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रविवार, 20 मई 2018

दोहा

दोहा दुनिया आज की:
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छीन रहे थे और के, मुँह से रोटी-कौर.
अपने मुँह से छिन गया, आया ऐसा दौर.
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कर्नाटक में गिर गए,  औंधे मुँह खो लाज।
शाह लबारी हारकर, जीती बाजी-ताज।।

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कर्नाटक में गिर गए,  औंधे मुँह खो लाज।
शाह लबारी हारकर, जीती बाजी-ताज।।

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समय छोड़ पाया नहीं, अपना तनिक प्रभाव
तब सा अब भी चेहरा, आदत, मृदुल स्वभाव

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मार पड़े जब समय की, बढ़ता अनुभव-तेज।
तब करते थे जंग, रंग जमा हुए रंगरेज
मन बच्चा-सच्चा रहे, कच्चा तन बदनाम।  
बिन टूटे बादाम हो, टूटे तो बेदाम।। 
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कैसे हैं? क्या होएँगे?, सोच न आती काम। 
जैसा चाहे विधि रखे, करे न बस बेकाम।
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कांता जैसी चाँदनी, लिये हाथ में हाथ।
कांत चाँद सा सोहता, सदा उठाए माथ।।
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मिल कर भी मिलती नहीं, मंजिल खेले खेल। 
यात्रा होती रहे तो, हर मुश्किल लें झेल।।  
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बाल बाल बच रहे हम, बाल-बाल 

दोहा सलिला: करनाटक

विधा: दोहा
मुहावरा: मन चाही कबहूँ नहीं
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कर नाटक पछता रहे, पद के दावेदार.
करनाटक में कट गई, नाक हुए चित यार.
जनादेश मतभेद दें, भुला मिलाएँ हाथ.
कमल-कोंग्रेसी करें, जनसेवा मिल साथ.
जनादेश समझें नहीं, बढ़ा रखी तकरार.
झट कुमारस्वामी बढ़ा, बना सके सरकार.
एक-एक ग्यारह हुए, एक अकेला ढेर.
अमित-लोभ की खुल गई, पोल नहीं अंधेर.
मन चाही कबहूँ नहीं, प्रभु चाही तत्काल.
चौबे छब्बे बन चले, डूब दुबे फिलहाल.
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२०.८.२०१८, ७९९९५५९६१८
salil.sanjiv@gmail.com