कुल पेज दृश्य

शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

लघुकथा: नायक

लघुकथा:
नायक
*
दंगे, दुराचार, आगजनी, गुंडागर्दी के बाद सस्ती लोकप्रियता और खबरों में छाने के इरादे से बगुले जैसे सफेद वस्त्र पहने नेताजी जन संपर्क के लिये निकले। पीछे-पीछे चमचों का झुण्ड, बिके हुए कैमरे और मरी हुई आत्मा वाली खाकी वर्दी।

एक बर्बाद झोपड़ी में पहुँचते ही छोटी सी बच्ची ने मुँह पर दरवाजा बंद करते हुए कहा 'खतरे के समय दुम दबा कर छिपे रहनेवाले नपुंसकों के लिये यहाँ आना मना है। तुम नहीं, हमारा नायक वह पुलिस जवान है जो जान हथेली पर लेकर आतंकवादी की बंदूक के सामने डटा रहा।यह भारत माता माँ मंदिर, भारत के नागरिक का घर है।
*
संजीव
२९.२.२०२०
***

कोई टिप्पणी नहीं: