रचना और रचनाकार
चन्द्र सेन विराट
गीत:
एक सुहागन ...
*
एक सुहागन दीप धर रही
तुलसी क्यारे पर
चाँद अष्टमी वाला है, पूरे का टुकड़ा है
जलते दीपक से दिप दिप घूँघट में मुखड़ा है
श्वेत पुत है क्यारा, गेरू से सातिये बने
हरा कच्च तुलसी का पौधा, पत्ते घने घने
संध्या गहराई तम है
आँगन ओसारे पर
दिया धरा फिर हाथ जोड़कर दीर्घ प्रणाम किया
अधर कँपे, श्रृद्धा से तुलसी माँ का नाम लिया
हवा चली तो दीपक की लौ थर थर काँप रही
हरी चूड़ियों वाले हाथों से वह ढाँप रही
सांस प्रार्थना-गीत गा रही
मन इकतारे पर
पी की कुशल मनाई, जाएं वे परदेस नहीं
दे न कमाई का लालच यह दिल पर ठेस कहीं
भरा पुरा घर रखना माता, दुःख दारिद्र्य हरो
यही मनौती करती हूँ अब मेरी गोद भरो
तुलसी-लगन लगाऊँगी
अबके चौबारे पर
***
चन्द्र सेन विराट
गीत:
एक सुहागन ...
*
एक सुहागन दीप धर रही
तुलसी क्यारे पर
चाँद अष्टमी वाला है, पूरे का टुकड़ा है
जलते दीपक से दिप दिप घूँघट में मुखड़ा है
श्वेत पुत है क्यारा, गेरू से सातिये बने
हरा कच्च तुलसी का पौधा, पत्ते घने घने
संध्या गहराई तम है
आँगन ओसारे पर
दिया धरा फिर हाथ जोड़कर दीर्घ प्रणाम किया
अधर कँपे, श्रृद्धा से तुलसी माँ का नाम लिया
हवा चली तो दीपक की लौ थर थर काँप रही
हरी चूड़ियों वाले हाथों से वह ढाँप रही
सांस प्रार्थना-गीत गा रही
मन इकतारे पर
पी की कुशल मनाई, जाएं वे परदेस नहीं
दे न कमाई का लालच यह दिल पर ठेस कहीं
भरा पुरा घर रखना माता, दुःख दारिद्र्य हरो
यही मनौती करती हूँ अब मेरी गोद भरो
तुलसी-लगन लगाऊँगी
अबके चौबारे पर
***
