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रविवार, 7 सितंबर 2014

vimarsh: nare aur netagiri -sanjiv

विमर्श:

नारे और नेतागिरी: 

संजीव 
*
नारे और नेतागिरी का चोली- दामन का सा साथ है। नारा लगाना अर्थात अपनी बात अनगिन लोगों तक एक पल में पहुँचाना और अर्थात अनगिन लोगों की आवाज़ अपने आवाज़ में मिलवाकर उनका नायक बन जाना।  

नारा कठिन बात को सरल बनाकर प्रस्तुत करता है ताकि आम आदमी भी दिमाग पर जोर दिए बिना समझ सके।   

नारा 'देखें में छोटे लगें घाव करें गंभीर' की तर्ज़ पर कम से कम शब्दों में लंबी बात कहता है।

नारा किसी बात को प्रभावशाली तरीके से कहता है। 

बहुधा नारा सुनते ही नारा देनेवाला स्मरण हो आता है. 'बम भोले' से भगवन शिव, 'राम-राम' से श्री राम, 'कर्मण्यवाधिकारस्ते' से श्री कृष्ण का अपने आप स्मरण हो आता है। उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत' (उठो, जागो, मनचाहा प्राप्त करो) से स्वामी विवेकानंद, स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है' से लोकमान्य तिलक याद आते हैं। 'इंकलाब ज़िंदाबाद' से अमर क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह  और  'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा' या 'जय हिन्द' सुनते ही नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की याद में सर झुक जाता है। 'अंग्रेजों भारत छोडो' सुनकर गांधी जी, पंचशील का सार 'जियो और जीने दो' सुनकर जवाहरलाल  नेहरू, 'जय जवान जय किसान' सुनकर लाल बहादुर शास्त्री को कौन याद नहीं करता?  

भरत के प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी जी ने नारा कल को नारा विज्ञानं में परिवर्तित करने का प्रयास किया है। हर स्थान और योजना के अनुरूप विचारों को सूत्रबद्ध कर लोक-लुभावन शब्दावली में प्रस्तुत करने में मोदी जी का सानी नहीं ।  

- प्रधानमंत्री नहीं प्रधानसेवक 

- इ गवर्नेंस की तरह ईजी गवर्नेंस 

- चीन से स्पर्धा हेतु ३ एस: स्किल (कुशलता), स्केल (परिमाण/पैमाना), स्पीड (गति)

- आर्थिक छुआछूत: साधनहीनों को बैंक प्रणाली से जोड़ना 

- भारत-नेपाल रिश्ते: एच आई टी : हाई वे, इंफोर्मेशन वे, ट्रांसमिशन वे 

- लेह: ३ पी प्रकाश, पर्यावरण, पर्यटन 

- जापान ३ डी: डेमोक्रेसी, डेमोग्राफी, डिमांड 

- ज़ीरो इफेक्ट - ज़ीरो डिफेक्ट 

-  मेड इन इंडिया, मेक इन इंडिया 

- किसान समस्या: लैब टू लैंड, पर ड्राप मोर क्रॉप, कम जमीन कम समय अधिक फसल 

- ५ टी: ट्रेडिशन, टैलेंट, टूरिज्म, ट्रेड, टेक्नोलॉजी 

यह है मात्र १०० दिनों की उपलब्धि, इस गति से ५ वर्षों में एक पुस्तक सूत्रों की ही तैयार हो जाएगी।

निस्संदेह ये सूत्र और नारे अख़बारों की सुर्खियां बनेंगे किन्तु इनकी द्रुत गति से बढ़ती संख्या क्या इन्हें अल्पजीवी और विस्मरणीय नहीं बना देगी? 

क्या हर दिन नया नारा देने के स्थान पर एक नारे को लेकर लंबे समय तक जनमानस को उत्प्रेरित करना अधिक उपयुक्त न होगा?