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नव गीत
हिल-मिल
दीपावली मना रे!...
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चक्र समय का
सतत चल रहा.
स्वप्न नयन में
नित्य पल रहा.
सूरज-चंदा
उगा-ढल रहा.
तम प्रकाश के
तले पल रहा,
किन्तु निराश
न होना किंचित.
नित नव
आशा-दीप जला रे!
हिल-मिल
दीपावली मना रे!...
*
तन दीपक
मन बाती प्यारे!
प्यास तेल को
मत छलका रे!
श्वासा की
चिंगारी लेकर.
आशा-जीवन-
ज्योति जला रे!
मत उजास का
क्रय-विक्रय कर.
'सलिल' मुक्त हो
नेह लुटा रे!
हिल-मिल
दीपावली मना रे!...
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= दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009
नव गीत: हिल-मिल दीपावली मना रे!...
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