कुल पेज दृश्य

छंद बहर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
छंद बहर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

मुक्तक, छंद बहर, क्षणिका, नवगीत, दोहा, कुण्डलिया


कुण्डलिया
घुटना वंदन
*
घुटना वंदन कर सलिल, तभी रहे संजीव।
घुटने ने हड़ताल की, जीवित हो निर्जीव।।
जीवित हो निर्जीव, न बिस्तर से उठने दे।
गुड न रेस्ट; हो बैड, न चलने या झुकने दे।।
छौंक-बघारें छंद, न कवि जाए दम घुट ना।
घुटना वंदन करो, किसी पर रखो न घुटना।।
*
मेदांता अस्पताल दिल्ली में डॉ. यायावर के घुटना ऑपरेशन पर भेंट
९.१२.२०१८

जितने भी दाना हैं, स्वार्थ घिरे बैठे हैं 

नादां ही बेहतर जो, अहं से न ऐंठे हैं.

दोहा 

लोकतंत्र का हो रहा, भरी दुपहरी खून.
सद्भावों का निगलते, नेता भर्ता भून.

मन में का? के से कहें? सुन हँस लैहें लोग.
मन की मन में ही धरी, नदी-नाव संजोग.

पौधों, पत्तों, फूल को, निगल गया इंसान
मैं तितली निज पीर का, कैसे करूँ बखान?

करें वंदना शब्द की ले अक्षर के हार 

सलिल-नाद सम छंद हो, जैसे मंत्रोच्चार

सबखों कुरसी चाइए, बिन कुरसी जग सून.
राजनीति खा रई रे, आदर्सन खें भून.

***

क्षणिका
*
बहुत सुनी औरों की
अब तो
मनमानी कुछ की जाए.
दुनिया ने परखा अब तक
अब दुनिया भी परखी जाए
९-१२-२०१६
***
कार्यशाला
छंद बहर दोउ एक है - ९
रगण यगण गुरु = २१२ १२२ २
सात वार्णिक उष्णिक जातीय, बारह मात्रिक आदित्य जातीय छंद
बहर- फाइलुं मुफाईलुं
*
मुक्तक
मेघ ने लुभाया है
मोर नाच-गाया है
जो सगा नहीं भाया
वह गया भुलाया है
*
मौन मौन होता है
शोर शोर बोटा है
साफ़-साफ़ बोले जो
जार-जार रोता है
*
राजनीति धंधा है
शीशहीन कंधा है
न्याय कौन कैसे दे?
क्यों प्रतीक अँधा है
*
सूर्य के उजाले हैं
सेठ के शिवाले हैं
काव्य के सभी प्रेमी
आदमी निराले हैं
*
आपने बिसरा है
या किया इशारा है?
होंठ तो नहीं बोला
नैन ने पुकारा है
*
कौन-कौन आएगा?
देश-राग गायेगा
शीश जो कटाएगा
कीर्ति खूब पायेगा
चोट खाते हैं जवांदिल, बचाते हैं और को
खुद न बदलें, बदलते हैं वे तरीके-तौर को
मर्द को कब दर्द होता, सर्द मौसम दिल गरम
आजमाते हैं हमेशा हालतों को, दौर को
***
*
नवगीत
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
वायवी हुए रिश्ते
कागज़ी हुए नाते
गैर बैर पाले जो
वो रहे सदा भाते
संसदीय तूफां की
है नहीं रही रेखा?
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
लोकतंत्र पूछेगा
तंत्र क्यों दरिंदा है?
जिंदगी रही जीती
क्यों मरी न जिंदा है?
आनुशासिकी कीला
क्यों यहाँ नहीं मेखा?
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
क्यारियाँ कभी सींचें
बागबान ही भूले
फूल को किया रुस्वा
शूल को मिले झूले
मौसमी किए वादे
फायदा नहीं सदा पेखा
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
९-१२-२०१६
मेखा = ठोंका, पेखा = देखा
***
मुक्तक सलिला
संजीव
*
शिखर पर रहो सूर्य जैसे सदा तुम
हटा दो तिमिर, रौशनी दो जरा तुम
खुशी हो या गम देन है उस पिता की
जिसे चाहते हम, जिसे पूजते तुम
नाग नाथ को बिदा किया तो साँप नाथ से भी बचना
दंश दिया उसने तो इसने भी सीखा केवल डँसना
दलदल दल का दल देता है जनमत को सत्ता पाकर-
लोक शक्ति नित रहे जागृत नहीं सजगता को तजना।
*
परिवर्तन की हवा बह रही इसे दिशा-गति उचित मिले
बने न अंधड़, कुसुम न जिसमें जन-आशा का 'सलिल' खिले।
मतदाता कर्तव्यों को अधिकारों पर दे वरीयता-
खुद भ्रष्टाचारी होकर नेता से कैसे करें गिले?
*
ममो सोनिया राहुल डूबे, हुई नमो की जय-जयकार
कमल संग अरविन्द न लेकिन हाल एक सा देखो यार
जनता ने दे दिया समर्थन पर न बना सकते सरकार-
कैसी जीत मिली दोनों को जिसमें प्रतिबिंबित है हार
*
वसुंधरा शिव रमन न भूलें आगे कठिन परीक्षा है
मँहगाई, कर-भार, रिश्वती चलन दे रहा शिक्षा है
दूर करो जन गण की पीड़ा, जन-प्रतिनिधि सुविधा छोडो-
मतदाता जैसा जीवन जी, सत्ता को जन से जोड़ो
९-१२-२०१३
*

मंगलवार, 21 जनवरी 2020

छंद - बहर दोउ एक हैं विधाता मात्रिक छंद

छंद - बहर दोउ एक हैं
मुक्तिका 
*
तुझे भी क्या कभी गुजरे ज़माने याद आएँगे
मापनी - १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
गणसूत्र - य र त म य ग
मात्रभार - २८, यौगिक जातीय, विधाता मात्रिक  छंद
वर्णभार - १६, अष्टादि: जातीय छंद
रुक्न - मुफाईलुं  x  ४ 
टीप : 'गुजरे' को 'बीते' करने पर १२२२ के स्थान पर १२११२ करने से बचा जा सकता है।
गुरु को दो लघु करने की छूट लेने पर काव्य रचना आसान हो जाती है पर पिंगल शास्त्र
के अनुसार ऐसा करने पर उन पंक्तियों में छंद भिन्न हो जाता है।
  
*
तुझे भी क्या कभी गुजरे ज़माने याद आएँगे
मिलें तन्हाईयाँ सपने सुहाने याद आएँगे

करोगे गुफ्तगू खुद से कभी तो जान लो जानां 
लिखोगे मुक्तिका  दोहे  तराने याद आएँगे

बहाओगे पसीना, बादलों में देखना हमको
हँसेंगी खेत में फ़स्लें बहाने याद आएँगे

इसे देखो दिखा उसको न वो दिन अब रहे बाकी
नए साधो न तुम बीते निशाने याद आएँगे

न तुमसे दूर हैं, तुम भी न हमसे दूर हो यारां
हमें तुम याद आओगे, तुम्हें हम याद आएँगे
***
तुझे भी क्या कभी बीते ज़माने याद आएँगे
नहीं जो साथ वो भूले ज़माने याद आएँगे

हमेशा प्यार ही पाओ नहीं होता कभी ऐसा
न चाहो तो नहीं झूठे ज़माने याद आएँगे

नदी ने प्यास से पूछा कहाँ क्या दाम वो देगी?
लुटा दी तृप्ति पाने आ  जमाने याद आएँगे

मिलेगा साथ साथी का न सच्चा आप खोजोगे
न चाहोगे जिसे वो ही जमाने याद आएँगे

न भूली हो, न भूलोगी, कहो या ना कहो प्यारी
रहे संजीव जो वो ही जमाने याद आएँगे
***
संजीव
२१.१.२०१०
७९९९५५९६१८

गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

chhand-bahar 7

​ॐ 
छंद बहर का मूल है: ७ 
 *
छंद परिचय:
संरचना: SIS SIS IS / SISS ISIS
सूत्र: ररलग।
आठ वार्णिक अनुष्टुप जातीय              छंद।
तेरह मात्रिक भागवत जातीय उल्लाला छंद।
बहर: फ़ाइलुं 
फ़ाइलुं फ़अल / फ़ाइलातुं मुफ़ाइलुं ।
*
देवता है वही सही
जो चढ़ा वो मँगे नहीं
*
बाल सारे सफेद हैं
धूप में ये रँगे नहीं
*
लोग ईसा बनें यहाँ
सूलियों पे टँगे नहीं
*
दर्द नेता न भोगता
सत्य है ये सभी कहीं
*
आम लोगों न हारना
हिम्मतें ही जयी रहीं
 *
SISS ISIS
जी न चाहे वहीं चलो    
धार ही में बहे चलो   
*
दूसरों की न बात हो 
हाथ खाली मले चलो   
*
छोड़ भी दो तनातनी 
ख्वाब हो तो पले चलो  
*
दुश्मनों की निगाह में  
शूल जैसे चुभे चलो 
*
व्यर्थ सीना न तान लो 
फूल पाओ झुके चलो 
 *
 ***
१९.४.२०१७
***