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शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

अभिनव प्रयोग- गीत: कमल-कमलिनी विवाह --संजीव 'सलिल'

अभिनव प्रयोग-
गीत:
कमल-कमलिनी विवाह
संजीव 'सलिल'
*

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* रक्त कमल 
अंबुज शतदल कमल
अब्ज हर्षाया रे!
कुई कमलिनी का कर
गहने आया रे!...
*









* हिमकमल 
अंभज शीतल उत्पल देख रहा सपने
बिसिनी उत्पलिनी अरविन्दिनी सँग हँसने
कुंद कुमुद क्षीरज अंभज नीरज के सँग-
नीलाम्बुज नीलोत्पल नीलोफर भी दंग.

कँवल जलज अंबोज नलिन पुहुकर पुष्कर
अर्कबन्धु जलरुह राजिव वारिज सुंदर
मृणालिनी अंबजा अनीकिनी वधु मनहर

यह उसके, वह भी
इसके मन भाया रे!...
*








* नील कमल 
बाबुल ताल, तलैया मैया हँस-रोयें
शशिप्रभ कुमुद्वती कैरविणी को खोयें.
निशापुष्प कौमुदी-करों मेंहदी सोहे.
शारंग पंकज पुण्डरीक मुकुलित मोहें.

बन्ना-बन्नी, गारी गायें विष्णुप्रिया.
पद्म पुंग पुन्नाग शीतलक लिये हिया.
रविप्रिय श्रीकर कैरव को बेचैन किया

अंभोजिनी अंबुजा
हृदय अकुलाया रे!... 
*







* श्वेत कमल 
चंद्रमुखी-रविमुखी हाथ में हाथ लिये
कर्णपूर सौगन्धिक श्रीपद साथ लिये.
इन्दीवर सरसिज सरोज फेरे लेते.
मौन अलोही अलिप्रिय सात वचन देते.

असिताम्बुज असितोत्पल-शोभा कौन कहे?
सोमभगिनी शशिकांति-कंत सँग मौन रहे.
'सलिल'ज हँसते नयन मगर जलधार बहे

श्रीपद ने हरिकर को
पूर्ण बनाया रे!...
***************






* ब्रम्ह कमल
टिप्पणी:
* कमल, कुमुद, व कमलिनी का प्रयोग कहीं-कहीं भिन्न पुष्प प्रजातियों के रूप में है, कहीं-कहीं एक ही प्रजाति के पुष्प के पर्याय के रूप में. कमल के रक्तकमल, नीलकमल  तथा श्वेतकमल तीन प्रकार रंग के आधार पर वर्णित हैं. कमल-कमलिनी का विभाजन बड़े-छोटे आकार के आधार पर प्रतीत होता है. कुमुद को कहीं कमल, कहीं कमलिनी कहा गया है. कुमद के साथ कुमुदिनी का भी प्रयोग हुआ है. कमल सूर्य के साथ उदित होता है, उसे सूर्यमुखी, सूर्यकान्ति, रविप्रिया आदि कहा गया है. रात में खिलनेवाली कमलिनी को शशिमुखी, चन्द्रकान्ति, रजनीकांत,  कहा गया है. रक्तकमल के लाल रंग की श्री तथा हरि के कर-पद पल्लवों से समानता के कारण हरिपद, श्रीकर जैसे पर्याय बने हैं, सूर्य, चन्द्र, विष्णु, लक्ष्मी, जल, नदी, समुद्र, सरोवर आदि  से जन्म के आधार पर बने पर्यायों के साथ जोड़ने पर कमल के अनेक और पर्यायी शब्द बनते हैं. मुझसे अनुरोध था कि कमल के सभी पर्यायों को गूँथकर रचना करूँ. माँ शारदा के श्री चरणों में यह कमल-माल अर्पित कर आभारी हूँ. सभी पर्यायों को गूंथने पर रचना अत्यधिक लंबी होगी. पाठकों की प्रतिक्रिया ही बताएगी कि गीतकार निकष पर खरा उतर सका या नहीं?

* कमल हर कीचड़ में नहीं खिलता. गंदे नालों में कमल नहीं दिखेगा भले ही कीचड़ हो. कमल का उद्गम जल से है इसलिए वह नीरज, जलज, सलिलज, वारिज, अम्बुज, तोयज, पानिज, आबज, अब्ज है. जल का आगर नदी, समुद्र, तालाब हैं... अतः कमल सिंधुज, उदधिज, पयोधिज, नदिज, सागरज, निर्झरज, सरोवरज, तालज भी है. जल के तल में मिट्टी है, वहीं जल और मिट्टी में मेल से कीचड़ या पंक में कमल का बीज जड़ जमता है इसलिए कमल को पंकज कहा जाता है. पंक की मूल वृत्ति मलिनता है किन्तु कमल के सत्संग में वह विमलता का कारक हो जाता है. क्षीरसागर में उत्पन्न होने से वह क्षीरज है. इसका क्षीर (मिष्ठान्न खीर) से कोई लेना-देना नहीं है. श्री (लक्ष्मी) तथा विष्णु की हथेली तथा तलवों की लालिमा से रंग मिलने के कारण रक्त कमल हरि कर, हरि पद, श्री कर, श्री पद भी कहा जाता किन्तु अन्य कमलों को यह विशेषण नहीं दिया जा सकता. पद्मजा लक्ष्मी के हाथ, पैर, आँखें तथा सकल काया कमल सदृश कही गयी है. पद्माक्षी, कमलाक्षी या कमलनयना के नेत्र गुलाबी भी हो सकते हैं, नीले भी. सीता तथा द्रौपदी के नेत्र क्रमशः गुलाबी व् नीले कहे गए हैं और दोनों को पद्माक्षी, कमलाक्षी या कमलनयना विशेषण दिए गये हैं. करकमल और चरणकमल विशेषण करपल्लव तथा पदपल्लव की लालिमा व् कोमलता को लक्ष्य कर कहा जाना चाहिए किन्तु आजकल चाटुकार कठोर-काले हाथोंवाले लोगों के लिये प्रयोग कर इन विशेषणों की हत्या कर देते हैं. श्री राम, श्री कृष्ण के श्यामल होने पर भी उनके नेत्र नीलकमल तथा कर-पद रक्तता के कारण करकमल-पदकमल कहे गये. रीतिकालिक कवियों को नायिका के अन्गोंपांगों के सौष्ठव के प्रतीक रूप में कमल से अधिक उपयुक्त अन्य प्रतीक नहीं लगा. श्वेत कमल से समता रखते चरित्रों को भी कमल से जुड़े विशेषण मिले हैं. मेरे पढ़ने में ब्रम्हकमल, हिमकमल से जुड़े विशेषण नहीं आये... शायद इसका कारण इनका दुर्लभ होना है. इंद्र कमल (चंपा) के रंग चम्पई (श्वेत-पीत का मिश्रण) से जुड़े विशेषण नायिकाओं के लिये गर्व के प्रतीक हैं किन्तु पुरुष को मिलें तो निर्बलता, अक्षमता, नपुंसकता या पाण्डुरोग (पीलिया ) इंगित करते हैं. कुंती तथा कर्ण के पैर कोमलता तथा गुलाबीपन में साम्यता रखते थे तथा इस आधार पर ही परित्यक्त पुत्र कर्ण को रणांगन में अर्जुन के सामने देख-पहचानकर वे बेसुध हो गयी थीं.

*

हिम कमल

विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से

चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में खड़ी थ्येनशान पर्वत माले में समुद्र सतह से तीन हजार मीटर ऊंची सीधी खड़ी चट्टानों पर एक विशेष किस्म की वनस्पति उगती है, जो हिम कमल के नाम से चीन भर में मशहूर है। हिम कमल का फूल एक प्रकार की दुर्लभ मूल्यवान जड़ी बूटी है, जिस का चीनी परम्परागत औषधि में खूब प्रयोग किया जाता है। विशेष रूप से ट्यूमर के उपचार में, लेकिन इधर के सालों में हिम कमल की चोरी की घटनाएं बहुत हुआ करती है, इस से थ्येन शान पहाड़ी क्षेत्र में उस की मात्रा में तेजी से गिरावट आयी। वर्ष 2004 से हिम कमल संरक्षण के लिए व्यापक जनता की चेतना उन्नत करने के लिए प्रयत्न शुरू किए गए जिसके फलस्वरूप पहले हिम कमल को चोरी से खोदने वाले पहाड़ी किसान और चरवाहे भी अब हिम कमल के संरक्षक बन गए हैं।
* दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

शनिवार, 28 मई 2011

रोचक चर्चा: कमल और कुमुद -रावेंद्रकुमार

रोचक चर्चा:
कमल और कुमुद

रावेंद्रकुमार
*
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने अपने ललित निबंध 'महाकवि माघ का प्रभात वर्णन' में स्पष्ट लिखा है -
.
जब कमल शोभित होते हैं, तब कुमुद नहीं, और जब कुमुद शोभित होते हैं तब कमल नहीं। दोनों की दशा बहुधा एक सी नहीं रहती परन्तु इस समय, देखी जाती है। कुमुद बन्द होने को है; पर अभी पूरे बन्द नहीं हुए। उधर कमल खिलने को है, पर अभी पूरे खिले नहीं। एक की शोभा आधी ही रह गयी है, और दूसरे को आधी ही प्राप्त हुई है। रहे भ्रमर, सो अभी दोनों ही पर मंडरा रहे हैं और गुंजा रव के बहाने दोनों ही के प्रशंसा के गीत से गा रहे हैं। इसी से, इस समय कुमुद और कमल, दोनों ही समता को प्राप्त हो रहे हैं।

कमल और कुमुद एक ही फूल है या अलग-अलग? पाठक कृपया बतायें.

मंगलवार, 1 मार्च 2011

शिव-महिम्न -स्तोत्र उनीसवां श्लोक हिंदी पद्यानुवाद --sn Sharma

sn Sharma <ahutee@gmail.com>                         

  कल बुधवार दो मार्च को महाशिवरात्रि पर्व है | शिव-भक्त पूरे दिन उपास कर महादेव की आराधना में लीन रहते हैं |
शिव-महिम्न -स्तोत्र शंकर जी की महिमा का गुणगान है |
उसके एक श्लोक में समाई पूरी कथा ने मुझे विशेष प्रभावित किया है |  अकस्मात् मन
में आज इच्छा जागी कि उस श्लोक का हिंदी पद्यानुवाद
कर समूह पर पाठकों को समर्पित
करुँ |
 अस्तु पहले श्लोक  फिर उसका पद्य-भावानुवाद प्रस्तुत करते शीघ्रतावश हुई त्रुटियों
के लिये क्षमा-प्रार्थी हूँ |

                               शिव महिम्न स्तोत्र का उनीसवां श्लोक

                             हरिस्ते साहस्त्रं कमलबलिमाधाय पदयो-
                            र्यदेकोने तस्मिन्निजमुदहरन्नेत्रकमलम  | 
                            गतो भक्त्युद्रेकः परिणतिमसौ चक्रवपुषा 

                            त्रयाणां रक्षायै त्रिपुरहर ! जागर्ति जगताम  ||
पद्यभावार्थ

श्री कृष्ण ने कभी संकल्प किया
शिव जी के पूजन के निमित्त
एक  सहस्त्र कमल की प्रति
शिव चरणों में करने अर्पित
सहसा विनोद-क्रीड़ा वश एक 
कमल त्रिपुरहर ने हर लिया
या श्री हरि की भक्ति परखने 
श्री हर ने यह कौतुक किया
केशव पड़े बड़ी दुविधा में
पूजा मध्य समस्या भारी
सोचा मेरे नयन रहे बन
सदा कमल उपमाधारी 
इष्टदेव के लिये समर्पित
वासुदेव ने किया त्वरित
चक्षु-कोष से नयन पृथक कर
शिव चरणों में सादर अर्पित
हो उठे भाव-विह्वल शंकर
झट प्रगट हो गये गंगाधर
ऐसी उत्कट भक्ति देख
कर दिया सुदर्शन-चक्र भेंट
भक्तों की रक्षा में तत्पर
शोभायमान हरि उंगली पर
हे महाकाल तुम हो महान
देवाधिदेव तुमको प्रणाम !


कमल

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

दोहां सलिला: संजीव 'सलिल'

दोहां सलिला:
संजीव 'सलिल'
*
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*
गृह मंदिर में, कर सकें, प्रभु को प्रति पल याद.
सुख-समृद्धि-यश पा अमित, सदा रहें आबाद.

कल का कल पर छूटता, आज न होता काज.
अभी करे जो हो वही, यही काज का राज..

बिन सोचे लिख डालिए, जो मन हो तत्काल.
देव कलम के स्वयं ही, लेते कथ्य सम्हाल..

कौन लिखाना चाहता, जान सका है कौन?
कौन लिख रहा जानकर, 'सलिल' हो रहा मौन..

मल में रह निर्मल रहे, शतदल कमल न भूल.
नित मल-मलकर नहाती, स्वच्छ न होती धूल..

हँसी कुमुदिनी या धरा पर उतरा रजनीश.
सरवर में पंकज खिला, या विहँसे पृथ्वीश..


Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

बुधवार, 21 जुलाई 2010

hasya rachna: दिल मगर जवान है... ख़लिश - सलिल - कमल

दिल मगर जवान है...

ख़लिश - सलिल - कमल
*








*

१.ख़लिश
साठ और पाँच साल हो चले तो हाल है
झुर्रियाँ बदन पे और डगमगाई चाल है

है रगों में ख़ून तो अभी भी गर्म बह रहा
क्या हुआ लटक रही कहीं-कहीं पे खाल है

पान की गिलौरियों से होंठ लाल-लाल हैं
ग़म नहीं पिचक रहा जो आज मेरा गाल है

बदगुमान हैं बड़े वो हुस्न के ग़ुरूर में
कह रहे हैं शर्म कर, सिर पे तेरे काल है

ढल गईं जवानियाँ, दिल मगर जवान है
शायरी का यूँ ख़लिश हो गया कमाल है.

महेश चंद्र गुप्त ख़लिश
(Ex)Prof. M C Gupta
MD (Medicine), MPH, LL.M.,
Advocate & Medico-legal Consultant
www.writing.com/authors/mcgupta44
२. 'सलिल'

साठ और पाँच साल के सबल जवान हैं.
तीर अब भी है जुबां, कमर भले कमान है..
 
खार की खलिश सहें, किन्तु आह ना भरें. 
देखकर कली कहें: वाह! क्या उठान है?
 
शेर सुना शेर को पल में दूर दें भगा.
जो पढ़े वो ढेर हो, ब्लॉग ही मचान है. 
 
बाँकपन अभी भी है, अलहदा शबाब है.
बिन पिए चढ़ा नशा दूर हर थकान है..
 
तिजोरी हैं तजुर्बों की, खोल माल बाँट लो--
'सलिल' देख हौसला, भर रहे उड़ान है.
३. कमल 

शायरी का कमाल साठ औ  पांच में ही  सिर चढ़ कर बोल रहा है 
मैं अस्सी और पांच के करीब पहुँच कर भी शायरी के कुंवारेपन से नहीं 
उबर पा रहा हूँ |  वैसे शायरी अद्भुत दवा है एक लम्बी उमर पाने के लिये |
 
खाल लटक जाय चाल डगमगाय गाल पिचक जाय 
किन्तु शायरी सिमट जाय भला  क्या मजाल है
हो गीतों गजलों की  हाला कल्पना बनी हो मधुबाला 
ढल जाय उमर उस मधुशाला में तो क्या मलाल है  |

******
आप सबका बहुत धन्यवाद. सलिल जी, आपकी आशु-कविता ज़बर्दस्त है.

शनिवार, 10 जुलाई 2010

नव गीत: स्नान कर रहा..... ---संजीव वर्मा 'सलिल'

नव गीत:
स्नान कर रहा.....
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
*
शतदल, पंकज, कमल, सूर्यमुख
श्रम-सीकर से                                                                              
स्नान कर रहा.
शूल चुभा
सुरभित गुलाब का फूल-
कली-मन
म्लान कर रहा...
*
*
जंगल काट, पहाड़ खोदकर                                                                   
ताल पाटता महल न जाने.
भू करवट बदले तो पल में-
मिट जायेंगे सब अफसाने..


सरवर सलिल समुद्र नदी में
खिल इन्दीवर कुई बताता
हरिपद-श्रीकर, श्रीपद-हरिकर
कृपा करें पर भेद न माने..

कुंद कुमुद क्षीरज नीरज नित
सौगन्धिक का
गान कर रहा.
सरसिज, अलिप्रिय, अब्ज, रोचना
श्रम-सीकर से
स्नान कर रहा.....
*
*
पुण्डरीक सिंधुज वारिज                  
तोयज उदधिज
नव आस जगाता.
कुमुदिनि, कमलिनि, अरविन्दिनी के
अधरों पर शशिहास सजाता..

पनघट चौपालों अमराई
खलिहानों से अपनापन रख-
नीला लाल सफ़ेद जलज हँस
सुख-दुःख एक सदृश बतलाता.


उत्पल पुंग पद्म राजिव
कब निर्मलता का  
भान कर रहा.
जलरुह अम्बुज अम्भज कैरव 
श्रम-सीकर से
स्नान कर रहा.....
*
*
बिसिनी नलिन सरोज कोकनद
जाति-धर्म के भेद न मानें.
मन मिल जाए ब्याह रचायें-
एक गोत्र का खेद न जानें..

दलदल में पल दल न बनाते,
ना पंचायत, ना चुनाव ही.
शशिमुख-रविमुख रह अमिताम्बुज
बैर नहीं आपस ठानें..

अमलतास हो या पलाश
पुहकर पुष्कर का गान कर रहा.
सौगन्धिक पुन्नाग अलोही
श्रम-सीकर से
स्नान कर रहा.....
*
*
चित्र : कमलासना, कमलनयन, पद कमल,  कमल मुखी के कर कमलों की कमल मुद्रा, कमल-जड़, कमल-बीज, कमल-नाल (मृणाल), कमल-पत्र, कमल-जड़ के टुकड़े, कमल-गट्टा.**************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

डाक टिकटों पर कमल -- पूर्णिमा वर्मन --

टिकट संग्रह
डाक टिकटों पर कमल

१९७७ में भारत द्वारा जारी डाकटिकट


 
संपूर्ण विश्व की संस्कृति को जिस प्रकार कमल के फूल ने प्रभावित किया है उसको देखते हुए अनेक देशों के डाकटिकटों पर कमल की उपस्थिति स्वाभाविक ही है। भारत और वियतनाम का तो यह राष्ट्रीय पुष्प भी है इसलिए इन दोनो देशों के डाकटिकटों पर कमल का चित्र होना सबसे महत्त्वपूर्ण है। १ जुलाई १९७७ को डाक विभाग द्वारा जारी किए गए ऊपर दिखाए गए २५ पैसे के डाकटिकट को ४ डाकटिकटों के एक सेट के साथ जारी किया गया था। अन्य फूल थे- कदंब, बुरांस और करिहारी। 
 
यों तो वियतनाम में कमल के फूल पर की शृंखलाएँ जारी की गई हैं लेकिन १९७८ में तीन रंगों वाली एक विशेष शृंखला जारी की गई थी जिसमें कमल की तीन प्रजातियों को सफेद, नीले और पीले रंगों में चित्रित किया गया था। एक और बारह वियतनामी डालर मूल्य वाले इन डाक टिकटों पर फोटो के स्थान पर कलाकृतियों को स्थान दिया गया है। 
 
 



चीन अपनी जलरंगों द्वारा बनी कलाकृतियों के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। चीन के डाक विभाग द्वारा ४ अगस्त १९८० को कला की इसी विधा पर आधारित एक अत्यंत आकर्षक डाकटिकट जारी किया गया था। बेजिंग पोस्टेज स्टाम्प प्रिंटिंग प्रेस द्वारा मुद्रित इस टिकट के कलाकार थे चेन ज़ियांकुन। ७०.५२ मिमि के बड़े आकार वाले ९४ फेन मूल्य के इस डाकटिकट पर पत्तों के साथ कमल को जिस कुशलता से चित्रित किया है वह चीनी जलरंगों के तरल सौदर्य का सटीक उदाहरण है।

मलेशिया द्वारा ३१ दिसंबर २००७ को जारी बगीचे के फूलों पर आधारित ६ डाकटिकटों के एक सेट में कमल के फूल को स्थान दिया गया है। अपनी समृद्ध और अनगिनत पुष्प प्रजातियों के लिए प्रसिद्ध मलेशिया के सबाह और सरवक प्रांत की स्वस्थ जलवायु में फूल बहुतायत से उगते हैं। डाक-टिकटों के इस सेट पर ५ से ५० सेन मूल्य वाले टिकटों पर कमल के अतिरिक्त गुड़हल, बोगनविला, मार्निंग ग्लोरी, लिली और हाइड्रेन्जिया को स्थान दिया गया है। इसके साथ ही एक बड़ा सुंदर प्रथम दिवस आवरण भी जारी किया गया है। इसे डाकटिकट पर क्लिक कर के देखा जा सकता है।

 
अत्यंत आकर्षक प्रथम दिवस आवरण के साथ १४ मार्च २००८ को जारी कमल का एक और टिकट हांगकांग का है। सुंदर बगीचे की पृष्ठभूमि वाले इस प्रथम दिवस आवरण के साथ छह टिकटों को जारी किया गया था पारंपरिच चीनी शैली में बनी इन फूलों वाली कलाकृतियों के लिए प्रथम दिवस आवरण को कंप्यूटर पर तैयार कर के इसे आधुनिक और पारंपरिक कला के नमूने के रूप में प्रकाशित किया गया था। इस पर लाल चीनी पलाश और गुडहल, गुलाबी कमल और अज़ेलिया, बैंगनी मार्निंग ग्लोरी और पीले अलामांडा के चित्र थे।

१९६४ में स्विटज़रलैंड द्वारा कमल का एक सुंदर डाक टिकट प्रकाशित किया गया था। नीले रंग की पृष्ठभूमि पर निम्फिया अल्बा नामक श्वेत कमल के चित्र वाले इस टिकट का मूल्य ५० स्विस फ्रैंक था।  इस शृंखला में दो चित्र और प्रकाशित किए गए थे जिसमें एक पर डौफोडिल और दूसरे पर गुलाब के चित्र अंकित किए गए थे।

इस शृंखला में प्रकाशित अन्य टिकटों पर डैफोडिल और गुलाब के फूलों के चित्र प्रकाशित किए गए थे। इसी प्रकार २००२ में आस्ट्रेलिया द्वारा कमल पर आधारित दो टिकटों वाली एक सुंदर टिकट शृंखला प्रकाशित की गई थी। इसमें एक पर गुलाबी कमल था तो दूसरे पर नील कमल। २००६ में कमल पर ही एक और शृंखला जारी की गई जिसमें कमल की अलग अलग पाँच प्रजातियों को प्रदर्शित किया गया था। 
 
२००७ में यू एस के प्रांत ओरेगन के डाक विभाग ने फूलों के सुंदर चित्रों वाली १० टिकटों की एक शृंखला ब्यूटीफुल ब्लूम्स शीर्षक से प्रकाशित की थी जिसमें वाटर लिली के फूल को भी स्थान मिला था। कैलिफोर्निया प्रांत के कुलवर सिटी निवासी फोटोग्राफर मार्क लीटा ने इन टिकटों के लिए फोटोग्राफी की थी। कला निर्देशक कार्ल टी हरमन के निर्देशन में बने इन टिकटों के स्पष्ट दृश्यों के लिए इनके मुद्रण का स्तर बहुत अच्छा रखा गया था। इसके साथ जिन अन्य फूलों को शामिल किया गया था उनमें आइरिस, मंगोलिया, डहेलिया, लाल जरबेरा, कोन फ्लावर, ट्यूलिप, पौपी,  गुलदावदी और नारंगी जरबेरा थे।

 
९ अक्तूबर २००६ को यूक्रेन द्वारा १८ टिकटों की एक शृंखला २००१ से २००६ तक जारी विशिष्ट टिकटों की स्मृति में जारी की की गई थी।  १६० x ११० मिली मीटर आकार के एक पत्र (शीट) पर प्रकाशित इन स्मारक टिकटों में एक टिकट पर श्वेत कमल का चित्र प्रकाशित किया गया था। इस पत्र के हाशियों पर सुंदर चित्रकारी की गई थी और दो भाषाओं यूक्रेन व रूसी में विवरण लिखा गया था- यूक्रेन के विशेष टिकटों का पाँचवाँ और छठा संस्करण। बायीं ओर के चित्र में नीचे की पंक्ति में बीच वाले टिकट पर श्वेत कमल के चित्र को देखा जा सकता है। इनकी ३०० प्रतियों को १०वी राष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी में लोगों का ध्यान यूक्रेन के डाकटिकटों की ओर आकर्षित करने के लिए भेजा गया था। इस पूरे चित्र को बायीं और के चित्र को क्लिक कर के देखा जा सकता है।
१५ नवंबर २००८ को थाईलैंड पोस्ट ने कमल के फूलों के ४ टिकटों की एक शृंखला जारी की थी। इस पर कमल की चार परिष्कृत जातियों के चित्र थे। इन फूलों को प्रयोगशाला में मेक्सिकाना और पेरिस फाइव ओ जातियों से परिष्कृत कर के विकसित किया गया है। परिष्कार करनेवाले वैज्ञानिक का नाम प्रो. डॉ. नोपाचाई चान्सिल्वा भी इसके साथ वितरित जानकारी पर अंकित किया गया था। इन कमल के फूलों में घनी पंखुड़ियों की कई तहें विकसित की गई हैं। अलग अलग रंगों के फूलों के संकर से इन्हें नए मिश्रित रंग भी प्रदान किए गए हैं। दाहिनी ओर के चित्र पर क्लिक कर के चार टिकटों वाली इस शृंखला के सभी चित्रों को देखा जा सकता है।

 
स्लोवानिया के डाक विभाग द्वारा २६ सितंबर २००७ को श्वेत कमल के चित्र वाला एक डाकटिकट जारी किया था। इसे ६०x७० मिली मीटर के एक आकर्षक पत्र (शीट) पर ४ रंगों वाली आफसेट प्रिंटिंग में प्रकाशित किया गया था तथा बाहरीन के ओरिंएँटल प्रेस में इसकी छपाई हुई थी। बेली लोकवांज नामक स्लोवाकियन श्वेत कमल की यह प्रजाति पर लुप्त होने का संकट मंडरा रहा है। एक ओर जहाँ परागण के कारण इसका रंग बिगड़ने का डर बना रहता है वहीं दूसरी ओर कुछ मछलियों का यह अत्यंत प्रिय आहार है। रंगीन प्रजातियाँ आकर्षक दिखने के कारण लोग अपने बगीचों के लिए श्वेत कमल खरीदना अधिक पसंद नहीं करते इस कारण इसके उगाने में भी लोगों की रुचि कम हो रही है।

                                                                           साभार : अभिव्यक्ति 
                            ***************************************

नवगीत: पैर हमारे लात हैं.... संजीव 'सलिल'



नवगीत:

पैर हमारे लात हैं....

संजीव 'सलिल'
*










*
पैर हमारे लात हैं,
उनके चरण कमल.
ह्रदय हमारे सरोवर-
उनके हैं पंकिल...
*











*
पगडंडी  काफी है हमको,
उनको राजमार्ग भी कम है.
दस पैसे में हम जी लेते,
नब्बे निगल रहा वह यम है.
भारतवासी आम आदमी -
दो पाटों के बीच पिस रहे.
आँख मूँद जो न्याय तौलते
ऐश करें, हम पैर घिस रहे.













टाट लपेटे हम फिरें
वे धारे मलमल.
धरा हमारा बिछौना
उनका है मखमल...
*









*
अफसर, नेता, जज, व्यापारी,
अवसरवादी-अत्याचारी.
खून चूसते नित जनता का,
देश लूटते भ्रष्टाचारी.
हम मर-खप उत्पादन करते,
लूट तिजोरी में वे भरते.
फूट डाल हमको लड़वाते.
थाना कोर्ट जेल भिजवाते.










पद-मद उनका साध्य है,
श्रम है अपना बल.
वे चंचल ध्वज, 'सलिल' हम
हैं नींवें अविचल...
*










*

पुष्कर, पुहुकर, नीलोफर हम,
उनमें कुछ काँटें बबूल के.
कुई, कुंद, पंकज, नीरज हम,
वे बैरी तालाब-कूल के.
'सलिल'ज क्षीरज हम, वे गगनज
हम अपने हैं, वे सपने हैं.
हम हरिकर, वे श्रीपद-लोलुप
मनमाने थोपे नपने हैं.











उन्हें स्वार्थ आराध्य है,
हम न चाहते छल.
दलदल वे दल बन करें
हम उत्पल शतदल...











*********************
चित्र : ब्रम्हकमल, रक्तकमल, नीलकमल,  श्वेतकमल.
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

अभिनव प्रयोग- गीत: कमल-कमलिनी विवाह संजीव 'सलिल'

अभिनव प्रयोग-
गीत:

कमल-कमलिनी विवाह

संजीव 'सलिल'
*
pond_pink_lity_lotus.jpg


* रक्त कमल 

अंबुज शतदल कमल
अब्ज हर्षाया रे!
कुई कमलिनी का कर
गहने आया रे!...
*














* हिमकमल 
अंभज शीतल उत्पल देख रहा सपने
बिसिनी उत्पलिनी अरविन्दिनी सँग हँसने
कुंद कुमुद क्षीरज अंभज नीरज के सँग-
नीलाम्बुज नीलोत्पल नीलोफर भी दंग.

कँवल जलज अंबोज नलिन पुहुकर पुष्कर
अर्कबन्धु जलरुह राजिव वारिज सुंदर
मृणालिनी अंबजा अनीकिनी वधु मनहर

यह उसके, वह भी
इसके मन भाया रे!...
*















* नील कमल 
बाबुल ताल, तलैया मैया हँस-रोयें
शशिप्रभ कुमुद्वती कैरविणी को खोयें.
निशापुष्प कौमुदी-करों मेंहदी सोहे.
शारंग पंकज पुण्डरीक मुकुलित मोहें.

बन्ना-बन्नी, गारी गायें विष्णुप्रिया.
पद्म पुंग पुन्नाग शीतलक लिये हिया.
रविप्रिय श्रीकर कैरव को बेचैन किया

अंभोजिनी अंबुजा
हृदय अकुलाया रे!... 
*














* श्वेत कमल 
चंद्रमुखी-रविमुखी हाथ में हाथ लिये
कर्णपूर सौगन्धिक श्रीपद साथ लिये.
इन्दीवर सरसिज सरोज फेरे लेते.
मौन अलोही अलिप्रिय सात वचन देते.

असिताम्बुज असितोत्पल-शोभा कौन कहे?
सोमभगिनी शशिकांति-कंत सँग मौन रहे.
'सलिल'ज हँसते नयन मगर जलधार बहे

श्रीपद ने हरिकर को
पूर्ण बनाया रे!...
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* ब्रम्ह कमल

टिप्पणी:

* कमल, कुमुद, व कमलिनी का प्रयोग कहीं-कहीं भिन्न पुष्प प्रजातियों के रूप में है, कहीं-कहीं एक ही प्रजाति के पुष्प के पर्याय के रूप में. कमल के रक्तकमल, नीलकमल  तथा श्वेतकमल तीन प्रकार रंग के आधार पर वर्णित हैं. कमल-कमलिनी का विभाजन बड़े-छोटे आकार के आधार पर प्रतीत होता है. कुमुद को कहीं कमल, कहीं कमलिनी कहा गया है. कुमद के साथ कुमुदिनी का भी प्रयोग हुआ है. कमल सूर्य के साथ उदित होता है, उसे सूर्यमुखी, सूर्यकान्ति, रविप्रिया आदि कहा गया है. रात में खिलनेवाली कमलिनी को शशिमुखी, चन्द्रकान्ति, रजनीकांत,  कहा गया है. रक्तकमल के लाल रंग की श्री तथा हरि के कर-पद पल्लवों से समानता के कारण हरिपद, श्रीकर जैसे पर्याय बने हैं, सूर्य, चन्द्र, विष्णु, लक्ष्मी, जल, नदी, समुद्र, सरोवर आदि  से जन्म के आधार पर बने पर्यायों के साथ जोड़ने पर कमल के अनेक और पर्यायी शब्द बनते हैं. मुझसे अनुरोध था कि कमल के सभी पर्यायों को गूँथकर रचना करूँ. माँ शारदा के श्री चरणों में यह कमल-माल अर्पित कर आभारी हूँ. सभी पर्यायों को गूंथने पर रचना अत्यधिक लंबी होगी. पाठकों की प्रतिक्रिया ही बताएगी कि गीतकार निकष पर खरा उतर सका या नहीं?

 * कमल हर कीचड़ में नहीं खिलता. गंदे नालों में कमल नहीं दिखेगा भले ही कीचड़ हो. कमल का उद्गम जल से है इसलिए वह नीरज, जलज, सलिलज, वारिज, अम्बुज, तोयज, पानिज, आबज, अब्ज है. जल का आगर नदी, समुद्र, तालाब हैं... अतः कमल सिंधुज, उदधिज, पयोधिज, नदिज, सागरज, निर्झरज, सरोवरज, तालज भी है. जल के तल में मिट्टी है, वहीं जल और मिट्टी में मेल से कीचड़ या पंक में कमल का बीज जड़ जमता है इसलिए कमल को पंकज कहा जाता है. पंक की मूल वृत्ति मलिनता है किन्तु कमल के सत्संग में वह विमलता का कारक हो जाता है. क्षीरसागर में उत्पन्न होने से वह क्षीरज है. इसका क्षीर (मिष्ठान्न खीर) से कोई लेना-देना नहीं है. श्री (लक्ष्मी) तथा विष्णु की हथेली तथा तलवों की लालिमा से रंग मिलने के कारण रक्त कमल हरि कर, हरि पद, श्री कर, श्री पद भी कहा जाता किन्तु अन्य कमलों को यह विशेषण नहीं दिया जा सकता. पद्मजा लक्ष्मी के हाथ, पैर, आँखें तथा सकल काया कमल सदृश कही गयी है. पद्माक्षी, कमलाक्षी या कमलनयना के नेत्र गुलाबी भी हो सकते हैं, नीले भी. सीता तथा द्रौपदी के नेत्र क्रमशः गुलाबी व् नीले कहे गए हैं और दोनों को पद्माक्षी, कमलाक्षी या कमलनयना विशेषण दिए गये हैं. करकमल और चरणकमल विशेषण करपल्लव तथा पदपल्लव की लालिमा व् कोमलता को लक्ष्य कर कहा जाना चाहिए किन्तु आजकल चाटुकार कठोर-काले हाथोंवाले लोगों के लिये प्रयोग कर इन विशेषणों की हत्या कर देते हैं. श्री राम, श्री कृष्ण के श्यामल होने पर भी उनके नेत्र नीलकमल तथा कर-पद रक्तता के कारण करकमल-पदकमल कहे गये. रीतिकालिक कवियों को नायिका के अन्गोंपांगों के सौष्ठव के प्रतीक रूप में कमल से अधिक उपयुक्त अन्य प्रतीक नहीं लगा. श्वेत कमल से समता रखते चरित्रों को भी कमल से जुड़े विशेषण मिले हैं. मेरे पढ़ने में ब्रम्हकमल, हिमकमल से जुड़े विशेषण नहीं आये... शायद इसका कारण इनका दुर्लभ होना है. इंद्र कमल (चंपा) के रंग चम्पई (श्वेत-पीत का मिश्रण) से जुड़े विशेषण नायिकाओं के लिये गर्व के प्रतीक हैं किन्तु पुरुष को मिलें तो निर्बलता, अक्षमता, नपुंसकता या पाण्डुरोग (पीलिया ) इंगित करते हैं. कुंती तथा कर्ण के पैर कोमलता तथा गुलाबीपन में साम्यता रखते थे तथा इस आधार पर ही परित्यक्त पुत्र कर्ण को रणांगन में अर्जुन के सामने देख-पहचानकर वे बेसुध हो गयी थीं.

 *  हिम कमलविकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में खड़ी थ्येनशान पर्वत माले में समुद्र सतह से तीन हजार मीटर ऊंची सीधी खड़ी चट्टानों पर एक विशेष किस्म की वनस्पति उगती है, जो हिम कमल के नाम से चीन भर में मशहूर है। हिम कमल का फूल एक प्रकार की दुर्लभ मूल्यवान जड़ी बूटी है, जिस का चीनी परम्परागत औषधि में खूब प्रयोग किया जाता है। विशेष रूप से ट्यूमर के उपचार में, लेकिन इधर के सालों में हिम कमल की चोरी की घटनाएं बहुत हुआ करती है, इस से थ्येन शान पहाड़ी क्षेत्र में उस की मात्रा में तेजी से गिरावट आयी। वर्ष 2004 से हिम कमल संरक्षण के लिए व्यापक जनता की चेतना उन्नत करने के लिए प्रयत्न शुरू किए गए जिसके फलस्वरूप पहले हिम कमल को चोरी से खोदने वाले पहाड़ी किसान और चरवाहे भी अब हिम कमल के संरक्षक बन गए हैं।

* दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

रविवार, 27 जून 2010

डाक टिकटों पर काया कमल की — पूर्णिमा वर्मन

टिकट संग्रह
डाक टिकटों पर काया कमल की
पूर्णिमा वर्मन

१९७७ में भारत द्वारा जारी डाकटिकट


संपूर्ण विश्व की संस्कृति को जिस प्रकार कमल के फूल ने प्रभावित किया है उसको देखते हुए अनेक देशों के डाकटिकटों पर कमल की उपस्थिति स्वाभाविक ही है। भारत और वियतनाम का तो यह राष्ट्रीय पुष्प भी है इसलिए इन दोनो देशों के डाकटिकटों पर कमल का चित्र होना सबसे महत्त्वपूर्ण है। १ जुलाई १९७७ को डाक विभाग द्वारा जारी किए गए ऊपर दिखाए गए २५ पैसे के डाकटिकट को ४ डाकटिकटों के एक सेट के साथ जारी किया गया था। अन्य फूल थे- कदंब, बुरांस और करिहारी।
यों तो वियतनाम में कमल के फूल पर की शृंखलाएँ जारी की गई हैं लेकिन १९७८ में तीन रंगों वाली एक विशेष शृंखला जारी की गई थी जिसमें कमल की तीन प्रजातियों को सफेद, नीले और पीले रंगों में चित्रित किया गया था। एक और बारह वियतनामी डालर मूल्य वाले इन डाक टिकटों पर फोटो के स्थान पर कलाकृतियों को स्थान दिया गया है।
चीन अपनी जलरंगों द्वारा बनी कलाकृतियों के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। चीन के डाक विभाग द्वारा ४ अगस्त १९८० को कला की इसी विधा पर आधारित एक अत्यंत आकर्षक डाकटिकट जारी किया गया था। बेजिंग पोस्टेज स्टाम्प प्रिंटिंग प्रेस द्वारा मुद्रित इस टिकट के कलाकार थे चेन ज़ियांकुन। ७०.५२ मिमि के बड़े आकार वाले ९४ फेन मूल्य के इस डाकटिकट पर पत्तों के साथ कमल को जिस कुशलता से चित्रित किया है वह चीनी जलरंगों के तरल सौदर्य का सटीक उदाहरण है।
मलेशिया द्वारा ३१ दिसंबर २००७ को जारी बगीचे के फूलों पर आधारित ६ डाकटिकटों के एक सेट में कमल के फूल को स्थान दिया गया है। अपनी समृद्ध और अनगिनत पुष्प प्रजातियों के लिए प्रसिद्ध मलेशिया के सबाह और सरवक प्रांत की स्वस्थ जलवायु में फूल बहुतायत से उगते हैं। डाक-टिकटों के इस सेट पर ५ से ५० सेन मूल्य वाले टिकटों पर कमल के अतिरिक्त गुड़हल, बोगनविला, मार्निंग ग्लोरी, लिली और हाइड्रेन्जिया को स्थान दिया गया है। इसके साथ ही एक बड़ा सुंदर प्रथम दिवस आवरण भी जारी किया गया है। इसे डाकटिकट पर क्लिक कर के देखा जा सकता है।
अत्यंत आकर्षक प्रथम दिवस आवरण के साथ १४ मार्च २००८ को जारी कमल का एक और टिकट हांगकांग का है। सुंदर बगीचे की पृष्ठभूमि वाले इस प्रथम दिवस आवरण के साथ छह टिकटों को जारी किया गया था पारंपरिच चीनी शैली में बनी इन फूलों वाली कलाकृतियों के लिए प्रथम दिवस आवरण को कंप्यूटर पर तैयार कर के इसे आधुनिक और पारंपरिक कला के नमूने के रूप में प्रकाशित किया गया था। इस पर लाल चीनी पलाश और गुडहल, गुलाबी कमल और अज़ेलिया, बैंगनी मार्निंग ग्लोरी और पीले अलामांडा के चित्र थे।
१९६४ में स्विटज़रलैंड द्वारा कमल का एक सुंदर डाक टिकट प्रकाशित किया गया था। नीले रंग की पृष्ठभूमि पर निम्फिया अल्बा नामक श्वेत कमल के चित्र वाले इस टिकट का मूल्य ५० स्विस फ्रैंक था।  इस शृंखला में दो चित्र और प्रकाशित किए गए थे जिसमें एक पर डौफोडिल और दूसरे पर गुलाब के चित्र अंकित किए गए थे।
इस शृंखला में प्रकाशित अन्य टिकटों पर डैफोडिल और गुलाब के फूलों के चित्र प्रकाशित किए गए थे। इसी प्रकार २००२ में आस्ट्रेलिया द्वारा कमल पर आधारित दो टिकटों वाली एक सुंदर टिकट शृंखला प्रकाशित की गई थी। इसमें एक पर गुलाबी कमल था तो दूसरे पर नील कमल। २००६ में कमल पर ही एक और शृंखला जारी की गई जिसमें कमल की अलग अलग पाँच प्रजातियों को प्रदर्शित किया गया था।
२००७ में यू एस के प्रांत ओरेगन के डाक विभाग ने फूलों के सुंदर चित्रों वाली १० टिकटों की एक शृंखला ब्यूटीफुल ब्लूम्स शीर्षक से प्रकाशित की थी जिसमें वाटर लिली के फूल को भी स्थान मिला था। कैलिफोर्निया प्रांत के कुलवर सिटी निवासी फोटोग्राफर मार्क लीटा ने इन टिकटों के लिए फोटोग्राफी की थी। कला निर्देशक कार्ल टी हरमन के निर्देशन में बने इन टिकटों के स्पष्ट दृश्यों के लिए इनके मुद्रण का स्तर बहुत अच्छा रखा गया था। इसके साथ जिन अन्य फूलों को शामिल किया गया था उनमें आइरिस, मंगोलिया, डहेलिया, लाल जरबेरा, कोन फ्लावर, ट्यूलिप, पौपी,  गुलदावदी और नारंगी जरबेरा थे।
९ अक्तूबर २००६ को यूक्रेन द्वारा १८ टिकटों की एक शृंखला २००१ से २००६ तक जारी विशिष्ट टिकटों की स्मृति में जारी की की गई थी।  १६० x ११० मिली मीटर आकार के एक पत्र (शीट) पर प्रकाशित इन स्मारक टिकटों में एक टिकट पर श्वेत कमल का चित्र प्रकाशित किया गया था। इस पत्र के हाशियों पर सुंदर चित्रकारी की गई थी और दो भाषाओं यूक्रेन व रूसी में विवरण लिखा गया था- यूक्रेन के विशेष टिकटों का पाँचवाँ और छठा संस्करण। बायीं ओर के चित्र में नीचे की पंक्ति में बीच वाले टिकट पर श्वेत कमल के चित्र को देखा जा सकता है। इनकी ३०० प्रतियों को १०वी राष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी में लोगों का ध्यान यूक्रेन के डाकटिकटों की ओर आकर्षित करने के लिए भेजा गया था। इस पूरे चित्र को बायीं और के चित्र को क्लिक कर के देखा जा सकता है।
१५ नवंबर २००८ को थाईलैंड पोस्ट ने कमल के फूलों के ४ टिकटों की एक शृंखला जारी की थी। इस पर कमल की चार परिष्कृत जातियों के चित्र थे। इन फूलों को प्रयोगशाला में मेक्सिकाना और पेरिस फाइव ओ जातियों से परिष्कृत कर के विकसित किया गया है। परिष्कार करनेवाले वैज्ञानिक का नाम प्रो. डॉ. नोपाचाई चान्सिल्वा भी इसके साथ वितरित जानकारी पर अंकित किया गया था। इन कमल के फूलों में घनी पंखुड़ियों की कई तहें विकसित की गई हैं। अलग अलग रंगों के फूलों के संकर से इन्हें नए मिश्रित रंग भी प्रदान किए गए हैं। दाहिनी ओर के चित्र पर क्लिक कर के चार टिकटों वाली इस शृंखला के सभी चित्रों को देखा जा सकता है।
स्लोवानिया के डाक विभाग द्वारा २६ सितंबर २००७ को श्वेत कमल के चित्र वाला एक डाकटिकट जारी किया था। इसे ६०x७० मिली मीटर के एक आकर्षक पत्र (शीट) पर ४ रंगों वाली आफसेट प्रिंटिंग में प्रकाशित किया गया था तथा बाहरीन के ओरिंएँटल प्रेस में इसकी छपाई हुई थी। बेली लोकवांज नामक स्लोवाकियन श्वेत कमल की यह प्रजाति पर लुप्त होने का संकट मंडरा रहा है। एक ओर जहाँ परागण के कारण इसका रंग बिगड़ने का डर बना रहता है वहीं दूसरी ओर कुछ मछलियों का यह अत्यंत प्रिय आहार है। रंगीन प्रजातियाँ आकर्षक दिखने के कारण लोग अपने बगीचों के लिए श्वेत कमल खरीदना अधिक पसंद नहीं करते इस कारण इसके उगाने में भी लोगों की रुचि कम हो रही है।
                                                                             (साभार: अभिव्यक्ति) 
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