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मंगलवार, 26 सितंबर 2023

चंद्र यान पर कविताएँ, सलिल

 चंद्र यान पर कविताएँ   

कहमुकरी
सुंदरियों की तुलना पाता
विक्रम अरु प्रज्ञान सुहाता
शीश शशीश निहारे शेष
क्या देवेश?
नहीं राकेश।
विक्रम के काँधे बेताल
प्रश्न पूछता दे-दे ताल
उत्तर देता सीना तान
क्या अज्ञान?
ना, प्रज्ञान।
जहँ जा लिख-पढ़ बनते शिक्षित 
कर घुमाई, बिन गए अशिक्षित 
मानव मति शशि-रवि छू दक्षा 
सखी है शिक्षा?
नहिं सखि कक्षा। 
घटता-बढ़ता, नष्ट न होता 
प्रेम कथाएँ फसलें बोता 
पल में चमके, पल में मंदा 
गोरखधंधा? 
मितवा! चंदा।  
मन कहता हँस पगले! मत रो 
अपने सपने नाहक मत खो 
सपने पूरे होते किस रो? 
फ़ाइलों-पसरो?
नहिं सखि! इसरो। 
नयन मूँदते रूप दिखाया 
ना अपना नहिं रहा पराया
सँग भीगना कँपना तपना 
माला जपना?
नहिं रे! सपना। 
८.१०.२०२३
सुंदरियों की तुलना पाता
विक्रम अरु प्रज्ञान सुहाता
शीश शशीश निहारे शेष
क्या देवेश?
नहीं राकेश।
७.१०.२०१३ 
क्षणिका

विक्रम लैंडर 

*

जब लेता है 

आदमी उधार,

तब हो जाता है 

विक्रम लैंडर। 

नहीं रखता संपर्क 

अपनी धरती से, 

अपनी कक्षा में रहकर। 

***  

यादों की बारात

*

अब विक्रम के 

कंधे पर नहीं लदता,

गोदी में बैठता है 

रोवर बैताल। 

पहले सवाल पूछता था 

बनकर अनजान, 

अब उत्तर देता है 

अपना प्रज्ञान।  

करता है चहल कदमी

दूर कर गलतफहमी, 

विक्रम से करता है बात 

मानो निकल रही हो 

यादों की बारात। 

***

चाँद पर बैठे हुए

विक्रम और प्रज्ञान, 

रखते हैं हर बात का पूरा ध्यान। 

दोनों देख पा रहे हैं 

दिल्ली में बन गया है 

नया संसद भवन 

पूरा हुआ है अरमान। 

लेकिन नहीं सुधरे सांसद 

कर रहे हैं बदजुबानी, 

भूल गए हैं मर्यादा। 

राजनेता खींच रहे हैं 

एक दूसरे की टाँग 

जुमला बताकर वादा। 

सात के विरोध में हड़ताल,

नहीं कर रहे अपनों की पड़ताल। 

सीमाएँ हैं अशांत,

नेतागण दिग्भ्रांत। 

बोलते बिगड़े बोल, 

बातों में रखते झोल।  

अनुशासित रहो मतिमान,

सच सिखा रहे विक्रम-प्रज्ञान। 

मानवता का हो गान, 

देश रहे गतिमान। 

***