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रविवार, 30 जुलाई 2017

muktika

मुक्तिका:
संजीव
*
याद जिसकी भुलाना मुश्किल है
याद उसको न आना मुश्किल है
मौत औरों को देना है आसां
मौत को झेल पाना मुश्किल है
खुद को कहता रहा मसीहा जो
इसका इंसान होना मुश्किल है
तुमने बोले हैं झूठ सौ-सौ पर
एक सच बोल सकना मुश्किल है
अपने अधिकार चाहते हैं सभी
गैर को हक़ दिलाना मुश्किल है
***

शुक्रवार, 25 जून 2010

मुक्तिका: लिखी तकदीर रब ने.......... --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

लिखी तकदीर रब ने...

संजीव वर्मा 'सलिल'
*

















*
लिखी तकदीर रब ने फिर भी  हम तदबीर करते हैं.
फलक उसने बनाया है, मगर हम रंग भरते हैं..

न हमको मौत का डॉ है, न जीने की तनिक चिंता-
न लाते हैं, न ले जाते मगर धन जोड़ मरते हैं..

कमाते हैं करोड़ों पाप कर, खैरात देते दस.
लगाकर भोग तुझको खुद ही खाते और तरते हैं..

कहें नेता- 'करें क्यों पुत्र अपने काम सेना में?
फसल घोटालों-घपलों की उगाते और चरते हैं..

न साधन थे तो फिरते थे बिना कपड़ों के आदम पर-
बहुत साधन मिले तो भी कहो क्यों न्यूड फिरते हैं..

न जीवन को जिया आँखें मिलाकर, सिर झुकाए क्यों?
समय जब आख़िरी आया तो खुद से खुह्द ही डरते हैं..

'सलिल' ने ज़िंदगी जी है, सदा जिंदादिली से ही.
मिले चट्टान तो थमते. नहीं सूराख करते हैं..

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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम