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बुधवार, 26 सितंबर 2012

गज़ल -- ज्ञानेंद्र त्रिपाठी





गज़ल 
ज्ञानेंद्र त्रिपाठी   जाने कब कैसे ख्वाबों के पंख मिले;
जाने कब कैसे उड़ाने की चाह मिले.
जब-जब जीवन से इस पर तकरार हुई है;
मुझको जीवन से बदले में आह मिले.
मै ने कब चाहा पंख और ख्वाब गगन के;
मै ने चाहा टूटे दिल को बस एक राह मिले.
जब यह सवाल किया मैने जीवन से;
बदले में एक और दर्द और एक आह मिले.
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gyanendra tripathi no-reply@plus.google.com