बसाई याद जिसकी दिल में
संजीव 'सलिल'
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बसाई याद जिसकी दिल में हमने वह कसाई है.
धँसे दिल में मिली हमको, हँसी चुप्पी रुलाई है..
उसे चूमा गुंजाया गीत, लिपटाया मिला दोहा.
बिछुड़कर ग़ज़ल कह दी, फिर मिले पाई रुबाई है..
न लेने चैन ही देती, न कुछ आराम करने दे.
जो मूंदूं आँख तो देखूं वो पलकों में समाई है..
नहीं है सिर्फ मेरा प्यार, वह है स्वप्न लाखों का.
मुझे है फख्र उससे ज़माने की महबूबाई है.
न उसका पिंड छोड़ेंगे, न लेने चैन ही देंगे.
नहीं है गैर, कविता से 'सलिल' की आशनाई है.
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Acharya Sanjiv Salil
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