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शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2023

चित्रक, आयुर्वेद, ममता सैनी

चित्रक हरता कष्ट

*
चित्रक की दो जातियाँ, श्वेत-रक्त हैं फूल।
भारत लंका बांग्ला, खिले न इसमें शूल।१।
*
कालमूल चीता दहन, अग्नि ब्याल है आम।
बेखबरंदा फारसी, अरब शैतरज नाम।२।
*
चित्रमूल चित्रो कहें, महाराष्ट्र गुजरात।
चित्रा है पंजाब में, लीडवर्ट ही भ्रात।३।
*
प्लंबैगो जेलेनिका, है वैज्ञानिक नाम।
कुल प्लंबैजिलेनिका, नेफ्थोक्विनोन अनाम।४।
*
कोमल चिकनी हरी हों, शाख आयु भरपूर।
जड़ पत्ते अरु अर्क भी, करें रोग झट दूर।५।
*
चीनी लिपिड फिनोल है, संग प्रोटीन-स्टार्च।
संधिशोथ कैंसर हरे, करे पंगु भी मार्च।६।
*
एंटीबायोटिक जड़ें, एंटी ऑक्सीडेन्ट।
करतीं दूर मलेरिया, सचमुच एक्सीलेंट।७।
*
अल्कलाइड प्लंबेंगिन, कैंसर हरता तात।
नेफ्रोटॉक्सिक असर को, सिस्प्लेटिन दे मात।८।
*
प्लंबेगिन अग्न्याशयी, कैंसर देता रोक।
कोलस्ट्राल एलडीएल, कम करता हर शोक।९।
*
पथरी गठिया पीलिया, प्रजनन कैंसर रोक।
किडनी-ह्रदय विकार हर, घाव भरे मत टोंक।१०।
*
छह फुटिया झाड़ीनुमा, पौधा सदाबहार। 
तना रहे छोटा हरा, पत्ते लट्वाकार।११।
*
तीन इंच लंबा रहे, एक इंच फैलाव। 
अग्रभाग पैना रहे, जड़ के साथ जुड़ाव।१२।
*
लंबाई नौ इंच के, नलिकावाले फूल। 
गंधहीन गुच्छे खिलें, पुष्पदण्ड हो मूल।१३।
*
लंब-गोल फल में रहे, बीज हमेशा एक। 
श्याम-श्वेत बाह्यांsतर, खाएँ सहित विवेक।१४।
*   
जड़ भंगुर हों छाल पर, छोटे कई उभार। 
स्वाद तीक्ष्ण-कटु चिपचिपे, रोमयुक्त फलदार।१५।
*
है यह ऊष्ण त्रिदोष हर, करे वात को शांत। 
कृमिनाशी मल निकाले, पाचन दीपन कांत।१६।
*
कफ-ज्वर बंधक शोथहर, है पौष्टिक-कटु रुक्ष।  
श्लेष्मा वमन प्रमेह विष, कुष्ठ मिटाए दक्ष।१७। 
*
दुग्ध-रक्त शोधन करे, योनीदोष भी दूर। 
गुल्म वायु दीपन अरुचि, मिटे शांति भरपूर।१८।
*
हो जाए नकसीर यदि, शहद-चूर्ण दो ग्राम। 
चाट लीजिए तुरत हो, सच मानें आराम।१९।
*
चित्रक-हल्दी-आँवला, अजमोदा-यवक्षार। 
तीन ग्राम चूरन बना, दिन में लें दो बार।२० अ। 

खाएँ मधु-घृत में मिला, दूर रहे स्वर भेद। 
रामबाण है यह दवा, चूक न करिए खेद।२० आ।
*
चित्रक-सेंधा नमक लें, हरड़-पिप्पली संग। 
सुबह-शाम दो ग्राम पी, पानी गर्म मलंग।२१ अ। 

पचता भोज्य गरिष्ठ भी, मत सँकुचें सरकार।  
अग्नि दीप्त हो पच सके, जो खाएँ आहार।२१ आ।  
*
ताजी जड़ का चूर्ण लें, नागरमोथे साथ। 
वायविडंग न भूलिए, सम मात्रा रख हाथ।२२ अ। 

पाँच ग्राम खा जाइए, भोजन करने पूर्व। 
पाचन शक्ति दुरुस्त हो, लगती भूख अपूर्व।२२ आ।
कल्क सिद्ध घी लीजिए, चित्रक क्वाथ समेत। 
भोजन पहले कीजिए, संग्रहणी हो खेत।२३।
*
चित्रक चूर्ण मिटा सके, तिल्ली-सूजन सत्य।  
बीस ग्राम घृतकुमारी, गूदे सँग लें नित्य।२४।
*
चित्रक जड़ का चूर्ण लें, तीन बार हर रोज। 
प्लीहा रोग मिटे- बढ़े, बल चेहरे का ओज।२५।
*
तक्र सहित दो ग्राम लें, चित्रक त्वक का चूर्ण। 
तब ही भोजन कीजिए, अर्श मिटे संपूर्ण।२६।
*
चित्रक-जड़ का चूर्ण लें, मृदा-पात्र में लेप। 
दही जमाएँ छाछ पी, अर्श मिटा मत झेंप।२७।
*
चित्रक-जड़ चूरन शहद, चाटें यदि दस ग्राम।     
सहज सुखद हो प्रसव अरु, माँ पाए आराम।२८। 
*
चित्रक-जड़ कुटकी हरड़, इंद्रजौ और अतीस। 
काली पहाड़ जड़ मिलाएँ, सम उन्नीस न बीस।२९ अ।

तीन ग्राम लें चूर्ण नित, सुबह-शाम बिन भूल।
वात रोग से मुक्त हों, मिटे दर्द का शूल।२९ आ।
*
चित्रक जड़ पीपल हरड़, अरु चीनी रेबंद। 
काला नमक व आँवला, लें पीड़ा हो मंद।३० अ।

गर्म नीर के साथ लें, पाँच ग्राम हर रात।
आंत-वायु के संग ही, संधिवात की मात।३० आ। 
*
चित्रक जड़ ब्राह्मी सहित, वच समान लें पीस। 
तीन बार दो ग्राम लें, हिस्टीरिआ मरीज।३१। 
*
चित्रक जड़ पीपल मरीच, सौंठ चूर्ण सम आप। 
चार ग्राम लें तो मिटे, जल्दी ही ज्वर-ताप।३२।
*
ज्वर में अन्न न खा सके, रक्त संचरण मंद। 
टुकड़े चित्रक मूल के, चबा मिले आनंद।३३।
*
छत्रक जड़ रस निर्गुंडी, तीन बार दो ग्राम। 
लें प्रसूतिका ज्वर घटे, झट पाएँ आराम।३४ अ।

गर्भाशय देता बहा, दूषित आर्तव दूर। 
मिटता मक्क्ल शूल भी, पीड़ा होती दूर।३४ आ। 
*
चित्रक छाला दूध-जल, पीस लेपिए आप।  
चरम रोग अरु कुष्ठ भी, मिटे घटे संताप।३५ अ।

पुल्टिस बाँधें उठेगा, छाला जब हो ठीक।      
दाग दूर हो जाएँगे, कहती आयुष लीक।३५ आ।
*
दूध लाल चित्रक लगा, खुजली पर लें लीप। 
मिले शीघ्र आराम अरु, रोग न रहे समीप।३६।
*
सिफलिस-कोढ़ मिटा सके, सूखी जड़ की छाल। 
सुबह-शाम त्रै ग्राम लें, चित्रक होगा लाल।३७।
*
पीप बहे लें घाव पर, लेप चित्रकी छाल।
घाव ठीक हो शीघ्र ही, आयुर्वेद कमाल।३८।
*
मूषक ज्वर जाए उतर, तलुए मलिए तेल। 
चित्रक छाला चूर्ण सँग, पका न पीड़ा झेल।३९।
*
मात्रा अधिक न लें 'सलिल', विष सम करे अनिष्ट। 
मात्रा-विधि हो सही तो, चित्रक हरता कष्ट।४०।
*** 

रविवार, 21 मई 2023

आयुर्वेद, चित्रक, ममता सैनी

 चित्रक हरता कष्ट
*
चित्रक की दो जातियाँ, श्वेत-रक्त हैं फूल।
भारत लंका बांग्ला, खिले न इसमें शूल।१।
*
कालमूल चीता दहन, अग्नि ब्याल है आम।
बेखबरंदा फारसी, अरब शैतरज नाम।२।
*
चित्रमूल चित्रो कहें, महाराष्ट्र गुजरात।
चित्रा है पंजाब में, लीडवर्ट ही भ्रात।३।
*
प्लंबैगो जेलेनिका, है वैज्ञानिक नाम।
कुल प्लंबैजिलेनिका, नेफ्थोक्विनोन अनाम।४।
*
कोमल चिकनी हरी हों, शाख आयु भरपूर।
जड़ पत्ते अरु अर्क भी, करें रोग झट दूर।५।
*
चीनी लिपिड फिनोल है, संग प्रोटीन-स्टार्च।
संधिशोथ कैंसर हरे, करे पंगु भी मार्च।६।
*
एंटीबायोटिक जड़ें, एंटी ऑक्सीडेन्ट।
करतीं दूर मलेरिया, सचमुच एक्सीलेंट।७।
*
अल्कलाइड प्लंबेंगिन, कैंसर हरता तात।
नेफ्रोटॉक्सिक असर को, सिस्प्लेटिन दे मात।८।
*
प्लंबेगिन अग्न्याशयी, कैंसर देता रोक।
कोलस्ट्राल एलडीएल, कम करता हर शोक।९।
*
पथरी गठिया पीलिया, प्रजनन कैंसर रोक।
किडनी-ह्रदय विकार हर, घाव भरे मत टोंक।१०।
*
छह फुटिया झाड़ीनुमा, पौधा सदाबहार। 
तना रहे छोटा हरा, पत्ते लट्वाकार।११।
*
तीन इंच लंबा रहे, एक इंच फैलाव। 
अग्रभाग पैना रहे, जड़ के साथ जुड़ाव।१२ ।
*
लंबाई नौ इंच के, नलिकावाले फूल। 
गंधहीन गुच्छे खिलें, पुष्पदण्ड हो मूल।१३।
*
लंब-गोल फल में रहे, बीज हमेशा एक। 
श्याम-श्वेत बाह्यांsतर, खाएँ सहित विवेक।१४।
*   
जड़ भंगुर हों छाल पर, छोटे कई उभार। 
स्वाद तीक्ष्ण-कटु चिपचिपे, रोमयुक्त फलदार।१५।
*
है यह ऊष्ण त्रिदोष हर, करे वात को शांत। 
कृमिनाशी मल निकाले, पाचन दीपन कांत।१६।
*
कफ-ज्वर बंधक शोथहर, है पौष्टिक-कटु रुक्ष।  
श्लेष्मा वमन प्रमेह विष, कुष्ठ मिटाए दक्ष।१७। 
*
दुग्ध-रक्त शोधन करे, योनीदोष भी दूर। 
गुल्म वायु दीपन अरुचि, मिटे शांति भरपूर।१८।
*
हो जाए नकसीर यदि, शहद-चूर्ण दो ग्राम। 
चाट लीजिए तुरत हो, सच मानें आराम।१९।
*
चित्रक-हल्दी-आँवला, अजमोदा-यवक्षार। 
तीन ग्राम चूरन बना, दिन में लें दो बार।२० अ। 

खाएँ मधु-घृत में मिला, दूर रहे स्वर भेद। 
रामबाण है यह दवा, चूक न करिए खेद।२० आ।
*
चित्रक-सेंधा नमक लें, हरड़-पिप्पली संग। 
सुबह-शाम दो ग्राम पी, पानी गर्म मलंग।२१ अ। 

पचता भोज्य गरिष्ठ भी, मत सँकुचें सरकार।  
अग्नि दीप्त हो पच सके, जो खाएँ आहार।२१ आ।  
*
ताजी जड़ का चूर्ण लें, नागरमोथे साथ। 
वायविडंग न भूलिए, सम मात्रा रख हाथ।२२ अ। 

पाँच ग्राम खा जाइए, भोजन करने पूर्व। 
पाचन शक्ति दुरुस्त हो, लगती भूख अपूर्व।२२ आ।
कल्क सिद्ध घी लीजिए, चित्रक क्वाथ समेत। 
भोजन पहले कीजिए, संग्रहणी हो खेत।२३।
*
चित्रक चूर्ण मिटा सके, तिल्ली-सूजन सत्य।  
बीस ग्राम घृतकुमारी, गूदे सँग लें नित्य।२४।
*
चित्रक जड़ का चूर्ण लें, तीन बार हर रोज। 
प्लीहा रोग मिटे- बढ़े, बल चेहरे का ओज।२५।
*
तक्र सहित दो ग्राम लें, चित्रक त्वक का चूर्ण। 
तब ही भोजन कीजिए, अर्श मिटे संपूर्ण।२६।
*
चित्रक-जड़ का चूर्ण लें, मृदा-पात्र में लेप। 
दही जमाएँ छाछ पी, अर्श मिटा मत झेंप।२७।
*
चित्रक-जड़ चूरन शहद, चाटें यदि दस ग्राम।     
सहज सुखद हो प्रसव अरु, माँ पाए आराम।२८। 
*
चित्रक-जड़ कुटकी हरड़, इंद्रजौ और अतीस। 
काली पहाड़ जड़ मिलाएँ, सम उन्नीस न बीस।२९ अ।

तीन ग्राम लें चूर्ण नित, सुबह-शाम बिन भूल।
वात रोग से मुक्त हों, मिटे दर्द का शूल।२९ आ।
*
चित्रक जड़ पीपल हरड़, अरु चीनी रेबंद। 
काला नमक व आँवला, लें पीड़ा हो मंद।३० अ।

गर्म नीर के साथ लें, पाँच ग्राम हर रात।
आंत-वायु के संग ही, संधिवात की मात।३० आ। 
*
चित्रक जड़ ब्राह्मी सहित, वच समान लें पीस। 
तीन बार दो ग्राम लें, हिस्टीरिआ मरीज।३१। 
*
चित्रक जड़ पीपल मरीच, सौंठ चूर्ण सम आप। 
चार ग्राम लें तो मिटे, जल्दी ही ज्वर-ताप।३२।
*
ज्वर में अन्न न खा सके, रक्त संचरण मंद। 
टुकड़े चित्रक मूल के, चबा मिले आनंद।३३।
*
छत्रक जड़ रस निर्गुंडी, तीन बार दो ग्राम। 
लें प्रसूतिका ज्वर घटे, झट पाएँ आराम।३४ अ।

गर्भाशय देता बहा, दूषित आर्तव दूर। 
मिटता मक्क्ल शूल भी, पीड़ा होती दूर।३४ आ। 
*
चित्रक छाला दूध-जल, पीस लेपिए आप।  
चरम रोग अरु कुष्ठ भी, मिटे घटे संताप।३५ अ।

पुल्टिस बाँधें उठेगा, छाला जब हो ठीक।      
दाग दूर हो जाएँगे, कहती आयुष लीक।३५ आ।
*
दूध लाल चित्रक लगा, खुजली पर लें लीप। 
मिले शीघ्र आराम अरु, रोग न रहे समीप।३६।
*
सिफलिस-कोढ़ मिटा सके, सूखी जड़ की छाल। 
सुबह-शाम त्रै ग्राम लें, चित्रक होगा लाल।३७।
*
पीप बहे लें घाव पर, लेप चित्रकी छाल।
घाव ठीक हो शीघ्र ही, आयुर्वेद कमाल।३८।
*
मूषक ज्वर जाए उतर, तलुए मलिए तेल। 
चित्रक छाला चूर्ण सँग, पका न पीड़ा झेल।३९।
*
मात्रा अधिक न लें 'सलिल', विष सम करे अनिष्ट। 
मात्रा-विधि हो सही तो, चित्रक हरता कष्ट।४०।
***

शुक्रवार, 12 मई 2023

आयुर्वेद, गन्ना, ईख, ममता सैनी

गन्ना घर-घर में पुजे

'गन्ना' घर-घर में पुजे , 'ईख' प्रकृति उपहार।
'अंस, ऊंस' महाराष्ट्र में, लोग कहें कर प्यार।१।
*
'चेरुकु' कहता आंध्र है, 'इक्षुआक' बंगाल।
गुजराती में 'शेरडी', 'भूरस' नाम कमाल।२।
*
मलयालम में 'करिंबू' , तमिल 'करंपु' भुआल।
'मधुतृण, दीर्घच्छद' मिले, संस्कृत नाम रसाल।३।

'सैकेरम ऑफिसिनेरम', कहे पौध विज्ञान। 
'पोआसिआ' कुलनाम है, हम कहते रस-खान।४।  
*
लोक कहे 'गुड़मूल' है, कुछ कहते 'असिपत्र'। 
'कसबुस्सुकर' अरब में,  है रस-राज विचित्र।५।  
*
नाम 'नैशकर' फारसी, 'पौंड्रक' एक प्रजाति।  
'शुगर केन' इंग्लिश कहे, जगव्यापी है ख्याति।6।  
*
छह से बारह फुटी कद, मिलता यह सर्वत्र। 
चौड़े इंची तीन हों, चौ फुट हरियल पत्र।7।  
*
पुष्प गुच्छ होता बड़ा, बहुशाखी लख रीझ। 
फूले वर्षा काल में, शीत फले लघु बीज।८। 
*
लाल श्वेत हो श्याम भी, ले बेलन आकार।  
बाँस सदृश दे सहारा, सह लेता है भार।९। 
*
रक्तपित्त नाशक कफद, बढ़ा वीर्य-बल मीत। 
मधुर स्निग्ध शीतल सरस, मूत्र बढ़ाए रीत।१०।
*
गरम प्रदेशों में करें, खेती हों संपन्न। 
गन्ना ग्यारस को न जो, पूजे रहे विपन्न।११। 
*  
रस गुड़ शक्कर प्रदाता, बना गड़ेरी चूस।  
आनंदित हों पान कर, शुगर केन का जूस।१२।
*
 गन्ना खेती लाभप्रद, शक़्कर बिके विदेश। 
 मुद्रा कमा विदेश की, विकसे भारत देश।१३।  
*
कच्चे गन्ने से बढ़े, कफ प्रमेह अरु मेद।  
पित्त मिटाए अधपका, हरे वात बिन खेद।१४।  
*
रक्त पित्त देता मिटा, पक्का गन्ना मीत। 
वीर्य शक्ति बल बढ़ाएँ, खा गन्ना शुभ रीत।१५।  
*
क्षुधा-वृद्धि कर पचाएँ, भोजन गुड़ खा आप।
श्रम-त्रिदोष नाशक मधुर, साफ़ करे खूं आप।१६।  
*
मृदा पात्र में रस भरें, रखें ढाँक दिन सात।      
माह बाद दस ग्राम ले, करें कुनकुना तात। १७ अ।  

तीन ग्राम सेंधा नमक, मिला कराएँ पान। 
पेट-दर्द झट दूर हो, पड़े जान में जान।१७ आ। 
*
तपा उफाना रस रखें, शीशी में सप्ताह। 
कंठरोध कुल्ला करें, अरुचि न भरिए आह।१८ अ। 

भोजन कर रस पीजिए, बीस ग्राम यदि आप। 
पाचक खाया पचा दे, अपच न पाए व्याप।१८ आ। 
*
टुकड़े करिए ईख के, छत पर रखिए रात। 
ओस-सिक्त लें चूस तो, मिटे कामला तात।१९। 
*
ताजा रस जड़ क्वाथ से, मिटते मूत्र-विकार। 
मूत्र-दाह भी शांत हो, आप न मानें हार।२०। 
*
गौ-घी चौगुन रस पका, सुबह-शाम दस ग्राम। 
कास अगर  पी लीजिए, तुरत मिले आराम।२१।
*
जब रस पक आधा रहे, मधु चौथाई घोल।  
मृदा-पात्र में माह दो, रख सिरका अनमोल।२२ अ। 

बना पिएँ जल संग हो, ज्वर-तृष्णा  झट ठीक। 
मूत्र-कृच्छ भी दूर हो, मेद मिटे शुभ लीक।२२ आ। 
*
चेचक मंथर ज्वर अगर, आसव तिगुना नीर। 
मिला बदन पर लगा लें, शीघ्र न्यून हो पीर।२३। 
*
दुःख दे शुष्क जुकाम यदि, मुँह से आए बास।  
मिर्च चूर्ण गुड़ दही लें, सुबह ठीक हो श्वास।२४। 
*
बूँद सौंठ-गुड़ घोल की, नाक-छिद्र में डाल।
हिक्का मस्तक शूल से, मुक्ति मिले हर हाल।२५। 
*
गुड़-तिल पीसें दूध सँग, घी संग करिए गर्म। 
सिरोवेदना मिटाने, खा लें करें न शर्म।२६। 
*
पीड़ित यदि गलगण्ड से, हरड़ चूर्ण लें फाँक। 
गन्ना रस पी लें तुरत, रोग न पाए झाँक।२७। 
*
भूभल में सेंका हुआ, गन्ना चूसें तात। 
लाभ मिले स्वरभंग में, करिए जी भर बात।२८। 
*
गुड़ सरसों के तेल का, समभागी कर योग।  
सेवन करिए दूर हो, शीघ्र श्वास का रोग।२९। 
*
पाँच ग्राम जड़ ईख की, कांजी सँग लें पीस।  
तिय खाए पय-वृद्धि हो, कृपा करें जगदीस।३०। 
*
रस अनार अरु ईख का, मिला पिएँ समभाग। 
खूनी डायरिया घटे, होन निरोग बड़भाग।३१।
*
गुड में जीरा मिलाकर, खाएँ  विहँस हुजूर। 
अग्निमांद्य से मुक्त हों, शीत-वात हो दूर।३२।
*
रक्त अर्श के मासे या, गर्भाशय खूं  स्राव। 
रस भीगी पट्टी रखें, होता शीघ्र प्रभाव।३३।
*
मूत्रकृच्छ मधुमेह या, वात करें हैरान।   
गुड़ जल जौ का खार लें, बात वैद्य की मान।३४।
*
बैठें पानी गर्म में, पथरी को कर दूर। 
गर्म दूध-गुड़ जब पिए, हो पेशाब जरूर।३५। 
*
ढाई ग्राम चुना बुझा, गुड़ लें ग्यारह ग्राम। 
वृक्क शूल में लें वटी, बना आप श्रीमान।३६।
*
प्रदर रोग में छान-लें, गुड़ बोरी की भस्म। 
लगातार कुछ दिनों तक, है उपचार न रस्म।।३७। 
*
चूर्ण आँवला-गुड़ करे, वीर्यवृद्धि लें मान। 
मूत्रकृच्छ खूं-पित्त की, उत्तम औषधि जान।३८।      
*
गुड़-अजवायन चूर्ण से, मिटते रक्त-विकार। 
रोग उदर्द मिटाइए, झट औषधि स्वीकार।३९।
*
कनखजूर जाए चिपक, फिक्र न करिए आप। 
गुड़ को जला लगाइए, कष्ट न पाए व्याप।४०।      
*
अदरक पीपल हरड़ या, सौंठ चूर्ण पँच ग्राम। 
गर्म दूध गुड़ में मिला, खाएँ सुबहो-शाम।४१ अ।

शोथ कास पीनस अरुचि, बवासीर गलरोग। 
संग्रहणी ज्वर वात कफ, श्याय मिटा दे योग।४१ आ।
*
शीतल जल में घोल गुड़, कई बार लें छान। 
पिएँ शांत ज्वार-दाह हो, पड़े जान में जान।४२।
*
काँच शूल काँटा चुभे, चिपकाएँ गुड़ गर्म।
मिलता है आराम झट, करें न नाहक शर्म।४३।  
*
धार-ऊष्ण गौ दुग्ध को, मीठा कर गुड़ घोल।  
यदि नलवात तुरत पिएँ, बैठे नहीं अबोल।४४।
*
गन्ना-रस की नसी दें, यदि फूटे नकसीर। 
दे आराम तुरत फुरत, औषधि यह अक्सीर।४५।
*
हिक्का हो तो पीजिए, गन्ना रस दस ग्राम। 
फिक्र न करिए तनिक भी, तुरत मिले आराम।४६।
*
अदरक में गुड़ पुराना, मिला खाइए मीत।      
मिटे प्रसूति-विकार अरु, कफ उपयोगी रीत।४७।
*
जौ के सत्तू साथ कर, ताजे रस का पान। 
पांडु रोग या पीलिया, का शर्तिया निदान।४८।
*
पीसें जौ की बाल फिर, पी लें रस के साथ। 
कोष्ठबद्धता दूर हो, लगे सफलता हाथ।४९।
*
गन्ना रस को लें पका, ठंडा कर पी आप। 
दूर अफ़ारा कीजिए, शांति सके मन व्याप।५०। 
*
गन्ना रस अरु शहद पी, पित्त-दाह हो दूर। 
खाना खाकर रस पिएँ, हो परिपाक जरूर।५१। 
 *
शहद आँवला-ईख रस, मूत्रकृच्छ कर नष्ट। 
देता है आराम झट, मेटे सकल अनिष्ट।५२।
*
   
   

गन्ने का इतिहास बहुत अलबेला है। कहते हैं भारत में गन्ना जंगली पौधे के रुप में उगता था। और वनस्पति वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पौधा मूल रुप से भारत में ही होता था। यहां से शर्करा शब्द ग्रीक, रोमन, फारसी और अरबी भाषाओं में गया। पहली शताब्दी के ग्रीक और लैटिन ग्रन्थों में उल्लेख है कि 'साखारोन' एक प्रकार का मधु है, जो बांस में मधुमखियों के बिना पाया जाता है, जो भारत में है, और दॉतों से चबाया जाता है। चीन में शर्करा को शि-मि (पाषण मधु) कहते थे। पाषण का अर्थ कंकड अथवा कणात्मक है। सन् 285 में कम्बुज देश ने चीन को गन्ने उपहार स्वरुप भेजे थे। सन् 647 में चीन के सम्राट थाइ-त्सुड् ने मगध में भारतीय शर्करा निर्माण की पद्धति सीखने के लिए शिष्टमण्डल भेजा था। जब अरब सेनाओं ने इरान को सन् 640 में पराजित करके धर्मान्तरित किया, तब सर्वप्रथम इरान से शर्करा निर्माण के लिए ले गए। इरान में शर्करा का उत्पादन बहुत प्राचीन काल में भारत से गया था। लोग कहते हैं कि एक बार गन्ने की फसल आने पर लोग खूब जश्न मना रहे थे तभी सिकंदर भारत देश को लूटने के इरादे से अपनी विशाल सेना के साथ आया। उसने खेतों में कई हरे-लाल रंग की लंबी-लंबी लकडियों को उगा देखा। जब वह थोडा आगे बढ़ा तो कई लोग इन लकडियों को चूस-चूसकर खूब आनन्दित हो रहे थे। उसे यह सब देखकर बडा आश्चर्य हुआ कि इन लकडियों में ऐसी क्या खूबी है?, उसने एक गन्ने चूस रहे आदमी से पूछा, तुम लोग इन लकडियों को क्यों चूसते हो? उस आदमी ने उत्तर देने के बजाय एक गन्ना सिकन्दर को देते हुए कहा-'तुम भी इसे चूसो।' सिकन्दर को गन्ने का रस इतना स्वादिष्ट लगा कि उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया। 'यहां से कुछ गन्ने ले जाओ और जमीन में रोपकर खेती करना शुरु कर दो।' कहते हैं कि गन्ने के पौधे की खोज आज से दो हजार वर्ष पूर्व एक आदिवासी के द्वारा अचानक हो गई थी। उस आदिवासी का घोडा खो गया था। वह आदिवासी यूनान के टेलस्मि में रहता था। वह घोडे क़ी खोज में जंगल में भटक रहा था। बहुत खोजने पर भी जब घोडा नहीं मिला तो वह हाथ में जलती मशाल लेकर बीहड ज़ंगल में उसे खोजने चल पडा। जब उसे जोर की प्यास लगी और आस पास पानी नहीं मिला तो उसकी नजर मधुमखियों के छत्ते पर पडी ज़ो एक दुबले पतले पौधे पर लगा था। उसने शहद पीने की इच्छा से मशाल की मदद से छत्ते से मधुमक्खियों को उडाया, और छत्ते को तोडना चाहा। छत्ता तो टूटा नहीं, वह दुबला-पतला पौधा मशाल की मार से बीच में से टूट गया और उसमें से रस टपकने लगा।
आदिवासी ने प्यास बुझाने के लिए टपकते रस के आगे अपनी जीभ बढा दी। उसे वह रस बहुत मीठा लगा। उसकी प्यास भी बुझ गई। आदिवासी को बडा अचरज लगा। क्योंकि उसने ऐसा स्वाद पहले न चखा था। वह इतना खुश हुआ कि घोडे क़ो ढूंढने की बात ही भूल गया और उस टूटे हुए पौधे को अपने साथ घर ले आया। उसने अपनी झोपडी क़े बाहर खाली पडे ज़मीन में वह पौधा रख दिया। रात में बारिश से पौधे का टुकडा जमीन में दब गया और कुछ दिनों के पश्चात वहां तीन-चार पौधे निकल आए। तभी से आदिवासियों में गन्ने का पौधा चर्चा का विषय बन गया। आदिवासी इसे अपने झोपडी क़े बाहर लगाने लगे। फिर धीरे-धीरे इसकी खेती भी शुरु हो गई। गन्ने के जन्म के बारे में एक लोककथा भी है। यह कहा जाता है कि यूनान के पुराणों में कहा गया है कि गन्ने का जन्म मरियन नामक एक संत ने आग की राख से किया था। जापान में भी गन्ने के बारे में एक लोककथा है। वहां जिक्र मिलता है कि प्राचीन काल में थामसा नाम के एक भिखारी ने एक विशाल वृक्ष को शाप देकर दुबला-पतला बना दिया था। जो बाद में गन्ने के नाम पर प्रसिद्ध हुआ।


वैसे गन्ने का लैटिन नाम सैकेरम ऑफिसिनेरम है। इसका नाम गन्ना क्यों पडा इस बारे में बेबिलोन के इतिहास में यह जिक्र मिलता है कि ईसा से आठ सौ वर्ष पूर्व गायना नामक आदिवासी ही इसकी खेती किया करते थे और उन्हीं के नाम पर इसका नाम गन्ना पडा। इसका भारतीय नाम ईख है। जहां पानी की पर्याप्त मात्रा रहती है, वहां यह बहुत पैदा होता है। भारत में इसकी खेती की शुरुआत ईसा से 338 वर्ष पूर्व हुई थी। उस समय लोग जब गन्ने की फसल आती तो खुश होकर नाचते- गाते जश्न मनाया करते थे। उत्तरी कनाडा, ब्राजील, मलेशिया में भी गन्ने बहुतायत मात्रा में होते हैं। वहां गन्ने की ऊंचाई बीस फुट तक होती है। वहां एक गन्ने से औसतन पांच लीटर रस निकाला जाता है।

मंगलवार, 9 मई 2023

आयुर्वेद, धतूरा, ममता सैनी

गुणकारी है धतूरा
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
परिचय- 
गुणकारी है धतूरा, मातुल कनक न भूल।
करता है उन्मत्त यह, खिलते सुंदर फूल।१।
धतूरा गुणकारी वनस्पति है। इसे मातुल तथा कनक भी कहा जाता है। यह उन्मत्त कार देता है। धतूरा के पौधे पर सुंदर पुष्प खिलते हैं।१।   
*
सोलेनशिआ सुनाम है, अरबी में दातूर।
थॉर्न एप्पल इंग्लैंड में, फारस में तातूर।२।
धतूरा को वनस्पति शास्त्र में सोलेनशिआ, अरबी में दातूर, इंग्लिश में थॉर्न एप्पल, तथा फारसी में तातूर कहा जाता है।२। 
*
सुश्रुत-चरक थे सुपरिचित, जान सके गुण-धर्म।
गणना की विष वर्ग में, लक्ष्य चिकित्सा कर्म।३।
*
महर्षि सुश्रुत तथा महर्षि चरक धतूरा से भली-भाँति परिचित थे। उन्होंने धतूरा के गुण-धर्म जानकार इसे विष वर्ग में रखा तथा इसके अध्ययन का लक्ष्य चिकित्सा निर्धारत किया।३।
पहचान-
कद पौधे का तीन फुट, हरे नुकीले पर्ण। 
पुष्प पाँच इंची खिलें, पर्पल-श्वेत विवर्ण।४। 
धतूरे के पौधे का औसत कद लगभग ३ फुट होता है। इसके पत्ते हरे-नुकीले होते हैं। इसकी शकहाओं पर बैगनी-सफेद रंग के लाह भाग ५ इंच लंबे फूल खिलते हैं।४। 
*
काँटों सज्जित गोल फल, चपटे भूरे बीज। 
वृक्काकारी श्याम भी, चुभें शूल हो खीझ।५।
इसका फल गोलाकार होता है जिस पर सब ओर काँटे होते हैं। इसके बीज आकार में चपटे तथा भूरे अथवा वृक्क के आकार के काले रंग के रंग के होते हैं। इसके नुकीले काँटे चुभ सकते हैं।५।  
*
उत्पाद- 
मिलता हायोसायमिन, हायोसीन सुक्षार। 
राल-तेल भी प्राप्त हो, जहँ-तहँ उगे उदार।६।
धतूरा से  हायोसायमिन तथा हायोसीन नामक क्षार प्राप्त होता है। धतूरा से रायल तथा तेल भी प्राप्त किया जाता है। इसका पौधा जहाँ-तहाँ कहीं भी ऊग जाता है।६।
*
उपयोग/उपचार- 
वायु मद
अग्नि वायु मद दे बढ़ा, करे लीख-जूँ नष्ट। 
ज्वर कृमि खुजली कोढ़ कफ, व्रण के हरता कष्ट।७।
धतूरा का सेवन अग्नि तथा वायु की वृद्धि करता है। धतूरा बुखार, कृमि, खुजली, कोढ़, कफ तथा घाव को ठीक करता है।७।
*
रूखा भ्रमकारी बहुत, कड़वा भी लें मान।
श्वास नली के रोग में, बहु उपयोगी जान।८।
धतूरा बहुत रूखा, भ्रम पैदा करने वाला तथा कड़वा होती है। यह श्वास संबंधी रोगों में बौट उपयोगी है।८।
*
सिर-पीड़ा / स्तन सूजन 
नित्य बीज दो खाइए, सिर-पीड़ा हो दूर। 
स्तन सूजे बाँधें तुरत, पत्ते गर्म हुजूर।९।
धतीर के दो बीज रोज खाने से सिर की पीड़ा दूर होती है।९।
*
स्तन में गाँठ 
गाँठें हो स्तन में अगर, दूध अधिक हो तात।  
ताजा पत्ते बाँधिए, मिले व्याधि को मात।१०।
स्तन में गांठ होने पर धतीर के ताजे पत्ते बाँधने से लाभ होता है तथा दूध अधिक उतरता है।१०।  
*
सिर में जूँ 
राइ-तेल में चौगुना, पत्तों का रस डाल।
पका लगाएँ जूँ मिटे, श्याम स्वस्थ हो बाल।११।
राइ के तेल में चार गुना धतूरा के पत्तों का रस डालकार लगाने पर जूँ व लीखें  नष्ट हो जाती हैं तथा बाल स्वस्थ्य और काले होते हैं।११। 
*
उन्माद 
पित्त पापड़ा अर्क में, बीज धतूरा श्याम। 
घोंट पिएँ उन्माद हो, शांत मिले आराम।१२।
पिट पापड़ा के यार्क में काले धतूरा-बीज घोंटकर पीने से उन्माद शांत होकर आराम मिलता है।१२। 
*
सूर्य-ताप/प्रसव का उन्माद 
बीज धतूरा में मिला, काली मिर्च समान। 
पानी ले करिए खरल, गोली बना सुजान।१३ अ।
धतूरा के बीज में समान मात्रा में काली मिर्च मिलाकर खरल में कूटकर पानी के साथ गोली बनाकर जानकार रख लेते हैं।१३ अ। 
सूर्य-ताप आघात या, प्रसव जनित उन्माद।
रत्ती भर मक्खन सहित, देकर करें निदान।१३ आ।
सूर्य की गर्मी से उत्पन्न आघात या प्रसव से हुए उन्माद में रत्ती भर मक्खन के साथ एक गोली खाने पर रोग दूर होता है ।१३ आ।
*
नेत्र पीड़ा 
नेत्र दुखें यदि हो सखे!, शोथ-दाह से लाल। 
पत्तों का रस लेपिए, दुःख हो दूर कमाल।१४।
हे मित्र! यदि शोथ-दाह से लाल होकर नत्र दुखते हों तो धतूरा के पत्तों के रस का लेप करिए। आराम मिलेगा।१४।
*
श्वास रोग 
पत्ते फल शाखा सुखा, कूट बनाएँ चूर्ण। 
धूम्रपान से दूर हो, श्वास रोग संपूर्ण।१५।
धतूरे के पत्ते, फल शाखा आदि को सुखाकर कूटें तथा चूर्ण बना लें। इसके धुएँ का सेवन करने से श्वास रोग दूर होते हैं।१५।
*
दमा 
अधसूखे पत्ते उठा, टुकड़े रत्ती चार।
ले बीड़ी पी लीजिए, हों न दमा-बीमार।१६।
धतूरा के अधसूखे चार पत्तों की बीड़ी बनाकर पीने से दमा नहीं होता।१६। 
*
बीज तमाखू जवांसा, अपामार्ग समभाग।
चूर्ण चिलम में पिएँ हो, दमा दूर बड़भाग।१७।
धतूरा-बीज, तमाखू, जवांसा तथा अपामार्ग को समान मातर में मिलाकर चूर्ण बना लें। इसे चिलम में भरकर पीने से दमा का रोग दूर हो जाता है।१७। 
*
चूर्ण, धतूरा तमाखू, शोरा काली चाय।  
ले समान बीड़ी पिएँ, रोके दमा उपाय।१८।
दमा दूर करने के लिए धतूरा, तमाखू, शोर तथा काली चाय के चूर्ण की बीड़ी पिएँ। यह दमा को रोकती है ।१८। 
*
हैजा 
हैजे का उपचार है, मातुल फूल-पराग। 
रखें बतासे में निगल, हैजा मिटे सुभाग।१९।
धतूरे के फूल के पराग को बतासे के साथ खाने से हैजा रोग दूर होता है ।१९।
*
गर्भ धारण 
फल चूरन घी शहद दें, चटा गर्भ हित आप। 
लें चौथाई ग्राम ही, हर्ष सके तब व्याप।२०।
गर्भ धारण करने के लिए धतूरा फल का चूर्ण, घी तथा शहद की चौथाई ग्राम मात्रा कहता दें तो गर्भ थराने से खुशी होती है।२०।  
*
वात खुजली
पर्ण फूल फल शाख जड़, मिला पका तिल-तेल। 
मलें वात खुजली मिटे, व्यर्थ न पीड़ा झेल।२१। 
खुजली होने पर व्यर्थ पीड़ा मत झेलिए। धतूरे के पत्तों, फूलों, फलों तथा जड़ों को तिल के तेल में पका कर मलने से खुजली दूर होती है।२१।
*
अस्थि जोड़ पीड़ा
सत दें आधा ग्रेन यदि, तीन बार नित आप। 
अस्थि जोड़ पीड़ा नहीं, सके आपको व्याप।२२।
धतूरा का आधा ग्रेन सत दिन में तीन बार लेने से अस्थि-जोड़ की पीड़ा नहीं होती।२२। 
*
पर्ण धतूरा लेपिए, बाँधें पुलटिस रोज। 
हड्डी-पीड़ा दूर हो, हो चेहरे पर ओज।२३।
धतूरा के पत्तों को पीसकर रोज लेप लगाएँ तथा पुलटिस बाँधें तो हड्डी का दर्द दूर होता है तथा चेहरे पर चमक आती है।२३।
*
सूजन 
पर्ण पीसकर मिला लें, शिलाजीत कर लेप। 
अंडकोश फुफ्फुस उदर, सूजन हो विक्षेप।२४।
अंधकोश, फुफ्फुस या उदर में सूजन होने पर धतूरा के पत्तों को पीसकर शिलाजीत के साथ मिलाकर लेप करने से सूजन दूर हो जाती है।२४।
*
ऐंद्रिक शिथिलता 
बीज धतूरा अकरकस, लौंग वटी खा नित्य। 
काम साधना कीजिए, हो आनंद अनित्य।२५।
धतूरा के बीज, अकरकस तथा लौंग को पीसकर गोली बना लें। इसका नित्य सेवन करने से काम शक्ति बढ़ती है। इसे खाकर काम की साधना कीजिए, अधिक आनंद मिलेगा।२५।      
*
तेल धतूरा बीज का, तलवों पर मल रात। 
करें प्रिया-सहवास हो, स्तंभन बहु भाँत।२६।
अपने तलवों पर धतूरा के बीजों का तेल मलकर रात को प्रेयसी के साथ सहवास करिए, अधिक और तरह-तरह से स्तंभन कार सकेंगे।२६।
*
पीस धतूरा बीज-फल, मिला दूध में मीत।
दही जमा घी निकालें, रखें पान में रीत।२७ अ। 
धतूरा के बीज-फल को पीसकर दूध में मिला लें। इसका दही जमाकर घी निकालें। इस घी को पान के पत्ते में रखकर पान बना लें।२७ अ। 
खाएँ बाजीकरण हो, करे शिथिलता दूर। 
कामेन्द्रिय की मिले, सुखानंद भरपूर।२७ आ। 
यह पान खाने से बाजीकरण की तरह प्रभाव होता है। लिंग की शिथिलता दूर होती है और कांक्रीय का भरपूर आनंद मिलता है।२७ आ।
*
मलेरिया
बीज-धतूरा जलाकर, सुबह-शाम लें राख।
हो मलेरिया दूर झट, लगे न ज्वर को पाख।२८।
*
धतूरे के बीज को जलाकर बनी रख का सुबह-शाम सेवन कीजिए। मलेरिया का ज्वार अधिक नहीं चढ़ सकेगा तथा रोग दूर हो जाएगा।२८।
*
कनक बीज का चूर्ण खा, ज्वर आने के पूर्व। 
ज्वर को दूर भगाइए, हो आराम अपूर्व।२९।
धतूरे के बीज का चूर्ण  यदि बुखार आने के पूर्व या तुरंत बाद खा लें तो तुरंत आराम होता है।२९।
*
पान धतूरा पर्ण अरु, काली मिर्ची पीस।
वटी बना खा ज्वर मिटे, रहें निपोरे खीस।३० अ। 
पान, धतूरा का पत्ता और काली मिर्च को मिलाकर पीस लें। इसकी गोली बनाकर, ज्वर आने पर एक गोली खालें, ज्वर दूर हो जाएगा।३० अ।  
सौंफ अर्क के साथ खा, करिए दूर प्रमेह। 
है इलाज यह शर्तिया, तनिक नहीं संदेह।३० आ। 
प्रमेह होने पर सौंफ के यार्क के साथ एक गोली खाएँ। यह शर्तिया उपचार है३० आ। 
*
तिजारी
दही-पर्ण रस का करें, सेवन फिर विश्राम। 
रोग तिजारी का मिटे, झट मिलता आराम।३१।
तिजारी रोग होने पर धतूरे के पत्तों का रस तथा दही का सेवन कार आराम कीजिए। तुरंत आराम मिलता है।३१।
*
बिच्छू-काटा
पत्तों की लुगदी बना, बाँध दीजिए घाव।
बिच्छू-काटा ठीक हो, पार लग सके नाव।३२।
बिच्छू के काटने पर धतूरा के पत्तों को पीसकार बनाई लुगदी बाँध दें। दर्द तथा जहर दूर होकर तुरंत आराम मिलता है।३२।
*
पका घाव 
पीप घाव की धोइए, जल ले थोड़ा गर्म। 
कनक-पत्र पुलटिस बँधे, पीर मिटे हो नर्म।३३।
घाव पक जाने पर कुनकुने पानी से धोकर, धतूरा के पत्तों को से  बनाई लुगदी की पुलटिस बाँध लें। घाव नरम होकर दर्द मिट जाता है।३३। 
*
कर्ण शोथ
कर्ण शोथ हो लगाएँ, रस गाढ़ा रह मौन। 
सूजन-पीड़ा घटे सब, पूछें पीड़ित कौन।३४।
कान में शोथ होने पर धतूरा का गाढ़ा रस लगाएँ। सूजन और दर्द तुरंत दूर हो जाता है।  
*
हो मवाद यदि कान में, गंधक सरसों-तेल।
पर्ण धतूरा-रस मिला, डालें मिटे झमेल।३५।
कान में मवाद होने पर गंधक, सरसों का तेल, धतूरा के पत्तों का रस मिलकर डालिए, तुरंत आराम हिकार झंझट दूर हो जाता है।३५।
*
हल्दी पीसें लें मिला, रस धतूर तिल-तेल।
पका छान ले लगा हो, कर्ण नाड़ी व्रण खेल।३६। 
कान की नस में घाव होने पर पीसी हल्दी, धतूरे का रस और तिल का तेल मिला-पाक-छानकर लगाइए। खेल खेल में दर्द दूर हो जाएगा।३६। 
*
विष 
पत्ते-फूल कपास से, हो धतूर-विष शांत। 
दें ठंडा निर्यास हो, चित्त तनिक नहिं भ्रांत।३७।
कपास के पत्तों तथा फूल से धतूरे का विष शांत होता है। ठनदा निर्यास देन तो चित्त भ्रांत नहीं होता। 
*
दूषित जल पी रोग हो, नारू कृमि दे पीर। 
पत्तों को लें बाँध हो, कष्ट दूर दर धीर।३८।
*
नारू रोग 
दूषित पानी पीने से हुए नारू रोग का कीड़ा यदि कष्ट दे रहा हो तो धतूरा के पत्ते बाँध लें, दर्द दूर हो जाएगा।३८।
*
दुष्प्रभाव 
विष धतूर मात्रा अधिक, कर दे सुन्न शरीर। 
हो खुश्की सिर दर्द भी, फिर बेहोशी पीर।३९।
धतूरे के विष की अधिक मात्रा शरीर को सुन्न कर देती है, इससे खुश्की, सिर दर्द और बेहोशी हो सकती है।३९।
सावधानी 
करिए बाह्य प्रयोग ही, मात्रा कम ही ठीक। 
सावधान हो सजग भी, 'सलिल' न तजिए लीक।४०।
इसलिए बाहरी प्रयोग सावधान और सजग रहकर करें तथा बताई गई लीक का उल्लंघन न करें।४०।                                                 
***
 (आभार- आयुर्वेद जड़ी बूटी रहस्य, भाव प्रकाश, भेषज्य रत्नावली)
+++++
सॉनेट
धतूरा
*
सदाशिव को है 'धतूरा' प्रिय।
'कनक' कहते हैं चरक इसको।
अमिय चाहक को हुआ अप्रिय।।
'उन्मत्त' सुश्रुत कहें; मत फेंको।।
.
तेल में रस मिला मलिए आप।
शांत हो गठिया जनित जो दर्द।
कुष्ठ का भी हर सके यह शाप।।
मिटाता है चर्म रोग सहर्ष।।
.
'स्ट्रामोनिअम' खाइए मत आप।
सकारात्मक ऊर्जा धन हेतु।
चढ़ा शिव को, मंत्र का कर जाप।
पार भव जाने बनाएँ सेतु।।
.
'धुस्तूर' 'धत्तूरक' उगाता बाल।
फूल, पत्ते, बीज,जड़ अव्याल।। 
...
क्षणिका 
धतूरा 
.
महक छटा से 
भ्रमित हो  
अमृत न मानो। 
विष पचाना सीख लो 
तब मीत जानो। 
मैं धतूरा 
सदाशिव को 
प्रिय बहुत हूँ। 
विरागी हूँ, 
मोह-माया से रहित हूँ। 
...
संपर्क- विश्ववाणी हिंदी संस्थान, 401 विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर 482001 
एमेल salil.sanjiv@gmail.com, चलभाष 9425183244 

सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

भारत को जानें अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच

आदरणीय ममता जी
वंदे भारत-भारती।
"अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच" के संबंध में अभी ही भावना सक्सेना जी से जानकारी मिली। मैंने प्रयास किय पर फोन नहीं जुड़ सका।
आपके सारस्वत अनुष्ठान से जुड़कर उसे पूर्ण करना चाहूँगा।
मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान राज्यों से भली-भाँति परिचित हूँ। इनमें से किसी भी या सभी के संदर्भ में लेखा कर सकता हूँ।
छंद मेरा प्रिय विषय है। दो दशकों में ५०० से अधिक रचनाकारों को छंद लिखना सिखाया है तथा ३०० से अधिक नए छंद बनाए हैं। चौपाई छंद सरस, सहज और लोकप्रिय छंदों में से एक है। प्रस्तुत हैं सद्य रचित चौपाई-
प्रिय ममता जी नमन आपको। अर्पित शब्दित सुमन आपको।।
अनुष्ठान यह मन को भाया। इसीलिए यह पत्र पठाया।।
कहा भावना जी ने मुझसे। बनूँ सहायक झटपट जिससे।।
चौपाई है छंद मनोहर। कवि-पाठक का मन लेता हर।।
छंद मुझे प्रिय लगा सदा ही। सीख रहा, कुछ लगे सधा भी।।
माँ शारद की कृपा अपरिमित। है सामर्थ्य किंतु मम सीमित।।
तदपि प्रयास निरंतर करता। मन न छंद से किंचित भरता।।
मध्य प्रदेश ह्रदय भारत का। है रमणीक सुहृद मन हरता।।
बसा जबलपुर नगरी में मैं। नदी नर्मदा विमल बही है।।
करें आप भी परिचय किंचित। सुख पाएँ होगा मन प्रमुदित।।

जबलपुर में शुभ प्रभात - (दोहा)
*
रेवा जल में चमकतीं, रवि-किरणें हँस प्रात।
कहतीं गौरीघाट से, शुभ हो तुम्हें प्रभात।।१।।
*
सिद्धघाट पर तप करें, ध्यान लगाकर संत।
शुभप्रभात कर सूर्य ने, कहा साधना-तंत।।२।।
*
खारी घाट करा रहा, भवसागर से पार।
सुप्रभात परमात्म से, आत्मा कहे पुकार।।३।
*
साबुन बिना नहाइए, करें नर्मदा साफ़।
कचरा करना पाप है, मैया करें न माफ़।।४।।
*
मिलें लम्हेटा घाट में, अनगिन शिला-प्रकार।
देख, समझ पढ़िये विगत, आ आगत के द्वार।।५।।
*
है तिलवारा घाट पर, एक्वाडक्ट निहार।
नदी-पाट चीरे नहर, सेतु कराए पार।।६।।
*
शंकर उमा गणेश सँग, पवनपुत्र हनुमान।
देख न झुकना भूलना, हाथ जोड़ मति मान।।७।।
*
पोहा-गरम जलेबियाँ, दूध मलाईदार।
सुप्रभात कह खाइए, कवि हो साझीदार।।८।।
*
धुआँधार-सौन्दर्य को, देखें भाव-विभोर।
सावधान रहिए सतत, फिसल कटे भव-डोर।।९।।
*
गौरीशंकर पूजिए, चौंसठ योगिन सँग।
भोग-योग संयोग ने, कभी बिखेरे रंग।।१०।।
*
नौकायन कर देखिये, संगमरमरी रूप।
शिखर भुज भरे नदी को, है सौन्दर्य अनूप।११।।
*
बहुरंगी चट्टान में, हैं अगणित आकार।
भूलभुलैयाँ भुला दे, कहाँ गई जलधार?।१२।।
*
बंदरकूदनी देख हो, लघुता की अनुभूति।
जब गहराई हो अधिक, करिए शांति प्रतीति।।१३।।
*
कमल, मगर, गज, शेर भी, नहीं रहे अब शेष।
ध्वंस कर रहा है मनुज, सचमुच शोक अशेष।।१४।।
*
मदनमहल अवलोकिए, गा बम्बुलिया आप।
थके? करें विश्राम चल, सुख जाए मन-व्याप।।१५।।
*
शेष आपसे प्रत्युत्तर मिलने पर
शुभाकांक्षी
संजीव
(आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल')
९४२५१८३२४४
salil.sanjiv@gmail.com
divyanarmada.in
+255 787 774 342 Bhawna ने आज 3:36 PM बजे भेजा आपका नम्बर भी भेज दिया



मित्रों नमस्कार,
इस बार "अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच" द्वारा भारत के सभी प्रदेशों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को विषय बना कर काव्य अनुष्ठान का आयोजन निश्चित हुआ है।
1. इस "भारत को जानें" परियोजना में हमें सभी 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों पर रचनाएँ लिखनी है। रचनाएँ हिन्दी भाषा में चौपाई छन्द में की जानी हैं।
2. प्रत्येक राज्य पर रचना कार्य हेतु 7 लोगों का चयन किया जाएगा। चयनित रचनाकार निम्नलिखित में से किसी एक आवंटित वर्ग में वर्णित बिन्दुओं पर संबंधित राज्य के विषय में चौपाइयाँ लिखेंगे।

वर्ग 1 जनसांख्यिकी  संजीव वर्मा 'सलिल' ९४२५१ ८३२४४ 
1-राज्य की उत्पत्ति, स्थापना, आधार
2-राजधानी
3-जनसंख्या
4-आर्थिक स्थिति
5-शिक्षा का स्तर
6-धर्म
7-मंडल तथा जिले
8-नगर तथा कस्बे आदि-आदि

वर्ग 2 (संस्कृति, कला, साहित्य )
9 -लोकगीत
10-लोकनृत्य
11-लोकभाषा
12-खानपान
13. व्रत
14-त्यौहार
15 वास्तुकला
16 मूर्तिकला
17 वेशभूषा
18 साहित्य आदि-आदि

वर्ग 3 (उपलब्धियाँ) 
19- उत्पादन में प्रमुख
20 प्रमुख व्यवसाय
21. निर्माण में सर्वोपरि
22-स्मारक
23. नई खोज
24.प्रमुख बातें
25. मुख्य उपलब्धियां आदि

वर्ग 4 ( इतिहास) अरविन्द श्रीवास्तव दतिया ९४२५७ २६९०७  
26 ऐतिहासिक घटनाएँ
27. मेला ,कुम्भ
28.राजा, महाराजा
29 पौराणिक कथाएँ
30. ऐतिहासिक यात्रा आदि-आदि

वर्ग 5-(प्राकृतिक सौन्दर्य)
31-पशु
32 -पक्षी
33-पुष्प
34-वृक्ष
35- पर्यटन स्थल
36-झीलें
37 नदियां आदि-आदि

वर्ग 6 ( भौगोलिक संरचना) अखिलेश सक्सेना, कासगंज ८४३३० ९८८११   
38-बांध
39 समुन्द्र
40-जलवायु
41. प्रदेश की सीमाएं
42 पहाड़ / पठार
43 खनिज
44 मिट्टी आदि-आदि

वर्ग 7 (प्रमुख व्यक्तित्व) रमेश श्रीवास्तव 'चातक' सिवनी  
45- खिलाड़ी
46 साहित्यकार
47 संत महात्मा
48- सेनानी
49. नेता
50. अभिनेता
51. गायक
52.नर्तकी
53. चित्रकार आदि-आदि

3. उपर्युक्त 7 रचनाकारों में से किसी एक को राज्य समन्वयक की भूमिका निभानी होगी। राज्य समन्वयक से निम्नलिखित कार्यों की अपेक्षा है:
क- एक आवंटित वर्ग पर चौपाइयाँ लिखनी
ख- अन्य वर्गों पर रचना हेतु रचनाकारों का डॉ ममता सैनी जी के परामर्श के साथ चयन
ग- उनसे सूचनाओं का आदान प्रदान
घ- उनसे समय पर रचनाओं का एकत्रीकरण करना
ड़- चौपाइयों की छंदबद्धता की जाँच करना और उनमें वर्णित तथ्यों की भी जाँच करना। यदि आवश्यक हो तो सुधार करवाना।
च- सभी रचनाओं को निश्चित समय-सीमा में रचनाकारों की फोटो, नाम और उनके स्थान के उल्लेख के साथ दिए गए गूगल फॉर्म पर अपलोड करना।
4. चौपाइयों के तथ्यों के सत्यापन और सम्पूर्णता सुनिश्चित करने के लिए राज्य विशेष के जानकार से रचना में वर्णित तथ्यों का सत्यापन कराया जाना है। यदि कोई अपूर्णता या त्रुटि हो तो उन्हें सुधारा भी जाना है।
5. जो भी इस आयोजन में तथ्य सत्यापक एवं त्रुटि सुधारक, राज्य समन्वयक या रचनाकार की भूमिका में योगदान करने के इच्छुक हैं और चौपाई लिखने में पारंगत हैं, वे 10 जून तक नीचे दिए गए google form
https://forms.gle/1ZGcvJpwhNQFZSn8A
को भर कर भेजें और साथ ही आगे की जानकारी के लिए इस कार्यक्रम से संबंधित whatsapp समूह
https://chat.whatsapp.com/B8TzFlta4aWHhHKKBLc8C7
को जरूर जॉइन करें। चयन हेतु प्रविष्टियाँ केवल गूगल फॉर्म के माध्यम से स्वीकार की जाएँगीं।
6. सभी राज्यों के तथ्य सत्यापक एवं त्रुटि सुधारक, रचनाकारों और समन्वयकों को उन्हीं के राज्य हेतु प्राथमिकता दी जानी है, किन्तु सम्बन्धित राज्य में हिंदी काव्य रचनाकारों की उपलब्धता के आधार पर भी विचार किया जाएगा।
7. इस संग्रह का प्रकाशन किए जाने का प्रस्ताव है और *आशा है इस आयोजन/पुस्तक को विश्व कीर्तिमान का स्थान प्राप्त होगा।*
*इस काव्य संग्रह की पुस्तक को पुस्तकालयों में शामिल कराए जाने का भी प्रयास रहेगा।*
*संग्रह पुस्तक में सभी रचनाकारों के नाम और उनकी फोटो के साथ रचनाएँ प्रकाशित की जानी है, साथ ही तथ्य सत्यापक एवं त्रुटि सुधारक और समन्वयकों का उल्लेख भी किया जाएगा।*
8. सभी रचनाकार, समन्वयक और तथ्य सत्यापक एवं त्रुटि सुधारक "अन्तरराष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच" के "भारत को जानें" रचना प्रस्तुति कार्यक्रम में आभासी पटल पर रचनाओं की प्रस्तुति हेतु भी आमंत्रित किए जाएँगे। आप सभी नीचे दिए गए
https://www.facebook.com/groups/189600548966388/?ref=share
लिंक पर क्लिक कर अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच को जॉइन करें।
9- कार्यक्रम के आयोजन या पुस्तक के प्रकाशन के लिए किसी भी व्यक्ति से कोई धनराशि नहीं ली जाएगी और न ही तथ्य सत्यापक एवं त्रुटि सुधारक, समन्वयकों या रचनाकारों को हमारी ओर से किसी भी प्रकार का पारिश्रमिक या मानदेय ही दिया जाएगा।
डॉ ममता सैनी
संस्थापिका
अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच
तंज़ानिया