कविता दिवस के परिप्रेक्ष्य में:
आज का गीत-
श्वास-श्वास जीवन की कविता
संजीव 'सलिल'
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श्वास-श्वास जीवन की कविता,
आस-आस जीवन की कविता
नहीं कोई भी पल कविता बिन-
कोई एक दिवस कैसे हो?...
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जन्में तो हम लय में रोये,
आँचल पा सपनों में खोये.
घुटनों चले ठुमककर विहँसे,
पैर जमकर सपने बोये.
धरती से नभ देख लगा यह-
प्यास-प्यास जीवन की कविता...
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मैया, बहिना, भौजी, साली.
सरहज, समधन रस की प्याली.
अर्धांगिनी की बात करें क्या?-
आधार, कपोल, नयन की लाली.
पाया-खोया जब, तब पाया
लास-हास जीवन की कविता...
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ले प्रयास की वेणु चला जब,
लक्ष्य राधिका को पाने मैं.
गोप-गोपियाँ साधक-बाधक
संग-साथ थे मुस्काने में.
गिरा-उठा-सम्हला, दौड़ा, रुक
पाया रास श्वास की कविता...
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