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सोमवार, 27 दिसंबर 2010

अमर बाल शहीद फतह सिंह - जोरावर सिंह --- हेमंत भट्ट

"अमर बाल शहीद फतह सिंह - जोरावर सिंह "         


सूरा सो पहचानिये, जो लड़े दीन के हेत। 
पुर्जा-पुर्जा कर मरे, कबहू ना छोड़े खेत।।

         आज से ३०६ साल पहले २७ दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह जी के ६ व ८ साल के साहिबजादे बाबा फतेह सिंह और जोरावर सिंह को दीवार में चिनवा दिया गया था। सरहिंद के नवाब ने उन बच्चों को मुसलमान बनने के लिए मजबूर किया था, मगर साहिबजादे ना डरे, ना लोभ में अपना धर्म बदलना स्वीकार किया और दुनिया को बेमिसाल शहीदी पैगाम दे गए।वे दुनिया में अमर हो गए। जरा याद करो वो कुर्बानी.

२७ दिसंबर १७०४ को फतवे अनुसार बच्चों को दीवारों में चिना जाने लगा। जब दीवार घुटनों तक पहुंची तो घुटनों की चपनियों को तेसी से काटा गया ताकि दीवार टेढ़ी न हो। जुल्म की हद हो गई। सिर तक दीवार के पहुंचने पर शाशल बेग व वाशल बेग जलादों ने तलवार में शीश कर साहिबजादों को शहीद कर दिया। उनकी शहादत की खबर सुन कर दादी माता भी परलोक सिधार गई। लाशों को खेतों में फेंक दिया गया।

सरहिंद के एक हिंदु साहूकार जी रोडरमल को जब इसका पता चला तो उसने संस्कार करने की सोची। उसको कहा गया कि जितनी जमीन संस्कार के लिए चाहिए उतनी जगह पर सोने की मोहरें बिछानी पड़ेगी। उसने घर के सब जेवर व सोने की मोहरें बिछा करके साहिबजादों व माता गुजरी का दाह संस्कार किया। संस्कार वाली जगह पर बहुत संदर गुरुद्वारा जोती स्वरूप बना हुआ है। जबकि शहादत वाली जगह पर भी एक बहुत बड़ा गुरुद्वारा सशोभित है। हर साल दिसंबर २५ से २७ दिसंबर तक बहुत भारी जोड़ मेला इस स्थान पर (फतेहगढ़ साहिब) लगता है जिसमें १५ लाख श्रद्धालु पहुँचकर साहिबजादों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। ६ व ८ साल के साहिबजादे बाबा फतेह सिंह और जोरावर सिंह जी दुनिया को बेमिसाल शहीदी पैगाम दे गए। वे दुनिया में अमर हो गए।                                                                                                        आभार: फेसबुक
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