कविता - प्रति कविता
संतोष कुमार सिंह - संजीव 'सलिल'
*मित्रो, "यमुना बचाओ, ब्रज बचाओ" पद यात्रा दिल्ली में घुसने नहीं दी जा रही है।
संतोष कुमार सिंह
दिल्ली बार्डर पर रोक दी गई है। यानि कि यमुना प्रदूषण के प्रति केन्द्रीय
सरकार भी सजग नहीं दिखती। जब कि यमुना की दु्र्दशा अत्यन्त भयावह है।
एक दिन मैं यमुना किनारे बैठा हुआ था। उस समय का एक चित्रण देखें -यमुना जी की पीर
santosh kumar <ksantosh_45@yahoo.co.in>
जल की दुर्गति देख-देख कर भाव दुःखों का झलक उठा।
यमुना जी की पीर सुनी तो, नीर नयन से छलक उठा।।
मैया बोली निर्मलता तो, सबने देखी भाली है।
शहर-शहर के पतनालों ने, अब दुर्गति कर डाली है।।
जल से अति दुर्गन्ध उठी जब, मेरा माथा ठनक उठा।
यमुना जी की पीर सुनी तो, नीर नयन से छलक उठा।।भक्त न कोई करे आचमन, जीव नीर में तैर रहे।
मेरी तो अभिलाषा प्रभु से, सब भक्तों की खैर रहे।।
तभी तैरती लाशें आयीं, रहा नयन का पलक उठा।
यमुना जी की पीर सुनी तो, नीर नयन से छलक उठा।।यूँ तो मेरा पूजन अब भी, नित्य यहाँ होता रहता।
लेकिन घोर प्रदूषण में रह, दिल अपना रोता रहता।।
कूड़ा-कर्कट, झाग दिखे तो, दिल अचरज से धड़क उठा।
यमुना जी की पीर सुनी तो, नीर नयन से छलक उठा।।ऐसा लगता भारतवासी, सब स्वारथ में चूर हुए।
मेरी पावनता लौटाने, शासन कब मजबूर हुए।।
मरी मछलियाँ तीर दिखीं तो, धीर हृदय का धमक उठा।
यमुना जी की पीर सुनी तो, नीर नयन से छलक उठा।।
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संजीव 'सलिल'
गीत नदी के मिल गायें
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राह देखते दिल्ली की क्यों?, दिमागी दीवाला है?
यमुना बृज की प्राण शक्ति है, दिल्ली का परनाला है.
यमुना तट पर पौध लगाकर पेड़ सहस्त्रों खड़े करें.
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अगर नहीं तो सब तटवासी, पेड़ मिटाकर स्वयं मरें.
कचरा-शव-पूजन सामग्री, कोई न यमुना में फेके.
कचरा उठा दूर ले जाये, संत भक्त को खुद रोके.
लोक तंत्र में सरकारें ही नहीं समस्या कहीं मूल.
लोक तन्त्र पर डाल रहा क्यों, अपने दुष्कर्मों की धूल.
घर का कचरा कचराघर में, फेंक- न डालें यहाँ-वहाँ.
कहिये फिर कैसे देखेंगे, आप गन्दगी जहाँ-तहाँ?
खुद को बदल, प्रथाओं को भी, मिलकर हम थोडा बदलें.
शक्ति लोक की जाग सके तो, तन्त्र झुकेगा पग छू ले.
नारे, भाषण, धरना तज, पौधारोपण को अपनायें.
हर सलिला को निर्मल कर, हम गीत नदी के मिल गायें.