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रविवार, 25 अप्रैल 2021

दोहा

दोहा
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गौ माता है, महिष है असुर, न एक समान
नित महिषासुर मर्दिनी का पूजन यश-गान
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करते हम चिरकाल से, देख सके तो देख
मिटा पुरानी रेख मत, कहीं नई निज रेख
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अपने राम जहाँ रहें, वहीं रामपुर धाम
शब्द ब्रम्ह हो साथ तो, क्या नगरी क्या ग्राम ?
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रुद्ध द्वार पर दीजिए दस्तक, इतनी बार
जो हो भीतर खोल दे, खुद ही हर जिद हार
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दोहा वार्ता
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छाया शुक्ला
सम्बन्धों के मूल्य का, कौन करे भावार्थ ।
अब बनते हैं मित्र भी, लेकर मन मे स्वार्थ ।।
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संजीव
बिना स्वार्थ तृष्णा हरे, सदा सलिल की धार
बिना मोह छाया करे, तरु सर पर हर बार
संबंधों का मोल कब, लें धरती-आकाश
पवन-वन्हि की मित्रता, बिना स्वार्थ साकार
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रविवार, 10 जून 2018

कार्यशाला: रचना एक रचनाकार दो

कार्यशाला: 
रचना एक रचनाकार दो 
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पथरीले थे रास्ते, दुख का नहीं हिसाब ।
अनुभव अनुभव जोड़कर, छाया बनी किताब ।। -छाया शुक्ला

छाया बनी किताब, धूप हँस पढ़ने बैठी।  
छोड़ न पाई चाह, ह्रदय में छाया पैठी।।  
देखें दर्पण सलिल, न टिकते बिंब हठीले।  
लिख कविता संजीव, स्वप्न पाए नखरीले।।  -संजीव 
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१०.६.२०१८