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मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

भक्ति गीत : कहाँ गया

भक्ति गीत :
कहाँ गया
*
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत 
*
कण-कण में तू रम रहा
घट-घट तेरा वास.
लेकिन अधरों पर नहीं
अब आता है हास.
लगे जेठ सम तप रहा
अब पावस-मधुमास
क्यों न गूंजती बाँसुरी
पूछ रहे खद्योत
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
*
श्वास-श्वास पर लिख लिया
जब से तेरा नाम.
आस-आस में तू बसा
तू ही काम-अकाम.
मन-मुरली, तन जमुन-जल
व्यथित विधाता वाम
बिसराया है बोल क्यों?
मिला ज्योत से ज्योत
कहाँ गया रणछोड़ रे!,
जला प्रेम की ज्योत
*
पल-पल हेरा है तुझे
पाया अपने पास.
दिखता-छिप जाता तुरत
ओ छलिया! दे त्रास.
ले-ले अपनीं शरण में
'सलिल' तिहारा दास
दूर न रहने दे तनिक
हम दोनों सहगोत
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत 
१६.४.२०१७
***

सोमवार, 14 अगस्त 2017

bhakti geet

भक्ति गीत :
कहाँ गया
*
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
*
कण-कण में तू रम रहा
घट-घट तेरा वास.
लेकिन अधरों पर नहीं
अब आता है हास.
लगे जेठ सम तप रहा
अब पावस-मधुमास
क्यों न गूंजती बाँसुरी
पूछ रहे खद्योत
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
*
श्वास-श्वास पर लिख लिया
जब से तेरा नाम.
आस-आस में तू बसा
तू ही काम-अकाम.
मन-मुरली, तन जमुन-जल
व्यथित विधाता वाम
बिसराया है बोल क्यों?
मिला ज्योत से ज्योत
कहाँ गया रणछोड़ रे!,
जला प्रेम की ज्योत
*
पल-पल हेरा है तुझे
पाया अपने पास.
दिखता-छिप जाता तुरत
ओ छलिया! दे त्रास.
ले-ले अपनीं शरण में
'सलिल' तिहारा दास
दूर न रहने दे तनिक
हम दोनों सहगोत
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
***
salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४
http://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर

रविवार, 16 अप्रैल 2017

bhakti geet

एक रचना
रेवा मैया
*
रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
जग-जीवन की नाव खिवैया
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
भाव सागर से पार लगैया
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
रोग-शोक भव-बाधा टारें
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
सब जनगण मिल जय उच्चारें
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
अमृत जल है जीवनदाता
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
पुण्य अनंत भक्त पा जाता
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
ब्रम्हा-शिव-हरि तव गुण गायें
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
संत असुर सुर नर तर जाएँ
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
विन्ध्य, सतपुड़ा, मेकल हर्षित
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
निंगादेव हुए जन पूजित
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
नरसिंह कनककशिपु संहारे
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
परशुराम ने क्षत्रिय मारे
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
राम-सिया तव तीरे आये
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
हनुमत-जामवंत मिल पाए
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
बाणासुर ने रावण पकड़ा
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
काराग्रह में जमकर जकड़ा
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
पांडवगण वनवास बिताएँ
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
गुप्तेश्वर के यश जन गायें
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
गौरी घाट तीर्थ अतिसुन्दर
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
घाट लम्हेटा परम मनोहर
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
तिलवारा बैठे तिल ईश्वर
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
गौरी-गौरा भेड़े तप कर
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
धुआंधार में कूद लगाई
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
चौंसठ योगिनी नाचें माई
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
संगमरमरी छटा सुहाई
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
नौकायन सुख-शांति प्रदाई
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
बंदर कूदनी कूदे हनुमत
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
महर्षि-ओशो पूजें विद्वत
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
कलकल लहर निनाद मनोहर
             रेवा मैया! रेवा मैया!!
*
हो संजीव हरो विपदा हर
            रेवा मैया! रेवा मैया!!
***

bhakti geet

भक्ति गीत :
कहाँ गया
*
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
*
कण-कण में तू रम रहा
घट-घट तेरा वास.
लेकिन अधरों पर नहीं
अब आता है हास.
लगे जेठ सम तप रहा
अब पावस-मधुमास
क्यों न गूंजती बाँसुरी
पूछ रहे खद्योत
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
*
श्वास-श्वास पर लिख लिया
जब से तेरा नाम.
आस-आस में तू बसा
तू ही काम-अकाम.
मन-मुरली, तन जमुन-जल
व्यथित विधाता वाम
बिसराया है बोल क्यों?
मिला ज्योत से ज्योत  
कहाँ गया रणछोड़ रे!,
जला प्रेम की ज्योत
*
पल-पल हेरा है तुझे
पाया अपने पास.
दिखता-छिप जाता तुरत
ओ छलिया! दे त्रास.
ले-ले अपनीं शरण में
'सलिल' तिहारा दास
दूर न रहने दे तनिक
हम दोनों सहगोत
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
***

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

bhakti geet: -sanjiv

भक्ति गीत:
संजीव
*
हे प्रभु दीनानाथ दयानिधि
कृपा करो, हर विघ्न हमारे.
जब-जब पथ में छायें अँधेरे
तब-तब आशा दीप जला रे….
*
हममें तुम हो, तुममें हम हों
अधर हँसें, नैन ना नम हों.
पीर अधीर करे जब देवा!
धीरज-संबल कहबी न कम हों.
आपद-विपदा, संकट में प्रभु!
दे विवेक जो हमें उबारे….
*
अहंकार तज सकें ज्ञान का
हो निशांत, उद्गम विहान का.
हम बेपर पर दिए तुम्हीं ने
साहस दो हरि! नव उड़ान का.
सत-शिव-सुंदर राह दिखाकर
सत-चित-आनंद दर्श दिखा रे ….
*
शब्द ब्रम्ह आराध्य हमारा
अक्षर, क्षर का बना सहारा.
चित्र गुप्त है जो अविनाशी
उसने हो साकार निहारा.
गुप्त चित्र तव अगम, गम्य हो
हो प्रतीत जो जन्म सँवारे ….
*


शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

ॐ गणेश भजन : --संजीव 'सलिल'


          


















विनय करूँ प्रभु श्री गणेश जी!
विघ्न करो सब दूर हमारे...
*
सत-शिव-सुन्दर हम रच पायें,
निज वाणी से नित सच गायें.
अशुभ-असत से लड़ें निरंतर-
सत-चित आनंद-मंगल गायें.
भारत माता ग्रामवासिनी-
हम वसुधा पर स्वर्ग बसायें.
राँगोली-अल्पना सुसज्जित-
हों घर-घर के अँगना-द्वारे.
मतभेदों को सुलझा लें,
मनभेद न कोई बचे जरा रे.
विनय करूँ प्रभु श्री गणेश जी!
विघ्न करो सब दूर हमारे...
*
आस-श्वास हो सदा सुहागिन,
पनघट-पनघट पर राधा हो.
अमराई में कान्हा खेलें,
कहीं न कोई भव-बाधा हो.
ढाई आखर नित पढ़ पाना-
लक्ष्य सभी ने मिल साधा हो.
हर अँगना में दही बिलोती
जसुदा, नन्द खड़े हों द्वारे.
कंस कुशासन को जनमत का
हलधर-कान्हा पटक सुधारे.
विनय करूँ प्रभु श्री गणेश जी!
विघ्न करो सब दूर हमारे...
*
तुलसी चौरा, राँगोली-अल्पना
भोर में उषा सजाये.
श्रम-सीकर में नहा दुपहरी,
शीश उठाकर हाथ मिलाये.
भजन-कीर्तन गाती संध्या,
इस धरती पर स्वर्ग बसाये
निशा नशीली रंग-बिरंगे
स्वप्न दिखा, शत दीपक बारे.
ज्यों की त्यों चादर धरकर
यह 'सलिल' तुम्हारे भजन उचारे.
विनय करूँ प्रभु श्री गणेश जी!
विघ्न करो सब दूर हमारे...
*

शनिवार, 11 सितंबर 2010

भजन: सुन लो विनय गजानन संजीव 'सलिल'

भजन:
सुन लो विनय गजानन

संजीव 'सलिल'



जय गणेश विघ्नेश उमासुत, ऋद्धि-सिद्धि के नाथ.

हर बाधा हर शुभ करें, विनत नवाऊँ माथ..

*

सुन लो विनय गजानन मोरी

सुन लो विनय गजानन.

करो कृपा हो देश हमारा

सुरभित नंदन कानन....

*

करो कृपा आया हूँ देवा, स्वीकारो शत वंदन.

भावों की अंजलि अर्पित है, श्रृद्धा-निष्ठा चंदन..

जनवाणी-हिंदी जगवाणी

हो, वर दो मनभावन.

करो कृपा हो देश हमारा

सुरभित नंदन कानन....

*

नेह नर्मदा में अवगाहन, कर हम भारतवासी.

सफल साधन कर पायें,वर दो हे घट-घटवासी!

भारत माता का हर घर हो,

शिवसुत! तीरथ पावन.

करो कृपा हो देश हमारा

सुरभित नंदन कानन....

*

प्रकृति-पुत्र बनकर हम मानव, सबकी खुशी मनायें.

पर्यावरण प्रदूषण हरकर, भू पर स्वर्ग बसायें.

रहे 'सलिल' के मन में प्रभुवर

श्री गणेश तव आसन.

करो कृपा हो देश हमारा

सुरभित नंदन कानन....

*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम 

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

सरस्वती वंदना: संजीव 'सलिल'

सरस्वती वंदना:

संजीव 'सलिल'
*


















*

संवत १६७७ में रचित ढोला मारू दा दूहा से सरस्वती वंदना का दोहा :

सकल सुरासुर सामिनी, सुणि माता सरसत्ति.
विनय करीन इ वीनवुं, मुझ घउ अविरल मत्ति..

अम्ब  विमल मति दे.....
*


हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

नन्दन कानन हो यह धरती।
पाप-ताप जीवन का हरती।
हरियाली विकसे.....

बहे नीर अमृत सा पावन।
मलयज शीतल शुद्ध सुहावन।
अरुण निरख विहसे.....

कंकर से शंकर गढ़ पायें।
हिमगिरि के ऊपर चढ़ जाएँ।
वह बल-विक्रम दे.....

हरा-भरा हो सावन-फागुन।
रम्य ललित त्रैलोक्य लुभावन।
सुख-समृद्धि सरसे.....

नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें।
स्नेह समन्वय मन्त्र उचारें।
' सलिल' विमल प्रवहे.....

************************

२.

हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

जग सिरमौर बने माँ भारत.
सुख-सौभाग्य करे नित स्वागत.
आशिष अक्षय दे.....

साहस-शील हृदय में भर दे.
जीवन त्याग तपोमय करदे.
स्वाभिमान भर दे.....

लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद हम बनें.
मानवता का त्रास-तम् हरें.
स्वार्थ सकल तज दे.....

दुर्गा, सीता, गार्गी, राधा,
घर-घर हों काटें भव बाधा.
नवल सृष्टि रच दे....

सद्भावों की सुरसरि पवन.
स्वर्गोपम हो राष्ट्र सुहावन.
'सलिल' निरख हरषे...
*

३.

हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

नाद-ब्रम्ह की नित्य वंदना.
ताल-थापमय सलिल-साधना
सरगम कंठ सजे....,

रुन-झुन रुन-झुन नूपुर बाजे.
नटवर-नटनागर उर साजे.
रास-लास उमगे.....

अक्षर-अक्षर शब्द सजाये.
काव्य, छंद, रस-धार बहाये.
शुभ साहित्य सृजे.....

सत-शिव-सुन्दर सृजन शाश्वत.
सत-चित-आनंद भजन भागवत.
आत्मदेव पुलके.....

कंकर-कंकर प्रगटें शंकर.
निर्मल करें हृदय प्रलयंकर.
गुप्त चित्र प्रगटे.....
*

४.

हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

कलकल निर्झर सम सुर-सागर.
तड़ित-ताल के हों कर आगर.
कंठ विराजे सरगम हरदम-
सदय रहें नटवर-नटनागर.
पवन-नाद प्रवहे...

विद्युत्छटा अलौकिक वर दे.
चरणों मने गतिमयता भर डॉ.
अंग-अंग से भाव साधना-
चंचल चपल चारू चित कर दे.
तुहिन-बिंदु पुलके....

चित्र गुप्त, अक्षर संवेदन.
शब्द-ब्रम्ह का कलम निकेतन.
जियें मूल्य शाश्वत शुचि पावन-
जीवन-कर्मों का शुचि मंचन.
मन्वन्तर महके...
****************

मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

नव गीत : ओढ़ कुहासे की चादर... --संजीव 'सलिल'

नव गीत : संजीव 'सलिल'




ओढ़ कुहासे की चादर,

धरती लगाती दादी.

ऊँघ रहा सतपुडा,

लपेटे मटमैली खादी...



सूर्य अँगारों की सिगडी है,

ठण्ड भगा ले भैया.

श्वास-आस संग उछल-कूदकर

नाचो ता-ता थैया.

तुहिन कणों को हरित दूब,

लगती कोमल गादी...



कुहरा छाया संबंधों पर,

रिश्तों की गरमी पर.

हुए कठोर आचरण अपने,

कुहरा है नरमी पर.

बेशरमी नेताओं ने,

पहनी-ओढी-लादी...



नैतिकता की गाय काँपती,

संयम छत टपके.

हार गया श्रम कोशिश कर,

कर बार-बार अबके.

मूल्यों की ठठरी मरघट तक,

ख़ुद ही पहुँचा दी...



भावनाओं को कामनाओं ने,

हरदम ही कुचला.

संयम-पंकज लालसाओं के

पंक-फँसा, फिसला.

अपने घर की अपने हाथों

कर दी बर्बादी...



बसते-बसते उजड़ी बस्ती,

फ़िर-फ़िर बसना है.

बस न रहा ख़ुद पर तो,

परबस 'सलिल' तरसना है.

रसना रस ना ले, लालच ने

लज्जा बिकवा दी...



हर 'मावस पश्चात्

पूर्णिमा लाती उजियारा.

मृतिका दीप काटता तम् की,

युग-युग से कारा.

तिमिर पिया, दीवाली ने

जीवन जय गुंजा दी...

*****

शनिवार, 26 दिसंबर 2009

नव गीत: पग की किस्मत / सिर्फ भटकना -संजीव 'सलिल'

-: नव गीत :-




पग की किस्मत / सिर्फ भटकना



संजीव 'सलिल'

*

राज मार्ग हो

या पगडंडी,

पग की किस्मत

सिर्फ भटकना....

*

सावन-मेघ

बरसते आते.

रवि गर्मी भर

आँख दिखाते.

ठण्ड पड़े तो

सभी जड़ाते.

कभी न थमता

पौ का फटना.

राज मार्ग हो

या पगडंडी,

पग की किस्मत

सिर्फ भटकना....

*

मीरा, राधा,

सूर, कबीरा,

तुलसी, वाल्मीकि

मतिधीरा.

सुख जैसे ही

सह ली पीड़ा.

नाम न छोड़ा

लेकिन रटना.

राज मार्ग हो

या पगडंडी,

पग की किस्मत

सिर्फ भटकना....

*

लोकतंत्र का

महापर्व भी,

रहता जिस पर

हमें गर्व भी.

न्यूनाधिक

गुण-दोष समाहित,

कोई न चाहे-

कहीं अटकना.

राज मार्ग हो

या पगडंडी,

पग की किस्मत

सिर्फ भटकना....

*

समय चक्र

चलता ही जाये.

बार-बार

नव वर्ष मनाये.

नाश-सृजन को

संग-संग पाए.

तम-प्रकाश से

'सलिल' न हटना.

राज मार्ग हो

या पगडंडी,

पग की किस्मत

सिर्फ भटकना....

*

थक मत, रुक मत,

झुक मत, चुक मत.

फूल-शूल सम-

हार न हिम्मत.

'सलिल' चलाचल

पग-तल किस्मत.

मौन चलाचल

नहीं पलटना.

राज मार्ग हो

या पगडंडी,

पग की किस्मत

सिर्फ भटकना....

*

शनिवार, 12 दिसंबर 2009

नवगीत: डर लगता है --संजीव 'सलिल'

नवगीत:


संजीव 'सलिल'

*
डर लगता है

आँख खोलते...

*
कालिख हावी है

उजास पर.

जयी न कोशिश

क्षुधा-प्यास पर.

रुदन हँस रहा

त्रस्त हास पर.

आम प्रताड़ित

मस्त खास पर.

डर लगता है

बोल बोलते.

डर लगता है

आँख खोलते...

*
लूट फूल को

शूल रहा है.

गरल अमिय को

भूल रहा है.

राग- द्वेष का

मूल रहा है.

सर्प दर्प का

झूल रहा है.

डर लगता है

पोल खोलते.

डर लगता है

आँख खोलते...

*
आसमान में

तूफाँ छाया.

कर्कश स्वर में

उल्लू गाया.

मन ने तन को

है भरमाया.

काया का

गायब है साया.

डर लगता है

पंख तोलते.

डर लगता है

आँख खोलते...

*

बुधवार, 9 दिसंबर 2009

भजन: सुन लो विनय गजानन -sanjiv 'salil'


भजन:




सुन लो विनय गजानन



संजीव 'सलिल'



जय गणेश विघ्नेश उमासुत, ऋद्धि-सिद्धि के नाथ.

हर बाधा हर शुभ करें, विनत नवाऊँ माथ..

*

सुन लो विनय गजानन मोरी

सुन लो विनय गजानन.

करो कृपा हो देश हमारा

सुरभित नंदन कानन....

*

करो कृपा आया हूँ देवा, स्वीकारो शत वंदन.

भावों की अंजलि अर्पित है, श्रृद्धा-निष्ठा चंदन..

जनवाणी-हिंदी जगवाणी

हो, वर दो मनभावन.

करो कृपा हो देश हमारा

सुरभित नंदन कानन....

*

नेह नर्मदा में अवगाहन, कर हम भारतवासी.

सफल साधन कर पायें,वर दो हे घट-घटवासी!

भारत माता का हर घर हो,

शिवसुत! तीरथ पावन.

करो कृपा हो देश हमारा

सुरभित नंदन कानन....

*

प्रकृति-पुत्र बनकर हम मानव, सबकी खुशी मनायें.

पर्यावरण प्रदूषण हरकर, भू पर स्वर्ग बसायें.

रहे 'सलिल' के मन में प्रभुवर

श्री गणेश तव आसन.

करो कृपा हो देश हमारा

सुरभित नंदन कानन....

*