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बुधवार, 24 जुलाई 2013

hindi sattire: sanjiv

व्यंग्य गीत:
हम सर्वोत्तम…
संजीव
*
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
चमत्कार की कथा सुनाएँ,
पत्थर को भी शीश नवाएँ।
लाख कमा चोरी-रिश्वत से-
प्रभु को एक चढ़ा बच जाएँ।
पाप करें, ले नाम पुण्य का
तनिक नहीं होता पल भर गम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
श्रम-कोशिश पर नहीं भरोसा,
किस्मत को हर पल मिल कोसा।
जोड़-तोड़, हेरा-फेरी को-
लाड-प्यार से पाला-पोसा।
मौज-मजा-मस्ती के पीछे
भागे ढोल बजाते ढम-ढम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
भाषण-वीर न हमसा कोई,
आश्वासन की फसलें बोई।
अफसरशाही ऐश कर रही-
मुफलिस जनता पल-पल रोई।
रोटी नहीं?, पेस्ट्री खालो-
सुख के साथ मानते हैं गम।
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
सस्ती औषधि हमें न भाती,
डॉक्टर यम के मित्र-संगाती।
न्यायालय छोड़ें अपराधी-
हैं वकील चोरों के साथी।
बनें बाद में, पहलें टूटें
हैं निर्माण भले ही बेदम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
कोई नंगा मजबूरी में,
कोई नंगा मगरूरी में।
दूरी को दें नाम निकटता-
कहें निकटता है दूरी में।
सात जन्म का बंधन तोड़ें
पल में गर पाते दहेज़ कम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
ठाकुरसुहाती हमको भाती,
सत्य न कोई बात सुहाती।
गैरों का सुख अपना मानें-
निज दुःख बाँट न करें दुभांती।
घड़ियाली आँसू से रहती
आँख हमारी हरदम ही नम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
सुर नर असुर नाम कुछ भी दो,
अनाचार हम नहीं तजेंगे।
जयमाला हित फूल उगाये-
जो ठठरी पर वही सजेंगे।
सीता तज दें, द्रुपदसुता का
चीर खींच लें फैला जाजिम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
​​
Sanjiv verma 'Salil'

रविवार, 2 अक्टूबर 2011

लघुकथा: गाँधी जयंती -- संजीव 'सलिल'

लघुकथा:                     
गाँधी जयंती
संजीव 'सलिल'
*



  बापू आम आदमी के प्रतिनिधि थे। जब तक हर भारतीय को कपड़ा न मिले,
तब तक कपड़े न पहनने का संकल्प उनकी महानता का जीवंत उदाहरण है। वे 
हमारे प्रेरणास्रोत हैं’ 
   -नेताजी भाषण फटकारकर मंच से उतरकर अपनी महँगी आयातित कार में 
बैठने लगे तो एक पत्रकार ने उनसे कथनी-करनी में अन्तर का कारण पूछा।

नेताजी बोले– ‘बापू पराधीन भारत के नेता थे। उनका अधनंगापन पराये शासन में 

देश का दुर्दशा दर्शाता था, हम स्वतंत्र भारत केनेता हैं। अपने देश के जीवनस्तर की 
समृद्धि तथा सरकार की सफलता दिखाने के लिए हमें यह ऐश्वर्य भरा जीवन जीना 
होता है। हमारी कोशिश तो यह है कि हर जनप्रतिनिधि को अधिक से अधिक सुख-
सुविधाएँ दी जाएँ।’

‘चाहे जन प्रतिनिधियों की सुविधाएँ जुटाने में देश के जनगण का दीवाला निकल जाए? 

अभावों की आग में देश का जन सामान्य जलता रहे मगर नेता नीरो की तरह बाँसुरी 
बजाते ही रहेंगे- वह भी गांधी जैसे आदर्श नेता की आड़ में?’
–एक युवा पत्रकार बोल पड़ा।

अगले दिन से उसे सरकारी विज्ञापन मिलना बंद हो गया।

Acharya Sanjiv Salil

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मंगलवार, 20 सितंबर 2011

बोध कथा: शब्द और अर्थ -- संजीव 'सलिल'

बोध कथा:
शब्द और अर्थ 
संजीव 'सलिल'
*
शब्द कोशकार ने अपना कार्य समाप्त होने पर चैन की साँस ली और कमर सीधी करने के लिये लेटा ही था कि काम करने की मेज पर कुछ हलचल सुनाई दी. वह मन मारकर उठा, देखा मेज पर शब्द समूहों में से कुछ शब्द बाहर आ गये थे. उसने पढ़ा - वे शब्द थे प्रजातंत्र, गणतंत्र, जनतंत्र और लोकतंत्र .

हैरान होते हुए कोशकार ने पूछा- ' अभी-अभी तो मैंने तुम सबको सही स्थान पर रखा था, तुम बाहर क्यों आ गये?'

' इसलिए कि तुमने हमारे जो अर्थ लिखे हैं वे सरासर ग़लत लगते हैं. एक स्वर से सबने कहा.

'एक-एक कर बोलो तो कुछ समझ सकूँ.' कोशकार ने कहा. 

'प्रजातंत्र प्रजा का, प्रजा के लिये, प्रजा के द्वारा नहीं, नेताओं का, नेताओं के लिये, नेताओं के द्वारा स्थापित शासन तंत्र हो गया है' - प्रजातंत्र बोला.

गणतंत्र ने अपनी आपत्ति बतायी- ' गणतंत्र का आशय उस व्यवस्था से है जिसमें गण द्वारा अपनी रक्षा के लिये प्रशासन को दी गयी गन का प्रयोग कर प्रशासन गण का दमन जन प्रतिनिधियों कि सहमती से करते हों.'

' जनतंत्र वह प्रणाली है जिसमें जनमत की अवहेलना करनेवाले जनप्रतिनिधि और जनगण की सेवा के लिये नियुक्त जनसेवक मिलकर जनगण की छाती पर दाल दलना अपना संविधान सम्मत अधिकार मानते हैं. '- जनतंत्र ने कहा.

लोकतत्र ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बताया- 'लोकतंत्र में लोक तो क्या लोकनायक की भी उपेक्षा होती है. दुनिया के दो सबसे बड़ा लोकतंत्रों में से एक अपने हित की नीतियाँ बलात अन्य देशों पर थोपता है तो दूसरे की संसद में राजनैतिक दल शत्रु देश की तुलना में अन्य दल को अधिक नुकसानदायक मानकर आचरण करते हैं.' - लोकतंत्र की राय सुनकर कोशकार स्तब्ध रह गया.

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रविवार, 11 सितंबर 2011

लघु कथा २: मुखौटे -- संजीव 'सलिल'

लघु कथा :                                                                                                                                     
मुखौटे
-- संजीव 'सलिल'

*
मेले में बच्चे मचल गये- 'पापा! हमें मुखौटे चाहिए, खरीद दीजिए.'

हम घूमते हुए मुखौटों की दुकान पर पहुँचे. मैंने देखा दुकान पर जानवरों, राक्षसों, जोकरों आदि के ही मुखौटे थे. मैंने दुकानदार से पूछा- 'क्यों भाई! आप राम. कृष्ण, ईसा, पैगम्बर, बुद्ध, राधा, मीरा, गाँधी, भगत सिंग, आजाद, नेताजी, आदि के मुखौटे क्यों नहीं बेचते?'

'कैसे बेचूं? राम की मर्यादा, कृष्ण का चातुर्य, ईसा की क्षमा, पैगम्बर की दया, बुद्ध की करुणा, राधा का समर्पण, मीरा का प्रेम, गाँधी की समन्वय दृष्टि, भगतसिंह का देशप्रेम, आजाद की निडरता, नेताजी का शौर्य  कहीं देखने को मिले तभी तो मुखौटों पर अंकित कर पाऊँगा. आज-कल आदमी के चेहरे पर जो गुस्सा, धूर्तता, स्वार्थ, हिंसा, घृणा और बदले की भावना देखता हूँ उसे अंकित कराने पर तो मुखौटा जानवर या राक्षस का ही बनता है. आपने कहीं वे दैवीय गुण देखे हों तो बतायें ताकि मैं भी देखकर मुखौटों पर अंकित कर सकूँ.' -दुकानदार बोला.

मैं कुछ कह पाता उसके पहले ही मुखौटे बोल पड़े- ' अगर हम पर वे दैवीय गुण अंकित हो भी जाएँ तो क्या कोई ऐसा चेहरा बता सकते हो जिस पर लगकर हमारी शोभा बढ़ सके?' -मुखौटों ने पूछा.

मैं निरुत्तर होकर सर झुकाए आगे बढ़ गया.

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Acharya Sanjiv Salil

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बुधवार, 7 सितंबर 2011

लघु कथा: गुरु दक्षिणा संजीव 'सलिल'

लघुकथा:                                                                                
गुरु दक्षिणा
संजीव 'सलिल'
*
एकलव्य का अद्वितीय धनुर्विद्या अभ्यास देखकर गुरुवार द्रोणाचार्य चकराये कि अर्जुन को पीछे छोड़कर यह श्रेष्ठ न हो जाए.

उन्होंने गुरु दक्षिणा के बहाने एकलव्य का बाएँ हाथ का अँगूठा माँग लिया और यह सोचकर प्रसन्न हो गए कि काम बन गया. प्रगट में आशीष देते हुए बोले- 'धन्य हो वत्स! तुम्हारा यश युगों-युगों तक इस पृथ्वी पर अमर रहेगा.

'आपकी कृपा है गुरुवर!' एकलव्य ने बायें हाथ का अँगूठा गुरु दक्षिणा में देकर विकलांग होने का प्रमाणपत्र बनवाया और छात्रवृत्ति का जुगाड़ कर लिया. छात्रवृत्ति के रुपयों से प्लास्टिक सर्जरी कराकर अँगूठा जुड़वाया, द्रोणाचार्य एवं अर्जुन को ठेंगा बताते हुए 'अंगूठा' चुनाव चिन्ह लेकर चुनाव समर में कूद पड़ा.

तब से उसके वंशज आदिवासी द्रोणाचार्य से शिक्षा न लेकर अँगूठा लगाने लगे.

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Acharya Sanjiv Salil

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शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

लघुकथा: सफलता संजीव 'सलिल'

लघुकथा:                                                                                             
सफलता 
संजीव 'सलिल'
*
गुरु छात्रों को नीति शिक्षा दे रहे थे- 

- ' एकता में ताकत होती है. सबको एक साथ हिल-मिलकर रहना चाहिए- तभी सफलता मिलती है.' 

= ' नहीं गुरु जी! यह तो बीती बात है, अब ऐसा नहीं होता. इतिहास बताता है कि सत्ता के लिए आपस में लड़ने वाले जितने अधिक नेता जिस दल में होते हैं' उसके सत्ता पाने के अवसर उतने ज्यादा होते हैं. समाजवादियों के लिये सत्ता अपने सुख या स्वार्थ सिद्धि का साधन नहीं जनसेवा का माध्यम थी. वे एक साथ मिलकर चले, धीरे-धीरे नष्ट हो गये. क्रांतिकारी भी एक साथ सुख-दुःख सहने की कसमें खाते थे. अंतत: वे भी समाप्त हो गये. जिन मौकापरस्तों ने एकता की फ़िक्र छोड़कर अपने हित को सर्वोपरि रखा, वे आज़ादी के बाद से आज तक येन-केन-प्रकारेण कुर्सी पर काबिज हैं.' -होनहार छात्र बोला. 

- गुरु जी चुप!

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शनिवार, 6 अगस्त 2011

लघुकथा: स्वजन तंत्र -- संजीव 'सलिल'

लघुकथा:                                                          
स्वजन तंत्र

संजीव 'सलिल'
*
राजनीति विज्ञान के शिक्षक ने जनतंत्र की परिभाषा तथा विशेषताएँ बताने के बाद भारत को विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र बताया तो एक छात्र से रहा नहीं गया. उसने अपनी असहमति दर्ज करते हुए कहा:

- ' गुरु जी! भारत में जनतंत्र नहीं स्वजन तंत्र है.'

-' किताब में एसे किसी तंत्र का नाम नहीं है.' - गुरु जी बोले. ' कैसे होगा? यह हमारी अपनी खोज है और भारत में की गयी खोज को किताबों में इतनी जल्दी जगह मिल ही नहीं सकती. यह हमारे शिक्षा के पाठ्य क्रम में भी नहीं है लेकिन हमारी ज़िन्दगी के पाठ्य क्रम का पहला अध्याय यही है जिसे पढ़े बिना आगे का कोई पाठ नहीं पढ़ा जा सकता.' छात्र ने कहा.

-' यह स्वजन तंत्र होता क्या है? यह तो बताओ.' -सहपाठियों ने पूछा.

-' स्वजन तंत्र एसा तंत्र है जहाँ चंद चमचे इकट्ठे होकर कुर्सी पर लदे नेता के हर सही-ग़लत फैसले को ठीक बताने के साथ-साथ उसके वंशजों को कुर्सी का वारिस बताने और बनाने की होड़ में जी-जान लगा देते हैं. जहाँ नेता अपने चमचों को वफादारी का ईनाम और सुख-सुविधा देने के लिए विशेष प्राधिकरणों का गठन कर भारी धन राशि, कार्यालय, वाहन आदि उपलब्ध कराते हैं जिनका वेतन, भत्ता, स्थापना व्यय तथा भ्रष्टाचार का बोझ झेलने के लिए आम आदमी को कानून की आड़ में मजबूर कर दिया जाता है. इन प्राधिकरणों में मनोनीत किए गए चमचों को आम आदमी के दुःख-दर्द से कोई सरोकार नहीं होता पर वे जन प्रतिनिधि कहलाते हैं. वे हर काम का ऊंचे से ऊंचा दाम वसूलना अपना हक मानते हैं और प्रशासनिक अधिकारी उन्हें यह सब कराने के उपाय बताते हैं.'

-' लेकिन यह तो बहुत बड़ी परिभाषा है, याद कैसे रहेगी?' छात्र नेता के चमचे ने परेशानी बताई.

-' चिंता मत कर. सिर्फ़ इतना याद रख जहाँ नेता अपने स्वजनों और स्वजन अपने नेता का हित साधन उचित-अनुचित का विचार किए बिना करते हैं और जनमत, जनहित, देशहित जैसी भ्रामक बातों की परवाह नहीं करते वही स्वजन तंत्र है लेकिन किताबों में इसे जनतंत्र लिखकर आम आदमी को ठगा जाता है ताकि वह बदलाव की मांग न करे.'

-गुरु जी अवाक् होकर राजनीति के व्यावहारिक स्वरुप का ज्ञान पाकर धन्य हो रहे थे.
Acharya Sanjiv Salil

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मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

सामयिक गीत: लाचार है... संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत:                                                                    

लाचार है...

संजीव 'सलिल'
*
मुखिया तो लाचार है,
हालत से बेज़ार है.....
*
जीवन भर था यह अधिकारी.
जो पायी आज्ञा स्वीकारी..
इटली की मैडम का सेवक-
वह दाता, यह दीन-भिखारी.

ना संसद में, ना जनता में
इसका कुछ आधार है...
*
कुर्सी पकड़ बन गया दूला.
मौनी बाबा झूले झूला..
साथी-संगी लोभी-लोलुप-
खुद लगता है बहरा-लूला..

अमरीकी सत्ता का सच्चा
यह फर्माबरदार है...
*
हर कोई मन-मर्जी करता.
चरा समझ देश-धन चरता.
बेकाबू है तन्त्र-प्रशासन.
जी-जीकर भी हर पल मरता..

बेकाबू हर मंत्री वाली
असरहीन सरकार है...
*

Acharya Sanjiv Salil

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रविवार, 20 फ़रवरी 2011

: साहित्य समाचार: मध्य प्रदेश लघु कथाकार परिषद् : २६ वाँ वार्षिक सम्मेलन जबलपुर, २०-२-२०११,

: साहित्य समाचार:
मध्य प्रदेश लघु कथाकार परिषद् : २६ वाँ वार्षिक सम्मेलन
    जबलपुर, २०-२-२०११, 
अरिहंत होटल, रसल चौक, जबलपुर

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' व अन्य लघुकथाकार सम्मानित होंगे

जबलपुर. लघुकथा के क्षेत्र में सतत सक्रिय रचनाकारों कर अवदान को प्रति वर्ष सम्मानित करने हेतु प्रसिद्ध संस्था मध्य प्रदेश लघु कथाकार परिषद् का २६ वाँ वार्षिक सम्मेलन अरिहंत होटल, रसल चौक, जबलपुर में २०-२-२०११ को अपरान्ह १ बजे से आमंत्रित है.

परिषद् के अध्यक्ष मो. मोइनुद्दीन 'अतहर' तथा सचिव कुँवर प्रेमिल द्वारा प्रसरित विज्ञप्ति के अनुसार इस वर्ष ७ लघुकथाकारों को उनके उल्लेखनीय अवदान हेतु सम्मानित किया जा रहा है.

ब्रिजबिहारीलाल श्रीवास्तव सम्मान - श्री संजीव वर्मा 'सलिल', जबलपुर.
सरस्वती पुत्र सम्मान -                   श्री पारस दासोत जयपुर.
रासबिहारी पाण्डेय सम्मान -           श्री अनिल अनवर, जोधपुर.
डॉ. श्रीराम ठाकुर दादा सम्मान -      श्री अशफाक कादरी बीकानेर.
जगन्नाथ कुमार दास सम्मान-        श्री डॉ. वीरेन्द्र कुमार दुबे, जबलपुर.
गोपालदास सम्मान -                     डॉ. राजकुमारी शर्मा 'राज', गाज़ियाबाद.
आनंदमोहन अवस्थी सम्मान-         डॉ. के बी. श्रीवास्तव, मुजफ्फरपुर- मो. मोइनुद्दीन 'अतहर', जबलपुर.

कार्यक्रम प्रो. डॉ. हरिराज सिंह 'नूर' पूर्व कुलपति इलाहाबाद विश्वविद्यालय की अध्यक्षता, प्रो. डॉ. जे. पी. शुक्ल पूर्व कुलपति रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के मुख्यातिथ्य तथा श्री राकेश 'भ्रमर', श्री अंशलाल पंद्रे व श्री निशिकांत चौधरी के विशेषातिथ्य में संपन्न होगा.

इस अवसर पर मो. मोइनुद्दीन 'अतहर' द्वारा सम्पादित परिषद् की लघुकथा केन्द्रित पत्रिका अभिव्यक्ति के जनवरी-मार्च २०११ अंक, श्री कुँवर प्रेमिल द्वारा सम्पादित प्रतिनिधि लघुकथाएँ २०११  तथा श्री मनोहर शर्मा 'माया' लिखित लघुकथाओं के संग्रह मकड़जाल का विमोचन संपन्न होगा.

द्वितीय सत्र में डॉ. तनूजा चौधरी व डॉ. राजकुमार तिवारी 'सुमित्र' लघु कथा के अवदान, चुनौती और भविष्य विषय पर विचार अभिव्यक्ति करेंगे.
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रविवार, 26 दिसंबर 2010

लघुकथा एकलव्य संजीव वर्मा 'सलिल'

लघुकथा                                                                                       

एकलव्य

संजीव वर्मा 'सलिल'

*
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'

- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'

- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'

-हाँ बेटा.'

- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'

*****

रविवार, 19 दिसंबर 2010

लघुकथा: काफिला संजीव वर्मा 'सलिल'

लघुकथा:
  
काफिला

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कें... कें... कें...

मर्मभेदी कटर ध्वनि कणों को छेड़ते एही दिल तक पहुँच गयी तो रहा न गया.बाहर निकलकर देखा कि एक कुत्ता लंगड़ाता-घिसटता-किकयाता हुआ सड़क के किनारे पर गर्द के बादल में अपनी पीड़ा को सहने की कोशिश कर रहा था.

हा...हा...हा...

अट्टहास करता हुआ एक सिरफिरा भिखारी उस कुत्ते के समीप आया ... अपने हाथ की अधखाई रोटी कुत्ते की ओर बढ़ाकर उसे खिलाने और सांत्वना देने की कोशिश करने लगा. तभी खाकी वर्दी में एक पुलिस सिपाही दिखाते ही दोनों सहम गये. मैंने सिपाही की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो वह चिल्ला रहा था 'स्साले... मादर... सड़क पर ऐसे पड़े रहते हैं मानों इनके बाप की जागीर है. ... पर दो लात जमाव तभी हटते हैं.'

'अरे भाई! नाराज़ क्यों होते हो? सड़क पर न रहें तो जाएँ कहाँ? इनका घर-द्वार तो हैं नहीं.' मैंने कहा.

'भाड़ में जाएँ. इनके बाप ने मुझसे पूछ कर तो इन्हें पैदा नहीं किया था..... खुद तो मरेंगे ही मेरी भी नौकरी भी चाट लेंगे. इधर ये सूअर हटते नहीं उधर उन कुत्तों को एक पल का धैर्य नहीं है.'

'अरे, कहे गरम होते हो? कौन छीनेगा तुम्हारी नौकरी? कौन है जिसे गरिया भी रहे हो उससे और डर भी रहे हो.' 

'और कौन? अपने मंत्री जी और उनका बिटुआ.'

तभी लाल बत्तियों से सजी गाड़ियों का लम्बा काफिला सनसनाता हुआ निकलने लगा. लोक और लोकतंत्र की तरह भिखारी और कुत्ता सहमकर एक तरफ दुबक गये.

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बुधवार, 15 दिसंबर 2010

लघु कथा - वन्देमातरम -- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

वन्देमातरम [लघु कथा] - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'




साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।

आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।

आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।

वर्तमान में आप म.प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।

-'मुसलमानों को 'वन्दे मातरम' नहीं गाना चाहिए, वज़ह यह है की इस्लाम का बुनियादी अकीदा 'तौहीद' है। मुसलमान खुदा के अलावा और किसी की इबादत नहीं कर सकता।' -मौलाना तकरीर फरमा रहे थे।


'अल्लाह एक है, वही सबको पैदा करता है। यह तो हिंदू भी मानते हैं। 'एकोहम बहुस्याम' कहकर हिंदू भी आपकी ही बात कहते हैं। अल्लाह ने अपनी रज़ा से पहले ज़मीनों-आसमां तथा बाद में इन्सान को बनाया। उसने जिस सरज़मीं पर जिसको पैदा किया, वही उसकी मादरे-वतन है। अल्लाह की मर्जी से मिले वतन के अलावा किसी दीगर मुल्क की वफादारी मुसलमान के लिए कतई जायज़ नहीं हो सकती। अपनी मादरे-वतन का सजदा कर 'वंदे-मातरम' गाना हर मुसलमान का पहला फ़र्ज़ है। हर अहले-इस्लाम के लिए यह फ़र्ज़ अदा करना न सिर्फ़ जरूरी बल्कि सबाब का काम है। आप भी यह फ़र्ज़ अदा कर अपनी वतन-परस्ती और मजहब-परस्ती का सबूत दें।' -एक समझदार तालीमयाफ्ता नौजवान ने दलील दी।

मौलाना कुछ और बोलें इसके पेश्तर मजामीन 'वन्दे-मातरम' गाने लगे तो मौलाना ने चुपचाप खिसकने की कोशिश की मगर लोगों ने देख और रोक लिया तो धीरे-धीरे उनकी आवाज़ भी सबके साथ घुल-मिल गयी।
 
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