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बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

लघुकथा: बड़ा संजीव 'सलिल'

लघुकथा:
बड़ा
संजीव 'सलिल'
*
बरसों की नौकरी के बाद पदोन्नति मिली.

अधिकारी की कुर्सी पर बैठक मैं खुद को सहकर्मियों से ऊँचा मानकर डांट-डपटकर ठीक से काम करने की नसीहत दे घर आया. देखा नन्ही बिटिया कुर्सी पर खड़ी होकर ताली बजाकर कह रही है 'देखो, मैं सबसे अधिक बड़ी हो गयी.'

जमीन पर बैठे सभी बड़े उसे देख हँस रहे हैं. मुझे कार्यालय में सहकर्मियों के चेहरों की मुस्कराहट याद आई और तना हुआ सिर झुक गया.

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