ग़ज़ल:
चले आइए
संतोष भाऊवाला
*
चले आइए
संतोष भाऊवाला
*
बज़्म-ए-उल्फ़त सजी है चले आइए
कैसी नाराज़गी है चले आइए
कैसी नाराज़गी है चले आइए
ख्वाब में ढूंढ़ती मैं रही आप को
ऐसी क्या बे रूखी है चले आइए
ऐसी क्या बे रूखी है चले आइए
याद आकर सताती रही रात भर
आँसु ओं की झड़ी है चले आइए
आँसु ओं की झड़ी है चले आइए
ईद का चाँद भी मुन्तज़िर आपका
कैसी पर्दादरी है चले आइए
कैसी पर्दादरी है चले आइए
चाँदनी चाँद से होने को है जुदा
रात भी ढल चली है चले आइए
रात भी ढल चली है चले आइए