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शुक्रवार, 31 मार्च 2017

durgashtottar sha tnam stotra

नवदुर्गा पर्व पर विशेष:
श्री दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
हिंदी काव्यानुवाद
*
शिव बोलेः ‘हे पद्ममुखी! मैं कहता नाम एक सौ आठ।
दुर्गा देवी हों प्रसन्न नित सुनकर जिनका सुमधुर पाठ।१।
ओम सती साघ्वी भवप्रीता भवमोचनी भवानी धन्य।
आर्या दुर्गा विजया आद्या शूलवती तीनाक्ष अनन्य।२।
पिनाकिनी चित्रा चंद्रघंटा, महातपा शुभरूपा आप्त।
अहं बुद्धि मन चित्त चेतना, चिता चिन्मया दर्शन प्राप्त।३।
सब मंत्रों में सत्ता जिनकी, सत्यानंद स्वरूपा दिव्य।
भाएॅं भाव-भावना अनगिन, भव्य-अभव्य सदागति नव्य।४।
शंभुप्रिया सुरमाता चिंता, रत्नप्रिया हों सदा प्रसन्न।
विद्यामयी दक्षतनया हे!, दक्षयज्ञ ध्वंसा आसन्न।५।
देवि अपर्णा अनेकवर्णा पाटल वदना-वसना मोह।
अंबर पट परिधानधारिणी, मंजरि रंजनी विहॅंसें सोह।६।
अतिपराक्रमी निर्मम सुंदर, सुर-सुंदरियॉं भी हों मात।
मुनि मतंग पूजित मातंगी, वनदुर्गा दें दर्शन प्रात।७।
ब्राम्ही माहेशी कौमारी, ऐंद्री विष्णुमयी जगवंद्य।
चामुंडा वाराही लक्ष्मी, पुरुष आकृति धरें अनिंद्य।८।
उत्कर्षिणी निर्मला ज्ञानी, नित्या क्रिया बुद्धिदा श्रेष्ठ ।
बहुरूपा बहुप्रेमा मैया, सब वाहन वाहना सुज्येष्ठ।९।
शुंभ-निशुंभ हननकर्त्री हे!, महिषासुरमर्दिनी प्रणम्य।
 मधु-कैटभ राक्षसद्वय मारे, चंड-मुंड वध किया सुरम्य।१०।
सब असुरों का नाश किया हॅंस, सभी दानवों का कर घात।
सब शास्त्रों की ज्ञाता सत्या, सब अस्त्रों को धारें मात।११।
अगणित शस्त्र लिये हाथों में, अस्त्र अनेक लिये साकार।
सुकुमारी कन्या किशोरवय, युवती यति जीवन-आधार।१२।
प्रौढ़ा नहीं किंतु हो प्रौढ़ा, वृद्धा मॉं कर शांति प्रदान।
महोदरी उन्मुक्त केशमय, घोररूपिणी बली महान।१३।
अग्नि-ज्वाल सम रौद्रमुखी छवि, कालरात्रि तापसी प्रणाम।
नारायणी भद्रकाली हे!, हरि-माया जलोदरी नाम।१४।
तुम्हीं कराली शिवदूती हो, परमेश्वरी अनंता द्रव्य।
हे सावित्री! कात्यायनी हे!!, प्रत्यक्षा विधिवादिनी श्रव्य।१५।
दुर्गानाम शताष्टक का जों, प्रति दिन करें सश्रद्धा पाठ।
देवि! न उनको कुछ असाध्य हो , सब लोकों में उनके ठाठ।१६।
मिले अन्न धन वामा सुत भी, हाथी-घोड़े बँधते द्वार।
सहज साध्य पुरुषार्थ चार हो, मिले मुक्ति होता उद्धार।१७।
करें कुमारी पूजन पहले, फिर सुरेश्वरी का कर ध्यान।
पराभक्ति सह पूजन कर फिर, अष्टोत्तर शत नाम ।१८।
पाठ करें नित सदय देव सब, होते पल-पल सदा सहाय।
राजा भी हों सेवक उसके, राज्य लक्ष्मी प् वह हर्षाय।१९।
गोरोचन, आलक्तक, कुंकुम, मधु, घी, पय, सिंदूर, कपूर।
मिला यंत्र लिख जो सुविज्ञ जन, पूजे हों शिव रूप जरूर।२०।
भौम अमावस अर्ध रात्रि में, चंद्र शतभिषा हो नक्षत्र।
स्तोत्र पढ़ें लिख मिले संपदा, परम न होती जो अन्यत्र।२१।
।।इति श्री विश्वसार तंत्रे दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र समाप्त।।
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संजीव
९४२५१८३२४४

बुधवार, 29 मार्च 2017

muktak

मुक्तक-   
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एक दृष्टि से देखें जग को कोई न अपना गैर है।
करे अनीति तनिक जो उसकी नहीं कहीं भी खैर है।
 
आस्था-कलश, प्रयास सलिल, श्रम आम्र-पर्ण, श्रीफल परिणाम-
कृपा-दृष्टि, मुस्कान मधुर कहती न कोई भी गैर है।।
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sawaiyaa

अरसात सवैया ( वार्णिक छंद )-7भानस,1राजभा 211 211 211 211 211 211 211 212 ( 2 लघु को गुरू मानना वर्जित ) पाँव पड़ूं कर जोर मनावत मातु उमा भव-सागर तारिणी दीपक धूप कपूर जलावत आरति गावत दुःख निवारिणी धीरज कौन विधी धरुं मात विचार करो मम काज सवारिणी मातु हरो मम आपद भीषण दीन दुखी जन को भय हारिणी लता यादव

sapt shloki durga - hindi kavyanuvad


नवरात्रि और सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र हिंदी काव्यानुवाद सहित)
*
नवरात्रि पर्व में मां दुर्गा की आराधना हेतु नौ दिनों तक व्रत किया जाता है। रात्रि में गरबा व डांडिया रास कर शक्ति की उपासना तथा विशेष कामनापूर्ति हेतु दुर्गा सप्तशती, चंडी तथा सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ किया जाता है। दुर्गा सप्तशती तथा चंडी पाठ जटिल तथा प्रचण्ड शक्ति के आवाहन हेतु है। इसके अनुष्ठान में अत्यंत सावधानी आवश्यक है, अन्यथा क्षति संभावित हैं। दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ करने में अक्षम भक्तों हेतु प्रतिदिन दुर्गा-चालीसा अथवा सप्तश्लोकी दुर्गा के पाठ का विधान है जिसमें सामान्य शुद्धि और पूजन विधि ही पर्याप्त है। त्रिकाल संध्या अथवा दैनिक पूजा के साथ भी इसका पाठ किया जा सकता है जिससे दुर्गा सप्तशती,चंडी-पाठ अथवा दुर्गा-चालीसा पाठ के समान पूण्य मिलता है।
कुमारी पूजन नवरात्रि व्रत का समापन कुमारी पूजन से किया जाता है। नवरात्रि के अंतिम दिन दस वर्ष से कम उम्र की ९ कन्याओं को माँ दुर्गा के नौ रूप (दो वर्ष की कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी चार वर्ष की कल्याणी, पाँच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की काली, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा, दस वर्ष की सुभद्रा) मान पूजन कर मिष्ठान्न, भोजन के पश्चात् व दान-दक्षिणा भेंट करें। सप्तश्लोकी दुर्गा ॐ निराकार ने चित्र गुप्त को, परा प्रकृति रच व्यक्त किया। महाशक्ति निज आत्म रूप दे, जड़-चेतन संयुक्त किया।। नाद शारदा, वृद्धि लक्ष्मी, रक्षा-नाश उमा-नव रूप- विधि-हरि-हर हो सके पूर्ण तब, जग-जीवन जीवन्त किया।। *
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः
जनक-जननि की कर परिक्रमा, हुए अग्र-पूजित विघ्नेश। आदि शक्ति हों सदय तनिक तो, बाधा-संकट रहें न लेश ।। सात श्लोक दुर्गा-रहस्य को बतलाते, सब जन लें जान- क्या करती हैं मातु भवानी, हों कृपालु किस तरह विशेष? * शिव उवाच- देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी। कलौ हि कार्यसिद्धयर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः॥ शिव बोले: 'सब कार्यनियंता, देवी! भक्त-सुलभ हैं आप। कलियुग में हों कार्य सिद्ध कैसे?, उपाय कुछ कहिये आप।।' * देव्युवाच- श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्‌। मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥ देवी बोलीं: 'सुनो देव! कहती हूँ इष्ट सधें कलि-कैसे? अम्बा-स्तुति बतलाती हूँ, पाकर स्नेह तुम्हारा हृद से।।' * विनियोग-
स्वस्थ्य चित्त वाले सज्जन, शुभ मति पाते, जीवन खिलता है।
अनुष्टप्‌ छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः। ॐ रचे दुर्गासतश्लोकी स्तोत्र मंत्र नारायण ऋषि ने छंद अनुष्टुप महा कालिका-रमा-शारदा की स्तुति में श्री दुर्गा की प्रीति हेतु सतश्लोकी दुर्गापाठ नियोजित।। * ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥१॥ ॐ ज्ञानियों के चित को देवी भगवती मोह लेतीं जब। बल से कर आकृष्ट महामाया भरमा देती हैं मति तब।१। * दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि। दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥२॥ माँ दुर्गा का नाम-जाप भयभीत जनों का भय हरता है,
रोगानशोषानपहंसि तुष्टा
दुःख-दरिद्रता-भय हरने की माँ जैसी क्षमता किसमें है? सबका मंगल करती हैं माँ, चित्त आर्द्र पल-पल रहता है।२। * सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥३॥ मंगल का भी मंगल करतीं, शिवा! सर्व हित साध भक्त का। रहें त्रिनेत्री शिव सँग गौरी, नारायणी नमन तुमको माँ।३। * शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥४॥ शरण गहें जो आर्त-दीन जन, उनको तारें हर संकट हर। सब बाधा-पीड़ा हरती हैं, नारायणी नमन तुमको माँ ।४। * सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥५॥ सब रूपों की, सब ईशों की, शक्ति समन्वित तुममें सारी। देवी! भय न रहे अस्त्रों का, दुर्गा देवी तुम्हें नमन माँ! ।५। *
***
रूष्टा तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति॥६॥ शेष न रहते रोग तुष्ट यदि, रुष्ट अगर सब काम बिगड़ते। रहे विपन्न न कभी आश्रित, आश्रित सबसे आश्रय पाते।६। * सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌॥७॥ माँ त्रिलोकस्वामिनी! हर कर, हर भव-बाधा। कार्य सिद्ध कर, नाश बैरियों का कर दो माँ! ।७। * ॥इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम्‌॥
।श्री सप्तश्लोकी दुर्गा (स्तोत्र) पूर्ण हुआ।

bhojpuri geet

अवधी भाषा में 
मतदाता जागरूकता गीत 
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
*
चलौ हो वोट डारी सबते पहिले...
चुनावी तेउहारी सबते पहिले
चलौ हो वोट डारी सबते पहिले...
सबते पहिले हो सबते पहिले.....२
चलौ हो वोट डारी सबते पहिले...
भोर हुइ गवा अब ना सोएव जल्दी तेने जागेउ
दुइ लोटिया देहीं पर डारेउ सबका लै के भागेउ
यज्ञ यहौ है सुनि लेउ भैया सब जन यहिमा लागेउ
सोंचि समझि मतदान करेउ तुम मदद न कउनौ मागेउ
करौ हो तइयारी सबते पहिले
चलौ हो वोट डारी सबते पहिले…
पासइ मा मतदान हुइ रहा पैयाँ-पैयाँ जायेउ
बूढ़ेन वा विकलांग जनेन का संघै लै के आयेउ
लालच मैंहा जो कोइ फाँसै वहि ते बचेउ बचायेउ
जेहिका वोट दिहेउ तुम भाइनि वहिका रहेउ छिपायेउ
यहै है होसियारी सबते पहिले...
चलौ हो वोट डारी सबते पहिले…
बुद्धा कहिहैं मॅंगरे हुइहैं सगरे मॅंगिहैं वोटउ
सुनेउ सुनायेउ सबकी 'अम्बर' दिहेउ न वोटउ खोटउ
ऐसइ -वैसइ ठाढ़ लड़ि रहे कोऊ पार न पावै
वोट दिहेउ तुम वहिका भौजी जो तुमरे मन भावै
बचायेउ फुलवारी सबते पहिले
चलौ हो वोट डारी सबते पहिले…
सबते पहिले हो सबते पहिले.....२
चलौ हो वोट डारी सबते पहिले…
*
संपर्क : 09415047020, 05862-244440
९१, आगा कालोनी सिविल लाइन्स सीतापुर उत्तर प्रदेश २६१००१

शनिवार, 25 मार्च 2017

chhappay

छंद सलिला-
रोला-उल्लाला मिले, बनता 'छप्पय' छंद
*
छप्पय षट्पदिक (६ पंक्तियों का), संयुक्त (दो छन्दों के मेल से निर्मित), मात्रिक (मात्रा गणना के आधार पर रचित), विषम (विषम चरण ११ मात्रा, सम चरण १३ मात्रा ) छन्द हैं। इसमें पहली चार पंक्तियाँ चौबीस मात्रिक रोला छंद (११ + १३ =२४ मात्राओं) की तथा बाद में दो पंक्तियाँ उल्लाला छंद (१३+ १३ = २६ मात्राओं या १४ + १४ = २८मात्राओं) की होती हैं। उल्लाला में सामान्यत:: २६ तथा अपवाद स्वरूप २८ मात्राएँ होती हैं। छप्पय १४८ या १५२ मात्राओं का छंद है। संत नाभादास सिद्धहस्त छप्पयकार हुए हैं। नस्कृत पिंगल ग्रन्थ  'प्राकृतपैंगलम्' में इसके लक्षण और भेद वर्णित हैं। 

छप्पय के भेद- 
छंद प्रभाकरकार जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' के अनुसार छप्पय के ७१ प्रकार हैं। छप्पय अपभ्रंश और हिन्दी में समान रूप से प्रिय रहा है। चन्दबरदाई ने पृथ्वीराज रासो, तुलसीदास ने कवितावली, केशवदास ने रामचंद्रिका, नाभादास ने भक्तमाल, भूषण ने शिवराज भूषण, मतिराम ने ललित ललाम, सूदन ने सुजान चरित, पद्माकर ने  प्रतापसिंह विरुदावली तथा जोधराज ने हम्मीर रासो में  छप्पय का प्रभावपूर्ण प्रयोग किया है। इस छन्द के प्रारम्भ में प्रयुक्त 'रोला' में गति का चढ़ाव है और अन्त में 'उल्लाला' में उतार है। इसी कारण युद्ध आदि के वर्णन में भावों के उतार-चढ़ाव का इसमें अच्छा वर्णन किया जाता है। नाभादास, तुलसीदास तथा हरिश्चन्द्र ने भक्ति-भावना के लिये छप्पय छन्द का प्रयोग किया है।

उदाहरण -
"डिगति उर्वि अति गुर्वि, सर्व पब्बे समुद्रसर। 
ब्याल बधिर तेहि काल, बिकल दिगपाल चराचर। 
दिग्गयन्द लरखरत, परत दसकण्ठ मुक्खभर। 
सुर बिमान हिम भानु, भानु संघटित परस्पर। 
चौंकि बिरंचि शंकर सहित, कोल कमठ अहि कलमल्यौ। 
ब्रह्मण्ड खण्ड कियो चण्ड धुनि, जबहिं राम शिव धनु दल्यौ॥"- कवितावली बाल. ११ 

लक्षण छन्द-
रोला के पद चार, मत्त चौबीस धारिये।
उल्लाला पद दोय, अंत माहीं सुधारिये।।
कहूँ अट्ठाइस होंय, मत्त छब्बिस कहुँ देखौ।
छप्पय के सब भेद मीत, इकहत्तर लेखौ।।
लघु-गुरु के क्रम तें भये,बानी कवि मंगल करन।
प्रगट कवित की रीती भल, 'भानु' भये पिंगल सरन।। -जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' 
*
उल्लाला से योग, तभी छप्पय हो रोला।
छाया जग में प्यार, समर्पित सुर में बोला।। .
मुखरित हो साहित्य, घुमड़ती छंद घटायें।
बरसे रस की धार, सृजन की चलें हवायें।।
है चार चरण का अर्धसम, पन्द्रह तेरह प्रति चरण। 
सुन्दर उल्लाला सुशोभित, भाये रोला से वरण।। -अम्बरीश श्रीवास्तव
*
उदाहरण- 
०१. कौन करै बस वस्तु कौन यहि लोक बड़ो अति। 
को साहस को सिन्धु कौन रज लाज धरे मति।।
को चकवा को सुखद बसै को सकल सुमन महि।
अष्ट सिद्धि नव निद्धि देत माँगे को सो कहि।।
जग बूझत उत्तर देत इमि, कवि भूषण कवि कुल सचिव।
दच्छिन नरेस सरजा सुभट साहिनंद मकरंद सिव।। -महाकवि भूषण, शिवा बावनी
(सिन्धु = समुद्र; ocean or sea । रज = मिट्टी; mud, earth । सुमन = फूल; flower । इमि = इस प्रकार; this way । सचिव = मन्त्री; minister, secretary । सुभट = बहुत बड़ा योद्धा या वीर; great warrior.)

भावार्थ- संसार जानना चाहता है, कि वह कौन व्यक्ति है जो किसी वस्तु को अपने वश में कर सकता है, और वह कौन है जो इस पृथ्वी-लोक में सबसे महान है? साहस का समुद्र कौन है और वह कौन है जो अपनी जन्मभूमि की माटी की लाज की रक्षा करने का विचार सदैव अपने मन में रखेता है? चक्रवाक पक्षी को सुख प्रदान करने वाला१ कौन है? धरती के समस्त सात्विक-मनों में कौन बसा हुआ है? मांगते ही जो आठों प्रकार की सिद्धियों और नवों प्रकार की निधियों से परिपूर्ण बना देने का सामर्थ्य रखता है, वह कौन है? इन सभी प्रश्नों को जानने की उत्कट आकांक्षा संसार के मन में उत्पन्न हो गयी है। इसलिये कवियों के कुल के सचिव भूषण कवि, सभी प्रश्नों का उत्तर इस प्रकार देते है − वे है दक्षिण के राजा, मनुष्यों में सर्वोत्कृष्ट एवं साहजी के कुल में जो उसी तरह उत्पन्न हुए हैं, जैसे फूलों में सुगंध फैलाने वाला पराग उत्पन्न होता है, अर्थात शिवाजी महाराज। शिवाजी के दादा, मालोजी को मालमकरन्द भी कहा जाता था। 

संकेतार्थ- १. शिवाजी का शौर्य सूर्य समान दमकता है। चकवा नर-मादा सूर्य-प्रकाश में ही मिलन करते है। शिवाजी का शौर्य-सूर्य रात-दिन चमकता रहता है, अत: चकवा पक्षी को अब रात होने का डर नहीं है। अतः वह सुख के सागर में डूबा हुआ है। २. अष्टसिद्धियाँ : अणिमा- अपने को सूक्ष्म बना लेने की क्षमता, महिमा: अपने को बड़ा बना लेने की क्षमता, गरिमा: अपने को भारी बना लेने की क्षमता, लघिमा: अपने को हल्का बना लेने की क्षमता, प्राप्ति: कुछ भी निर्माण कर लेने की क्षमता, प्रकाम्य: कोई भी रूप धारण कर लेने की क्षमता, ईशित्व: हर सत्ता को जान लेना और उस पर नियंत्रण करना, वैशित्व: जीवन और मृत्यु पर नियंत्रण पा लेने की क्षमता ३. नवनिधियाँ: महापद्म, पद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील और खर्ब।

काव्य-सुषमा और वैशिष्ट्य- 'साहस को सिंधु' तथा 'मकरंद सिव' रूपक अलंकार है। शिवाजी को साहस का समुद्र तथा शिवाजी महाराज मकरंद कहा गया है उपमेय, (जिसका वर्णन किया जा रहा हो, शिवाजी), को उपमान (जिससे तुलना की जाए समुद्र, मकरंद) बना दिया जाये तो रूपक अलंकार होता है। “सुमन”- श्लेष अलंकार है। एक बार प्रयुक्त किसी शब्द से दो अर्थ निकलें तो श्लेष अलंकार होता है। यहाँ सुमन = पुष्प तथा अच्छा मन। “सरजा सुभट साहिनंद”– अनुप्रास अलंकार है। एक वर्ण की आवृत्ति एकाधिक बार हो तो अनुप्रास अलंकार होता है। यहाँ ‘स’ वर्ण की आवृत्ति तीन बार हुई है। “अष्ट सिद्धि नव निद्धि देत माँगे को सो कहि?” अतिशयोक्ति अलंकार है। वास्तविकता से बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर कहने पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। यह राज्याश्रित कवियों की परंपरा रही है। प्रश्नोत्तर या पहेली-शैली का प्रयोग किया गया है। 

२. बूढ़े या कि ज़वान, सभी के मन को भाये। 
गीत-ग़ज़ल के रंग, अलग हट कर दिखलाये।। 
सात समंदर पार, अमन के दीप जलाये। 
जग जीता, जगजीत, ग़ज़ल सम्राट कहाये।। 
तुमने तो सहसा कहा था, मुझको अब तक याद है। 
गीत-ग़ज़ल से ही जगत ये, शाद और आबाद है।। -नवीन चतुर्वेदी, (जगजीत सिंह ग़ज़ल गायक के प्रति)

०३. लेकर पूजन-थाल प्रात ही बहिना आई।
उपजे नेह प्रभाव, बहुत हर्षित हो भाई।।
पूजे वह सब देव, तिलक माथे पर सोहे।
बँधे दायें हाथ, शुभद राखी मन मोहे।।
हों धागे कच्चे ही भले, बंधन दिल के शेष हैं।
पुनि सौम्य उतारे आरती, राखी पर्व विशेष है।। -अम्बरीश श्रीवास्तव (राखी पर)
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आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, ९४२५१ ८३२४४, salil.sanjiv@gmail.com

विश्ववाणी हिंदी 

संसार की प्राचीनतम भाषा संस्कृत व आधुनिक भारत की सबसे अधिक बोली व समझी जाने वाली भाषा आर्यभाषा-हिन्दी हमारे देश की वास्तविक पहचान है। हिन्दी में संस्कृत के अधिकांश शब्दों का प्रयोग  होने से इसे संस्कृत-तनया कहा जाता है ।हिंदी बोलने, पढ़ने और लिखने में सर्वाधिक सरल भाषा है।  सरल होना व पूरे देश में इसका बोला व समझा जाना है। यह दोनों ही भाषायें हमारे देश की आत्मा व अस्मिता होने के साथ विश्व के अन्य देशों में हमारे देश की पहचान भी हैं। जिस प्रकार से हम पूर्व मिले हुए वा देखे हुए व्यक्तियों को उनके अनेक लक्षणों से पहचान लेते हैं उसी प्रकार से संसार में लोग हमारी इन दोनों भाषाओ को सुनकर अनुमान लगा लेते हैं कि इन भाषाओं को बोलने वाला व्यक्ति भारतीय है। संस्कृत कोई साधारण व सामान्य भाषा नहीं है। यह वह भाषा है जो हमें ईश्वर से सृष्टि के आरम्भ में परस्पर व्यवहार करने के लिए मिली थी। यह एक ऐसी भाषा है जिसे मनुष्य स्वयं निर्मित नहीं कर सकते थे। इसमें अनेक विशेषतायें हैं जो संसार की अन्य भाषाओं में नहीं है। पहली बात तो यह है कि यह भाषा सबसे अधिक प्राचीन है। दूसरी संस्कृत की एक विशेषता यह भी है कि यह संसार की सभी भाषाओं की जननी अर्थात् सभी भाषाओं की मां या दादी मां है। संसार की सारी भाषायें संस्कृत से ही उत्पन्न होकर अस्तित्व में आईं हैं। संसार की प्राचीनतम् पुस्तकें चार वेद यथा ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अर्थववेद इस संस्कृत भाषा में ही हैं जो विश्व की सभी भाषाओं व ज्ञान व विज्ञान का आधार होने के साथ सत्य व यथार्थ ज्ञान, कर्म, उपासना व विज्ञान के भण्डार हैं। वेदों के समकालीन व पूर्व का कोई ग्रन्थ संस्कृत से इतर संसार की किसी अन्य भाषा में नहीं है। इस तथ्य व यथार्थ स्थिति को विदेशी विद्वानों ने भी स्वीकार किया है। संस्कृत भाषा संसार में सबसे अधिक वैज्ञानिक भाषा है। इसमें मनुष्यों के मुख से उच्चारित होने वाली सभी ध्वनियों को स्वरों व व्यंजनों के द्वारा देवनागरी लिपि में लिपिबद्ध किया जा सकता है तथा उसे शुद्ध रूप से उच्चारित किया जा सकता है। संस्कृत व हिन्दी भाषाओं की वर्णमाला एक है और यह संसार में अक्षर, एक-एक ध्वनि व शब्दोच्चार की सर्वोत्तम वर्णमाला है। संसार की अन्य भाषाओं में यह गुण विद्यमान नहीं है कि उनके द्वारा सभी ध्वनियों का पृथक-पृथक उच्चारण किया जा सके। इ़स कारण से संस्कृत संसार की सभी भाषाओं में शीर्ष स्थान पर है। संस्कृत भाषा में प्राचीनतम् ग्रन्थ वेद संहिताये तो हैं ही, इनके अतिरिक्त चार उपवेद क्रमशः आयुर्वेद, धनुर्वेद, गन्धर्ववेद, अर्थवेद/शिल्पवेद, चार प्राचीन ब्राहमण ग्रन्थ क्रमशः ऐतरेय, शतपथ, साम व गोपथ तथा 6 वेदांग क्रमशः शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छन्दः और ज्योतिष भी वैदिक संस्कृत व वेदार्थ के ज्ञान में सहायक ग्रन्थ हैं। छः दर्शन जो वेदों के उपांग कहे जाते हैं वह हैं योग, सांख्य, वैशेषिक, न्याय, वेदान्त और मीमांसा, यह सभी संस्कृत में ही हैं। इनके अतिरिक्त 11 उपनिषद् ग्रन्थ, मनुस्मृति, रामायण व महाभारत एवं 8 आरण्यक ग्रन्थ आदि विशाल साहित्य संस्कृत में उपलब्ध है जो आज से हजारों व लाखों वर्ष पूर्व लिखा गया था। इन ग्रन्थों के अतिरिक्त भी देश विदेश के पुस्तकालयों में संस्कृत भाषा में लिखित हजारों वा लाखों पाण्डुलिपियां विद्यमान है जिनका अध्ययन व मूल्याकंन किया जाना है। आज भारत में अनेक भाषायें व बोलियां प्रयोग में लाई जाती हैं। परन्तु महाभारत काल व उसके कई सौ व हजार वर्षों तक संस्कृत ही एकमात्र भाषा बोलचाल व परस्पर व्यवहार की भाषा थी। जब इस तथ्य पर विचार करते हैं तो हमें आश्चर्य होता है।
 
                आज संस्कृत को कठिन भाषा माना जाता है परन्तु सृष्टि के आरम्भ से महाभारत काल तक और उसके सैकड़ों व हजारों वर्षों तक संस्कृत भाषा का संसार पर वर्चस्व रहा है। कारण खोजते हैं तो वह हमारे ऋषियों के कारण था जो हर बात का ध्यान रखते थे और पुरूषार्थ करते थे। उन दिनों राजा भी वैदिक धर्म व संस्कृत के प्रेमी व ऋषियों के आज्ञाकारी होते थे। ऋषियों और महाभारत काल तक के चक्रवत्र्ती आर्य राजाओं के कारण लगभग 2 अरब वर्ष से कुछ कम अवधि तक सारे संसार पर संस्कृत ने अपने सदगुणों के कारण राज्य किया है और सबका दिल जीता है। यह भाषा न केवल भारतीयों व उनके पूर्वजों की भाषा रही है अपितु विश्व के सभी लोगों के पूर्वजों की भाषा रही है जिसका कारण यह है कि प्राचीन काल में तिब्बत में ईश्वर ने प्रथम व आदि मनुष्यों की सृष्टि की थी। वहां धीरे-धीरे जनसंख्या वृद्धि होने व सुख समृद्धि होने पर लोग चारों दिशाओं में जाकर बसने लगे। वर्णन मिलता है कि उनके पास अपने विमान होते थे। वह अपने परिवार व मित्रों सहित सारे संसार का भ्रमण करते थे और जो स्थान उन्हें जलवायु व अन्य कारणों से पसन्द आता था वहां अपने परिवार व इष्टमित्रों को ले जाकर बस्ती बसा देते थे। अपने मूल देश भारत वा आर्यावत्र्त में भी उनका आना जाना होता रहता था। आज हमारे देशवासियों व विदेशियों को यह वर्णन काल्पनिक लग सकता है परन्तु यह वास्तविकता है कि हमारे पूर्वज वेदज्ञान व विज्ञान से पूर्णतः परिचित थे व उसका आवश्यकतानुसार उपयोग करते थे। इसमें आश्चर्य करने जैसी कोई बात नहीं है। हां, यह भी सत्य है कि महाभारत काल से कुछ समय पूर्व पतन होना आरम्भ हुआ जो महाभारत काल के बाद बहुत तेजी से हुआ और हमारा समस्त ज्ञान-विज्ञान, हमारे तत्कालीन पूर्वजों के आलस्य प्रमाद व हमारे पण्डितों व पुजारियों की अकर्मण्यता व अध्ययन व अध्यापन आदि सभी अधिकार स्वयं में निहित कर लेने व दूसरों को इससे वंंिचत कर देने से नष्ट होकर सारा देश अज्ञान, अन्धविश्वासों एवं कुरीतियों से ग्रसित हो गया। हम संस्कृत की महत्ता की चर्चा कर रहे थे तो यह भी बता देते हैं कि वैदिक संस्कृत के ज्ञान के लिए अष्टाध्यायी, महाभाष्य, निरूक्त व निघण्टु आदि अनेक ग्रन्थों का अध्ययन करने व इससे व्याकरण का ज्ञान हो जाने पर संस्कृत के सभी ग्रन्थों को पढ़ा वा समझा जा सकता है। संस्कृत के व्याकरण जैसा व्याकरण संसार की किसी भी भाषा में नहीं है। यह अपूर्व विद्या है जिसकी रचना साक्षात्कृतधर्मा ऋषियों ने की है। आज विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में संस्कृत का अध्यापन होता है। उन्नीसवीं शताब्दी में जर्मनी व इंग्लैण्ड आदि देशों के अनेक विद्वानों ने संस्कृत पढ़ी थी और वेदों पर कार्य किया। वेदों को सुरक्षित रखने में भी प्रो. मैक्समूलर जैसे कई विद्वानों का योगदान है।
 
हिन्दी का पद्य व गद्य साहित्य भी अत्यन्त विशाल है। अनेक कवियों एवं गद्य लेखकों ने हिन्दी को सजाया व संवारा है। महर्षि दयानन्द का भी हिन्दी के स्वरूप के निर्धारण, इसे सजाने-संवारने व प्रचार प्रसार करने में प्रमुख योगदान है। उन्होंने इतिहास में पहली बार हिन्दी को अध्यात्म की व धर्मशास्त्रों की भाषा बनाया। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जब हिन्दी का स्वरूप भी ठीक से निर्धारित नहीं हुआ था, संस्कृत के अद्वितीय विद्वान होने व उस पर पूरा अधिकार होने पर भी महर्षि दयानन्द जी ने दूरदृष्टि का परिचय देते हुए हिन्दी को अपनाया और सत्यार्थप्रकाश जैसे विश्व इतिहास में सर्वोत्तम धर्म ग्रन्थ की हिन्दी में रचना कर ऐतिहासिक कार्य किया जिसके लिए हिन्दी जगत सदैव उनका ऋणी रहेगा। उन्होंने एक स्थान पर लिखा भी है कि उन्होंने देश भर में भाषाई एकता की स्थापना के लिए हिन्दी को चुना और कि उनकी आंखें वह दिन देखना चाहती हैं कि जब हिमालय से कन्याकुमारी और अटक से कटक देवनागरी अक्षरों का प्रचार हो। आज यह हिन्दी भारत की राष्ट्र व राज भाषा दोनो ही है। हिन्दी का सर्वाधिक महत्व इसकी जन्मदात्री संस्कृत का होना है। इसी से यह इतनी महिमा को प्राप्त हुई है। लार्ड मैकाले ने संस्कृत व सभी भारतीय भाषाओं को समाप्त कर अंग्रेजी को स्थापित करने का स्वप्न देखा था। हमारे देश के बहुत से लोगों ने उनको अपना आदर्श भी बनाया और आज भी वही उनके आदर्श हैं, परन्तु वह अपने उद्देश्य में कृतकार्य नहीं हो सके। ऐसा होने के पीछे कुछ दैवी शक्ति भी अपना कार्य करती हुई दिखाई देती है। आज हिन्दी में विश्व में अपना प्रमुख स्थान बना लिया है। अनेक हिन्दी के चैनलों का पूरे विश्व में प्रसारण होता है। हम विगत 40-50 वर्षों से बीबीसी, वाइस आफ अमेरिका, रेडियो बीजिंग व सोवियत रूस से हिन्दी के प्रसारण सुनते चले आ रहे हैं। इस दृष्टि से हिन्दी का पूरे विश्व पर प्रभाव है। यदि हम अपने पड़ोसी देशों चीन, श्रीलंका, पाकिस्तान, बर्म्मा, भूटान व नेपाल आदि पर दृष्टि डाले तो हम पाते हैं कि इन सभी देशों में अपनी-अपनी भाषायें एवं बोलियां हैं परन्तु इनमें जनसंख्या की दृष्टि से यदि किसी भाषा का सबसे अधिक प्रभाव है तो वह प्रथम वा द्वितीय स्थान पर हिन्दी का ही है। चीनी भाषा चीन की जनसंख्या की दृष्टि से हिन्दी के समान व इससे कुछ अधिक बोली जाती है, ऐसा अनुमान है। अतः यह स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है कि संस्कृत की तरह आर्यभाषा हिन्दी भी भारत की विश्व में पहचान है।
 
                 लेख को समाप्त करने से पूर्व हम यह भी कहना चाहते हैं कि चार वेद एवं प्राचीन आश्रम शिक्षा पद्धति पर आधारित हमारे गुरूकुल भी भारत की विश्व में पहचान हैं। योग दर्शन व योग भी वेद का एक उपांग है और इस विषय का प्राचीनतम ग्रन्थ हजारों वर्ष पूर्व महर्षि पतंजलि ने लिखा था। वेद संसार का सबसे प्राचीनतन व ज्ञान, कर्म, उपासना व विज्ञान के यथार्थ ज्ञान का ईश्वरीय प्रेरणा से उत्पन्न धर्म ग्रन्थ है। गुरूकुल संसार की सबसे प्राचीन शिक्षा पद्धति होने व वर्तमान में भी देश भर में प्रचलित होने के कारण आज भी जीवन्त है। लार्ड मैकाले द्वारा पोषित अंग्रेजी शिक्षा से पोषित स्कूलों के होते हुए भी देश भर में गुरूकुल शिक्षा प्रणाली से पोषित सैकड़ों गुरूकुल चल रहे हैं जहां ब्रह्मचारी अर्थात् विद्यार्थी अंग्रेजी व हिन्दी नहीं अपितु संस्कृत में वार्तालाप करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि संस्कृत कोई मृत व अव्यवहारिक भाषा नहीं अपितु जाती जागती व्यवहारिक भाषा है। गुरूकुल शिक्षा पद्धति का अनुकरण व अनुसरण कर ही संसार में आवासीय प्रणाली के स्कूल स्थापित किये गये हैं जिन्हें आज अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। मर्यादापुरूषोत्तम श्री राम, योगेश्वर श्रीकृष्ण व वेदाद्धारक और समाजसुधारक महर्षि दयानन्द इसी शिक्षा पद्धति की देन थे। अंग्रेजी शिक्षा पद्धति अपने जन्म काल से आज तक एक भी राम, कृष्ण, दयानन्द, चाणक्य, शंकर, युधिष्ठिर व अर्जुन नहीं दे सकी। हमें लगता है कि महर्षि दयानन्द द्वारा सत्यार्थ प्रकाश सम्पोषित गुरूकुल पद्धति का भविष्य उज्जवल है। आने वाले समय में सारा संसार इसे अपनायेगा। यह वेद और गुरूकुल भी भारत की पहचान है। इसी कारण इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री रहे रैम्जे मैकडानल गुरूकुल का भ्रमण करने आये थे और यहां से लौटकर उन्होंने गुरूकुल की प्रशंसा करने के साथ गुरूकुल के संस्थापक स्वामी श्रद्धानन्द को जीवित ईसामसीह तथा सेंट पीटर की उपमा से नवाजा था। संस्कृत, हिन्दी, वेद, गुरूकुल व योग के प्रचार में स्वामी रामदेव व उनके आस्था आदि चैनलों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। यह भी देश का सौभाग्य है कि इसे वर्तमान में एक हिन्दी प्रेमी प्रधानमंत्री मिला है जिसने विश्व में हिन्दी व भारत का गौरव बढ़ाया है। अन्त में हम यही कहना चाहते हैं कि विश्व में भारत की पहचान के मुख्य कारक हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत व हिन्दी दोनों हैं। इन्हीं पंक्तियों के इस लेख को विराम देते हैं।
 
–मनमोहन कुमार आर्य-
 
डॉ.अशोक कुमार तिवारी
 
कॉरपोरेट जगत रिलायंस में तो राष्ट्र और राष्ट्रभाषा हिंदी दोनों के खिलाफ बोला जाता है :————-14 सितम्बर 2010 (हिंदी दिवस) के दिन पाकिस्तानी बार्डर से सटे इस इलाके में रिलायंस स्कूल जामनगर ( गुजरात) के प्रिंसिपल श्री एस. सुंदरम बच्चों को माइक पर सिखाते हैं “हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है, बड़ों के पाँव छूना गुलामी की निशानी है, गाँधीजी पुराने हो गए उन्हें भूल जाओ——- बार-बार निवेदन करने पर मोदी कुछ नहीं कर रहे हैं कारण ‌ – हिंदी विरोधी राज ठाकरे से मोदी की नजदीकियाँ ( देखिए राजस्थान पत्रिका- 30/1/13 पेज न.01), गुजरात हाई कोर्ट का निर्णय कि गुजरातियों के लिए हिंदी विदेशी भाषा के समान है तथा हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है ( देखिए राजस्थान पत्रिका-10-5-13, पेज नं.- 03 ), जिस समय पूरा देश पाकिस्तानियों द्वारा भारत के सैनिक का सर काटे जाने तथा दिल्ली की दुखद घटनाओं से दुखी था उसी समय वाइब्रेंट गुजरात के अहमदाबाद में आयोजित ‘बायर सेलर मीट’ में 9 और 10 जनवरी 2013 को पाकिस्तानी शिष्टमंडल ने भी शिरकत की थी (देखिए राजस्थान पत्रिका-14/1/13 पेज न.01), गुजरात में मजदूरी करने को विवश हैं जनसेवक ( देखिए राजस्थान पत्रिका- 26/8/13 पेज न.03), गुजरात के कच्छ में सिख किसानों पर जमीन से बेदखली का खतरा (देखिए राजस्थान पत्रिका-06-8-13, पेज नं.- 01), ———गरीब वहाँ मर रहे हैं, राष्ट्रभाषा हिंदी का अपमान खुलेआम हो रहा है :—————–के.डी.अम्बानी बिद्या मंदिर रिलायंस जामनगर (गुजरात) के प्रिंसिपल अक्सर माइक पर बच्चों तथा स्टाफ के सामने कहते रहते हैं :- “ पाँव छूना गुलामी की निशानी है, माता-पिता यदि आपको डाट-डपट करें तो आप पुलिस में शिकायत कर सकते हो, गांधी जी पुराने हो गए उनको छोड़ो फेसबुक को अपनाओ, पीछे खड़े शिक्षक-शिक्षिकाएँ आपके रोल मॉडल बनने के लायक नहीं हैं ये अपनी बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ खरीद कर लाए हैं, 14 सितम्बर 2010 (हिंदी दिवस) के दिन जब इन्हें आशीर्वाद के शब्द कहने को बुलाया गया तो इन्होंने सभी के सामने माइक पर कहा ‘कौन बोलता है हिंदी राष्ट्रभाषा है बच्चों हिंदी टीचर आपको गलत पढ़ाते हैं’ इतना कहकर जैसे ही वे पीछे मुड़े स्टेज पर ऑर्केस्ट्रा टीम के एक बच्चे शोभित ने उनसे पूछ ही लिया – ’आप के अनुसार यदि हिन्दी राष्ट्रभाषा नहीं है तो राष्ट्रभाषा क्या है’, जिसका जवाब प्रिंसिपल सुंदरम के पास नहीं था ।
 
भारत देश में यदि भारतीय संस्कृति तथा राष्ट्रभाषा के बारे में बच्चों के मन में ऐसी धारणा भरी जाएगी तो क्या ये उचित होगा वो भी पाकिस्तान से सटे सीमावर्ती इलाके में?….. पाकिस्तान से सटे इस इलाके का स्त्रात्जिक महत्व भी है। बच्चों के मन में ऐसी गलत धारणाएँ डालकर प्रिंसिपल सुंदरम दुश्मनों की मदद कर रहे हैं ।
रिलायंस कम्पनी के के0 डी0 अम्बानी विद्यालय में घोर अन्याय चल रहा है, 11-11 साल काम कर चुके स्थाई हिंदी टीचर्स को निकाला जाता है,उनसे रिलायंस वा अम्बानी विद्यालय के अधिकारियों द्वारा मारपीट भी की जाती है, स्थानीय पुलिस, शिक्षा अधिकारी, जनप्रतिनिधि यहाँ तक कि शिक्षा मंत्री भी बार-बार सच्चाई निवेदन करने के बावजूद चुप हैं, पाकिस्तान से सटे इस सीमावर्ती क्षेत्र में राष्ट्रभाषा – हिंदी वा राष्ट्रीयता का विरोध तथा उसपर ये कहना कि सभी हमारी जेब में हैं रावण की याद ताजा कर देता है अंजाम भी वही होना चाहिए….सैकड़ों पत्र लिखने के बावजूद, राष्ट्रपति – प्रधानमंत्री कार्यालय से आदेश आने के बावजूद भी गुजरात सरकार चुप है ?…….. ! मेरे किसी पत्र पर ध्यान नहीं दे रहे हैं—— मैं भी अहमदाबाद में रहकर हिंदी विरोधियों को ललकार रहा हूँ- सच्चाई कह रहा हूँ—– ताज्जुब नहीं कि किसी दिन मेरा भी एनकाउंटर हो जाए पर ये जंग बंद न होने पाए ये वायदा करो मित्रों——-जय हिंद…….! जयहिंदी…….!!!
 
June 17th, 2015
 
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राष्ट्र के कामकाज और व्यवहार की भाषा ही देश की भाषा हो
 
Posted On June 19, 2015
 
 
अशोक “प्रवृद्ध”
 
जातीय अर्थात राष्ट्रीय उत्थान और सुरक्षा के लिये किसी भी देश की भाषा वही होना श्रेयस्कर होता है,जो जाति अर्थात राष्ट्र के कामकाज और व्यवहार की भाषा होl समाज की बोल-चाल की भाषा का प्रश्न पृथक् हैlजातीय  सुरक्षा हेतु व्यक्तियों के नामों में समानता अर्थात उनके स्त्रोत में समानता होने या यों कहें कि नाम संस्कृत भाषा अथवा ऐतिहासिक पुरुषों एवं घटनाओं और जातीय उपलब्धियों से ही सम्बंधित होने का सम्बन्ध समस्त हिन्दू समाज से है, चाहे वह भारतवर्ष में रहने वाला हिन्दू हो अथवा किसी अन्य देश में रहने वाला होlहिन्दू समाज किसी देश अथवा भूखण्ड तक सीमित नहीं है वरन यह भौगोलिक सीमाओं को पार कर वैश्विक समाज बन गया है lइस कारण समाज की भाषा,नित्यप्रति के व्यवहार का माध्यम तो अपने-अपने देश की भाषा ही होनी चाहिये और होगी और अपने समाज का साहित्य और इतिहास उस देश की भाषा में अनूदित करने का प्रयत्न करना चाहिये, ताकि भावी पीढ़ी अपने मूल भारतीय समाज से कट कर रह न जायेl जातीय भाषा उस देश की भाषा ही होनी चाहिये जिस देश में समाज के घटक निवास करते होंlयद्यपि यह निर्विवाद सत्य है कि संस्कृत भाषा और इसकी लिपि देवनागरी सरलतम और पूर्णतः वैज्ञानिक हैं और यह भी सत्य है कि यदि मानव समाज कभी समस्त भूमण्डल की एक भाषा के निर्माण का विचार करेगी तो उस विचार में संस्कृत भाषा और देवनागरी लिपि अपने-अपने अधिकार से ही स्वतः स्वीकृत हो जायेंगीlजैसे किसी भी व्यवहार का प्रचलित होना उसके सबके द्वारा स्वीकृत किया जाना एक प्रबल युक्ति हैlइस पर भी व्यवहार की शुद्धता,सरलता और सुगमता उसके स्वीकार किये जाने में प्रबल युक्ति हैlसंसार कि वर्तमान परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न देशों में रहते हुए भी हिन्दू समाज अपने-अपने देश की भाषा को अपनी देश मानेंगे और भारतवर्ष के हिन्दू समाज का यह कर्तव्य है कि अपना मूल साहित्य वहाँ के लोगों से मिल कर उन देशों की भाषा में अनुदित कराएं जिन-जिन देशों में हिन्दू-संस्कृति के मानने वाले लोग रहते हैंl
 
                 समस्त संसार की एकमात्र भाषा व उसकी लिपि का प्रश्न तो अभी भविष्य के गर्भ में है, जब कभी इस प्रकार का प्रश्न उपस्थित होगा तब संस्कृत भाषा व देवनागरी लिपि का दावा प्रस्तुत किया जायेगा और भाषा के रूप में संस्कृत भाषा और देवनागरी लिपि अपनी योग्यता के आधार पर विचारणीय और अन्ततः सर्वस्वीकार्य होगीl जहाँ तक हमारे देश भारतवर्ष का सम्बन्ध है यह प्रश्न इतना जटिल नहीं जितना कि संसार के अन्य देशों में हैlभारतवर्ष की सोलह राजकीय भाषाएँ हैंlइन भाषाओँ में परस्पर किसी प्रकार का विवाद भी नहीं हैlहिन्दी के समर्थकों ने कभी भी यह दावा नहीं किया कि किसी क्षेत्रीय भाषा के स्थान पर उसका प्रचलन किया जाये,ना ही कभी इस बात पर विवाद हुआ कि किसी क्षेत्रीय भाषा को भारतवर्ष की राष्ट्रभाषा बनाने में बाधा उत्पन्न की जायेlस्वराज्य के आरम्भिक काल में किसी मूर्ख हिन्दी भाषी श्रोत्ता ने किसी के तमिल अथवा बँगला बोलने पर आपत्ति की होगी,यह उसके ज्ञान की शून्यता और बुद्धि की दुर्बलता के कारण हुआ होगाlहिन्दी का किसी भी क्षेत्रीय भाषा से न कभी किसी प्रकार का विवाद रहा है और न ही अब हैlवास्तविक विवाद तो अंग्रेजी और हिन्दी भाषा के मध्य है, और यह विवाद इंडियन नॅशनल काँग्रेस की देन हैlजब १८८५ में मुम्बई तत्कालीन बम्बई में काँग्रेस का प्रथम अधिवेशन हुआ था तब उसमें ही यह कहा गया था कि इस संस्था की कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में हुआ करेगीlउस समय इसका कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि उस काँग्रेसी समाज में केवल अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोग ही थेlवहाँ कॉलेज अर्थात महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालयों के स्नात्तकों के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं थाl न ही इस संस्था को किसी प्रकार का सार्वजनिक मंच बनाने का ही विचार थाl और न ही उस समय कोई यह सोच भी सकता था कि कभी भारवर्ष से ब्रिटिश साम्राज्य का सफाया भी होगाlकारण चाहे कुछ भी रहा हो किन्तु यह निश्चित है कि तब से ही अंग्रेजी की महिमा बढती रही है और यह निरन्तर बढती ही जा रही हैlबाल गंगाधर तिलक ने दक्षिण में और आर्य समाज ने उत्तर में इसका विरोध किया,परन्तु आर्य समाज का विरोध तो १९०७ में जब ब्रिटिश सरकार का कुठाराघात हुआ तो धीमा पड़ गया और बाल गंगाधर तिलक के आन्दोलनकी समाप्ति उनके पकड़े जाने और छः वर्ष तक बन्दी-गृह में बन्द रहकर गुजारने के कारण हुयीlजहाँ तिलक जी बन्दी-गृह से मुक्त होने के उपरान्तमोहन दास करमचन्द गाँधी की ख्याति का विरोध नहीं कर सके वहाँ आर्य समाज भी गाँधी के आंदोलन के सम्मुख नत हो गयाlगाँधी प्रत्यक्ष में तो सार्वजनिक नेता थे,परन्तु उन्होंने अपने और काँग्रेस के आंदोलन की जिम्मेदारी अर्थात लीडरी अंग्रेजी पढ़े-लिखे के हाथ में ही रखने का भरसक प्रयत्न कियाlपरिणाम यह हुआ कि काँग्रेस की जन्म के समय की नीति कि अंग्रेजी ही उनके आंदोलन की भाषा होगी,स्थिर रही और वही आज तक भी बिना विरोध के अनवरत चली आ रही हैl
 
            स्वाधीनता आन्दोलनके इतिहास की जानकारी रखने वालों के अनुसार १९२०-२१ में जवाहर लाल नेहरु की प्रतिष्ठा गाँधी जी के मन में इसी कारण थी कि काँग्रेस के प्रस्तावों को वे अंग्रेजी भाषा में भली-भान्ति व्यक्त कर सकते थेlकालान्तर में तो नेहरु ही काँग्रेस के सर्वेसर्वा हो गये थे,किन्तु यह सम्भव तभी हो पाया था जबकि गाँधी ने आरम्भ में अपने कन्धे पर बैठाकर उनको प्रतिष्ठित करने में सहायता की थीlनेहरु तो मन से ही अंग्रेजी के भक्त थे और अंग्रेजी पढ़े-लिखों में उन्हें अंग्रेजी का अच्छा लेखक माना जाता थाlउनका सम्बन्ध भी अंग्रेजीदाँ लोगों से ही अधिक थाl१९२० से लेकर १९४७ तक गाँधीजी ने प्रयास करके नेहरु को काँग्रेस की सबसे पिछली पंक्ति से लाकर ना केवल प्रथम पंक्ति में बिठा दिया,अपितु उनको काँग्रेस का मंच भी सौंप दिया सन १९२० में जब पँजाबमें मार्शल लॉ लागू किया गया था तो काँग्रेस ने इसके लिये एक उप-समिति का गठन किया थाlउस समय एक बैठक में जवाहर लाल नेहरु की विचित्र स्थिति थेlलाहौर में नकेल की हवेली में जवाहर लाल नेहरु का भाषण आयोजित किया गया थाlउस समय नेहरु की करिश्माई व्यक्तित्व और वाकपटुता की ऊँचाई की स्थिति यह थी कि नेहरु को सुनने के लिये पन्द्रह-बीस से अधिक श्रोतागण वहाँ पर उपस्थित नहीं थेlसन १९२९ में लखनऊ के गंगाप्रसाद हॉल में काँग्रेस कमिटी का अधिवेशन हो रहा थाlउस बैठक के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरु थेlउसी वर्ष लाहौर में सम्पन्न होने वाले काँग्रेस के अधिवेशन के लिये अध्यक्ष का निर्वाचन किया जाना था,उसके लिये मोहनदास करमचंद गाँधी और डाक्टर पट्टाभि सितारामैय्या के नाम थेlसितारामैय्या ने गाँधी के पक्ष में अपना नाम वापस ले लियाlऐसी सबको आशा थी और ऐसा सर्वसम्मत निर्णय माना  जा रहा था कि अध्यक्ष पद के लिये गाँधी के नाम की घोषणा हो जायेगी,परन्तु तभी कुछ विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गयीlपहले तो कानाफूसी होती रही और फिर जब घोषणा करने का समय आया तो उससे कुछ ही क्षण पूर्व गाँधी और मोतीलाल नेहरु मंच से उठकर बराबर वाले कमरे में विचार-विमर्श करने के लिये चले गयेlपाँच-दस मिनट वहाँ मंत्रणा के उपरान्त जब दोनों वापस आये और अधिवेशन के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरु ने घोषणा करते हुए कहा कि गाँधी जी ने जवाहर लाल नेहरु के पक्ष में अपना नाम वापस ले लिया हैlइस प्रकार लाहौर काँग्रेस के अध्यक्ष पद के लिये जवाहर लाल नेहरु के नाम की घोषणा हो गयीlअधिवेशन में उपस्थित सभी सदस्य और दर्शक यह सुन अवाक रह गयेlकुछ मिनट तो इस घोषणा का अर्थ समझने में ही लग गये और जब बात समझ में आयी तो तब किसी ने ताली बजायी और फिर सबने उसका अनुकरण कियाlवहाँ से उठने पर कानाफूसी होने लगी कि यहाँ जवाहर लाल का नाम किस प्रकार आ गया?कसीस ने कहा कि कदाचित एक भी मत उसके पक्ष में नहीं थाl
 
          इसी प्रकार सन १९३६ की लखनऊ काँग्रेस के अवसर पर गाँधीजी के आग्रह पर ही जवाहर लाल नेहरु को काँग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया थाlइसकी पुंरावृत्ति सन १९४६ में भी हुयी थीlउस समय किसी भी प्रांतीय कमिटी की ओर से जवाहर लाल के नाम का प्रस्ताव नहीं आया था,तदपि गाँधी के आग्रह पर श्री कृपलानी की कूटनीति के कारण जवाहर लाल नेहरु को काँग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया और फिर संयोग से भारतवर्ष विभाजन के पश्चात उन्हीं को भारतवर्ष का प्रधानमंत्री बनाया गयाlइस प्रकार स्पष्ट है कि गाँधी तो स्वयं हिन्दी के समर्थक थे,किन्तु सन १९२० से आरम्भ कर अपने अन्तिम क्षण तक वे अंग्रेजी भक्त नेहरु का ही समर्थन करते रहे थे,और जवाहरलाल का भरसक प्रयत्न था कि अंग्रेजी यहाँ की राष्ट्रभाषा बन जायेlइस प्रकार यह ऐतिहासिक सत्य है कि अपने आरम्भ से लेकर अन्त तक काँग्रेस हिन्दी को भारतवर्ष की राष्ट्रभाषा बनने नहीं देना चाहती थीlउसका कारण यह नहीं था कि क्षेत्रीय भाषायें हिन्दी का विरोध करती थीं या करती हैंlभारतवर्ष विभाजन के पश्चात केन्द्र व अधिकाँश राज्यों में सर्वाधिक समय तक काँग्रेस ही सत्ता में रही है और उसने निरन्तर अंग्रेजी की ही सहायता की है,उसका ही प्रचार-प्रसार किया हैlवर्तमान में भी हिन्दी का विरोध किसी क्षेत्रीय भाषा के कारण नहीं वरन गुलामी का प्रतीक अंग्रेजी के पक्ष के कारण किया जा रहा हैlऐसे में स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि इस देश की भाषा वही होगी जो देश की बहुसंख्यक हिन्दू समाज की भाषा होगी अथवा कि उसके स्थान पर बैठी अंग्रेजी ही वह स्थान ले लेगी?लक्षण तो शुभ नहीं दिखलायी देते क्योंकि १८८५ में स्थापित काँग्रेस ने स्वयं तो बिना संघर्ष के मजे का जीवन जिया है, और जहाँ तक भाषा का सम्बन्ध है,काँग्रेस सदा ही अंग्रेजी के पक्ष में रही हैlइसमें काँग्रेस के नेताओं का भी किसी प्रकार का कोई दोष नहीं है,हिन्दी के समर्थक ही इसके लिये दोषी हैंlस्पष्ट रूप से कहा जाये तो देश का बहुसंख्यक समाज इसके लिये दोषी हैlआज तक बहुसंख्यक हिन्दू समाज के नेता रहे हैं कि राज्य के विरोध करने पर भी हिन्दू समाज के आधारभूत सिद्धान्तों का चलन होता रहेगाl
 
काँग्रेस हिन्दू संस्था नहीं है वर्ण यह कहा जाये कि अपने आधारभूत सिद्धान्तों काँग्रेस हिन्दू विचारधारा का विरोध करने वाली संस्था है तो किसी प्रकार की कोई अतिशयोक्ति नहीं होगीlकाँग्रेस न केवल अंग्रेजियत को ही अपना कंठाभरण बनाये हुए है अपितु यह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की शिक्षा के आधार पर ईसाईयत के प्रचार को भी पाना कंठाभरण बनाये हुए हैlइस मानसिकता को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की मानसिकता का नाम दिय जाता है,क्योंकि इस यूनिवर्सिटी की स्थापना ही ईसाईयत के प्रचार के लिये ही की गयी थीlअधिकांश समय तक सत्ता में बैठी भारतवर्ष के काँग्रेस सरकार की मानसिकता यही रही है और इसके लिये जवाहरलाल नेहरु और नेहरु खानदान का काँग्रेस पर वर्चस्व ही मुख्य कारण हैlजवाहर लाल नेहरु की मानसिकता वही थीl
 
         किसी भी प्रकार शिक्षा सरकारी हाथों में नहीं रहनी चाहियेlस्वाभाविक रूप में शिक्षा उअर फिर भाषा का प्रश्न राजनीतिक लोगों के हाथों से निकलकर शिक्षाविदों के हाथ में आ जाना चाहियेlशिक्षा का माध्यम जन साधारण की भाषा होनी चाहियेlविभिन्न प्रदेशों में यह क्षेत्रीय भाषाओँ में दी जानी चाहियेlऐसी परिस्थिति में हिन्दी और हिन्दू-संस्कृति का प्रचार-प्रसार क्षेत्रीय भाषाओँ का उत्तरदायित्व हो जायेगाlअपने क्षेत्र में हिन्दी भी ज्ञान-विज्ञान की वाहिका बन जायेगीlभारतीय संस्कृति अर्थात हिन्दू समाज का प्रचार क्षेत्रीय भाषाओँ के माध्यम से किया जाना अत्युत्तम सिद्ध होगाlशिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषा होlसरकारी कामकाज भी विभिन्न क्षेत्रों में उनकी क्षेत्रीय भाषा में ही होनी चाहियेlअंग्रेजी अवैज्ञानिक भाषा है और इसकी लिपि भी पूर्ण नहीं अपितु पंगु हैlक्षेत्रीय भाषाओँ के पनपने से यह स्वतः ही पिछड़ जायेगी अंग्रेजी के विरोध का कारण यह है कि अंग्रेजी का साहित्य संस्कृत उअर वैदिक साहित्य की तुलना में किसी महत्व का नहीं हैlहिन्दू मान्यताओं की भली-भान्ति विस्तार सहित व्याख्या कदाचित अंग्रेजी में उस सुन्दरता से हो भी नहीं सकती जिस प्रकार की संस्कृत में की जा सकती हैlसंस्कृत भाषा में वर्णित उद्गारों अथवा भावों का प्रकटीकरण हिन्दी में बड़ी सुगमता से किया जा सकता हैlइसके अतिरिक्त हिन्दी का अगला पग संस्कृत ही है कोई अन्य भाषा नहींlसंस्कृत के उपरान्त वेद भाषा उसका अगला पग हैlअतः भारतीय अर्थात बहुसंख्यक हिन्दू सुरक्षा का प्रश्न पूर्ण रूप से भाषा के साथ जुड़ा हुआ है क्योंकि मानव मनके उत्थान के लिये हिन्दी और संस्कृत भाषा में अतुल साहित्य भण्डार विद्यमान हैl

doha

दोहा दुनिया 
*
रश्मि अभय रह कर करे, घोर तिमिर पर वार
खुद को करले अलग तो, कैसे हो भाव-पार?
*
बाती जग उजयारती , दीपक पाता नाम
रुके नहीं पर मदद से, सधता जल्दी काम
*
बाती सँग दीपक मिला, दिया पुलिस ने ठोंक
टीवी पर दो टाँग के, श्वान रहे हैं भौंक
 *
यह बाती उस दीप को, देख जल उठी आप
किसका कितना दोष है?, कौन सकेगा नाप??
*
बाती-दीपक को रहा, भरमाता जो तेल
उसे न कोइ टोंकता, और न भेजे जेल
*
दोष न 'का'-'की' का कहें, यही समय की माँग
बिना पिए भी हो नशा,घुली कुएँ में भाँग
***

बुधवार, 22 मार्च 2017

haiku geet

हाइकु गीत
*
लोकतंत्र में
मनमानी की छूट
सभी ने पाई।
*
          सबको प्यारा
          अपना दल-दल
          कहते न्यारा।
          बुरा शेष का
          तुरत ख़तम हो
          फिर पौबारा।
लाज लूटते
मिल जनगण की
कह भौजाई।
*
          जिसने लूटा
          वह कहता: 'तुम
          सबने लूटा।
          अवसर पा
          लूटता देश, हर
          नेता झूठा।
वादा करते
जुमला कहकर
जीभ चिढ़ाई।
*
          खुद अपनी
          मूरत बनवाते
          शर्म बेच दी।
          संसद ठप
          भत्ते लें, लाज न
          शेष है रही।
कर बढ़वा
मँहगाई सबने
खूब बढ़ाई।
***

dwipadi

द्विपदी
सूरज
*
सुबह उषा का पीछा करता, फिर संध्या से आँख मिला
रजनी के आँचल में छिपता, सूरज किससे करें गिला?
*

doha

दोहा पंचक
*
उसको ही रस-निधि मिले, जो होता रस-लीन। 
 पान न रस का अन्य को, करने दे रस-हीन।। 
*
सलिल साधना स्नेह की, सच्ची पूजा जान।
प्रति पल कर निष्काम तू, जीवन हो रस-खान।।
*
शब्द-शब्द अनुभूतियाँ, अक्षर-अक्षर भाव।
नाद, थाप, सुर, ताल से, मिटते सकल अभाव।।
*
रास न रस बिन हो सखे!, दरस-परस दे नित्य।
तरस रहा मन कर सरस, नीरस रुचे न सत्य।।
 *
सावन-फागुन कह रहे, लड़े न मन का मीत।
गले मिले, रच कुछ नया, बढ़े जगत में प्रीत।।
*

मंगलवार, 21 मार्च 2017

muktak-muktika

मुक्तक
मौन वह कहता जिसे आवाज कह पाती नहीं. 
क्या क्षितिज से उषा-संध्या मौन हो गाती नहीं. 
शोरगुल से शीघ्र ही मन ऊब जाता है 'सलिल'- 
निशा जो स्तब्ध हो तो क्या तुम्हें भाती नहीं?
*
मुक्तिका
*
मौन वह कहता जिसे आवाज कह पाती नहीं।
क्या क्षितिज से उषा-संध्या मौन हो गाती नहीं?

शोरगुल से शीघ्र ही मन ऊब जाता है 'सलिल'-
निशा जो स्तब्ध हो तो क्या तुम्हें भाती नहीं?

कशिश-आकर्षण न हो तो घूमता नित सूर्य क्यों?
मोह होता यदि नहीं तो धरा तरसाती नहीं।।

बँध शिखा के पाश में दे आहुति निज प्राण की।
पतंगा खुश है, लगावों में कमी आती नहीं।।

खिंचावों से दूर रहना कहो संभव है कहाँ?
भोगता जो योग को क्या वही वैरागी नहीं?


*

haiku geet

हाइकु गीत * आया वसंत इन्द्रधनुषी हुए दिशा-दिगंत.. शोभा अनंत हुए मोहित, सुर-मानव संत.. * प्रीत के गीत गुनगुनाती धूप बनालो मीत. जलाते दिए एक-दूजे के लिए कामिनी-कंत.. * पीताभी पर्ण संभावित जननी जैसे विवर्ण.. हो हरियाली मिलेगी खुशहाली होगे श्रीमंत.. * चूमता कली मधुकर गुंजार लजाती लली.. सूरज हुआ उषा पर निसार लाली अनंत.. * प्रीत की रीत जानकर न जाने नीत-अनीत. क्यों कन्यादान? 'सलिल' वरदान दें एकदंत.. ***

kundali

कुंडली
*
रूठी राधा से कहें, इठलाकर घनश्याम
मैंने अपना दिल किया, गोपी तेरे नाम
गोपी तेरे नाम, राधिका बोली जा-जा
काला दिल ले श्याम, निकट मेरे मत आ, जा
झूठा है तू ग्वाल, प्रीत भी तेरी झूठी
ठेंगा दिखा हँसें मन ही मन, राधा रूठी
*
कुंडली
कुंडल पहना कान में, कुंडलिनी ने आज
कान न देती, कान पर कुण्डलिनी लट साज
कुण्डलिनी लट साज, राज करती कुंडल पर
मौन कमंडल बैठ, भेजता हाथी को घर
पंजा-साइकिल सर धुनते, गिरते जा दलदल
खिला कमल हँस पड़ा, फन लो तीनों कुंडल
***

सोमवार, 20 मार्च 2017

lakshmi mantra

माँ लक्ष्मी के मंत्र

कलियुग की सबसे बड़ी जरूरत है ‘धन’ हजारों वर्षों पहले ही भागवत पुराण में यह भविष्यवाणी कर दी गई थी कि कलियुग में एक अच्छा कुल (परिवार) वही कहलाएगा, जिसके पास सबसे अधिक धन होगा। ऐसे ही परिवार का समाज में सम्मान होगा। धन जीवन की छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए ही नहीं, बल्कि समाज में एक सम्मानित स्थान पाने के लिए भी आवश्यक है। हर किसी के पास बेशुमार धन होना संभव नहीं। मनुष्य जीवन में सफलता दो आधार किस्मत और कर्म हैं। किस्मत में धन लिखा है तो वह व्यक्ति अवश्य धन पाएगा, साथ ही ऐसे कर्मों करेगा जिससे से उस तक पहुँच जाए। हिन्दू शास्त्रों में मनुष्य के कर्मों द्वारा उसकी मनोकामना पूर्ति वर्णित है।ऐसे कई शास्त्रीय उपाय हैं जिन्हें करने से मनुष्य अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने में सक्षम होता है। ये शास्त्रीय उपाय मंत्र जाप, दान-पुण्य आदि हैं। धनवान बनने हेतु जातक की राशि के अनुसार धन की देवी लक्ष्मी के मंत्र का जाप करें। इससे जातक के ऊपर धन की वर्षा होकर जीवन से दरिद्रता दूर होती है और वह सुखी बनता है। लक्ष्मी का आशीर्वाद जीवन में धन और खुशहाली दोनों लाते हैं।

मेष राशि के जातक मंगल ग्रह से प्रभावित होते हैं, इनमें कम साधनों में गुजारा करने का गुण नहीं होता। ये हमेशा जीवन से अधिक की अपेक्षा लगाए रहते हैं। मेष राशि के जातक को धन प्राप्ति के लिए माँ लक्ष्मी के ‘श्रीं’ मंत्र का जाप १०००८ बार करना चाहिए।  

वृषभ जाति के जातक ‘परिवार एवं जीवन के प्रति संवेदनशील भाव रखने वाले होते हैं । ये  “ॐ सर्वबाधा विर्निमुक्तो धन-धान्यसुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।“ इस मंत्र का नित्य एक माला जाप करें।

मिथुन राशि के जातक दोहरे व्यक्तित्ववाले लेकिन अपने कार्य के प्रति मेहनती होते हैं । यदि ये ठान लें तो नामुमकिन को मुमकिन बना सकते हैं। इनके लिए लक्ष्मी मंत्र – “ॐ श्रीं श्रीये नम:” इस मंत्र का प्रतिदिन एक माला जाप करें।

 कर्क राशि के जातक परिवार के प्रति प्रेम और उनकी हर जरूरत का ख्याल रखना अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। लक्ष्मी मंत्र – “ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥“ इस मंत्र का प्रतिदिन एक माला जाप करें।

सिंह राशि के जातक समाज में सम्मान पाने और धन के प्रति बेहद आकर्षित होते हैं। इनके लिए लक्ष्मी मंत्र इस प्रकार है – “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नम:” इस मंत्र का प्रतिदिन एक माला जाप करें।

कन्या राशि के जातक बेहद समझदार और सभी लोगों को साथ लेकर चलने वाले होते हैं । जीवन के पर्ति इनकी बेहद सरल सोच होती है, लेकिन फिर भी बाकी लोगों से अलग। लक्ष्मी मंत्र – “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी नम:” इस मंत्र का प्रतिदिन सुबह कम से कम एक माला जाप करें।

जीवन के प्रति तुलानात्मक सोच रखने वाले, समझदार और सुलझे हुए लोग होते हैं तुला राशि के जातक। लक्ष्मी मंत्र – “ॐ श्रीं श्रीय नम:” तुला राशि के जातक इस लक्ष्मी मंत्र का प्रतिदिन एक माला या इससे अधिक जाप भी कर सकते हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वृश्चिक राशि के जातक जीवन के शुरुआती पड़ाव में कई परेशानियां झेलते हैं, लेकिन 28 की उम्र पार करने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति अपने आप सुधरने लगती है। किंतु इसे और बेहतर बनाने के लिए इस लक्ष्मी मंत्र का उपयोग करें – ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नम:”

मेहनती और समझदार होते हैं मकर राशि के जातक। ये लोग कभी भी जीवन में जल्दबाजी में काम नहीं करते। हर काम को सोच-विचार कर करते हैं। लक्ष्मी मंत्र – “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ॥“ इस मंत्र का प्रतिदिन कम से कम एक माला जाप करें।

कुंभ राशि का स्वामी शनि है, शनि कर्मानुसार फल देने वाला ग्रह है इसलिए इस राशि के जातक अपने अच्छे कर्मों पर अच्छा और बुरे कर्मों पर जल्द से जल्द बुरा फल पाते हैं। लक्ष्मी मंत्र – “ऐं ह्रीं श्रीं अष्टलक्ष्मीयै ह्रीं सिद्धये मम गृहे आगच्छागच्छ नमः स्वाहा।“ इस मंत्र का प्रतिदिन एक माला जाप करने से देवी प्रसन्न होंगी।

मीन राशि का स्वामी ग्रह है देवगुरु बृहस्पति, जो कि स्वयं धन-धान्य दिलाने वाले हैं। इनके लिए लक्ष्मी मंत्र इस प्रकार है - “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नम:” नित्य दो माला जाप करने से फल की प्राप्ति होगी।


navgeet

नवगीत: बजा बाँसुरी -
*
बजा बाँसुरी
झूम-झूम मन...
*
जंगल-जंगल
गमक रहा है.
महुआ फूला
महक रहा है.
बौराया है
आम दशहरी-
पिक कूकी, चित
चहक रहा है.
डगर-डगर पर
छाया फागुन...
*
पियराई सरसों
जवान है.
मनसिज ताने
शर-कमान है.
दिनकर छेड़े
उषा लजाई-
प्रेम-साक्षी
चुप मचान है.
बैरन पायल
करती गायन...
*
रतिपति बिन रति
कैसी दुर्गति?
कौन फ़िराये
बौरा की मति?
दूर करें विघ्नेश
विघ्न सब-
ऋतुपति की हो
हे हर! सद्गति.
गौरा माँगें वर
मन भावन...
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