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शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

मुक्तिका: क्या कहूँ... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
क्या कहूँ...
संजीव 'सलिल'
*
क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाता.
बिन कहे भी रहा नहीं जाता..

काट गर्दन कभी सियासत की
मौन हो अब दहा नहीं जाता..

ऐ ख़ुदा! अश्क ये पत्थर कर दे,
ऐसे बेबस बहा नहीं जाता.

सब्र की चादरें जला दो सब.
ज़ुल्म को अब तहा नहीं जाता..

हाय! मुँह में जुबान रखता हूँ.
सत्य फिर भी कहा नहीं जाता..

देख नापाक हरकतें जड़ हूँ.
कैसे कह दूं ढहा नहीं जाता??

सर न हद से अधिक उठाना तुम
मुझसे हद में रहा नहीं जाता..

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