०२. निज गिरा पावन करन कारन, राम जस तुलसी कह्यो. (रामचरित मानस)
(यति १६-१२ पर, ५वी मात्रा दीर्घ, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)
०३. दुन्दुभी जय धुनि वेद धुनि, नभ नगर कौतूहल भले. (रामचरित मानस)
(यति १४-१४ पर, ५वी मात्रा दीर्घ, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)
०४. अति किधौं सरित सुदेस मेरी, करी दिवि खेलति भली। (रामचंद्रिका)
(यति १६-१२ पर, ५वी-१९ वी मात्रा दीर्घ, १२ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)
०५. जननिहि बहुरि मिलि चलीं उचित असीस सब काहू दई। (रामचरित मानस)
(यति १६-१२ पर, १२ वी, २६ वी मात्राएँ दीर्घ, ५ वी, १९ वी मात्राएँ लघु)
०६. करुना निधान सुजान सील सनेह जानत रावरो। (रामचरित मानस)
(यति १६-१२ पर, ५ वी, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)
०७. इहि के ह्रदय बस जानकी जानकी उर मम बास है। (रामचरित मानस)
(यति १६-१२ पर, ५ वी, १२ वी, २६ वी मात्राएँ लघु, १९ वी मात्रा दीर्घ)
०८. तब तासु छबि मद छक्यो अर्जुन हत्यो ऋषि जमदग्नि जू।(रामचरित मानस)
(यति १६-१२ पर, ५ वी, २६ वी मात्राएँ लघु, १२ वी, १९ वी मात्राएँ दीर्घ)
०९. तब तासु छबि मद छक्यो अर्जुन हत्यो ऋषि जमदग्नि जू।(रामचंद्रिका)
(यति १६-१२ पर, ५ वी, २६ वी मात्राएँ लघु, १२ वी, १९ वी मात्राएँ दीर्घ)
१०. जिसको न निज / गौरव तथा / निज देश का / अभिमान है।
वह नर नहीं / नर-पशु निरा / है और मृतक समान है। (मैथिलीशरण गुप्त )
(यति १६-१२ पर, ५ वी, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)
११. जब ज्ञान दें / गुरु तभी नर/ निज स्वार्थ से/ मुँह मोड़ता।
तब आत्म को / परमात्म से / आध्यात्म भी / है जोड़ता।।(संजीव 'सलिल')
अभिनव प्रयोग:
हरिगीतिका मुक्तक:
पथ कर वरण, धर कर चरण, थक मत चला, चल सफल हो.
श्रम-स्वेद अपना नित बहा कर, नव सृजन की फसल बो..
संचय न तेरा साध्य, कर संचय न मन की शांति खो-
निर्मल रहे चादर, मलिन हो तो 'सलिल' चुपचाप धो..
*
करता नहीं, यदि देश-भाषा-धर्म का, सम्मान तू.
धन-सम्पदा, पर कर रहा, नाहक अगर, अभिमान तू..
अभिशाप जीवन बने तेरा, खो रहा वरदान तू-
मन से असुर, है तू भले, ही जन्म से इंसान तू..
*
करनी रही, जैसी मिले, परिणाम वैसा ही सदा.
कर लोभ तूने ही बुलाई शीश अपने आपदा..
संयम-नियम, सुविचार से ही शांति मिलती है 'सलिल'-
निस्वार्थ करते प्रेम जो, पाते वही श्री-संपदा..
*
धन तो नहीं, आराध्य साधन मात्र है, सुख-शांति का.
अति भोग सत्ता लोभ से, हो नाश पथ तज भ्रान्ति का..
संयम-नियम, श्रम-त्याग वर, संतोष कर, चलते रहो-
तन तो नहीं, है परम सत्ता उपकरण, शुचि क्रांति का..
*
करवट बदल ऋतुराज जागा विहँस अगवानी करो.
मत वृक्ष काटो, खोद पर्वत, नहीं मनमानी करो..
ओजोन है क्षतिग्रस्त पौधे लगा हरियाली करो.
पर्यावरण दूषित सुधारो अब न नादानी करो..
*