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बुधवार, 13 अगस्त 2025

अगस्त १३, इतिहास, संसद, फिरोज गांधी, नवगीत, दोहा, मित्र, मुक्तक, पूर्णिका

सलिल सृजन अगस्त १३
*
पूर्णिका
आईना
बोलता सच आईना
खोलता सच आईना
.
बिका जबसे मीडिया
तोलता सच आईना
.
हाय! संसद में न अब 
ढोलता सच आईना
.
सलिल-जनमत में सतत
घोलता सच आईना
१३.८.२०२५
०००
पूर्णिका
छप्पर है पानी पानी
भू-चूनर धानी-धानी
.
आसमान खैरात लिए
बादल गरजे बन दानी
.
नदी समंदर में फेंके
पाया जल सचमुच मानी
.
पवन बिजुरिया को छेड़े
कहे- जान, दिलवर जानी
.
लिव इन, लव जिहाद घातक
रहो दूर तितली रानी
.
चंपा और चमेली ने
शादी करने की ठानी
.
फुलबगिया अपनी सुंदर
कली कली है लासानी
.
सावन-फागुन दीवाली
बिना 'सलिल' है बेमानी
.
बागबान गुल गुलशन का
नाता नाजुक अरमानी
१३.८.२०२५
०००
पूर्णिका 
मन मंदिर में प्रेम
बसे तभी हो क्षेम
.
कोशिश कर अनवरत
जब तक मिले न एम
.
जग काजल का कक्ष
बच हो नहीं डिफेम
.
शेष न जब धन-देह
हो तब बुक अरु फेम
.
बने हार भी जीत
'सलिल' न छोड़ो गेम
०००
षट्पदी
सामना
.
मैके से लाली लौटी तो, सुन लालू का लाफ
कारण पूछा तो कहे लालू- 'करना माफ
कहता ट्रुथ होना नहीं तुम मुझसे नाराज़
कहा गुरू जी ने यही, प्रवचन में था आज
सिर चढ़ जाए मुसीबत तो मत डरकर भाग
हँसी-खुशी कर सामना, पग पर रखकर पाग।।
०००
केतकी पर सोरठे
हुई केतकी दीन, शिव से मिथ्या वचन कह।
थी मन-वृत्ति मलीन, पछताई भी शाप पा।।
.
श्वेत-पीत अभिराम, कोमल पात हरे हरे।
जपती हरि का नाम, सुरभि बिखेरे दूर तक।।
.
कहें गवाही झूठ, जो वे यह भी जान लें।
किस्मत जाती रूठ, मिलता है अभिशाप भी।।
.
जड़-पत्तों से आप, बना चटाई-टोकनी।
सकें जगत में व्याप, हस्त शिल्प से ख्याति पा।।
.
फुलबगिया में बैठ, जुही-केतकी सहेली।
कह मुकरी में पैठ रोज बूझतीं पहेली।।
.
लव-जिहाद तूफान,
हुई केतकी भीत है।
कोई न ले ले मान, बली बने तब जीत है।।
.
रंग-जाति शैतान, रिपु दहेज दानव मुआ।
लिए ले रहा जान, दिखा केतकी को कुँआ।।
.
१२.८.२०२५
०००
इतिहास
धोया गया संसद भवन
मुहूर्त निकाल तय किया था आजादी का दिन|
हमारे संविधान के निर्माण में २ साल ११ महीने १८ दिन का समय लगा। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान निर्माता कहलाने का गौरव प्राप्त है। डॉ. वे संविधान सभा के अध्यक्ष थे। संविधान के विविध पहलू पर अध्ययन और अनुश्ंसाओं हेतु कई समिति थीं। भीमराव अंबेडकर संविधान बनाने वाली प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे जिसमें कुल ७ सदस्य थे। 

१९४७ में जब यह तय हो गया कि अंग्रेज भारत छोडऩे के लिए तैयार हैं, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने गोस्वामी गणेशदत्त महाराज के माध्यम से उज्जैन के पंडित सूर्यनारायण व्यास को बुलावा भेजा। पंडित व्यास ने पंचांग देखकर बताया कि आजादी के लिए सिर्फ दो ही दिन शुभ हैं। १४ और १५ अगस्त। इसमें एक दिन पाकिस्तान को आजाद घोषित किया जा सकता है और एक दिन भारत को। उन्होंने डॉ. प्रसाद को भारत की आजादी के लिए मध्यरात्रि १२ बजे यानी स्थिर लग्न नक्षत्र का समय सुझाया। ताकि देश में लोकतंत्र स्थिर रहे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद के आग्रह पर उन्होंने बताया कि अगर आजादी १५ अगस्त १९४ की मध्यरात्रि १२ बजे ली गई तो हमारा गणतंत्र अमर रहेगा, १९९०  के बाद से देश की तरक्की होगी और २०२० तक भारत विश्व का सिरमौर बन जाएगा। इतना ही नहीं पंडित व्यास के कहने पर आजादी के बाद देर रात संसद को धोया भी गया था। क्योंकि ब्रिटिश शासकों के बाद अब यहां भारतीय बैठने वाले थे। धोने के बाद उनके बताए मुहूर्त पर गोस्वामी गिरधारीलाल ने संसद की शुद्धि करवाई थी। इसके बाद से चाहे शनि की दशा में देश को आजादी मिली, देश के टुकड़े हो गए, केतु की महादशा में देश भुखमरी और तंगहाली से गुजरा। मगर १९९० में शुक्र की महादशा शुरू होने के बाद देश की तरक्की भी शुरू हो गई।
 
पंडित सूर्यनारायण व्यास के पुत्र राजशेखर ने उनके जीवन और उनकी भविष्यवाणियों पर एक किताब लिखी है। 'याद आते हैं 'शीर्षक वाली इस किताब के ३४ वें 'अध्याय ज्योतिष जगत के सूर्य (पृष्ठ क्रमांक १९७-१९८) में आजादी के दिन के मुहूर्त का उल्लेख किया गया है। राजशेखर ने इस अध्याय में अपने पिता की अन्य भविष्यवाणियों का भी जिक्र किया है। सांदीपनी ऋषि के वंशज महान ज्योतिषाचार्य, लेखक, पत्रकार, पंडित सूर्यनारायण व्यास थे। उनका जन्म २ मार्च १९९  को हुआ था।

भविष्यवाणियां याँ सच निकली - लालबहादुर शास्त्री के ताशकंद जाने से पहले सूर्यनारायण व्यास ने एक लेख में इस बात का उल्लेख कर दिया था कि वे जीवित नहीं लौटेंगे। उन तक यह खबर पहुंची भी लेकिन उन्होंने इसे हँसकर टाल दिया। बाद में भविष्यवाणी सच साबित हुई। ७ दिसंबर १९५० को एक अखबार में उन्होंने लिखा कि उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का स्वास्थ्य अत्यंत चिंताजनक हो सकता है। १७ दिसंबर तक उनके लिए कठिन समय रहेगा। आखिर १६ दिसंबर की अर्ध रात्रि को सरदार पटेल दिवंगत हो गए। इससे पहले १९३२ में उन्होंने एक अंग्रेजी अखबार में भूकंप पर एक लेख लिखा था। फिर एक पत्र लिखकर आने वाले ३०० भूकंपों की सूची प्रकाशित करवा दी। समय के साथ-साथ ये भी सही साबित होती जा रही है। यह पत्र और अखबार सुरक्षित हैं। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद और महात्मा गाँधी के बारे में भी कई सटीक भविष्यवाणियाँ काफी पहले ही कर दी थीं।
***
भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े होते थे फिरोज गाँधी 
*
परिवार से जुड़े होने के बावजूद अपनी अलग पहचान रखने के कायल फिरोज गांधी को एक ऐसे नेता और सांसद के रूप में याद किया जाता है जो हमेशा स्वच्छ सामाजिक जीवन के पैरोकार रहे और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करते रहे। फिरोज के समकालीन लोगों का कहना है कि वह भले ही संसद में कम बोलते रहे लेकिन वे बहुत अच्छे वक्ता थे और जब भी किसी विषय पर बोलते थे तो पूरा सदन उनको ध्यान से सुनता था। उन्होंने कई कंपनियों के राष्ट्रीयकरण का भी अभियान चलाया था।
फिरोज गाँधी अपने दौर के एक कुशल सांसद के रूप में जाने जाते थे। फिरोज इलाहाबाद के रहने वाले थे और आज भी लोग उनकी पुण्यतिथि के दिन उनकी मजार पर जुटते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। दिल्ली में मृत्यु के बाद फिरोज गांधी की अस्थियों को इलाहाबाद लाया गया था और पारसी धर्म के रिवाजों के अनुसार वहां उनकी मजार बनाई गई।
फिरोज गाँधी अच्छे खानपान के बेहद शौकीन थे। इलाहाबाद में फिरोज को जब भी फुर्सत मिलती थी वह लोकनाथ की गली में जाकर कचौड़ी तथा अन्य लजीज व्यंजन खाना पसंद करते थे। इसके अलावा हर आदमी से खुले दिल से मिलते थे। फिरोज गांधी का जन्म १२ अगस्त १९१२ को मुंबई के एक पारसी परिवार में हुआ था। बाद में वह इलाहाबाद आ गए और उन्होंने एंग्लो वर्नाकुलर हाई स्कूल और इवनिंग क्रिश्चियन कालेज से पढ़ाई की। पढ़ाई के दौरान ही उनकी जान पहचान नेहरू परिवार से हुई। शिक्षा के लिए फिरोज बाद में लंदन स्कूल आफ इकोनामिक्स चले गये।
इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान फिरोज और इंदिरा गांधी के बीच घनिष्ठता बढ़ी। इसी दौरान कमला नेहरू के बीमार पड़ने पर वह स्विट्जरलैंड चले गये। कमला नेहरू के आखिरी दिनों तक वह इंदिरा के साथ वहीं रहे। फिरोज बाद में पढ़ाई छोड़कर वापस आ गए और मार्च 1942 में उन्होंने इंदिरा गांधी से हिन्दू रीति रिवाजों के अनुसार विवाह कर लिया। विवाह के मात्र छह महीने बाद भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान दंपत्ति को गिरफ्तार कर लिया गया। फिरोज को इलाहाबाद के नैनी जेल में एक साल कारावास में बिताना पड़ा। आजादी के बाद फिरोज नेशनल हेरल्ड समाचार पत्र के प्रबंध निदेशक बन गये। पहले लोकसभा चुनाव में वह रायबरेली से जीते। उन्होंने दूसरा लोकसभा चुनाव भी इसी संसदीय क्षेत्र से जीता। संसद में उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ कई मामले उठाये जिनमें मूंदड़ा मामला प्रमुख था। फिरोज गांधी का निधन ८ सितंबर १९६०  को दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से हुआ।
***
***
दोहा सलिला
मित्र
*
निधि जीवन की मित्रता, करे सुखी-संपन्न
मित्र न जिसको मिल सके, उस सा कौन विपन्न.
*
सबसे अधिक गरीब वह, मिला न जिसको मित्र
गुल गुलाब जिससे नहीं, बन सकता हो इत्र
*
बिना स्वार्थ संबंध है, मन से मन का मित्र
मित्र न हो तो ज़िंदगी, बिना रंग का चित्र
१३-८-२०२०
***
नवगीत:
*
हल्ला-गुल्ला
शोर-शराबा
*
जंगल में
जनतंत्र आ गया
पशु खुश हैं
मन-मंत्र भा गया
गुराएँ-चीखें-रम्भाएँ
काँव-काँव का
यंत्र भा गया
कपटी गीदड़
पूजता बाबा
हल्ला-गुल्ला
शोर-शराबा
*
शतुरमुर्ग-गर्दभ
हैं प्रतिनिधि
स्वार्थ साधते
गेंडे हर विधि
शूकर संविधान
परिषद में
गिद्ध रखें
परदेश में निधि
पापी जाते
काशी-काबा
हल्ला-गुल्ला
शोर-शराबा
*
मानुष कैट-वाक्
करते हैं
भौंक-झपट
लड़ते-भिड़ते हैं
खुद कानून
बनाकर-तोड़ें
कुचल निबल
मातम करते हैं
मिटी रसोई
बसते ढाबा
हल्ला-गुल्ला
शोर-शराबा
***
मुक्तक
*
मापनी: २१२११ १२१११ २११
छंद: महासंस्कारी
बह्र: फाइलातुन मुफाईलुन फैलुन
*
रोकना मत, चले सदन संसद
चेतना झट, अगर रुके संसद
स्वार्थ साधन करें सतत जो दल
छोड़ना मत, गति भटक संसद
*
लीडरों! फिर बबाल करना मत
जो हुआ, अब धमाल करना मत
लोक का दुःख नहीं तनिक भी कम
शोक का इंतिज़ाम करना मत
*
पंडितों! तनिक राम भजिए अब
लोभ-लालच हराम तजिए अब
अस्थियाँ धरम की करम में लख
भूत-भावन सदृश्य सजिए अब
***
एक दोहा
बाप, बाप के है सलिल, बच्चे कम मत मान
वे तुझसे आगे बहुत, खुद पर कर न गुमान
१३-८-२०१५

शुक्रवार, 8 अगस्त 2025

अगस्त ८, पूर्णिका, राखी, दोहा, मुक्तक, लघुकथा, नवगीत, तमाशा, शे'र, गैंग्रीन, सॉनेट, मीरा, संसद

सलिल सृजन अगस्त ८ 
पूर्णिका
बहुत सोया जाग
बिछौना दे त्याग
.
साँच को क्या आँच?
डटा रह मत भाग
.
दूध पी, ले काट
पालना मत नाग
.
संतुलन ही साध्य
नहीं भोग, न त्याग
.
झूम मस्ती में
गा कबीरा-फाग
.
करे सब कुछ राख
मत लगा रे! आग
.
बोल, खोले पोल
कौन कोयल-काग
.
बहे सलिल निर्मल
रुक मलिन ज्यों दाग
८.७.२०२५
०००
सॉनेट
संसद
यह संसद है लोकतंत्र की,
सत्य देखना यहाँ मना है,
झलक नहीं है जन-गण मन की,
अहंकार का शीश तना है।
यह संसद है प्रजातंत्र की,
सत्य बोलना यहाँ मना है,
जय जुमलों के महामंत्र की,
दलबंदी कोहरा घना है।
यह संसद है भ्रष्ट तंत्र की,
सुनना-कहना सत्य मना है,
जगह नहीं जन की बातों को,
सत्ता पाना लक्ष्य बना है।
तंत्र न यह जन-गण-मन सुनता।
यंत्र स्वार्थ के सपने बुनता।।
८-८-२०२३
•••
सॉनेट
मीरा
दुख में सुख मीरा की प्रीत
मिले फूल को पत्थर मीत
सिसक रहे चुप होकर गीत
समय न बदले काहे रीत
मीरा कभी न हुई अतीत
लगे हार भी उसको जीत
दुनियादारी कहे अनीत
वह गुंजाती हरि के गीत
मीरा किंचित हुई न भीत
जन्म-जन्म से हरि की क्रीत
मिलन हेतु नित रहे अधीत
आत्म हुई परमात्म प्रणीत
मीरा को है वही सुनीत
जग कहता है जिसे कुरीत
८-८-२०२२
•••
चिकित्सा सलिला
*
नुस्खे गैंग्रीन
गैंग्रीन (अंग का सड़ जाना) Osteomyelitis, कटे-पके घाव का इलाज
मधुमेह रोगी (डाईबेटिक पेशेंट) की चोट जल्दी ठीक ही नही हो तो धीरे धीरे गैंग्रीन (अंग का सड़ जाना) में बदल जाती है अंत में वह अंग काटना पड़ता है। गैंग्रीन माने अंग का सड़ जाना, जहाँ पे नए कोशिका विकसित नही होते। न तो मांस में और न ही हड्डी में और सब पुराने कोशिका मरते चले जाते हैं। Osteomyelitis में भी कोशिका कभी पुनर्जीवित नही होती, जिस हिस्से में हो वहाँ बहुत बड़ा घाव हो जाता है और वो ऐसा सड़ता है कि काटने केअलावा और कोई दूसरा उपाय नही रहता।
एक औषधि है जो गैंग्रीन को भी ठीक करती है और Osteomyelitis (अस्थिमज्जा का प्रदाह) को भी ठीक करती है।इसे आप अपने घर में तैयार कर सकते हैं। औषधि है देशी गाय का मूत्र (आठ परत सूती कपड़े में छानकर) , हल्दी और गेंदे का फूल। पीले या नारंगी गेंदे के फुल की पंखुरियाँ निकालकर उसमें हल्दी मिला दें फिर गाय मूत्र में डालकर उसकी चटनी बना लें। यह चटनी घाव पर दिन में दो बार लगा कर उसके ऊपर रुई रखकर पट्टी बाँधिए। चटनी लगाने के पहले घाव को छाने हुए जो मूत्र से ही धो लें। डेटोल आदि का प्रयोग मत करिए।
यह बहुत प्रभावशाली है। इस औषधि को हमेशा ताजा बनाकर लगाना है। किसी भी प्रकार का ज़ख्म जो किसी भी औषधि से ठीक नही हो रहा है तो यह औषधि आजमाइए। गीला सोराइसिस जिसमेँ खून भी निकलता है, पस भी निकलता है उसको यह औषधि पूर्णरूप से ठीक कर देती है। दुर्घटनाजनित घाव पर इसे अलगते ही रक्त स्राव रुक जाता है। ऑपरेशन के घाव के लिए भी यह उत्तम औषधि है। गीले एक्जीमा में यह औषधि बहुत काम करती है, जले हुए जखम में भी लाभप्रद है।
*
हाथ, पैर और तलुओं की जलन
हाथ-पैर, तलुओं और शरीर में जलन की शिकायत हो तो ५ कच्चे बेल के फलों के गूदे को २५० मिली लीटर नारियल तेल में एक सप्ताह तक डुबाये रखने के बाद में छानकर जलन देने वाले शारीरिक हिस्सों पर मालिश करनी चाहिए, अतिशीघ्र जलन की शिकायत दूर हो जाएगी।
*
दस्त - डायरिया
नींबू का रस निकालने के बाद छिलके छाँव में रखकर सुखा लें। कच्चे हरे केले का छिल्का उतारकर बारीक-बारीक टुकड़े करें और इसे भी छाँव में सुखा लें। केले में स्टार्च और नीबू के छिल्कों मे सबसे ज्यादा मात्रा में पेक्टिन होता है। दोनों अच्छी तरह सूख जाएँ तो समान मात्रा लेकर बारीक पीस लें या मिक्सर में एक साथ ग्राइंड कर लें। यह चूर्ण दस्त और डायरिया का अचूक इलाज है। दो-दो घंटे के अंतराल से १ चम्मच चूर्ण खाइये। शीघ्र आराम मिलता है।
***
शब्द सलिला : तमाशा
*
हिंदी तमाशा - संस्कृत, पुल्लिंग, संज्ञा, मन को प्रसन्न करने वाला दृश्य; मनोरंजक दृश्य, वह खेल जिससे मनोरंजन होता है, अद्भुत व्यापार या कार्य; अनोखी बात, खेलकूद, हँसी आदि की कोई घटना, ।
मराठी तमाशा -
महाराष्ट्र की एक लोककला, लोक नाट्य, निर्लज्जता भरा काम या व्यवहार या उलटी-पुलटी हरकत, खेल का प्रदर्शन, वह दृश्य जिसके देखने से मनोरंजन हो, मन को प्रसन्न करने वाला दृश्य।
तमाश: تماشا. फ़ारसी, पुल्लिंग , तमाशा अरबी पुलिंग
सैर, तफ़रीह, दीदार, लुत्फ़, वाज़ीगरों या मदारियों का खेल, नाटक, अजूबापन, हँसी-मज़ाक, भाँड़ों या बहुरूपियों की नक़ल या स्वाँग।
तमाशाई - अरबी, फ़ारसी, विशेषण = तमाशा देखनेवाला।
तमाशाकुनां - अरबी, फ़ारसी, विशेषण = सैर से दिल बहलाता हुआ।
तमाशाखानम - अरबी, तुर्की, स्त्रीलिंग, = हँसने-हँसानेवाली महिला।
तमाशागर - अरबी, फ़ारसी, विशेषण = तमाशा करनेवाला, कौतुकी।
तमाशागाह - अरबी, फ़ारसी, स्त्रीलिंग = वहजगह जहाँ तमाशा होता है, लीलागृह, कौतुकागार, क्रीड़ास्थल।
तमाशाबीं - अरबी, फ़ारसी, विशेषण = तमाशा देखनेवाला, कौतुकदर्शी।
तमाश गीर / बीन हिंदी पुल्लिंग = तमाशा देखनेवाला, कौतुकदर्शी, अय्याश।
तमाशबीनी हिंदी पुल्लिंग = अय्याशी।
English Tamasha - noun, spectacle, pageant, show, entertainment, exhibition, amusement.
*
काव्य पंक्तियाँ / अशआर
*
दोहे - संजीव वर्मा 'सलिल'
कौन तमाशा कर रहा, देख रहा है कौन
पूछ आईने से लिया, उत्तर पाया मौन
*
आप तमाशागर करे, यहाँ तमाशा रोज
किसे तमाशाई कहें, करिये आकर खोज
*
मंदिर-मस्जिद हो गए, हाय! तमाशागाह
हैरत में भगवान है, मुश्किल में अल्लाह
*
आप तमाशागर हैं, आप तमाशागीर
करें तमाशा; बाप की, संसद है जागीर
***
तमाशा देख रहे थे जो डूबने का मिरे
मिरी तलाश में निकले हैं कश्तियाँ ले कर - अज्ञात
*
चाहता है इस जहां में गर बहिश्त
जा तमाशा देख उस रुख़्सार का - वली मोहम्मद वली
*
इश्क़ और अक़्ल में हुई है शर्त
जीत और हार का तमाशा है - सिराज औरंगाबादी
*
है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भी
इक तुर्फ़ा तमाशा है 'हसरत' की तबीअत भी - हसरत मोहानी
*
कभी उनका नहीं आना ख़बर के ज़ैल में था
मगर अब उनका आना ही तमाशा हो गया है -अरशद कमाल
*
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है -बशीर बद्र
*
जो कुछ निगाह में है हक़ीक़त में वो नहीं
जो तेरे सामने है तमाशा कुछ और है - आफ़ताब हुसैन
*
ये मोहब्बत है इसे देख तमाशा न बना
मुझ से मिलना है तो मिल हद्द-ए-अदब से आगे - ज़करिय़ा शाज़
*
ज़िंदगी टूट के बिखरी है सर-ए-राह अभी
हादिसा कहिए इसे या कि तमाशा कहिए - दाऊद मोहसिन
*
हमारे इश्क़ में रुस्वा हुए तुम
मगर हम तो तमाशा हो गए हैं - अतहर नफ़ीस
*
तब्अ तेरी अजब तमाशा है
गाह तोला है गाह माशा है - शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
*
जलाल-ए-पादशाही हो कि जमहूरी तमाशा हो
जुदा हो दीं सियासत से तो रह जाती है चंगेज़ी - अल्लामा इक़बाल
*
ये मेरे गिर्द तमाशा है आँख खुलने तक
मैं ख़्वाब में तो हूँ लेकिन ख़याल भी है मुझे - मुनीर नियाज़ी
*
वहशत में भी मिन्नत-कश-ए-सहरा नहीं होते
कुछ लोग बिखर कर भी तमाशा नहीं होते - ज़ेहरा निगाह
*
हक़ीक़त को तमाशे से जुदा करने की ख़ातिर
उठा कर बारहा पर्दा गिराना पड़ गया है - मुस्तफ़ा शहाब
*
ग़म अपने ही अश्कों का ख़रीदा हुआ है
दिल अपनी ही हालत का तमाशाई है देखो - ज़ेहरा निगाह
*
रोती हुई एक भीड़ मिरे गिर्द खड़ी थी
शायद ये तमाशा मिरे हँसने के लिए था - मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
८-८-२०२०
***
नवगीत:
अब भी बहनें
बाँध रही हैं राखी
लायीं मिठाई भी
*
उन्हें पता है उनकी रक्षा
भाई नहीं कर पायेगा
अगर करे तो बेबस खुद भी
अपनी जान गँवायेगा
विधवा भौजी-माँ कलपेगी
बच्चे होंगे बिलख अनाथ-
अख़बारों में छप अपराधी
सहज जमानत पायेगा
मानवतावादी-वकील मिल
मुक्त करा घर भर लेंगे
दूरदर्शनी चैनल पर
अपराधी आ मुस्कायेगा
बहनें कहाँ भूलती
हैं भाई का स्नेह
कलाई भी
अब भी बहनें
बाँध रही हैं राखी
लायीं मिठाई भी
*
दुनिया का बाज़ार बड़ा है
पुरा संस्कृति का यह देश
विश्व गुरु को रोज पढ़ाते
आतंकी घुस पाठ विशेष
छप्पन इंची चौड़ी छाती
अच्छे दिन ले आयी है
सैनिक अनशन पर बैठे
पर शर्म न आयी अब तक लेश
सैद्धांतिक सहमति पर
अफसर कुंडलि मारे बैठे हैं
नेता जी खुश विजय-पर्व पर
सैनिक नोचें अपने केश
बहनें दुबली हुई
फ़िक्र से, भूखा
सैनिक भाई भी
अब भी बहनें
बाँध रही हैं राखी
लायीं मिठाई भी
*
व्यथा न सुनता कोई
नौ-नौ आँसू रुला रही है प्याज
भरी तिजोरी तेजडियों की
चंदा दे, लूटें कर राज
केर-बेर का संग, बना
सरकार दोष दें पिछलों को
वादों को जुमला कह भूले
जनगण-मन पर गिरती गाज
प्रोफाइल है हाई, शादियाँ
पाँच करें बेटी मारें
मस्ती मौज मजा पाने को
बेच रहे हैं धनपति लाज
बने माफिया खुद
जनप्रतिनिधि,
संसद लख शर्माई भी
अब भी बहनें
बाँध रही हैं राखी
लायीं मिठाई भी
*
लघु कथा
काल्पनिक सुख
*
'दीदी! चलो बाँधो राखी' भाई की आवाज़ सुनते ही उछल पडी वह। बचपन से ही दोनों राखी के दिन खूब मस्ती करते, लड़ते का कोई न कोई कारण खोज लेते और फिर रूठने-मनाने का दौर।
'तू इतनी देर से आ रहा है? शर्म नहीं आती, जानता है मैं राखी बाँधे बिना कुछ खाती-पीती नहीं। फिर भी जल्दी नहीं आ सकता।'
"क्यों आऊँ जल्दी? किसने कहा है तुझे न खाने को? मोटी हो रही है तो डाइटिंग कर रही है, मुझ पर अहसान क्यों थोपती है?"
'मैं और मोटी? मुझे मिस स्लिम का खिताब मिला और तू मोटी कहता है.... रुक जरा बताती हूँ.'... वह मारने दौड़ती और भाई यह जा, वह जा, दोनों की धाम-चौकड़ी से परेशान होने का अभिनय करती माँ डांटती भी और मुस्कुराती भी।
उसे थकता-रुकता-हारता देख भाई खुद ही पकड़ में आ जाता और कान पकड़ते हुई माफ़ी माँगने लगता। वह भी शाहाना अंदाज़ में कहती- 'जाओ माफ़ किया, तुम भी क्या याद रखोगे?'
'अरे! हम भूले ही कहाँ हैं जो याद रखें और माफी किस बात की दे दी?' पति ने उसे जगाकर बाँहों में भरते हुए शरारत से कहा 'बताओ तो ताकि फिर से करूँ वह गलती'...
"हटो भी तुम्हें कुछ और सूझता ही नहीं'' कहती, पति को ठेलती उठ पड़ी वह। कैसे कहती कि अनजाने ही छीन गया है उसका काल्पनिक सुख।
***
मुक्तक
मधु रहे गोपाल बरसा वेणु वादन कर युगों से
हम बधिर सुन ही न पाते, घिरे हैं छलिया ठगों से
कहाँ नटनागर मिलेगा,पूछते रणछोड़ से क्यों?
बढ़ चलें सब भूल तो ही पा सकें नन्हें पगों से
*
रंज ना कर मुक्ति की चर्चा न होती बंधनों में
कभी खुशियों ने जगह पाई तनिक क्या क्रन्दनों में?
जो जिए हैं सृजन में सच्चाई के निज स्वर मिलाने
'सलिल' मिलती है जगह उनको न किंचित वंदनों में
८-८-२०१७
***
सलिल एक सागर
कल्पना भट्ट
*
सागर की तरह गहरे हो
यथार्थ ज्ञान के सागर
भरी हुई है विद्या की गगरी
सौम्य छवि सरल स्वाभाव
कितने सरल
फिर भी कितने गहरे
एक सागर की तरह
समाये हुए हो
अनगिनित लोगों की प्रीत
कितने गुणी हो
स्वाभिमानी हो
मिटटी से जुड़े हुए
आसमान की तरह
उड़ते परिंदों को देखते
८.८.२०१६
***
दोहा सलिलाः
*
प्राची पर आभा दिखी, हुआ तिमिर का अन्त
अन्तर्मन जागृत करें, सन्त बन सकें सन्त
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आशा पर आकाश है, कहते हैं सब लोग
आशा जीवन श्वास है, ईश्वर हो न वियोग
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जो न उषा को चाह्ता, उसके फूटे भाग
कौन सुबह आकर कहे, उससे जल्दी जाग
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लाल-गुलाबी जब दिखें, मनुआ प्राची-गाल
सेज छोड़कर नमन कर, फेर कर्म की माल
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गाल टमाटर की तरह, अब न बोलना आप
प्रेयसि के नखरे बढ़ें, प्रेमी पाये शाप.
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प्याज कुमारी से करे, युवा टमाटर प्यार
किसके ज्यादा भाव हैं?, हुई मुई तकरार
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दोहा सलिला:
अलंकारों के रंग-राखी के संग
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राखी ने राखी सदा, बहनों की मर्याद.
संकट में भाई सदा, पहलें आयें याद..
राखी= पर्व, रखना.
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राखी की मक्कारियाँ, राखी देख लजाय.
आग लगे कलमुँही में, मुझसे सही न जाय..
राखी= अभिनेत्री, रक्षा बंधन पर्व.
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मधुरा खीर लिये हुए, बहिना लाई थाल.
किसको पहले बँधेगी, राखी मचा धमाल..
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अक्षत से अ-क्षत हुआ, भाई-बहन का नेह.
देह विदेहित हो 'सलिल', तनिक नहीं संदेह..
अक्षत = चाँवल के दाने,क्षतिहीन.
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रो ली, अब हँस दे बहिन, भाई आया द्वार.
रोली का टीका लगा, बरसा निर्मल प्यार..
रो ली= रुदन किया, तिलक करने में प्रयुक्त पदार्थ.
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बंध न सोहे खोजते, सभी मुक्ति की युक्ति.
रक्षा बंधन से कभी, कोई न चाहे मुक्ति..
बंध न = मुक्त रह, बंधन = मुक्त न रह
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हिना रचा बहिना करे, भाई से तकरार.
हार गया तू जीतकर, जीत गयी मैं हार..
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कब आएगा भाई? कब, होगी जी भर भेंट?
कुंडी खटकी द्वार पर, भाई खड़ा ले भेंट..
भेंट= मिलन, उपहार.
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मना रही बहिना मना, कहीं न कर दे सास.
जाऊँ मायके माय के, गले लगूँ है आस..
मना= मानना, रोकना.
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गले लगी बहिना कहे, हर संकट हो दूर.
नेह बर्फ सा ना गले, मन हरषे भरपूर..
गले=कंठ, पिघलना.
8-8-2014
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गीत:
कब होंगे आजाद
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कब होंगे आजाद?
कहो हम कब होंगे आजाद?....
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गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.
भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..
मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे भारत माँ को ले चटखारे स्वाद.
कब होंगे आजाद?कहो हमकब होंगे आजाद?....
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नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.
धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..
आँख दिखाते सभी पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों अपना घर करते हम बर्बाद.
कब होंगे आजाद?कहो हमकब होंगे आजाद?....
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खाप और फतवे हैं अपने मेल-जोल में रोड़ा.
भष्टाचारी चौराहे पर खाए न जब तक कोड़ा.
तब तक वीर शहीदों के हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो समाज में, ध्वस्त न हो मर्याद.
कब होंगे आजाद?कहो हमकब होंगे आजाद?....
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पनघट फिर आबाद हो सकें, चौपालें जीवंत.
अमराई में कोयल कूके, काग न हो श्रीमंत.
बौरा-गौरा साथ कर सकें नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच गाँव में विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?कहो हम कब होंगे आजाद?....
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रीति-नीति, आचार-विचारों, भाषा का हो ज्ञान.
समझ बढ़े तो सीखें रुचिकर, धर्म प्रीति विज्ञान.
सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग 'सलिल' हो पायेगा तब धरती पर आबाद.
कब होंगे आजाद?कहो हम कब होंगे आजाद?....
८-९-२०१०
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