सॉनेट
वह
•
हमने उसे नहीं पहचाना।
गिला न शिकवा करता है वह।
रूप; रंग; आकार न जाना।।
करे परवरिश हम सबकी वह।।
लिया हमेशा सब कुछ उससे।
दिया न कुछ भी वापिस उसको।
उसकी करें शिकायत किससे?
उसका प्रतिनिधि मानें किसको?
कब भेजे?; कब हमें बुला ले?
क्यों भेजा है हमें जगत में?
कारण कुछ तो कभी बता दे।
मिले न क्यों वह कभी प्रगट में?
करे किसी से नहीं अदावत।
नहीं किसी से करे सखावत।।
•••
सॉनेट
अधिनायक
•
पत्थर दिल होता अधिनायक।
आत्ममुग्ध, चमचा-शरणागत।
देख न पाता विपदा आगत।।
निज मुख निज महिमा अभिभाषक।।
जन की बात न सुनता, बहरा।
मन की बात कहे मनमानी।
भूला मिट जाता अभिमानी।।
जनमत विस्मृत किया ककहरा।।
तंत्र न जन का, दल का प्यारा।
समझ रहा है मैदां मारा।
देख न पाता, लोक न हारा।।
हो उदार, जनमत पहचाने।
सब हों साथ, नहीं क्यों ठाने।
दल न, देश के पढ़े तराने।।
१९-२-२०२२
•••
शिव भजन
भज मन महाकाल प्रभु निशदिन।।
*
मनोकामना पूर्ण करें हर, हर भव बाधा सारी।
सच्चे मन से भज महेश को, विपद हरें त्रिपुरारी।।
कल पर टाल न मूरख, कर ले
श्वाश श्वास प्रभु सुमिरन।
भज मन महाकाल प्रभु निशदिन।।
*
महाप्राण हैं महाकाल खुद पिएँ हलाहल हँसकर।
शंका हरते भोले शंकर, बंधन काटें फँसकर।।
कोशिश डमरू बजा करो रे शिव शंभू सँग नर्तन।
भज मन महाकाल प्रभु निशदिन।
*
मोह सर्प से कंठ सजा, पर मन वैराग बसाएँ।
'सलिल'-धार जग प्यास बुझाने, जग की सतत बहाएँ।।
हर हर महादेव जयकारा लगा नित्य ही अनगिन।
भज मन महाकाल प्रभु निशदिन।।
१९-२-२०२१
***
दोहा सलिला
रूप नाम लीला सुनें, पढ़ें गुनें कह नित्य।
मन को शिव में लगाकर, करिए मनन अनित्य।।
*
महादेव शिव शंभु के, नामों का कर जाप।
आप कीर्तन कीजिए, सहज मिटेंगे पाप।।
*
सुनें ईश महिमा सु-जन, हर दिन पाएं पुण्य।
श्रवण सुपावन करे मन, काम न आते पण्य।।
*
पालन संयम-नियम का, तप ईश्वर का ध्यान।
करते हैं एकांत में, निरभिमान मतिमान।।
*
निष्फल निष्कल लिंग हर, जगत पूज्य संप्राण।
निराकार साकार हो, करें कष्ट से त्राण।।
१९-२-२०१८
***
दोहा सलिला
*
मधुशाला है यह जगत, मधुबाला है श्वास
वैलेंटाइन साधना, जीवन है मधुमास
*
धूप सुयश मिथलेश का, धूप सिया का रूप
याचक रघुवर दान पा, हर्षित हो हैं भूप
१९-२-२०१७
***
ककुभ / कुकुभ
संजीव
*
(छंद विधान: १६ - १४, पदांत में २ गुरु)
*
यति रख सोलह-चौदह पर कवि, दो गुरु आखिर में भाया
ककुभ छंद मात्रात्मक द्विपदिक, नाम छंद ने शुभ पाया
*
देश-भक्ति की दिव्य विरासत, भूले मौज करें नेता
बीच धार मल्लाह छेदकर, नौका खुदी डुबा देता
*
आशिको-माशूक के किस्से, सुन-सुनाते उमर बीती.
श्वास मटकी गह नहीं पायी, गिरी चटकी सिसक रीती.
*
जीवन पथ पर चलते जाना, तब ही मंज़िल मिल पाये
फूलों जैसे खिलते जाना, तब ही तितली मँडराये
हो संजीव सलिल निर्मल बह, जग की तृष्णा हर पाये
शत-शत दीप जलें जब मिलकर, तब दीवाली मन पाये
*
(ककुभ = वीणा का मुड़ा हुआ भाग, अर्जुन का वृक्ष)
***
सामयिक दोहे
*
जो रणछोड़ हुए उन्हें, दिया न हमने त्याग
किया श्रेष्ठता से सदा, युग-युग तक अनुराग।
*
मैडम को अवसर मिला, नहीं गयीं क्या भाग?
त्यागा था पद अटल ने, किया नहीं अनुराग।
*
शास्त्री जी ने भी किया, पद से तनिक न मोह
लक्ष्य हेतु पद छोड़ना, नहिं अपराध न द्रोह।
*
केर-बेर ने मिलाये, स्वार्थ हेतु जब हाथ
छोड़ा जिसने पद विहँस, क्यों न उठाये माथ?
*
करते हैं बदलाव की, जब-जब भी हम बात
पूर्व मानकों से करें, मूल्यांकन क्यों तात?
*
विष को विष ही मारता, शूल निकाले शूल
समय न वह जब शूल ले, आप दीजिये फूल
*
सहन असहमति को नहीं, करते जब हम-आप
तज सहिष्णुता को 'सलिल', करें व्यर्थ संताप
१९-२-२०१४
***
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
शंकर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
शंकर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
शनिवार, 19 फ़रवरी 2022
सॉनेट, भजन, शिव, शंकर, दोहे, छंद ककुभ,
शुक्रवार, 18 जून 2021
दोपदी, मुक्तक, कवित्त
ॐ
दोपदी
पा पा कह मंज़िल पाने को, जो करते प्रोत्साहित
प्यार उन्हें करते सब बच्चे, पापा कह होते नत
*
पा पा कह मंज़िल पाने को, जो करते प्रोत्साहित
प्यार उन्हें करते सब बच्चे, पापा कह होते नत
*
मुक्तक
श्रेया है बगिया की कलिका, झूमे नित्य बहारों संग।
हर दिन होली रात दिवाली, पल-पल खुशियाँ भर दें रंग।।
कदम-कदम बढ़ नित नव मंजिल पाओ, दुनिया देखे दंग।
रुकना झुकना चुकना मत तुम, जीतो जीवन की हर जंग।।
*
कवित्त
*
शिवशंकर भर हुंकार, चीन पर करो प्रहार, हो जाए क्षार-क्षार, कोरोना दानव।
तज दो प्रभु अब समाधि, असहनीय हुई व्याधि, भूकलंक है उपाधि, देह भले मानव।।
करता नित अनाचार, वक्ष ठोंक दुराचार, मिथ्या घातक प्रचार, करे कपट लाघव।
स्वार्थ-रथ हुआ सवार, धोखा दे करे वार, सिंह नहीं है सियार, मिटा दो अमानव।।
***
१८-६-२०२०
श्रेया है बगिया की कलिका, झूमे नित्य बहारों संग।
हर दिन होली रात दिवाली, पल-पल खुशियाँ भर दें रंग।।
कदम-कदम बढ़ नित नव मंजिल पाओ, दुनिया देखे दंग।
रुकना झुकना चुकना मत तुम, जीतो जीवन की हर जंग।।
*
कवित्त
*
शिवशंकर भर हुंकार, चीन पर करो प्रहार, हो जाए क्षार-क्षार, कोरोना दानव।
तज दो प्रभु अब समाधि, असहनीय हुई व्याधि, भूकलंक है उपाधि, देह भले मानव।।
करता नित अनाचार, वक्ष ठोंक दुराचार, मिथ्या घातक प्रचार, करे कपट लाघव।
स्वार्थ-रथ हुआ सवार, धोखा दे करे वार, सिंह नहीं है सियार, मिटा दो अमानव।।
***
१८-६-२०२०
गुरुवार, 11 मार्च 2021
शिव भजन ५, स्व. शांति देवी वर्मा
पूज्य मातुश्री द्वारा रचित शिव भजन ५
धूमधाम भोले के गाँव,
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
धूमधाम भोले के गाँव
स्व. शांति देवी वर्मा
*
धूमधाम भोले के गाँव,
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कौन दिशा में?, कैसे जावें?, किते बसो भोले का गाँव ?
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
उत्तर दिशा में कैलाश परवत, बर्फ बीच भोले का गाँव।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कौन के लालन किते भए हैं?, का है पिता को नाम?
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
गौरा के सखी लालन भए हैं, शंकर पिता को नाम।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
किते डालो लालन को पलना, बँधी काए की डोर ।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कल्प वृक्ष पे झूला डालो है, अमरबेल की है डोर ।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कौन झुला कौन लोरी सुना रए?, कौन बलैंंया लेत?
स्व. शांति देवी वर्मा
*
धूमधाम भोले के गाँव,
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कौन दिशा में?, कैसे जावें?, किते बसो भोले का गाँव ?
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
उत्तर दिशा में कैलाश परवत, बर्फ बीच भोले का गाँव।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कौन के लालन किते भए हैं?, का है पिता को नाम?
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
गौरा के सखी लालन भए हैं, शंकर पिता को नाम।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
किते डालो लालन को पलना, बँधी काए की डोर ।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कल्प वृक्ष पे झूला डालो है, अमरबेल की है डोर ।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कौन झुला कौन लोरी सुना रए?, कौन बलैंंया लेत?
चलो पाँव-पाँव सखी!
*
शंकर झुला उमा लोरी सुनाएँ, नंदी बलैंया लेत।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
कौन नाच रए झूम-झूम के, कहो पहिर मुंड माल?
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
*
भूत पिशाच जोगिनी नाचें, पहिरे गले मुंड माल।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
*
कौन चाह रए दर्शन पाएँ, कौन बाँच रए भाग?
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
*
ब्रह्मा-शारद; विष्णु लक्ष्मी, बाँच नें पाएँ भाग।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....*
कौन कर्म-फल लिखे भाग में, किनकी कृपा अपार?
चलो पाँव-पाँव सखी!.....*
लिखे कर्म फल चित्रगुप्त प्रभु, रिद्धि-सिद्धि मिले अपार।
चलो पाँव-पाँव सखी!.....धूमधाम भोले के गाँव,
चलो पाँव-पाँव सखी!.....
*
चिप्पियाँ Labels:
शंकर,
शिव भजन ५,
स्व. शांति देवी वर्मा
शिव भजन ४, शांति देवी वर्मा
पूज्य मातुश्री द्वारा रचित शिव भजन ४
भोले घर बाजे बधाई
भोले घर बाजे बधाई
स्व. शांति देवी वर्मा
*
मंगल बेला आई,
भोले घर बाजे बधाई.....
*
गौरा मैया ने लालन जनमे, गणपति नाम धराई।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
द्वारे बंदनवार बँधे हैं, कदली खंब लगाई।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
*
मंगल बेला आई,
भोले घर बाजे बधाई.....
*
गौरा मैया ने लालन जनमे, गणपति नाम धराई।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
द्वारे बंदनवार बँधे हैं, कदली खंब लगाई।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
हरे-हरे गोबर इन्द्राणी आँगन लीपें, मुतियन चौक पुराई।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
भोले घर बाजे बधाई.....
*
स्वर्ण कलश ब्रह्माणी लिए हैं, चौमुख दिया जलाई।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
भोले घर बाजे बधाई.....
*
लछमी जी पलना पौढ़ाएँ, झूलें गणेश सुखदाई।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
भोले घर बाजे बधाई.....
*
नृत्य करें नटराज झूमकर, नारद वीणा बजाई।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
भोले घर बाजे बधाई.....
*
देव-देवियाँ सोहर गावें, खुशियां त्रिभुवन छाईं।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
भोले घर बाजे बधाई.....
*
भले बाबा जोगी बैरागी, उमा लालन कहाँ से लाईं।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
भोले घर बाजे बधाई.....
*
सखियाँ सब मिल करें ठिठोली, उमा झेंप खिसियाईं।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
भोले घर बाजे बधाई.....
*
झूम हिमालय हवन कर रहे, मैना देव मनाईं।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
'शांति' गजानन दर्शन कर ले, सबरे पाप नसाई ।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
भोले घर बाजे बधाई.....
*
'शांति' गजानन दर्शन कर ले, सबरे पाप नसाई ।
भोले घर बाजे बधाई.....
*
चिप्पियाँ Labels:
शंकर,
शांति देवी वर्मा,
शिव भजन ४
शिव भजन ३, शांति देवी वर्मा
पूज्य मातुश्री द्वारा रचित शिव भजन ३
मोहक छटा पारवती-शिव की
स्व. शांति देवी वर्मा
*
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
ऊँचो तेरहो-मेढ़ो कैलाश परवत, बीच मां बहे गंग धार।
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
मोहक छटा पारवती-शिव की
स्व. शांति देवी वर्मा
*
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
ऊँचो तेरहो-मेढ़ो कैलाश परवत, बीच मां बहे गंग धार।
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
शीश पे उमा के मुकुट सुहावे, भोले के जूट-रुद्राक्ष।
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
शीश पे उमा के मुकुट सुहावे, भोले के जूट-रुद्राक्ष।
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
माथे पे गौरी के सिंदूर बिंदिया, शंकर के भस्मी राख।मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
सती के कानों में हीरक कुंडल, त्रिपुरारी के बिच्छू कान।मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
कंठ शिवा के नौलख हरवा, नीलकंठ के नाग।मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
हाथ अपर्णा के मुक्तक कंगन, डमरू साथ। मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
कुँवरि बदन केसर-कस्तूरी, महादेव तन राख।मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
पहने भवानी नौ रंग चूनर, भोले बाघ की खाल। मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
दुर्गा रचतीं सकल सृष्टि को, महानाशक महाकाल। मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
भुवन मोहनी महामाया हैं, औघड़दानी हैं नाथ । मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
'शांति' सार्थक जन्म दरस पा, सदय शिवा-शिव साथ।
मोहक छटा पारवती-शिव की,
देखन आओ चलें कैलाश.....
देखन आओ चलें कैलाश.....
*
चिप्पियाँ Labels:
शंकर,
शांति देवी वर्मा,
शिव भजन ३
शिव भजन १, शांति देवी वर्मा
पूज्य मातुश्री द्वारा रचित शिव भजन १
शिवजी की आई बारात
स्व. शांति देवी वर्मा
*
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
देखन चलिए, मुदित मन रहिए,
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
*
भूत प्रेत बैताल जोगिनी, खप्पर लिए हैं हाथ।
चलो सखी देखन चलिए
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
*
कानों में बिच्छू के कुंडल सोहें, कंठ सर्प की माल।
चलो सखी देखन चलिए
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
*
अंग बभूत, कमर बाघंबर, नैना हैं लाल विशाल।
चलो सखी देखन चलिए
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
*
कर त्रिशूल-डमरू मन मोहे, नंदी करते नाच।
चलो सखी देखन चलिए
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
*
कर सिंगार भोला बन दूलह, चंदा सजाए माथ।
चलो सखी देखन चलिए
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
*
'शांति' सफल जीवन कर दर्शन, करिए जय-जयकार।
चलो सखी देखन चलिए
शिव जी की आई बारात, चलो सखी देखन चलिए।
*
चिप्पियाँ Labels:
शंकर,
शांति देवी वर्मा,
शिव भजन १
मंगलवार, 9 मार्च 2021
शिव
शिव
"...कालिदास ने मालविकाग्निमित्र में शिव के नृत्य को देवताओं की आंखों को सुहाने वाला यज्ञ कहा है। तण्ड मुनि द्वारा प्रचारित होने से यह ताण्डव कहलाया। तण्डु ने अभिनय निमित्त इसे भरतमुनि को दिया। अभिनवगुप्त की टीका मंे तण्डु ही शिव के गण नन्दी हैं।
शिव का रूद्रावतार संगीत कला का पर्याय है। इसी अवतार में उन्होंने नारद को संगीत का ज्ञान दिया। ‘संगीत मकरंद’ में शिव की कला का ही गान है।..."
मंगलवार, 8 दिसंबर 2020
शिव
*🌼ॐ नमः शिवाय🙏*
*#भगवान_शिव के "35" रहस्य!!!!!!!!
भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।
*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।
*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।
*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।
*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।
*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।
*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।
*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।
*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।
*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।
*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।
*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में विभक्त हो गई।
*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -* ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।
*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।
*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।
*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।
*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।
रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।
तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।
जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के मंदिर के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।
रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।
*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।
*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।
*🔱19.* तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।
*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।
*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।
*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।
*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।
*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।
*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।
*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -* शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।
*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।
*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।
*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया।
*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।
*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।
*🔱35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिये थे।🙏
सोमवार, 6 अप्रैल 2020
शिव परमात्मा
शिव परमात्मा !
* वो निराकार हैं , ज्योतिर्लिंगम ----ज्योति पुंज हैं !
* वो सूक्ष्म से सूक्ष्म हैं हर किसी की आत्मा में उनका निवास है !
* मंदिरों में उनका उनका अंडाकार शिव लिंग ब्रह्माण्ड का प्रतीक है जिनके अंदर समस्त सृष्टि समायी है !
* गीता में जो कहा है -की वो सूक्ष्म से सूक्ष्म हैं वो विशाल से
विशाल हैं वो निराकार परमात्मा के लिए है ---शिव ही निराकार
परमात्मा हैं ---दूसरा कोई और नहीं !
* ॐ उनका एक अक्षर का नाम है यह अक्षर इसलिए है यह नाम
कभी समाप्त नहीं होगा ---आपका कंठ थक जायेगा लेकिन ॐ
नहीं , क्यों की इसमें समस्त स्वरों का संगम है - पृथ्वी या अन्य ---ग्रहों के घूर्णन से जो ध्वन्यात्मक नाद उतपन्न होता है वो
ॐ है !
*ॐ ---परमेश्वर का वो नाम है जो पूरे विश्व के अध्यात्म का केंद्र बिंदु है ----OMNICIENT --सर्वज्ञ ,OMNIPOTENT --
सर्वशक्तिशाली , OMNIPRESENT --सर्व व्यापी -, OMEGA ---प्रभु की ख़ुशी , --- OMAR -- भोला ----ऐसे शब्द हैं जो ॐ की
विश्व व्यापकता की और संकेत करते हैं !
* सिख धर्म कहता है ---एक ओंकार ही सत्य है ---
एको जपो एको सालाहि !
एको सिमरि एको मन आहि,!!
ऐकस के गन गाऊ अनंत !,
मनि तनि जापि एक भगवंत !!
***
जैन धर्म का महामंत्र कहता है ----
"ओमणमो ------"-----उस निराकार ओम को नमन !
****
* मक्का में मुसलमान संगे अस्वद की उसी प्रकार परिक्रमा ---करते हैं जैसे हम शिव की !
*-- ॐ को ९० अंश घडी की दिशा में घुमाने पर इसको अल्लाह भी पढ़ा जा सकता है !
****
* शिव अर्थात ॐ निराकार परमात्मा ही सत्य है -----इस सत्य को मानने से पूरी मानवजाति ईश्वर के नाम पर एक होगी --
यही सत्य पूरी मानव जाति को एक करने की शक्ति रखता है !
* ॐ ही " देवनामधा " ( ऋग्वेद ) -----अर्थात समस्त देवताओं के नाम को धारण करते है ----एक परमात्मा ही समस्त देवताओं फरिश्तों की शक्तियों को धारण करते हैं !
* शिव निराकार परमात्मा है निराकार ब्रह्म हैं -----साकार ब्रह्म के रूप में वो ही ब्रह्मा , विष्णु , शंकर , राम , कृष्ण हैं !
*विश्व शांति का सूत्र है---- "सत्य शिवम सुंदरम"
६-४-२०१९
चिप्पियाँ Labels:
शंकर,
शिव परमात्मा
शनिवार, 27 जुलाई 2019
दोहा सलिला
दोहा सलिला
*
सद्गुरु ओशो ज्ञान दें, बुद्धि प्रदीपा ज्योत
रवि-शंकर खद्योत को, कर दें हँस प्रद्योत
*
गुरु-छाया से हो सके, ताप तिमिर का दूर.
शंका मिट विश्वास हो, दिव्य-चक्षु युत सूर.
*
गुरु गुरुता पर्याय हो, खूब रहे सारल्यदृढ़ता में गिरिवत रहे, सलिला सा तारल्य
*
गुरु गरिमा हो हिमगिरी, शंका का कर अंत
गुरु महिमा मंदाकिनी, शिष्य नहा हो संत
*
गरज-गरज कर जा रहे, बिन बरसे घन श्याम.
शशि-मुख राधा मानकर, लिपटे क्या घनश्याम.
*
*
सद्गुरु ओशो ज्ञान दें, बुद्धि प्रदीपा ज्योत
रवि-शंकर खद्योत को, कर दें हँस प्रद्योत
*
गुरु-छाया से हो सके, ताप तिमिर का दूर.
शंका मिट विश्वास हो, दिव्य-चक्षु युत सूर.
*
गुरु गुरुता पर्याय हो, खूब रहे सारल्यदृढ़ता में गिरिवत रहे, सलिला सा तारल्य
*
गुरु गरिमा हो हिमगिरी, शंका का कर अंत
गुरु महिमा मंदाकिनी, शिष्य नहा हो संत
*
गरज-गरज कर जा रहे, बिन बरसे घन श्याम.
शशि-मुख राधा मानकर, लिपटे क्या घनश्याम.
*
मंगलवार, 12 दिसंबर 2017
geet
गीत:
मन से मन के तार जोड़ती.....
संजीव 'सलिल'
*
*
मन से मन के तार जोड़ती कविता की पहुनाई का.
जिसने अवसर पाया वंदन उसकी चिर तरुणाई का.....
*
जहाँ न पहुँचे रवि पहुँचे वह, तम् को पिए उजास बने.
अक्षर-अक्षर, शब्द-शब्द को जोड़, सरस मधुमास बने..
बने ज्येष्ठ फागुन में देवर, अधर-कमल का हास बने.
कभी नवोढ़ा की लज्जा हो, प्रिय की कभी हुलास बने..
होरी, गारी, चैती, सोहर, आल्हा, पंथी, राई का
मन से मन के तार जोड़ती कविता की पहुनाई का.
जिसने अवसर पाया वंदन उसकी चिर तरुणाई का.....
*
सुख में दुःख की, दुःख में सुख की झलक दिखाकर कहती है.
सलिला बारिश शीत ग्रीष्म में कभी न रूकती, बहती है.
पछुआ-पुरवैया होनी-अनहोनी गुपचुप सहती है.
सिकता ठिठुरे नहीं शीत में, नहीं धूप में दहती है.
हेर रहा है क्यों पथ मानव, हर घटना मन भाई का?
मन से मन के तार जोड़ती कविता की पहुनाई का.
जिसने अवसर पाया वंदन उसकी चिर तरुणाई का.....
*
हर शंका को हरकर शंकर, पियें हलाहल अमर हुए.
विष-अणु पचा विष्णु जीते, जब-जब असुरों से समर हुए.
विधि की निधि है प्रविधि, नाश से निर्माणों की डगर छुए.
चाह रहे क्यों अमृत पाना, कभी न मरना मनुज मुए?
करें मौत का अब अभिनन्दन, सँग जन्म के आई का.
मन से मन के तार जोड़ती कविता की पहुनाई का.
जिसने अवसर पाया वंदन उसकी चिर तरुणाई का.....
**********************
१२-१२-२०१३
मंगलवार, 4 जुलाई 2017
doha geet:
दोहा गीत:
*
काश!
कभी हम पा सकें,
उसके भी दीदार
*
कंकर-कंकर में वही
शंकर कहते लोग
संग हुआ है किस तरह
मक्का में? संजोग
जगत्पिता जो दयामय
महाकाल शशिनाथ
भूतनाथ कामारि वह
भस्म लगाए माथ
भोगी-योगी
सनातन
नाद वही ओंकार
काश!
कभी हम पा सकें,
उसके भी दीदार
*
है अगम्य वह सुगम भी
अवढरदानी ईश
गरल गहे, अमृत लुटा
भोला है जगदीश
पुत्र न जो, उनका पिता
उमानाथ गिरिजेश
नगर न उसको सोहते
रुचे वन्य परिवेश
नीलकंठ
नागेश हे!
बसो ह्रदय-आगार
काश!
कभी हम पा सकें,
उसके भी दीदार
***
४-७-२०१६
काश!
कभी हम पा सकें,
उसके भी दीदार
*
कंकर-कंकर में वही
शंकर कहते लोग
संग हुआ है किस तरह
मक्का में? संजोग
जगत्पिता जो दयामय
महाकाल शशिनाथ
भूतनाथ कामारि वह
भस्म लगाए माथ
भोगी-योगी
सनातन
नाद वही ओंकार
काश!
कभी हम पा सकें,
उसके भी दीदार
*
है अगम्य वह सुगम भी
अवढरदानी ईश
गरल गहे, अमृत लुटा
भोला है जगदीश
पुत्र न जो, उनका पिता
उमानाथ गिरिजेश
नगर न उसको सोहते
रुचे वन्य परिवेश
नीलकंठ
नागेश हे!
बसो ह्रदय-आगार
काश!
कभी हम पा सकें,
उसके भी दीदार
***
४-७-२०१६
#हिंदी_ब्लॉगिंग
बुधवार, 15 अप्रैल 2009
शिव भजन -सतीश चन्द्र वर्मा, भोपाल
नमामि शंकर
नमामि शंकर, नमामि शंकर...
बदन में भस्मी, गले में विषधर.
नमामि शंकर, नमामि शंकर...
जटा से गंगा की धारा निकली.
विराजे मस्तक पे चाँद टिकली.
सदा विचरते बने दिगंबर,
नमामि शंकर, नमामि शंकर...
तुम्हारे मंदिर में नित्य आऊँ.
तुम्हारी महिमा के गीत गाऊँ.
चढ़ाऊँ चंदन तुम्हें मैं घिसकर,
नमामि शंकर,नमामि शंकर...
तुम्हीं हमारे हो एक स्वामी.
कहाँ हो आओ, हे विश्वगामी!
हरो हमारी व्यथा को आकर,
नमामि शंकर,नमामि शंकर...
=====================
नमामि शंकर, नमामि शंकर...
बदन में भस्मी, गले में विषधर.

नमामि शंकर, नमामि शंकर...
जटा से गंगा की धारा निकली.
विराजे मस्तक पे चाँद टिकली.
सदा विचरते बने दिगंबर,
नमामि शंकर, नमामि शंकर...
तुम्हारे मंदिर में नित्य आऊँ.
तुम्हारी महिमा के गीत गाऊँ.
चढ़ाऊँ चंदन तुम्हें मैं घिसकर,
नमामि शंकर,नमामि शंकर...
तुम्हीं हमारे हो एक स्वामी.
कहाँ हो आओ, हे विश्वगामी!
हरो हमारी व्यथा को आकर,
नमामि शंकर,नमामि शंकर...
=====================
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)