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गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : १८ 'अग' से प्रारंभ शब्द : ५. --संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : १८       संजीव 'सलिल'

*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदास-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, सूर.-सूरदास, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

'अग' से प्रारंभ शब्द : ५.

संजीव 'सलिल'
*
अगु - पु. सं. राहु, अन्धकार.
अगुआ - पु. आगे चलनेवाला, मुखिया. पथप्रदर्शक, विवाह तय करानेवाला, बिचौलिया, दलाल, बिचुआ, घटक,  आगे का हिस्सा.
अगुआई - स्त्री. नेतृत्व, मार्गदर्शन, अगवानी, नायकत्व.
अगुआना - सक्रि. अगुआ बनना, अक्रि. आगे जाना.
अगुआनी - स्त्री. आगे जाकर स्वागत करना.
अगुण - वि. सं. निर्गुण, गुणरहित, गुणहीन, अनाड़ी. पु. अवगुण, दोष.-ज्ञ -जिसे गुण की परख न हो, गँवार.-वादी/दिन-वि. दोष निकलने वाला, छिद्रान्वेषी.-शील-वि. अयोग्य, निकम्मा.
अगुणी / णिन - वि. सं. गुणहीन, निर्गुण.
अगुरु - पु. सं. अगर, शीशम का पेड़. वि. हल्का, लघु (वर्ण), निगुरा, गुरु से भिन्न, जो गुरु न हो.
अगुवा - पु. देखें अगुआ.
अगुवानी - स्त्री, देखें अगवानी.
अगुसरना - अक्रि. आगे बढ़ना.
अगुसारना - सक्रि. आगे बढ़ाना.
अगूठना - सक्रि. अगोटना, घेर लेना.
अगूठा -  पु. घेरा.
अगूढ़ -  वि. सं. प्रगट, स्पष्ट, सहज.-गंध-पु.,-गंधा-स्त्री. हींग.-भाव-वि. जिसका भाव/अर्थ गूढ़/छिपा न हो. सरलचित्त.
अगूता - अ. आगे, सामने.
अगृ - वि. सं. गृहहीन, बेघर, बिना घर-द्वार का. पु. वानप्रस्थ.
अगेंद्र - पु. सं. हिमालय, हिमगिरि.
अगेथू - पु. देखें अँगेथू.
अगेह - वि. सं. देखें अगृह.
अगोई - वि. स्त्री. जो गुप्त न हो, प्रगट. नोक या सिरा -'हिरनी की खुरियाँ... जिनकी नुकीली अगोइयों ने उसकी खाल उधेड़ दी हो. -नवनीत, दिसंबर १९६२.
अगोचर - वि. सं. जिसका ज्ञान इंद्रियों से न हो सके, इन्द्रियों से परे, इन्द्रियातीत, अप्रगट. पु. वह जो इन्द्रियातीत हो, वह जिसे देखा या जाना न जा सके, ब्रम्ह, ईश्वर, भगवान.
अगोट - पु. आड़, रोक, बाधा, अटक, आश्रय, सहारा, सुरह्षित स्थान. वि. अकेला, गुटरहित, सुरक्षित.
अगोटना - सक्रि. छेंकना, घेरना, छिपा/रोक रखना, फँसना, उलझना.
अगोता - अ. सम्मुख/आगे. पु. अगवानी.
अगोरदार - पु. रखवाली करनेवाला, रखवाला, रक्षक.
अगोरना - सक्रि. बाट जोहना, रखवाली करना, रोकना.
अगोरा - पु. अगोरने की क्रिया, रखवाली देखें अगोरिया.
अगोरिया - पु. खेत आदि की रखवाली करने वाला.
अगोही - पु. आगे की ओर निकले हुए सींगोंवाला बैल.
अगोह्य - वि. सं. जो छिपाये/ढँके जाने योग्य न हो, प्रकाश्य. 
अगौंड़ी - वि. जो गौंड़ (आदिवासियों की एक जाति) न हो. स्त्री. देखें अगाव.
अगौका (कस)  - पु. सं. पर्वतवासी, सिंह, पक्षी, शरभ.
अगौढ़ - पु. पेशगी/अग्रिम ड़ी जानेवाली रकम/धनराशि.
अगौता - अ. आगे. पु. अगवानी, पेशगी.
अगौनी - स्त्री. देखें अगवानी, बरात आने पर द्वार पूजा के समय छोड़ी जानेवाली आतिशबाजी. अ. आगे.
अगौरा - पु. देखें अगाव.
अगौरी/अगौली - स्त्री. एक तरह की ईख/गन्ना.
अगौहें - अ. आगे, आगे की ओर.
अग्ग - वि., अ. देखें अग्र.
अग्गरवाल - वि. वैश्यों/वणिकों का एक वर्ग., देखें अग्रवाल.
अग्गई - स्त्री. हाथभर लम्बी पत्तियोंवाला एक वृक्ष जो अवध क्षेत्र में अधिक पाया जाता है.
अग्गे - अ. आगे, अग्र.
अग्नायी - स्त्री. सं. अग्नि देव की स्त्री/शक्ति, स्वाहा, समिधा, त्रेता युग. 
                                                                                                                                                                     निरंतर......
    

मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : १६ 'अग' से प्रारंभ शब्द : ३. -- संजीव 'सलिल'


हिंदी शब्द सलिला : १६       संजीव 'सलिल'


*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदास-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, सूर.-सूरदास, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

'अग' से प्रारंभ शब्द : ३.

संजीव 'सलिल'
*
अगहाट - पु. भूमि जो बहुत दिनों से किसी अन्य के अधिकार में हो और वह छोड़ने के लिये तैयार न हो.
अगहार - पु. देखें अग्रहार.
अगहुँड़ - अ. आगे, आगे की ओर. वि. आगे चलनेवाला.
अगाउनी - अ. अगौनी, आगे, अग्रिम.
अगाऊँ / अगाऊ - वि. पेशगी, आगे का, अग्रिम, अ. आगेसे, पहले से, पूर्वसे.
अगाड़ - पु. हुक्के की निगाली, ढेंकली के छोर पर लगी पतली लकड़ी.
अगाड़ा - पु. पहले भेजा जानेवाला यात्रा का सामान.
अगाड़ी - अ. आगे, पहले, सामने, भविष्य में. स्त्री. आगे का हिस्सा, घोड़े की गर्दन में बंधी रस्सियाँ, अंगरखे या कुरते के सामने का हिस्सा, सेना का पहला धावा.
अगाड़ू  - अ. आगे, पहले.
आगाता - पु. सं. अच्छा न गानेवाला व्यक्ति.
अगात्मजा - स्त्री, सं. पार्वती, .
अगाद - वि. अगाध.
अगाध - वि. सं. अतल, अथाह, अपार, अधिक, दुर्बोध, अज्ञेय. पु. स्वाहाकार की पाँच अग्नियों में से एक, गहरा छेद, गड्ढा.-जल-पु. गहरा जलाशय, बावली, झील.-रुधिर- पु. अत्यधिक रक्त, बहुत अधिक खून.
अगान - वि. अज्ञानी, नासमझ. पु. नासमझी.
अगामै - अ. आगे.
अगार - अ. आगे. पु. सं. देखें आगार.
अगारी - अ. स्त्री. देखें अगाड़ी.
अगारी / रिन - वि. सं. मकान्वाला.
अगाव - पु. ईख के ऊपर का रसहीन भाग.
अगास - पु. देखें आकाश, द्वार के सामने का चबूतरा.
अगाह - वि. अथाह, अत्यधिक, उदास, चिंतित, देखें आगाह. अ. आगे से, पहले से.
                                                                          -- निरंतर

रविवार, 10 अक्टूबर 2010

हिंदी चर्चा : १ भाषा, वर्ण या अक्षर, शब्द, ध्वनि, व्याकरण, स्वर, व्यंजन ----- संजीव वर्मा 'सलिल'

हिंदी चर्चा : १
 
भाषा, वर्ण या अक्षर, शब्द, ध्वनि, व्याकरण, स्वर, व्यंजन
 
----- संजीव वर्मा 'सलिल'
 
औचित्य :

भारत-भाषा हिन्दी भविष्य में विश्व-वाणी बनने के पथ पर अग्रसर है. हिन्दी की शब्द सामर्थ्य पर प्रायः अकारण तथा जानकारी के अभाव में प्रश्न चिन्ह लगाये जाते हैं. भाषा सदानीरा सलिला की तरह सतत प्रवाहिनी होती है. उसमें से कुछ शब्द काल-बाह्य होकर बाहर हो जाते हैं तो अनेक शब्द उसमें प्रविष्ट भी होते हैं.

'हिन्दी सलिला' वर्त्तमान आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर हिन्दी का शुद्ध रूप जानने की दिशा में एक कदम है. यहाँ न कोई सिखानेवाला है, न कोई सीखनेवाला. हम सब जितना जानते हैं उससे कुछ अधिक जान सकें मात्र यह उद्देश्य है. व्यवस्थित विधि से आगे बढ़ने की दृष्टि से संचालक कुछ सामग्री प्रस्तुत करेंगे. उसमें कुछ कमी या त्रुटि हो तो आप टिप्पणी कर न केवल अवगत कराएँ अपितु शेष और सही सामग्री उपलब्ध हो तो भेजें. मतान्तर होने पर संचालक का प्रयास होगा कि मानकों पर खरी , शुद्ध भाषा सामंजस्य, समन्वय तथा सहमति पा सके. हिंदी के अनेक रूप देश में आंचलिक/स्थानीय भाषाओँ और बोलिओं के रूप में प्रचलित हैं. इस कारण भाषिक नियमों, क्रिया-कारक के रूपों, कहीं-कहीं शब्दों के अर्थों में अंतर स्वाभाविक है किन्तु हिन्दी को विश्व भाषा बनने के लिये इस अंतर को पाटकर क्रमशः मानक रूप लेना ही होगा. अनेक क्षेत्रों में हिन्दी की मानक शब्दावली है. जहाँ नहीं है वहाँ क्रमशः आकार ले रही है. हक भाषिक तत्वों के साथ साहित्यिक विधाओं तथा शब्द क्षमता विस्तार की दृष्टि से भी सामग्री चयन करेंगे. आपकी रूचि होगी तो प्रश्न या गृहकार्य के माध्यम से भी आपकी सहभागिता हो सकती है.

जन सामान्य भाषा के जिस देशज रूप का प्रयोग करता है वह कही गयी बात का आशय संप्रेषित करता है किन्तु वह पूरी तरह शुद्ध नहीं होता. ज्ञान-विज्ञानं में भाषा का उपयोग तभी संभव है जब शब्द से एक सुनिश्चित अर्थ की प्रतीति हो. इस दिशा में हिंदी का प्रयोग न होने को दो कारण इच्छाशक्ति की कमी तथा भाषिक एवं शाब्दिक नियमों और उनके अर्थ की स्पष्टता न होना है.

इस स्तम्भ का श्री गणेश करते हुए हमारा प्रयास है कि हम एक साथ मिलकर सबसे पहले कुछ मूल बातों को जानें. भाषा, वर्ण या अक्षर, शब्द, ध्वनि, व्याकरण, स्वर, व्यंजन जैसी मूल अवधारणाओं को समझने का प्रयास करें.

भाषा :

अनुभूतियों से उत्पन्न भावों को अभिव्यक्त करने के लिए भंगिमाओं या ध्वनियों की आवश्यकता होती है. भंगिमाओं से नृत्य, नाट्य, चित्र आदि कलाओं का विकास हुआ. ध्वनि से भाषा, वादन एवं गायन कलाओं का जन्म हुआ.

चित्र गुप्त ज्यों चित्त का, बसा आप में आप.
भाषा-सलिला निरंतर करे अनाहद जाप.


भाषा वह साधन है जिससे हम अपने भाव एवं विचार अन्य लोगों तक पहुँचा पाते हैं अथवा अन्यों के भाव और विचार ग्रहण कर पाते हैं. यह आदान-प्रदान वाणी के माध्यम से (मौखिक), toolika के माध्यम से ankit या लेखनी के द्वारा (लिखित) होता है.

निर्विकार अक्षर रहे मौन, शांत निः शब्द
भाषा वाहक भाव की, माध्यम हैं लिपि-शब्द.


व्याकरण ( ग्रामर ) -

व्याकरण ( वि + आ + करण ) का अर्थ भली-भाँति समझना है. व्याकरण भाषा के शुद्ध एवं परिष्कृत रूप सम्बन्धी नियमोपनियमों का संग्रह है. भाषा के समुचित ज्ञान हेतु वर्ण विचार (ओर्थोग्राफी) अर्थात वर्णों (अक्षरों) के आकार, उच्चारण, भेद, संधि आदि , शब्द विचार (एटीमोलोजी) याने शब्दों के भेद, उनकी व्युत्पत्ति एवं रूप परिवर्तन आदि तथा वाक्य विचार (सिंटेक्स) अर्थात वाक्यों के भेद, रचना और वाक्य विश्लेषण को जानना आवश्यक है.

वर्ण शब्द संग वाक्य का, कविगण करें विचार.
तभी पा सकें वे 'सलिल', भाषा पर अधिकार.

वर्ण / अक्षर :

हिंदी में वर्ण के दो प्रकार स्वर (वोवेल्स) तथा व्यंजन (कोंसोनेंट्स) हैं.

अजर अमर अक्षर अजित, ध्वनि कहलाती वर्ण.
स्वर-व्यंजन दो रूप बिन, हो अभिव्यक्ति विवर्ण.

स्वर ( वोवेल्स ) :

स्वर वह मूल ध्वनि है जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता. वह अक्षर है जिसका अधिक क्षरण, विभाजन या ह्रास नहीं हो सकता. स्वर के उच्चारण में अन्य वर्णों की सहायता की आवश्यकता नहीं होती. यथा - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:, ऋ, .

स्वर के दो प्रकार:

१. हृस्व : लघु या छोटा ( अ, इ, उ, ऋ, ऌ ) तथा
२. दीर्घ : गुरु या बड़ा ( आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ: ) हैं.

अ, इ, उ, ऋ हृस्व स्वर, शेष दीर्घ पहचान
मिलें हृस्व से हृस्व स्वर, उन्हें दीर्घ ले मान.


व्यंजन (कांसोनेंट्स) :

व्यंजन वे वर्ण हैं जो स्वर की सहायता के बिना नहीं बोले जा सकते. व्यंजनों के चार प्रकार हैं.

१. स्पर्श व्यंजन (क वर्ग - क, ख, ग, घ, ङ्), (च वर्ग - च, छ, ज, झ, ञ्.), (ट वर्ग - ट, ठ, ड, ढ, ण्), (त वर्ग त, थ, द, ढ, न), (प वर्ग - प,फ, ब, भ, म).
२. अन्तस्थ व्यंजन (य वर्ग - य, र, ल, व्, श).
३. ऊष्म व्यंजन ( श, ष, स ह) तथा
४. संयुक्त व्यंजन ( क्ष, त्र, ज्ञ) हैं. अनुस्वार (अं) तथा विसर्ग (अ:) भी व्यंजन हैं.

भाषा में रस घोलते, व्यंजन भरते भाव.
कर अपूर्ण को पूर्ण वे मेटें सकल अभाव.


शब्द :

अक्षर मिलकर शब्द बन, हमें बताते अर्थ.
मिलकर रहें न जो 'सलिल', उनका जीवन व्यर्थ.


अक्षरों का ऐसा समूह जिससे किसी अर्थ की प्रतीति हो शब्द कहलाता है. शब्द भाषा का मूल तत्व है. जिस भाषा में जितने अधिक शब्द हों वह उतनी ही अधिक समृद्ध कहलाती है तथा वह मानवीय अनुभूतियों और ज्ञान-विज्ञानं के तथ्यों का वर्णन इस तरह करने में समरथ होति है कि कहने-लिखनेवाले की बात का बिलकुल वही अर्थ सुनने-पढ़नेवाला ग्रहण करे. ऐसा न हो तो अर्थ का अनर्थ होने की पूरी-पूरी संभावना है. किसी भाषा में शब्दों का भण्डारण कई तरीकों से होता है.

१. मूल शब्द:
भाषा के लगातार प्रयोग में आने से समय के विकसित होते गए ऐसे शब्दों का निर्माण जन जीवन, लोक संस्कृति, परिस्थितियों, परिवेश और प्रकृति के अनुसार होता है. विश्व के विविध अंचलों में उपलब्ध भौगोलिक परिस्थितियों, जीवन शैलियों, खान-पान की विविधताओं, लोकाचारों,धर्मों तथा विज्ञानं के विकास के साथ अपने आप होता जाता है.

२. विकसित शब्द:
आवश्यकता अविष्कार की जननी है. लगातार बदलती परिस्थितियों, परिवेश, सामाजिक वातावरण, वैज्ञानिक प्रगति आदि के कारण जन सामान्य अपनी अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने के लिये नए-नए शब्दों का प्रयोग करता है. इस तरह विकसित शब्द भाषा को संपन्न बनाते हैं. व्यापार-व्यवसाय में उपभोक्ता के साथ धोखा होने पर उन्हें विधि सम्मत संरक्षण देने के लिये कानून बना तो अनेक नए शब्द सामने आये.

३. आयातित शब्द :
किन्हीं भौगोलिक, राजनैतिक या सामाजिक कारणों से जब किसी एक भाषा बोलनेवाले समुदाय को अन्य भाषा बोलने वाले समुदाय से घुलना-मिलन पड़ता है तो एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्द भी मिलते जाते हैं. ऐसी स्थिति में कुछ शब्द आपने मूल रूप में प्रचलित रहे आते हैं तथा मूल भाषा में अन्य भषा के शब्द यथावत (जैसे के तैसे) अपना लिये जाते हैं. हिन्दी ने पूर्व प्रचलित भाषाओँ संस्कृत, अपभ्रंश, पाली, प्राकृत तथा नया भाषाओं-बोलिओं से बहुत से शब्द ग्रहण किए हैं. आज हम इन शब्दों को हिन्दी का ही मानते हैं, वे किस भाषा से आये नहीं जानते.

हिन्दी में आयातित शब्दों का उपयोग ४ तरह से हुआ है.

१. मूल भाषा में प्रयुक्त शब्द के उच्चारण को जैसे का तैसा उसी अर्थ में देवनागरी लिपि में लिखा जाए ताकि पढ़ते/बोले जाते समय हिन्दी भाषी तथा अन्य भाषा भाषी उस शब्द को समान अर्थ में समझ सकें. जैसे अंग्रेजी का शब्द स्टेशन, यहाँ अंगरेजी में स्टेशन लिखते समय उपयोग हुए अंगरेजी अक्षरों को पूरी तरह भुला दिया गया है.

२. मूल शब्द के उच्चारण में प्रयुक्त ध्वनि हिन्दी में न हो अथवा अत्यंत क्लिष्ट या सुविधाजनक हो तो उसे हिन्दी की प्रकृति के अनुसार परिवर्तित कर लिया जाए. जैसे अंगरेजी के शब्द हॉस्पिटल को सुविधानुसार बदलकर अस्पताल कर लिया गया है. .

३. जिन शब्दों के अर्थ को व्यक्त करने के लिये हिंदी में हिन्दी में समुचित पर्यायवाची शब्द हैं या बनाये जा सकते हैं वहाँ ऐसे नए शब्द ही लिये जाएँ. जैसे: बस स्टैंड के स्थान पर बस अड्डा, रोड के स्थान पर सड़क या मार्ग. यह भी कि जिन शब्दों को गलत अर्थों में प्रयोग किया जा रहा है उनके सही अर्थ स्पष्ट कर सम्मिलित किये जाएँ ताकि भ्रम का निवारण हो. जैसे: प्लान्टेशन के लिये वृक्षारोपण के स्थान पर पौधारोपण, ट्रेन के लिये रेलगाड़ी, रेल के लिये पटरी.

४. नए शब्द: ज्ञान-विज्ञान की प्रगति, अन्य भाषा-भाषियों से मेल-जोल, परिस्थितियों में बदलाव के कारण हिन्दी में कुछ सर्वथा नए शब्दों का प्रयोग होना अनिवार्य है. इन्हें बिना हिचक अपनाया जाना चाहिए. जैसे सैटेलाईट, मिसाइल, सीमेंट आदि.

हिंदीभाषी क्षेत्रों में पूर्व में विविध भाषाएँ / बोलियाँ प्रचलित रहने के कारण उच्चारण, क्रिया रूपों, कारकों, लिंग, वाचन आदि में भिन्नता है. अब इन अभी क्षेत्रों में एक सी भाष एके वोक्स के लिये बोलनेवालों को अपनी आदत में कुछ परिवर्तन करना होगा ताकि अहिन्दीभाषियों को पूरे हिन्दीभाषी क्षेत्र में एक सी भाषा समझने में सरलता हो. अगले सत्र में हम कुछ अन्य बिन्दुओं पर बात करेंगे.
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रविवार, 5 सितंबर 2010

सामयिक चर्चा : हिन्दी का शब्द भंडार समृद्ध करो ---दीपिका कुलश्रेष्ठ

सामयिक चर्चा : हिन्दी का शब्द भंडार समृद्ध करो 

दीपिका कुलश्रेष्ठ
Journalist, bhaskar.com


ताज़ा घोषणा के अनुसार अंग्रेजी भाषा में शब्दों का भंडार 10 लाख की गिनती को पार कर गया है.
विभिन्न भाषाओं में शब्द-संख्या निम्नानुसार है :
अंग्रेजी- 10,00,000       चीनी- 500,000+
जापानी- 232,000         स्पेनिश- 225,000+
रूसी- 195,000             जर्मन- 185,000
हिंदी- 120,000             फ्रेंच- 100,000
                                                     (स्रोत- ग्लोबल लैंग्वेज मॉनिटर 2009)

                 हमारी मातृभाषा हिंदी का क्या, जिसमें अभी तक मात्र 1 लाख 20 हज़ार शब्द ही हैं।
                 कुछ लोगों का मानना है कि अंग्रेजी भाषा का 10 लाख वां शब्द 'वेब 2.0' एक पब्लिसिटी का हथकंडा मात्र है।
                इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान में अंग्रेजी भाषा में सर्वाधिक शब्द होने का कारण यह है कि 
अंग्रेजी में उन सभी भाषाओं के शब्द शामिल कर लिए जाते हैं जो उनकी आम बोलचाल में आ जाते हैं। हिंदी में ऐसा क्यों नहीं किया जाता। जब 'जय हो' अंग्रेजी में शामिल हो सकता है, तो फिर हिंदी में या, यप, हैप्पी, बर्थडे आदि जैसे शब्द क्यों नहीं शामिल किए जा सकते? वेबसाइट, लागइन, ईमेल, आईडी, ब्लाग, चैट जैसे न जाने कितने शब्द हैं जो हम हिंदीभाषी अपनी जुबान में शामिल किए हुए हैं लेकिन हिंदी के विद्वान इन शब्दों को हिंदी शब्दकोश में शामिल नहीं करते। कोई भाषा विद्वानों से नहीं आम लोगों से चलती है। यदि ऐसा नहीं होता तो लैटिन और संस्कृत खत्म नहीं होतीं और हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाएँ पनप ही नहीं पातीं। उर्दू तो जबरदस्त उदाहरण है। वही भाषा सशक्त और व्यापक स्वीकार्यता वाली बनी रह पाती है जो नदी की तरह प्रवाहमान होती है अन्यथा वह सूख जाती है  ।

क्या है आपकी राय ?
क्या हिंदी में नए शब्दों को जगह दी जानी चाहिए?
अपनी राय कमेंट्स बॉक्स में जाकर दें! 
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                                                                                    आभार : हिंदुस्तान का दर्द.