दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 31 अगस्त 2010
गीत : स्वागत है... संजीव 'सलिल' *
गीत :
स्वागत है...
संजीव 'सलिल'
*
*
पीर-दर्द-दुःख-कष्ट हमारे द्वार पधारो स्वागत है.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
*
दिव्य विरासत भूल गए हम, दीनबंधु बन जाने की.
रूखी-सूखी जो मिल जाए, साथ बाँटकर खाने की..
मुट्ठी भर तंदुल खाकर, त्रैलोक्य दान कर देते थे.
भार भाई, माँ-बाप हुए, क्यों सोचें गले लगाने की?..
संबंधों के अनुबंधों-प्रतिबंधों तुम पर लानत है.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
*
सात जन्म तक साथ निभाते, सप्त-पदी सोपान अमर.
ले तलाक क्यों हार रहे हैं, श्वास-आस निज स्नेह-समर?
मुँह बोले रिश्तों की महिमा 'सलिल' हो रही अनजानी-
मनमानी कलियों सँग करते, माली-काँटे, फूल-भ्रमर.
सत्य-शांति, सौन्दर्य-शील की, आयी सचमुच शामत है.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
*
वसुधा सकल कुटुंब हमारा, विश्व नीड़वत माना था.
सबके सुख, कल्याण, सुरक्षा में निज सुख अनुमाना था..
सत-शिव-सुन्दर रूप स्वयं का, आज हो रहा अनजाना-
आत्म-दीप बिन त्याग-तेल, तम निश्चय हम पर छाना था.
चेत न पाया व्हेतन मन, दर पर विनाश ही आगत है.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
*
पंचतत्व के देवों को हम दानव बनकर मार रहे.
प्रकृति मातु को भोग्या कहकर, अपनी लाज उघार रहे.
धैर्य टूटता काल-चक्र का, असगुन और अमंगल नित-
पर्यावरण प्रदूषण की हर चेतावनी बिसार रहे.
दोष किसी को दें, विनाश में अपने स्वयं 'सलिल' रत हैं.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
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