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शुक्रवार, 9 जुलाई 2021

मुक्तिका

 एक मुक्तिका:

महापौराणिक जातीय, सुमेरु छंद
विधान: १९ मात्रिक, यति १०-९, पदांत यगण
*
न जिंदा है; न मुर्दा अधमरी है.
यहाँ जम्हूरियत गिरवी धरी है.
*
चली खोटी; हुई बाज़ार-बाहर
वही मुद्रा हमेशा जो खरी है.
*
किये थे वायदे; जुमला बताते
दलों ने घास सत्ता की चरी है.
*
हरी थी टौरिया; कर नष्ट दी अब
तपी धरती; हुई तबियत हरी है.
*
हवेली गाँव की; हम छोड़ आए.
कुठरिया शहर में, उन्नति करी है.
*
न खाओ सब्जियाँ जो चाहता दिल.
भरा है जहर दिखती भर हरी है.
*
न बीबी अप्सरा से मन भरा है
पड़ोसन पूतना लगती परी है.
*
slil.sanjiv@gmail.com
९.७.२०१८, ७९९९५५९६१८

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

मुक्तिका: सुमेरु छंद

एक मुक्तिका:
महापौराणिक जातीय, सुमेरु छंद
विधान: १९ मात्रिक, यति १०-९, पदांत यगण
*
न जिंदा है; न मुर्दा अधमरी है.
यहाँ जम्हूरियत गिरवी धरी है.
*
चली खोटी; हुई बाज़ार-बाहर
वही मुद्रा हमेशा जो खरी है.
*
किये थे वायदे; जुमला बताते
दलों ने घास सत्ता की चरी है.
*
हरी थी टौरिया; कर नष्ट दी अब
तपी धरती; हुई तबियत हरी है.
*
हवेली गाँव की; हम छोड़ आए.
कुठरिया शहर में, उन्नति करी है.
*
न खाओ सब्जियाँ जो चाहता दिल.
भरा है जहर दिखती भर हरी है.
*
न बीबी अप्सरा से मन भरा है
पड़ोसन पूतना लगती परी है.
*
slil.sanjiv@gmail.com
९.७.२०१८, ७९९९५५९६१८

सोमवार, 25 मई 2020

गीत: अंधश्रद्धा महापौरणिक जातीय, सुमेरु छंद

गीत:
अंधश्रद्धा
महापौरणिक जातीय, सुमेरु छंद
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आदमी को देवता, मत मानिए
आँख पर अपनी न पट्टी बाँधिए
स्वच्छ मन-दर्पण हमेश यदि न हो-
बदन की दीवार पर मत टाँगिए
लक्ष्य वरना आप है
*
कौन गुरुघंटाल हो, किसको पता?
बुद्धि को तजकर नहीं, करिए खता
गुरु बनाएँ तो परख भी लें उसे-
बता पाए गुरु नहीं तुझको धता
बुद्धि तजना पाप है
*
नीति-मर्यादा सुपावन धर्म है
आदमी का भाग्य लिखता कर्म है
शर्म आये कुछ न ऐसा कीजिए-
जागरण ही जिंदगी का मर्म  है 
देव-प्रिय निष्पाप है
***