कुल पेज दृश्य

bhajan लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
bhajan लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 24 दिसंबर 2017

bhajan

भजन 
भोले घर बाजे बधाई
स्व. शांति देवी वर्मा
मंगल बेला आयी, भोले घर बाजे बधाई ...
गौर मैया ने लालन जनमे,
गणपति नाम धराई.
भोले घर बाजे बधाई ...
द्वारे बन्दनवार सजे हैं,
कदली खम्ब लगाई.
भोले घर बाजे बधाई ...
हरे-हरे गोबर इन्द्राणी अंगना लीपें,
मोतियन चौक पुराई.
भोले घर बाजे बधाई ...
स्वर्ण कलश ब्रम्हाणी लिए हैं,
चौमुख दिया जलाई.
भोले घर बाजे बधाई ...
लक्ष्मी जी पालना झुलावें,
झूलें गणेश सुखदायी.
भोले घर बाजे बधाई ...
******************

रविवार, 16 अप्रैल 2017

bhakti geet

भक्ति गीत :
कहाँ गया
*
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
*
कण-कण में तू रम रहा
घट-घट तेरा वास.
लेकिन अधरों पर नहीं
अब आता है हास.
लगे जेठ सम तप रहा
अब पावस-मधुमास
क्यों न गूंजती बाँसुरी
पूछ रहे खद्योत
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
*
श्वास-श्वास पर लिख लिया
जब से तेरा नाम.
आस-आस में तू बसा
तू ही काम-अकाम.
मन-मुरली, तन जमुन-जल
व्यथित विधाता वाम
बिसराया है बोल क्यों?
मिला ज्योत से ज्योत  
कहाँ गया रणछोड़ रे!,
जला प्रेम की ज्योत
*
पल-पल हेरा है तुझे
पाया अपने पास.
दिखता-छिप जाता तुरत
ओ छलिया! दे त्रास.
ले-ले अपनीं शरण में
'सलिल' तिहारा दास
दूर न रहने दे तनिक
हम दोनों सहगोत
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
***

सोमवार, 21 नवंबर 2016

bhajan

एक रचना
*
क्यों सो रहा मुसाफिर, उठ भोर हो रही है
चिड़िया चहक-चहककर, नव आस बो रही है
*
तेरा नहीं ठिकाना, मंजिल है दूर तेरी
निष्काम काम कर ले, पल भर भी हो न देरी
कब लौटती है वापिस, जो सांस खो रही है
क्यों सो रहा मुसाफिर, उठ भोर हो रही है
*
दिनकर करे मजूरी, बिन दाम रोज आकर
नागा कभी न करता, पर है नहीं वो चाकर
सलिला बिना रुके ही हर घाट धो रही है
क्यों सो रहा मुसाफिर, उठ भोर हो रही है
*

बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

bhajan

भजन 
*
प्रभु! 
तेरी महिमा अपरम्पार
*
तू सर्वज्ञ व्याप्त कण-कण में
कोई न तुझको जाने।
अनजाने ही सारी दुनिया
इष्ट तुझी को माने।
तेरी आय दृष्टि का पाया
कहीं न पारावार
प्रभु!
तेरी महिमा अपरम्पार
*
हर दीपक में ज्योति तिहारी
हरती है अँधियारा।
कलुष-पतंगा जल-जल जाता
पा मन में उजियारा।
आये कहाँ से? जाएँ कहाँ हम?
जानें, हो उद्धार
प्रभु!
तेरी महिमा अपरम्पार
*
कण-कण में है बिम्ब तिहारा
चित्र गुप्त अनदेखा।
मूरत गढ़ते सच जाने बिन
खींच भेद की रेखा।
निराकार तुम,पूज रहा जग
कह तुझको साकार
प्रभु!
तेरी महिमा अपरम्पार
*

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

bhakti geet: -sanjiv

भक्ति गीत:
संजीव
*
हे प्रभु दीनानाथ दयानिधि
कृपा करो, हर विघ्न हमारे.
जब-जब पथ में छायें अँधेरे
तब-तब आशा दीप जला रे….
*
हममें तुम हो, तुममें हम हों
अधर हँसें, नैन ना नम हों.
पीर अधीर करे जब देवा!
धीरज-संबल कहबी न कम हों.
आपद-विपदा, संकट में प्रभु!
दे विवेक जो हमें उबारे….
*
अहंकार तज सकें ज्ञान का
हो निशांत, उद्गम विहान का.
हम बेपर पर दिए तुम्हीं ने
साहस दो हरि! नव उड़ान का.
सत-शिव-सुंदर राह दिखाकर
सत-चित-आनंद दर्श दिखा रे ….
*
शब्द ब्रम्ह आराध्य हमारा
अक्षर, क्षर का बना सहारा.
चित्र गुप्त है जो अविनाशी
उसने हो साकार निहारा.
गुप्त चित्र तव अगम, गम्य हो
हो प्रतीत जो जन्म सँवारे ….
*


शनिवार, 1 जून 2013

bhajan (davotinal lyric) acharya sanjiv verma 'salil'



भजन:

संजीव
*
प्रभु! स्वीकारो करूँ  नमन शत...
*
हम मृण्मय मानव हैं माना,
आदत गलती कर पछताना.
पहले काम करें मनमाना-
दोष तुझे फिर देते नाना.
अब न करेंगे कोई बहाना,
जाने बस तेरा जस गाना.
प्रभु! हमसे क्रोधित होना मत 
प्रभु! स्वीकारो करूँ  नमन शत...
*
तुम बिन माटी है सारा जग,
चाह रही मन की मन को ठग.
कौन बताये चलना किस मग?
उठें न तुम तक जा पायें पग.
पिंजरा आस, विकल प्यासा खग-
हिम्मत नहीं बढ़ें रखकर डग.  
प्रभ!  विनती तुम ही राखो पत.
प्रभु! स्वीकारो करूँ  नमन शत...
*
अपने मैं से खुद ही हारा,
फिरता दर-दर हो बेचारा.
पर-संपति को ललच निहारा,
दौड़-गिरा फिर तका सहारा.
जाना है तज सकल पसारा।
तुझको अब तक रहा बिसारा.
प्रभु! पा लूँ तुमको दो हिम्मत  
प्रभु! स्वीकारो करूँ  नमन शत...
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

गुरुवार, 15 नवंबर 2012

यमद्वितीया-चित्रगुप्त पूजन पर: चित्रगुप्त भजन संजीव 'सलिल'

यमद्वितीया-चित्रगुप्त पूजन पर:
चित्रगुप्त भजन
संजीव 'सलिल'
*
तुम हो तारनहार
*
तुम हो तारनहार,
परम प्रभु तुम हो तारनहार...
*
निराकार तुम, चित्र गुप्त है,
निर्विकार गुण-दोष लुप्त है।
काया-माया-छाया स्वामी-
तुम बिन सारी सृष्टि सुप्त है।।
हे अनाथ के नाथ!सदय हो
तम से जग उजियार...
*
अनहद नाद तुम्हीं हो गुंजित,
रचते सकल सृष्टि जग-वन्दित।
काया स्थित आत्म तुम्हीं हो-
ध्वनि-तरंग, वर्तुल सुतरंगित।।
प्रगट शून्य को कर प्रगटित हो
तुम ही कण साकार...
*
बिंदु-बिंदु से सिन्धु बनाते,
कंकर से शंकर उपजाते।
वायु-नीर बनकर प्रवहित हो-
जल-थल-नभ जीवन उपजाते।।
विधि-हरि-हर जग कर्म नियंता-
करो विनय स्वीकार...
*
पाप-पुण्य के परिभाषक तुम,
कर्मदंड के संचालक तुम।
सत-शिव-सुन्दर के हितचिंतक-
सत-चित-आनंद अभिभाषक तुम।।
निबल 'सलिल' को भव से तारो
कर लो अंगीकार...
*


रविवार, 30 सितंबर 2012

भजन: मन कर ले साई सुमिरन... संजीव 'सलिल'

भजन:

मन कर ले साई सुमिरन...
संजीव 'सलिल'
*
मन कर ले साई सुमिरन...
*
झूठी है दुनिया की माया.
तम में साथ न देती छाया..
किसको सगा कहे तू अपना-
पल में साथ छोड़ती काया.
श्वास-श्वास कर साई नमन,
मन कर ले साई सुमिरन...
*
एक वही है अमित-अखंडित.
जो सारे जग से है वंदित.
आस पुष्प कर उसे समर्पित-
हो प्रयास हर उसको अर्पित.
प्यास तृप्त हो कर दर्शन,
मन कर ले साई सुमिरन...
*
मिलता ही है कर्मों का फल.
आज नहीं तो पायेगा कल.
जो होता है वह होने दे-
मन थिर रख, हो 'सलिल' न चंचल.
सुख-दुःख सब उसको कर अर्पण,
मन कर ले साई सुमिरन...
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in.divyanarmada



रविवार, 12 अगस्त 2012

कृष्ण भजन: हे श्यामसुंदर... --स्व. शांति देवी वर्मा

कृष्ण भजन:
हे श्यामसुंदर...





स्व. शांति देवी  वर्मा

*
हे श्यामसुंदर! हे मनमोहना! चरणों में अपने बुला लेना.

कर नजर दयामय मधुसूदन, मन भावन झलक दिखा देना...
*
नंदलाल मैं तेरी सेवा करूँ, तेरी सांवरी सूरत दिल में धरूँ.

न्योछावर माधुरी मूरत पर, चरणों में शरण सदा देना...
*
नयनों में तेरा ही ध्यान रहे, कानों में गुंजित गान रहे.

मम हृदय में तेरा ही ध्यान रहे, भाव सागर पार करा देना...
*
तुम चक्र सुदर्शनधारी हो, गिरधारी हो बनवारी हो.

गोपाल, कृष्ण, कान्हा, नटवर, मुरली की तान सुना देना...
*
भारत में फिर प्रभु आ जाओ, गीता का ज्ञान करा जाओ.

माया से मुक्ति दिल जाओ, सुख-'शांति' अमिय बरसा देना...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



शनिवार, 11 अगस्त 2012

कृष्ण भजन: श्याम सुंदर नन्दलाल स्व. श्रीमती शान्ति देवी वर्मा

कृष्ण भजन:

श्याम सुंदर नन्दलाल


स्व. श्रीमती शान्ति देवी वर्मा







वरिष्ठ कवयित्री व लेखिका श्रीमती शान्ति देवी वर्मा बापू के नेतृत्व में स्वतंत्रता सत्याग्रही बनने के लिए ऑनरेरी मजिस्ट्रेट पद से त्यागपत्र देकर विदेशी वस्त्रों की होली जलानेवाले रायबहादुर माताप्रसाद सिन्हा 'रईस' मैनपुरी उत्तर प्रदेश की ज्येष्ठ पुत्री थीं.  उनका विवाह जबलपुर मध्य प्रदेश के स्वतंत्रता सत्याग्रही स्व. ज्वालाप्रसाद वर्मा के छोटे भाई श्री राजबहादुर वर्मा (अब स्व.) सेवानिवृत्त जेल अधीक्षक से हुआ था. उन्होंने अवधी, भोजपुरी मायके से तथा बुन्देली, खड़ी बोली ससुराल से ग्रहण की तथा अपने आस्तिक संस्कारशील स्वभाववश भगवद भजन रचे. वे मानस मंडली में मानस पाठ के समय  प्रसंगानुकूल भजन रचकर गया करती थीं. ससुराल में कन्याओं के उच्च अध्ययन की प्रथा न होने पर भी उन्होंने अपनी चारों पुत्रियों को उच्च शिक्षा दिलाकर शिक्षण कर्म में प्रवृत्त कराया तथा सेवाकर्मी पुत्र वधुओं का चयन किया. साहित्यिक संस्था 'अभियान' जबलपुर के माध्यम से रचनाकारों हेतु दिव्य नर्मदा अलंकरण, दिव्य नर्मदा पत्रिका तथा समन्वय प्रकाशन की स्थापना कर संस्कारधानी जबलपुर  की साहित्यिक चेतना को गति देने में उन्होंने महती भूमिका निभायी। अपने पुत्र संजीव वर्मा 'सलिल', पुत्री आशा वर्मा तथा पुत्रवधू डॉ. साधना वर्मा को साहित्यिक रचनाकर्म तथा समाज व पर्यावरण सुधार के कार्यक्रमों के माध्यम से सतत देश व समाज के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा उन्होंने दी।

स्व. शांति देवी वर्मा
*
श्याम सुंदर नन्दलाल, अब दरस दिखाइए।

तरस रहे प्राण, इन्हें और न तरसाइए।


त्याग गोकुल वृन्द मथुरा, द्वारिका जा के बसे।

सुध बिसारी काहे हमरी, ऊधो जी बतलाइये।


ज्ञान-ध्यान हम न जानें, नेह के नाते को मानें।

गोपियाँ सारी दुखारी, बांसुरी बजाइए।


टेरती यमुना की लहरें, फूले ना कदंब टेरे।

खो गए गोपाल कहाँ?, दधि-मखन चुराइए।


तन में जब तक शक्ति रहे, मन उन्हीं की भक्ति करे।


जा के ऊधो सांवरे को, हाल सब बताइए।


दूर भी रहें तो नन्द- लाल न बिसराइये।

'शान्ति' है अशांत, दरश दे सुखी बनाइये।

***************

Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
salil.sanjiv@gmail.com
0761- 2411131 / 09425183244

शनिवार, 30 जून 2012

भजन गीत: यह सब संसार विकल है ..... संजीव 'सलिल'

भजन गीत:
यह सब संसार विकल है .....
 संजीव 'सलिल'
*

*
यह सब संसार विकल है,
जो अविचल वह अविकल है...
*



तन-मन-धन के सब नाते,
जीवन की राह सिखाते.
निज हित की परिभाषाएँ-
तोते की तरह रटाते.
कोई न बताता किसका
कैसा कल था या कल है...
*



किसने-क्यों हमको भेजा?
क्या था पाथेय सहेजा?
हम जोड़े माया-गठरी-
कब कह पाये: 'अब ले जा?
औरों पर दोष लगाया-
कब बतलाया निज छल है...
*



कब साथ कौन आता है?
क्या संग कहो जाता है?
फिर क्यों झगड़े-घोटाले-
कर मनुआ पछताता है?
सदियों के ख्वाब सजाये-
किसने जाना कब पल है?...

*****

शनिवार, 16 जून 2012

जागरण गीत: क्यों सो रहा..... संजीव 'सलिल'

जागरण गीत:
क्यों सो रहा.....
संजीव 'सलिल'
*
क्यों सो रहा मुसाफिर,
उठ भोर रही है.
चिड़िया चहक-चहककर,
नव आस बो रही है.
*
मंजिल है दूर तेरी,
कोई नहीं ठिकाना.
गैरों को माने अपना-
तू हो गया दीवाना.
आये घड़ी न वापिस
जो व्यर्थ खो रही है...
*
आया है हाथ खाली,
जायेगा हाथ खाली.
नातों की माया नगरी
तूने यहाँ बसा ली.
जो बोझ जिस्म पर है
चुप रूह ढो रही है...
*
दिन सोया रात जागा,
सपने सुनहरे देखे.
नित खोट सबमें खोजे,
नपने न अपने लेखे.
आँचल के दाग सारे-
की नेकी धो रही है...
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



मंगलवार, 29 मई 2012

गीत: प्रभु जैसी चादर दी तूने... संजीव 'सलिल'

गीत:
प्रभु जैसी चादर दी तूने...
संजीव 'सलिल'
*

*
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार.
जैसी भी मैं रख पाया
अब तू कर अंगीकार...
*
तुझसे मेरी कोई न समता,
मैं अक्षम, तू है सक्षमता.
तू समर्थ सृष्टा निर्णायक,
मेरा लक्षण है अक्षमता.
जैसा नाच नचाया नाचूँ-
विजयी हूँ वर हार.
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार...
*
तू ऐसा हो, तू वैसा कर,
मेरी रही न शर्त.
क्यों न मुझे स्वीकार रहा हरि!
ज्यों का त्यों निश्शर्त.
धर्माधर्म कहाँ-कैसा
हारो अब सकूँ बोसार.
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार...
*
जला न पाये आग तनिक प्रभु!
भीगा न पाये पानी.
संचयकर्ता मुझे मत बना,
और न अवढरदानी.
जग-नाटक में 'सलिल' सम्मिलित
हो निर्लिप्त निहार.
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in





शनिवार, 28 अप्रैल 2012

श्री चित्रगुप्त भजन सलिला: कहाँ खोजता... --संजीव 'सलिल'

श्री चित्रगुप्त भजन सलिला:
कहाँ खोजता...
संजीव 'सलिल'

*
कहाँ खोजता मूरख प्राणी!
प्रभु हैं तेरे पास में?...
*
तन तो धोता रोज
न करता मन को क्यों तू साफ़ रे.
जो तेरा अपराधी है
हँस उसको कर दे माफ़ रे.
प्रभु को देख दोस्त-दुश्मन में 
तम में और उजास में...
चित्रगुप्त प्रभु सदा चित्त में 
गुप्त, झलक तू देख ले.
आँख मूँदकर मन दर्पण में  
कर्मों की लिपि लेख ले.
आया तो जाने के पहले
प्रभु को सुमिर प्रवास में...
*
मंदिर मस्जिद काशी-काबा,
मिथ्या माया-जाल है.
वह घाट-घाट कण-कणवासी है,
बीज फूल फल दाल है.
हर्ष-दर्द उसका प्रसाद
कडुवाहट मधुर मिठास में...
*

चित्रगुप्त भजन सलिला: संजीव 'सलिल'

चित्रगुप्त भजन सलिला:
संजीव 'सलिल'
*
१. चित्रगुप्त का ध्यान धरे जो...

*
चित्रगुप्त का ध्यान धरे जो
भवसागर तर जाए रे...
*
जा एकांत भुवन में बैठे,
आसन भूमि बिछाए रे.
चिंता छोड़े, त्रिकुटि महल में
गुपचुप सुरति जमाए रे.
चित्रगुप्त का ध्यान धरे जो
निश-दिन धुनि रमाए रे...
*
रवि शशि तारे बिजली चमके,
देव तेज दरसाए रे.
कोटि भानु सम झिलमिल-झिलमिल-
गगन ज्योति दमकाए रे.
चित्रगुप्त का ध्यान धरे तो
मोह-जाल कट जाए रे.
*
धर्म-कर्म का बंध छुडाए,
मर्म समझ में आए रे.
घटे पूर्ण से पूर्ण, शेष रह-
पूर्ण, अपूर्ण भुलाए रे.
चित्रगुप्त का ध्यान धरे तो
चित्रगुप्त हो जाए रे...
*
२. समय महा बलवान...

*
समय महा बलवान
लगाये जड़-चेतन का भोग...
*
देव-दैत्य दोनों को मारा,
बाकी रहा न कोई पसारा.
पल में वह सब मिटा दिया जो-
बरसों में था सृजा-सँवारा.
कौन बताये घटा कहाँ-क्या?
कहाँ हुआ क्या योग?...
*
श्वास -आस की रास न छूटे,
मन के धन को कोई न लूटे.
शेष सभी टूटे जुड़ जाएं-
जुड़े न लेकिन दिल यदि टूटे.
फूटे भाग उसी के जिसको-
लगा भोग का रोग...
*
गुप्त चित्त में चित्र तुम्हारा,
कितना किसने उसे सँवारा?
समय बिगाड़े बना बनाया-
बिगड़ा 'सलिल' सुधार-सँवारा.
इसीलिये तो महाकाल के
सम्मुख है नत लोग...
*
३. प्रभु चित्रगुप्त नमस्कार...

*
प्रभु चित्रगुप्त! नमस्कार
बार-बार है...
*
कैसे रची है सृष्टि प्रभु!
कुछ बताइए.
आये कहाँ से?, जाएं कहाँ??
मत छिपाइए.
जो गूढ़ सच न जान सके-
वह दिखाइए.
सृष्टि का सकल रहस्य
प्रभु सुनाइए.
नष्ट कर ही दीजिए-
जो भी विकार है...
*
भाग्य हम सभी का प्रभु!
अब जगाइए.
जाई तम पर उजाले को
विधि! बनाइए.
कंकर को कर शंकर जगत में
हरि! पुजाइए.
अमिय सम विष पी सकें-
'हर' शक्ति लाइए.
चित्र सकल सृष्टि
गुप्त चित्रकार है...
*