दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 9 जुलाई 2009
गजल मनु बेतखल्लुस
ये नस्ल, कुछ तुझे बदली नज़र नहीं आती ?
किसी भी फूल पे तितली नज़र नहीं आती
हवा चमन की क्या बदली नज़र नहीं आती ?
ख्याल जलते हैं सेहरा की तपती रेतों पर
वो तेरी ज़ुल्फ़ की बदली नज़र नहीं आती
हज़ारों ख्वाब लिपटते हैं निगाहों से मगर
ये तबियत है कि बहली नज़र नहीं आती
न रात, रात के जैसी सियाह दिखती है
सहर भी, सहर सी उजली नज़र नहीं आती
हमारी हार सियासत की मेहरबानी सही
ये तेरी जीत भी, असली नज़र नहीं आती
कहाँ गए वो, निशाने को नाज़ था जिनपे
कि अब तो आँख क्या, मछली नज़र नहीं आती
न जाने गुजरी हो क्या, उस जवां भिखारिन पर
कई दिनों से वो पगली, नज़र नहीं आती
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
बुधवार, 17 जून 2009
ग़ज़ल: मनु बेतखल्लुस, दिल्ली
हमसे कभी तो हँसता हुआ आदमी मिले
इस आदमी की भीड़ में तू भी तलाश कर,
शायद इसी में भटका हुआ आदमी मिले
सब तेजगाम जा रहे हैं जाने किस तरफ़,
कोई कहीं तो ठहरा हुआ आदमी मिले
रौनक भरा ये रात-दिन जगता हुआ शहर
इसमें कहाँ, सुलगता हुआ आदमी मिले
इक जल्दबाज कार लो रिक्शे पे जा चढी
इस पर तो कोई ठिठका हुआ आदमी मिले
बाहर से चहकी दिखती हैं ये मोटरें मगर
इनमें, इन्हीं पे ऐंठा हुआ आदमी मिले.
देखें कहीं, तो हमको भी दिखलाइये ज़रूर
गर आदमी में ढलता हुआ आदमी मिले
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009
ग़ज़ल मनु बेतखल्लुस, दिल्ली
ग़ज़ल
मनु बेतखल्लुस, दिल्ली
जिसने थामा अम्बर को वो तुझे सहारा भी देगा,
जिसने नज़र अता की है, वो कोई नज़ारा भी देगा
छोड़ न यूँ उम्मीद का दामन, ऐसे भी मायूस न हो,
अभी छुपा है बेशक, पर वो कभी इशारा भी देगा
छोड़ अभी साहिल के सपने, मौजों से टकराता चल
यहीं हौसला नैया का, इक रोज किनारा भी देगा
दूर उफ़क से नज़र हटा मत, रात भले ये गहरी है
अंधियारों के बाद, वो तुझको सुबह का तारा भी देगा
देखे फ़कत सराब, मगर यूँ मूँद न तरसी आँखों को
प्यास का ये जज़्बा सहरा में, जल की धारा भी देगा
लाख मिटाए वक्त, तू अपनी कोशिश को जिंदा रखना,
हार का ये अपमान ही इक दिन, जीत का नारा भी देगा
साकी की नज़रें ही पीने वालों की तकदीरें हैं
करता है जो जाम फ़ना, वो जाम सहारा भी देगा
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