटिका, उपवन, उद्यान
*
गार्डन-गार्डन हार्ट है, बाग़-बाग़ दिल आज.
बगिया में कलिका खिली, भ्रमर बजाए साज..
*
बागीचा जंगल हुआ, देख-भाल बिन मौन.
उपवन के दिल में बसी, विहँस वाटिका कौन?
*
ओशो ने उद्यान में, पाई दिव्य प्रतीति.
अब तक खाली हाथ हम, निभा रहे हैं रीति..
*
ठिठक बगीचा देखता, पुलक हाथ ले हाथ.
कभी अधर धर चूमता, कभी लगाता माथ..
*
गुलशन-गुलशन गुल खिले, देखें लोग विदग्ध.
खिला रहा गुल कौन दल, जनता पूछे दग्ध..
***
६-६-२०१८, ७९९९५५९६१८

शनिवार, 14 अप्रैल 2018

मुक्तक सलिला

मुक्तक सलिला:  
बोल जब भी जबान से निकले,
पान ज्यों पानदान से निकले 
कान में घोल दे गुलकंद 'सलिल-
ज्यों उजाला विहान से निकले।।
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जो मिला उससे है संतोष नहीं, 
छोड़ता है कुबेर कोष नहीं। 
नाग पी दूध ज़हर देता है- 
यही फितरत है, कहीं दोष नहीं।। 
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बाग़ पुष्पा है, महकती क्यारी, 
गंध में गंध घुल रही न्यारी।
मन्त्र पढ़ते हैं भ्रमर पंडित जी-
तितलियाँ ला रही हैं अग्यारी।।
आज प्रियदर्शी बना है अम्बर,
शिव लपेटे हैं नाग- बाघम्बर।
नेह की भेंट आप लाई हैं-
चुप उमा छोड़ सकल आडम्बर।।
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ये प्रभाकर ही योगराज रहा, 
स्नेह-सलिला के साथ मौन बहा।
ऊषा-संध्या के साथ रास रचा-
हाथ रजनी का खुले-आम गहा।।
*  
करी कल्पना सत्य हो रही,
कालिख कपड़े श्वेत धो रही।
कांति न कांता के चहरे पर- 
कलिका पथ में शूल बो रही।।
*
१८-४-२०१४