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गुरुवार, 18 मार्च 2021

मुक्तक

मुक्तक 
नववर्षोत्सव मंगलमय हो।
माँ की कृपा अमित-अक्षय हो।।
करें साधना सद्भावों की-
नित नव रचनाएँ निर्भय हो।।
१८-३-२०१८ 

शनिवार, 30 दिसंबर 2017

navgeet

नवगीत  
*
न मैं सुधरूँ
न तुम सुधरो 
कहो हो साल शुभ कैसे?
*
वही रफ़्तार बेढंगी
जो पहले थी, सो अब भी है
दिशा बदले न गति बदले
निकट हो लक्ष्य फिर कैसे?
न मैं सुधरूँ
न तुम सुधरो
कहो हो साल शुभ कैसे?
*
हरेक चेहरा है दोरंगी
न मेहनत है, न निष्ठा है
कहें कुछ और कर कुछ और
अमिय हो फिर गरल कैसे?
न मैं सुधरूँ
न तुम सुधरो
कहो हो साल शुभ कैसे?
*
हुई सद्भाव की तंगी
छुरी बाजू में मुख में राम
धुआँ-हल्ला दसों दिश है
कहीं हो अमन फिर कैसे?
न मैं सुधरूँ
न तुम सुधरो
कहो हो साल शुभ कैसे?
***