कुल पेज दृश्य

संजीव 'सलिल' samyik hindi kavita लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
संजीव 'सलिल' samyik hindi kavita लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 9 मई 2012

गीत: जितनी ऑंखें उतने सपने... --संजीव 'सलिल'

दोहा गीत:
जितनी ऑंखें उतने सपने...
संजीव 'सलिल'
*
*
जितनी ऑंखें उतने सपने...
*
मैंने पाये कर कमल, तुमने पाये हाथ.
मेरा सिर ऊँचा रहे, झुके तुम्हारा माथ..

प्राणप्रिये जब भी कहा, बना तुम्हारा नाथ.
हरजाई हो चाहता, सात जन्म का साथ..

कितने बेढब मेरे नपने?
जितनी ऑंखें उतने सपने...
*
घड़ियाली आँसू बहा, करता हूँ संतोष.
अश्रु न तेरे पोछता, अनदेखा कर रोष..

टोटा जिसमें टकों का, ऐसा है धन-कोष.
अपने मुँह से खुद किया, अपना ही जय-घोष..

लगते गैर मगर हैं अपने,
जितनी ऑंखें उतने सपने...
*
गोड़-लात की जड़ें थीं, भू में गहरी खूब.
चरणकमल आधार बिन, उड़-गिर जाते डूब..

अपने तक सीमित अगर, सांसें जातीं ऊब.
आसें हरियातीं 'सलिल', बन भू-रक्षक दूब..

चल मन-मंदिर हरि को जपने,
जितनी ऑंखें उतने सपने...
*****
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



रविवार, 30 अक्टूबर 2011

एक कविता: कौन हूँ मैं?... संजीव 'सलिल'

एक कविता:

कौन हूँ मैं?...

संजीव 'सलिल'
*
क्या बताऊँ, कौन हूँ मैं?
नाद अनहद मौन हूँ मैं.
दूरियों को नापता हूँ.
दिशाओं में व्यापता हूँ.
काल हूँ कलकल निनादित
कँपाता हूँ, काँपता हूँ. 
जलधि हूँ, नभ हूँ, धरा हूँ.
पवन, पावक, अक्षरा हूँ.
निर्जरा हूँ, निर्भरा हूँ.
तार हर पातक, तरा हूँ..
आदि अर्णव सूर्य हूँ मैं.
शौर्य हूँ मैं, तूर्य हूँ मैं.
अगम पर्वत कदम चूमें.
साथ मेरे सृष्टि झूमे.
ॐ हूँ मैं, व्योम हूँ मैं.
इडा-पिंगला, सोम हूँ मैं.
किरण-सोनल साधना हूँ.
मेघना आराधना हूँ.
कामना हूँ, भावना हूँ.
सकल देना-पावना हूँ.
'गुप्त' मेरा 'चित्र' जानो. 
'चित्त' में मैं 'गुप्त' मानो.
अर्चना हूँ, अर्पिता हूँ.
लोक वन्दित चर्चिता हूँ.
प्रार्थना हूँ, वंदना हूँ.
नेह-निष्ठा चंदना हूँ. 
ज्ञात हूँ, अज्ञात हूँ मैं.
उषा, रजनी, प्रात हूँ मैं.
शुद्ध हूँ मैं, बुद्ध हूँ मैं.
रुद्ध हूँ, अनिरुद्ध हूँ मैं.
शांति-सुषमा नवल आशा.
परिश्रम-कोशिश तराशा.
स्वार्थमय सर्वार्थ हूँ मैं.
पुरुषार्थी परमार्थ हूँ मैं.
केंद्र, त्रिज्या हूँ, परिधि हूँ.
सुमन पुष्पा हूँ, सुरभि हूँ.
जलद हूँ, जल हूँ, जलज हूँ.
ग्रीष्म, पावस हूँ, शरद हूँ. 
साज, सुर, सरगम सरस हूँ.
लौह को पारस परस हूँ.
भाव जैसा तुम रखोगे
चित्र वैसा ही लखोगे. 
स्वप्न हूँ, साकार हूँ मैं.
शून्य हूँ, आकार हूँ मैं.
संकुचन-विस्तार हूँ मैं.
सृष्टि का व्यापार हूँ मैं.
चाहते हो देख पाओ.
सृष्ट में हो लीन जाओ.
रागिनी जग में गुंजाओ.
द्वेष, हिंसा भूल जाओ.
विश्व को अपना बनाओ.
स्नेह-सलिला में नहाओ..
 ४-५ दिसंबर २००७ 
*******