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मंगलवार, 4 सितंबर 2012

हास्य सलिला ... पहचान लीजिए संजीव 'सलिल'

हास्य सलिला ...

पहचान लीजिए
संजीव 'सलिल'
*



जो भी जाता मित्र प्रसाधन, जैसे ही बाहर आता.
चक्कर में हम, समझ न पाये, क्यों रह-रहकर मुस्काता?

जिससे पूछा, मौन रहा वह, बढ़ती जाती उत्सुकता-
आखिर एक मित्र बोला: ' क्यों खुद न देखकर है आता?'

गया प्रसाधन, रोक न पाया, मैं खुद को मुस्काने से.
सत्य कहूँ?, अंकित दीवार पर, काव्य पंक्तियाँ गाने से.

शहरयार होते.. क्या करते?, शायद पहले खिसियाते.
रचना का उपयोग अनोखा, देख 'सलिल' फिर मुस्काते.

उत्सुकता से हों नहीं अधिक आप बेज़ार
क्या अंकित था पढ़ें और फिर दाद दीजिये.

''इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार
दीवारो-दर को गौर से पहचान लीजिए...''




Acharya Sanjiv verma 'Salil'
94251 83244 / 0761 241131
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in.divyanarmada

सोमवार, 3 सितंबर 2012

हास्य सलिला : गधा-वार्ता संजीव 'सलिल'

हास्य सलिला :

गधा-वार्ता

संजीव 'सलिल'

*



एक गधा दूजे से बोला: 'मालिक जुल्मी बहुत मारता।'
दूजा बोला: 'क्यों सहता तू?, क्यों न रात छिप दूर भागता?'
पहला बोला: 'मन करता पर उजले कल की सोच रुक गया।'
दूजा पूछे:' क्या अच्छा है जिसे सोच तू आप झुक गया?'
पहला: 'कमसिन सुन्दर बेटी को मालिक ने मारा था चांटा।
ब्याह गधे से दूंगा तुझको' कहा, जोर से फिर था डांटा।
ठहरा हूँ यह सपना पाले, मालिक अपनी बात निभाए।
बने वह परी मेरी बीबी, मेरी भी किस्मत जग जाए।

***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
94251 83244 / 0761 2411131
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