कुल पेज दृश्य

सन्तोष कुमार सिंह लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सन्तोष कुमार सिंह लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 7 मार्च 2013

बाल कविता - दादा जी की छींक संतोष कुमार

बाल कविता -
दादा जी की छींक
सन्तोष कुमार सिंह
           *
          दादा जी ने मारी उस दिन,
बड़ी जोर की छींक।
चिन्टू, पिन्टू और बबली की,
निकल गई थी चीख।।
 
बिल्ली के पंजों में जकड़ा,
चूहा भी झट छूटा।
दादी काँपी उनके सिर से,
घट भी गिर कर फूटा।।
 
पगहा तोड़ भगा खूँटे से,
बँधा हुआ जो घोड़ा।
पिल्लों ने भी डर कर देखो,
पान दुग्ध का छोड़ा।।
 
घर के सब सामान अचानक,
आपस में टकराये।
पर दादा निश्चिन्त बैठकर,
हुक्का पीते पाये।।
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
 <ksantosh_45@yahoo.co.in> Web:http://bikhreswar.blogspot.com/

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

बाल कविता - फैशन -सन्तोष कुमार सिंह

बाल कविता - फैशन


-सन्तोष कुमार सिंह, मथुरा
*
देख-देख रोजाना टी०वी०,
फैशन का चढ़ गया बुखार।
कपड़े, गहने, सेंडल लेने,
बिल्ली पहुँची बिग बाजार।।
 
स्लीव लैस दो सूट खरीदे,
ऊँची ऐड़ी के सेंडल।
भरि-भरि हाथ खरीदी चूड़ीं,
और गले का इक पेंडल।।
 
पहना सूट, पहन कर सेंडल,
भागी चूहे के पीछे।
सेंडल फिसल गया सीढ़ी पर,
बिल्ली गिरी धम्म नीचे।।
 
फैशन की मारी बिल्ली की,
किस्मत उस दिन फूट गई।
चूहा छूटा, सिर भी फूटा,
एक टाँग भी टूट गई।।
 
कष्ट देख कर उस बिल्ली का,
बात समझ में यह आई।
कभी-कभी ज्यादा फैशन भी,
बच्चो बनती दुःखदाई।।
---।