पुरोवाक:
सम्भावनाओं की आहट : कुमार गौरव अजितेंदु के हाइकु
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
विश्ववाणी
हिंदी का छंदकोष इतना समृद्ध और विविधतापूर्ण है कि अन्य कोई भी भाषा उससे
होड़ नहीं ले सकती। देवभाषा संस्कृत से प्राप्त छांदस विरासत को हिंदी ने न केवल
बचाया-बढ़ाया अपितु अन्य भाषाओँ को छंदों का उपहार (उर्दू को बहरें/रुक्न) दिया
और अन्य भाषाओं से छंद ग्रहण कर (पंजाबी से माहिया, अवधी से कजरी, बुंदेली
से राई-बम्बुलिया, अंग्रेजी से आद्याक्षरी छंद, सोनेट, जापानी से हाइकु,
बांका, तांका, स्नैर्यू आदि) उन्हें भारतीयता के ढाँचे और हिंदी के साँचे
ढालकर अपना लिया।
द्विपदिक
(द्विपदी, दोहा, रोला, सोरठा, दोसुखने आदि) तथा त्रिपदिक छंदों (कुकुभ,
गायत्री, सलासी, माहिया, टप्पा, बंबुलियाँ आदि) की परंपरा संस्कृत व अन्य
भारतीय भाषाओं में चिरकाल से रही है. एकाधिक भाषाओँ के जानकार कवियों ने
संस्कृत के साथ पाली, प्राकृत, अपभ्रंश तथा लोकभाषाओं में भी इन छंदों का
प्रयोग किया। विदेशों से लघ्वाकारी काव्य विधाओं में ३
पंक्ति के छंद (हाइकु, वाका, तांका, सैंर्यु
आदि) भारतीय भाषाओँ में विकसित हुए।
हिंदी में हाइकु का विकास स्वतंत्र वर्णिक छंद के साथ हाइकु-गीत, हाइकु-मुक्तिका, हाइकु खंड काव्य के रूप में भी हुआ है। वस्तुतः हाइकु ५-७-५ वर्णों नहीं, ध्वनि-घटकों (सिलेबल) से निर्मित है जिसे हिंदी भाषा में 'वर्ण' कहा जाता है।
कैनेथ यशुदा के अनुसार हाइकु का विकासक्रम 'रेंगा' से 'हाइकाइ' फिर 'होक्कु' और आनर में 'हाइकु' है। भारत में कवीन्द्र रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपनी जापान यात्रा के पश्चात् 'जापान यात्री' में चोका, सदोका आदि शीर्षकों से जापानी छंदों के अनुवाद देकर वर्तमान 'हाइकु' के लिये द्वार खोला। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् लौटे अमरीकियों-अंग्रेजों के साथ हाइकु का अंग्रेजीकरण हुआ। छंद-शिल्प की दृष्टि से हाइकु त्रिपदिक, ५-७-५ में १७ अक्षरीय वर्णिक छंद है। उसे जापानी छंद तांका / वाका की प्रथम ३ पंक्तियाँ भी कहा गया है। जापानी समीक्षक कोजी कावामोटो के अनुसार कथ्य की दृष्टि से तांका, वाका या रेंगा से उत्पन्न हाइकु 'वाका' (दरबारी काव्य) के रूढ़, कड़े तथा आम जन-भावनाओं से दूर विषय-चयन (ऋतु परिवर्तन, प्रेम, शोक, यात्रा आदि से उपजा एकाकीपन), शब्द-साम्य को महत्व दिये जाने तथा स्थानीय-देशज शब्दों का करने की प्रवृत्ति के विरोध में 'हाइकाइ' (हास्यपरक पद्य) के रूप में आरंभ हुआ जिसे बाशो ने गहनता, विस्तार व ऊँचाइयाँ हास्य कविता को 'सैंर्यु' नाम से पृथक पहचान दी। बाशो के अनुसार संसार का कोई भी विषय हाइकु का विषय हो सकता है।
शुद्ध हाइकु रच पाना हर कवि के वश की बात नहीं है। यह सूत्र काव्य की तरह कम शब्दों में अधिक अभिव्यक्त करने की काव्य-साधना है। ३ अन्य जापानी छंदों तांका (५-७-५-७-७), सेदोका (५-७-७ -५-७-७) तथा चोका (५-७, ५-७ पंक्तिसंख्या अनिश्चित) में भी ५-७-५ ध्वनिघटकों का संयोजन है किन्तु उनकी आकार में अंतर है।
छंद संवेदनाओं की प्रस्तुति का वाहक / माध्यम होता है। कवि को अपने वस्त्रों की तरह रचना के छंद-चयन की स्वतंत्रता होती है। हिंदी की छांदस विरासत को न केवल ग्रहण अपितु अधिक समृद्ध कर रहे हस्ताक्षरों में से एक कुमार गौरव अजितेंदु के हाइकु इस त्रिपदिक छंद के ५-७-५ वर्णिक रूप की रुक्ष प्रस्तुति मात्र नहीं हैं, वे मूल जापानी छंद का हिन्दीकरण भी नहीं हैं, वे अपने परिवेश के प्रति सजग तरुण-कवि मन में उत्पन्न विचार तरंगों के आरोह-अवरोह की छंदानुशासन में बंधी-कसी प्रस्तुति हैं।
अजीतेंदु के हाइकु व्यक्ति, देश, समाज, काल के मध्य विचार-सेतु बनाते हैं। छंद की सीमा और कवि की अभिव्यक्ति-सामर्थ्य का ताल-मेल भावों और कथ्य के प्रस्तुतीकरण को सहज-सरस बनाता है। शिल्प की दृष्टि से अजीतेंदु ने ५-७-५ वर्णों का ढाँचा अपनाया है। जापानी में यह ढाँचा (फ्रेम) सामने तो है किन्तु अनिवार्य नहीं। बाशो ने २२ तथा १९, उनके शिष्य किकाकु ने २१, बुशोन ने २४ ध्वनि घटकों के हाइकु रचे हैं। जापानी भाषा पॉलीसिलेबिक है। इसकी दो ध्वनिमूलक लिपियाँ 'हीरागाना' तथा 'काताकाना' हैं। जापानी भाषा में चीनी भावाक्षरों का विशिष्ट अर्थ व महत्व है। हिंदी में हाइकु रचते समय हिंदी की भाषिक प्रकृति तथा शब्दों के भारतीय परिवेश में विशिष्ट अर्थ प्रयुक्त किये जाना सर्वथा उपयुक्त है। सामान्यतः ५-७-५ वर्ण-बंधन को मानने
अजितेन्दु के हाइकु प्राकृतिक सुषमा और मानवीय ममता के मनोरम चित्र प्रस्तुत करते हैं। इनमें सामयिक विसंगतियों के प्रति आक्रोश की अभिव्यक्ति है।ये पाठक को तृप्त न कर आगे पढ़ने की प्यास जगाते हैं। आप पायेंगे कि इन हाइकुओं में बहुत कुछ अनकहा है किन्तु जो-जितना कहा गया है वह अनकहे की ओर आपके चिंतन को ले जाता है। इनमें प्राकृतिक सौंदर्य- रात झरोखा / चंद्र खड़ा निहारे / तारों के दीप, पारिस्थितिक वैषम्य- जिम्मेदारियाँ / अपनी आकांक्षाएँ / कशमक, तरुणोचित आक्रोश- बन चुके हैं / दिल में जमे आँसू / खौलता लावा, कैशोर्य की जिज्ञासा- जीवन-अर्थ / साँस-साँस का प्रश्न / क्या दूँ जवाब, युवकोचित परिवर्तन की आकांक्षा- लगे जो प्यास / मांगो न कहीं पानी / खोद लो कुँआ, गौरैया जैसे निरीह प्राणी के प्रति संवेदना- विषैली हवा / मोबाइल टावर / गौरैया लुप्त, राष्ट्रीय एकता- गाँव अग्रज / शहर छोटे भाई / बेटे देश के, राजनीति के प्रति क्षोभ- गिद्धों ने माँगी / चूहों की स्वतंत्रता / खुद के लिए, आस्था के स्वर- धुंध छँटेगी / मौसम बदलेगा / भरोसा रखो, आत्म-निरीक्षण, आव्हान- उठा लो शस्त्र / धर्मयुद्ध प्रारंभ / है निर्णायक, पर्यावरण प्रदूषण- रोक लेता है / कारखाने का धुँआ / साँसों का रास्ता, विदेशी हस्तक्षेप - देसी चोले में / विदेशी षडयंत्र / घुसे निर्भीक, निर्दोष बचपन- सहेजे हुए / मेरे बचपन को / मेरा ये गाँव, विडम्बना- सूखा जो पेड़ /जड़ों की थी साजिश / पत्तों का दोष, मानवीय निष्ठुरता- कौओं से बचा / इंसानों ने उजाड़ा / मैना का नीड़ अर्थात जीवन के अधिकांश क्षेत्रों से जुड़ी अभिव्यक्तियाँ हैं।
कुमार गौरव अजितेंदु के हाइकु
हिंदी में हाइकु का विकास स्वतंत्र वर्णिक छंद के साथ हाइकु-गीत, हाइकु-मुक्तिका, हाइकु खंड काव्य के रूप में भी हुआ है। वस्तुतः हाइकु ५-७-५ वर्णों नहीं, ध्वनि-घटकों (सिलेबल) से निर्मित है जिसे हिंदी भाषा में 'वर्ण' कहा जाता है।
कैनेथ यशुदा के अनुसार हाइकु का विकासक्रम 'रेंगा' से 'हाइकाइ' फिर 'होक्कु' और आनर में 'हाइकु' है। भारत में कवीन्द्र रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपनी जापान यात्रा के पश्चात् 'जापान यात्री' में चोका, सदोका आदि शीर्षकों से जापानी छंदों के अनुवाद देकर वर्तमान 'हाइकु' के लिये द्वार खोला। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् लौटे अमरीकियों-अंग्रेजों के साथ हाइकु का अंग्रेजीकरण हुआ। छंद-शिल्प की दृष्टि से हाइकु त्रिपदिक, ५-७-५ में १७ अक्षरीय वर्णिक छंद है। उसे जापानी छंद तांका / वाका की प्रथम ३ पंक्तियाँ भी कहा गया है। जापानी समीक्षक कोजी कावामोटो के अनुसार कथ्य की दृष्टि से तांका, वाका या रेंगा से उत्पन्न हाइकु 'वाका' (दरबारी काव्य) के रूढ़, कड़े तथा आम जन-भावनाओं से दूर विषय-चयन (ऋतु परिवर्तन, प्रेम, शोक, यात्रा आदि से उपजा एकाकीपन), शब्द-साम्य को महत्व दिये जाने तथा स्थानीय-देशज शब्दों का करने की प्रवृत्ति के विरोध में 'हाइकाइ' (हास्यपरक पद्य) के रूप में आरंभ हुआ जिसे बाशो ने गहनता, विस्तार व ऊँचाइयाँ हास्य कविता को 'सैंर्यु' नाम से पृथक पहचान दी। बाशो के अनुसार संसार का कोई भी विषय हाइकु का विषय हो सकता है।
शुद्ध हाइकु रच पाना हर कवि के वश की बात नहीं है। यह सूत्र काव्य की तरह कम शब्दों में अधिक अभिव्यक्त करने की काव्य-साधना है। ३ अन्य जापानी छंदों तांका (५-७-५-७-७), सेदोका (५-७-७ -५-७-७) तथा चोका (५-७, ५-७ पंक्तिसंख्या अनिश्चित) में भी ५-७-५ ध्वनिघटकों का संयोजन है किन्तु उनकी आकार में अंतर है।
छंद संवेदनाओं की प्रस्तुति का वाहक / माध्यम होता है। कवि को अपने वस्त्रों की तरह रचना के छंद-चयन की स्वतंत्रता होती है। हिंदी की छांदस विरासत को न केवल ग्रहण अपितु अधिक समृद्ध कर रहे हस्ताक्षरों में से एक कुमार गौरव अजितेंदु के हाइकु इस त्रिपदिक छंद के ५-७-५ वर्णिक रूप की रुक्ष प्रस्तुति मात्र नहीं हैं, वे मूल जापानी छंद का हिन्दीकरण भी नहीं हैं, वे अपने परिवेश के प्रति सजग तरुण-कवि मन में उत्पन्न विचार तरंगों के आरोह-अवरोह की छंदानुशासन में बंधी-कसी प्रस्तुति हैं।
अजीतेंदु के हाइकु व्यक्ति, देश, समाज, काल के मध्य विचार-सेतु बनाते हैं। छंद की सीमा और कवि की अभिव्यक्ति-सामर्थ्य का ताल-मेल भावों और कथ्य के प्रस्तुतीकरण को सहज-सरस बनाता है। शिल्प की दृष्टि से अजीतेंदु ने ५-७-५ वर्णों का ढाँचा अपनाया है। जापानी में यह ढाँचा (फ्रेम) सामने तो है किन्तु अनिवार्य नहीं। बाशो ने २२ तथा १९, उनके शिष्य किकाकु ने २१, बुशोन ने २४ ध्वनि घटकों के हाइकु रचे हैं। जापानी भाषा पॉलीसिलेबिक है। इसकी दो ध्वनिमूलक लिपियाँ 'हीरागाना' तथा 'काताकाना' हैं। जापानी भाषा में चीनी भावाक्षरों का विशिष्ट अर्थ व महत्व है। हिंदी में हाइकु रचते समय हिंदी की भाषिक प्रकृति तथा शब्दों के भारतीय परिवेश में विशिष्ट अर्थ प्रयुक्त किये जाना सर्वथा उपयुक्त है। सामान्यतः ५-७-५ वर्ण-बंधन को मानने
अजितेन्दु के हाइकु प्राकृतिक सुषमा और मानवीय ममता के मनोरम चित्र प्रस्तुत करते हैं। इनमें सामयिक विसंगतियों के प्रति आक्रोश की अभिव्यक्ति है।ये पाठक को तृप्त न कर आगे पढ़ने की प्यास जगाते हैं। आप पायेंगे कि इन हाइकुओं में बहुत कुछ अनकहा है किन्तु जो-जितना कहा गया है वह अनकहे की ओर आपके चिंतन को ले जाता है। इनमें प्राकृतिक सौंदर्य- रात झरोखा / चंद्र खड़ा निहारे / तारों के दीप, पारिस्थितिक वैषम्य- जिम्मेदारियाँ / अपनी आकांक्षाएँ / कशमक, तरुणोचित आक्रोश- बन चुके हैं / दिल में जमे आँसू / खौलता लावा, कैशोर्य की जिज्ञासा- जीवन-अर्थ / साँस-साँस का प्रश्न / क्या दूँ जवाब, युवकोचित परिवर्तन की आकांक्षा- लगे जो प्यास / मांगो न कहीं पानी / खोद लो कुँआ, गौरैया जैसे निरीह प्राणी के प्रति संवेदना- विषैली हवा / मोबाइल टावर / गौरैया लुप्त, राष्ट्रीय एकता- गाँव अग्रज / शहर छोटे भाई / बेटे देश के, राजनीति के प्रति क्षोभ- गिद्धों ने माँगी / चूहों की स्वतंत्रता / खुद के लिए, आस्था के स्वर- धुंध छँटेगी / मौसम बदलेगा / भरोसा रखो, आत्म-निरीक्षण, आव्हान- उठा लो शस्त्र / धर्मयुद्ध प्रारंभ / है निर्णायक, पर्यावरण प्रदूषण- रोक लेता है / कारखाने का धुँआ / साँसों का रास्ता, विदेशी हस्तक्षेप - देसी चोले में / विदेशी षडयंत्र / घुसे निर्भीक, निर्दोष बचपन- सहेजे हुए / मेरे बचपन को / मेरा ये गाँव, विडम्बना- सूखा जो पेड़ /जड़ों की थी साजिश / पत्तों का दोष, मानवीय निष्ठुरता- कौओं से बचा / इंसानों ने उजाड़ा / मैना का नीड़ अर्थात जीवन के अधिकांश क्षेत्रों से जुड़ी अभिव्यक्तियाँ हैं।
अजितेन्दु
के हाइकु भारतीय परिवेश और समाज की समस्याओं, भावनाओं व चिंतन का
प्रतिनिधित्व करते हैं. इनमें प्रयुक्त बिंब, प्रतीक और शब्द सामान्य जन के
लिये सहज ग्रहणीय हैं। इन हाइकुओं के भाषा सटीक-शुद्ध है। अजितेन्दु का
यह प्रथम हाइकु संकलन उनके आगामी रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करता है।
____________________
(१) दुर्गम
पथ
अनजान
पथिक
मन
शंकित
(२) प्रकृति माता
(२) प्रकृति माता
स्नेहमयी
आँचल
करे
पालन
(३) साँस
व्यथित
धड़कनें
क्रंदित
हताश
मन
(४) पंख
हैं छोटे
विराट
आसमान
पंछी
बेबस
(५) मुक्त
उड़ान
बादलों
का नगर
दिल
का ख्वाब
(६) स्वतंत्र
छाया
शक्तिशाली
मुखौटा
गंदा
मजाक
(७) भागमभाग
अंधी
प्रतिस्पर्धाएँ
टूटते
ख्वाब
(८) विषैली
हवा
मोबाइल
टावर
गौरैया
लुप्त
(९) अंधा
सम्राट
लिप्सा,
महत्वाकांक्षा
महाभारत
(१०) जीवन
वृक्ष
आजादी
जड़, तना
चेतना
पत्ते
(११) जा
रही ठंढ
नाचता
पतझड़
आता
बसंत
(१२) आपसी
प्यार
समर्पण,
विश्वास
घर
की नींव
(१३) तृप्त
हृदय
खिलखिलाती
साँसें
जीवन
सुख
(१४) हृदय
विश्व
मन
अपना देश
चुनना
तुम्हें
(१५) रात
झरोखा
चंद्र
खड़ा निहारे
तारों
के दीप
(१६) मैना
के किस्से
डाल-डाल
की बातें
तोते
से पूछो
(१७) काँटों
का शह्र
गुलाबों
के महल
कैसा
रहस्य
(१८) तुष्टिकरण
छद्मनिरपेक्षता
सर्वनाशक
(१९) घाती
घर में
बेटों
रहो सतर्क
राष्ट्र
का प्रश्न
(२०) फैली
दिव्यता
हटे
तम के तंबू
हुआ
सवेरा
(२१) जिम्मेदारियाँ
अपनी
आकांक्षाएँ
कशमकश
(२२) नहीं
अभाव
वितरण
का खोट
जन्मा
आक्रोश
(२३) सीधा
न सादा
"तेज"
हो गया ज्यादा
आम
आदमी
(२४) खोखलापन
भ्रामक
आवरण
सर्वसुलभ
(२५) खुद
में खोट
राजनेता
को दोष
पुराना
ट्रेंड
(२६) पन्ने
पुराने
यादों
के खंडहर
पड़े
अकेले
(२७) साँसों
की भाषा
धड़कनों
की बातें
पिया
ही बूझे
(२८) मन
की पीर
उफनते
जज्बात
गीत
के बोल
(२९) काँटों
से तीक्ष्ण
जलाते
पल-पल
अधूरे
ख्वाब
(३०) तन्हाई
दर्द
तन्हाई
ही ढाढस
तन्हा
जिंदगी
(३१) वक्त
मदारी
जीवन
बंदरिया
सत्य
तो यही
(३२) पथिक
अंधा
अनजान
सड़क
बुरा
है अंत
(३३) मन-पखेरू
व्यग्रता
बने पंख
उड़ा
जा रहा
(३४) दर्द
के तूफाँ
निराशा
का भँवर
माँझी
कहाँ हो
(३५) पानी
ही पानी
तिनका
तक नहीं
डूब
जाऊँगा
(३६) मीत
मिलेगा
कब
फूल खिलेगा
पूछे
पुरवा
(३७) जीवन-अर्थ
साँस-साँस
का प्रश्न
क्या
दूँ जवाब?
(३८) हारा
हृदय
दिवास्वप्न
व्यसन
चुभते
पल
(३९) तम
के जाले
अनिश्चिय
की धूल
ढँकी
चेतना
(४०) धुंध
छँटेगी
मौसम
बदलेगा
भरोसा
रखो
(४१) हवा
है मीत
नाचता
संग-संग
बूढ़ा
पीपल
(४२) निकला
चाँद
विरहन
देखती
मिला
सहारा
(४३) एक
शिखर
दूसरा
तलहटी
मिलन
कैसा
(४४) हंसों
का जोड़ा
प्रेम
का साक्षी
चाँद
झील
बिछौना
(४५) हो
गयी रात
बल्ब
जले तारों
के
मस्ती
में चाँद
(४६) खुद
को कोसे
निहारे
आसमान
ताड़
अकेला
(४७) नभ
दे वर
हरियाली
दुलारे
वन्य जीवन
(४८) आस
के मोती
धड़कनों
की डोर
जीवनमाला
(४९) तारों
की टोली
चंद्रमा
का अँगना
निशा
का गाँव
(५० ) चेतना-वृक्ष
भावनाओं
की डालें
काव्य
ही फल
(५१)
बुलाते
कर्म
रोके
अकर्मण्यता
मन
की स्थिति
(५२)
विषैली
गैसें
नाभिकीय
कचरे
रोती
प्रकृति
(५३)
नभ
की पीड़ा
पवन
की उदासी
दिल
जलाती
(५४)
मेघों
को दिया
समंदरों
में बाँटा
बचे
ही आँसू
(५५)
जीवन
युद्ध
जिजीविषा
ही शस्त्र
धर्म
कवच
(५६)
झुग्गी
में कार
याचक
बने राजा
आया
चुनाव
(५७)
नंगे
से नृत्य
सट्टेबाजी,
फरेब
कैसा
ये खेल
(५८)
दिल
ने लिखी
नयनों
ने सुनाई
वो
पाती तुम्हें
(५९)
मेघा
भी रोये
मयूरों
ने मनाया
माने
न मेघ
(६०)
धरती
फटी
बादल
रहे रूठे
दुखी
किसान
(६१)
भोर
रिझाती
शाम
दिल चुराती
मेघों
के देश
(६२)
तोड़े
बंधन
पा
लिया आसमान
जन्म
सफल
(६३)
त्यागो
संशय
छानो
गहराईयाँ
मोती
मिलेंगे
(६४)
कँटीली
झाड़
दकियानूसी
रीति
हटाने
योग्य
(६५)
सुअवसर
दुष्टों
का नाश करो
युद्ध
न टालो
(६६)
अति
उदार
अप्रत्यक्ष
अधर्मी
साक्षी
अतीत
(६७)
शाम
दीवानी
सजी
हैं महफिलें
हम
अकेले
(६८)
रात
अंधेरी
निशाचरों
की बेला
भोर
हो जल्दी
(६९)
बिम्ब
ही मोती
अलंकार
नगीने
हाइकुमाला
(७०)
कोयल
मौन
उपवन
उदास
कैसा
बसंत
(७१)
थोथी
अहिंसा
रीढ़हीन
सिद्धांत
आत्मघातक
(७२)
आत्महीनता
मजनुइया
इश्क
कुंठाजनक
(७३)
स्नेह
का लेप
उत्तम
उपचार
भरता
घाव
(७४)
कच्चे
जज्बात
फकत
मौजमस्ती
प्यार
का नाम
(७५)
वासना
जन्मी
प्यार
ने कहा विदा
होंगे
कुकर्म
(७६)
श्वेत
वो मूर्ति
कोयला
है पड़ोसी
दाग
का डर
(७७)
उठा
लो शस्त्र
धर्मयुद्ध
प्रारंभ
है
निर्णायक
(७८)
कौओं
की एका
चींटी
की उदारता
सीख
मानव
(७९)
एक
ही धातु
कोई
गढ़े बर्तन
कोई
कटार
(८०)
मायावीलोक
आहट
से समझो
नैनों
को पढ़ो
(८१)
मृत्यु
का लोक
जीवन
को ढूँढता
तन
नादान
(८२)
देखा
मंजर
विस्फोट,
आग, धुँआ
उबला
रक्त
(८३)
चूड़ी-कंगना
बिंदिया,
वो सिन्दूर
बने
"लो क्लास"
(८४)
उड़े-उड़े
से
चेहरा
ज्यों छिपाते
वफा
के रंग
(८५)
आस
न रखो
आरोप
न लगाओ
वो
आश्रित है
(८६)
दुर्भाग्यशाली
अंग-अंग
गुलाम
कठपुतली
(८७)
खिली
वादियाँ
महकता
चमन
वफा
तुम्हारी
(८८)
नभ
तो भ्रम
धरती
ही प्रणम्य
आश्रयदाता
(८९)
जड़ों
से प्यार
नभ
करे सलाम
धरतीपुत्र
(९०)
प्रचंड
तेज
हम
हैं सनातनी
गर्व
है हमें
(९१)
बूँदों
का चित्र
सूरज
भरे रंग
इन्द्रधनुष
(९२)
मेघों
का नीर
धरा
की अमानत
कहता
नभ
(९३)
रंग
उड़ातीं
ज्यों
पुष्पों को चिढ़ाती
ये
तितलियाँ
(९४)
भौंरों
से खेला
गाल
गोरी के चूमे
पुष्प
वो सूखा
(९५)
चुभते
ख्वाब
सागर
को तरसे
ताल
की मीन
(९६)
धुँए
से लोग
साथ
कष्टदायक
दम
घुटता
(९७)
कुत्ते
दहाड़े
नाचा
खुद मदारी
वक्त
का खेल
(९८)
विज्ञानी
शत्रु
यांत्रिक
शर-शूल
बिंधा
ओजोन
(९९)
प्राप्त
को खोना
अप्राप्य
की लालसा
मानववृत्ति
(१००)
भ्रम
के धब्बे
गगन
की कालिख
भोर
ने धोयी
हाइकु
(१०१)
कहीं तेजाबी
कहीं सुहानी वर्षा
आँसू उसके
(१०२)
वो टूटा पत्ता
हवा जिधर फेंके
मजबूर है
(१०३)
दीये बुझाता
होगा तम का ग्रास
सर्वप्रथम
(१०४)
काँटे न व्यर्थ
रक्षक हैं पौधे के
पुष्प बताते
(१०५)
बया का नीड़
हवाएं दुलारती
झूला झुलातीं
(१०६)
वो गजराज
तुम एक श्रृंगाल
लड़ोगे कैसे
(१०७)
लगा ठहाके
हवा-रथ पे बैठे
आये बादल
(१०८)
ठंढ की डिब्बी
सुगंधों की थैलियाँ
हवा ने खोली
(१०९)
जेठ न माना
आषाढ़ हारा लौटा
सावन आया
(११०)
दीप बेबस
डाले न कोई तेल
तम प्रसन्न
(१११)
ढंग सुधारो
अपने को सँवारो
शीशे न तोड़ो
(११२)
ठंढी है रात
मेघ-रजाई ओढ़े
सोया है चाँद
(११३)
परिपक्व सी
भौंरों को तरसतीं
कच्ची कलियाँ
(११४)
भौंरों की प्यास
कलियों का यौवन
लगेगी आग
(११५)
दिखा चमन
तितलियाँ बौरायीं
पी ली ज्यों भंग
(११६)
चींटियाँ आतीं
मक्खियाँ मँडरातीं
गुड़ है कहीं
(११७)
बाग ही ढूँढें
मरुथल से भागें
मेघों की बूँदें
(११८)
बन्धों में बँधी
दायरों में सिमटी
जनचेतना
(११९)
नक्सलवाद
आतंक की तपिश
राष्ट्रीय शर्म
(१२०)
उच्छृंखलता
आजादी की उड़ान
भिन्न हैं दोनों
(१२१)
दुष्ट पड़ोसी
जानता कमजोरी
हावी है तभी
(१२२)
रोना न कभी
हँसेंगे सब शत्रु
प्रसन्न रहो
(१२३)
बूँदों के मोती
मखमली हवाएं
वर्षा है रानी
(१२४)
कोहरा ओढ़े
सिहरन लुटाती
आयी है ठंढ
(१२५)
माली का ख्वाब
भौंरों का भोग मात्र
नन्हीं वो कली
(१२६)
हाय! दुर्भाग्य
पँखुड़ियाँ लड़तीं
फूल बेहाल
(१२७)
लगी नजर
बिखरा उपवन
सजे गमले
(१२८)
चैन की छाँव
साझा होते तजुर्बे
साँझ की बेला
(१२९)
जाने क्या बोले
बावरा सा घूमता
मन पपीहा
(१३०)
लम्बी सी रातें
बारहमासी धुंध
पीर का देश
(१३१)
हवा भुलाती
पानी याद दिलाता
धूल को सत्य
(१३२)
कीच को देखा
भरमाया नादान
नीर को त्यागा
(१३३)
कसमें भूले
प्रेम-डाल से उड़े
वफा के पंछी
(१३४)
छीनी खुशियाँ
बर्बाद कर गया
हमराज था
(१३५)
डर का साथ
नादानियों का दाग
छूट न पाया
(१३६)
ईंटों की भठ्ठी
मकान बनवाती
साँसों को खाती
(१३७)
यश लुटाते
बदनामियाँ लाते
पूत या मूत
(१३८)
साँझ को ओढ़े
सितारे बिखराती
आ रही रात
(१३९)
हर्ष मनाओ
घना हुआ अंधेरा
होगी सुबह
(१४०)
हो पड़ताल
मामला है गंभीर
काँपी क्यों मैना
(१४१)
फूटी कोपलें
बंजरता परास्त
जीती लगन
(१४२)
खूं की रवानी
जीवन की कहानी
बोल पिया के
(१४३)
नुचती लाश
बदनाम क्यों गिद्ध
दोषी इंसान
(१४४)
कौओं से बचा
इंसानों ने उजाड़ा
मैना का नीड़
(१४५)
यही संसार
रीतियाँ बदलतीं
स्वीकार करो
(१४६)
बर्फ न व्यर्थ
पानी भी अनिवार्य
भाप जरूरी
(१४७)
नमी, शुष्कता
सूक्ष्मता, विशालता
जग अचंभा
(१४८)
लगा मुखौटा
रंगीन कपड़ों में
आई कालिख
(१४९)
आँधी से डरे
लगे खूब चिल्लाने
सारे ही पेड़
(१५०)
हवा ने डाँटा
लहरों ने भी मारा
रो पड़ा देश
(१५१)
हाथ न आते
झट से उड़ जाते
वक्त के पंछी
(१५२)
ग़ज़लें लिखूँ
यादों में पनाह दूँ
लायक न तू
(१५३)
तुमने तोड़ी
हमने कहाँ छोड़ी
रिश्तों की डोर
(१५४)
है मरुस्थल
न दिखा उसे बाग
और रोएगा
(१५५)
काव्य चुराते
व्यर्थ प्रशंसा पाते
फेसबुकिये
(१५६)
हड़बड़ाते
ज्यों दफ्तर को जाते
भोर में पंछी
(१५७)
ताल-तलैया
पंछियों को बुलाते
हाल सुनाते
(१५८)
बाग दुल्हन
धार पुष्पाभूषण
इठला रही
(१५९)
बड़ा ही जिद्दी
चंचल, शरारती
मन बालक
(१६०)
वृक्षों का धन
पतझड़ ले जाता
बसंत लाता
(१६१)
नभ हर्षाया
मेघ-मल्हार गाया
नाचे विटप
(१६२)
तम है तो क्या
होना ही है उजाला
कहते तारे
(१६३)
नन्हें सितारे
झंडाबरदार हैं
उजियारों के
(१६४)
निशा नगर
चंद्रमा महाराजा
सितारे प्रजा
(१६५)
फूलों ने लाँघी
चमन की मर्यादा
कुचले गये
(१६६)
मन की हूक
हृदय की कसक
काव्य के शब्द
(१६७)
धरा की पीर
गगन ने दिखायी
रो पड़े मेघ
(१६८)
मानवी भूलें
क्रुद्ध हुआ सागर
आई सुनामी
(१६९)
दिल में धँसे
अपराधों के बोध
टीस मारते
(१७०)
काटो न पंख
पंछियों का जीवन
नभ की सैर
(१७१)
दिल सराय
आतीं तेरी यादें
रुकने यहाँ
(१७२)
आये भुजंग
डसे जाएंगे सारे
लापरवाह
(१७३)
ढूँढते कहाँ
बेईमानों से सीखो
ईमानदारी
(१७४)
होश ले जाती
तेरे गालों से आती
गंध गुलाबी
(१७५)
चहके पत्ते
लगा झूमने पेड़
बोले जो पंछी
(१७६)
गाँव बेचारे
शहरों के नौकर
धोते जूठन
(१७७)
भटकी कली
काँटों से घुली-मिली
चुभने लगी
(१७८)
झील उद्यान
भ्रमण को निकले
हंस कुँवर
(१७९)
जामुनी किला
पहरे को मुस्तैद
तोतों की सेना
(१८०)
पड़ी आँखों में
दुनियादारी धूल
निकले आँसू
(१८१)
मिला जो पानी
लहलहाता गया
ख्वाबों का खेत
(१८२)
पानी की बूँद
दो सीपी का पालना
बने वो मोती
(१८३)
कलियाँ गुँथीं
बिगड़ गई माला
आई न काम
(१८४)
कल्पनालोक
इच्छाओं का महल
नन्हें निवासी
(१८५)
हुई सुबह
जागे जूही, गुलाब
ली अँगड़ाई
(१८६)
गेंदा, चमेली
ठंढ से ठिठुरते
धूप चाहते
(१८७)
धूप ने छुआ
ताजा हुआ मौसम
भागी उबन
(१८८)
उदास पुष्प
धूप का दुलार पा
हँसने लगे
(१८९)
रास्ते में छोड़ा
तेरी यादों का बक्सा
बढ़ी रफ्तार
(१९०)
भौंरों के यान
बागों पे मँडराते
शोर मचाते
(१९१)
भरे नभ में
स्थान को तरसता
जीवनतारा
(१९२)
जीवन-भूसा
गुम हो गई जहाँ
चैन की सुई
(१९३)
जीवन दौड़
बन पसीना चैन
बहा जा रहा
(१९४)
जीवनपाखी
पंख न उग रहे
चिंतित बड़ी
(१९५)
बीज उदास
मिल न रही भूमि
अंकुरे कहाँ
(१९६)
सूखा गुलाब
अतीत के पन्नों में
तेरी यादों का
(१९७)
ऊँचे पर्वत
ओढ़ हिम कंबल
धूप सेंकते
(१९८)
हर दाम का
बाजार में जमीर
जैसा चाहो लो
(१९९)
स्वप्न पराया
नयनों में बसाया
छिनना ही था
(२००)
फूल हैं खिले
गूँथ लो जल्दी माला
सूख न जाएं
(२०१)
साँसें गगन
टिमटिमाते जहाँ
आस के तारे
(२०२)
ऊँचे वो चढ़ा
दिखेगा ही उसको
निचला छोटा
(२०३)
तस्वीर तेरी
यादों का दलदल
लगे डुबोने
(२०४)
तेरी छुअन
छुपा रखी है मैंने
धड़कनों में
(२०५)
यादे-बेवफा
बेपतवार कश्ती
चढ़ो न कोई
(२०६)
नया जमाना
पीछे भागती शमा
परवानों के
(२०७)
नन्हें व्यापारी
डालोंपर लगाते
मधु की फैक्ट्री
(२०८)
भू का टुकड़ा
फूलों से कहलाता
चमन न्यारा
(२०९)
कर्म औजार
स्वप्नों के राजमिस्त्री
गढ़ें यथार्थ
(२१०)
यूँ तो न भाता
मर्यादा हो तोड़नी
पर्दा सुहाता
(२११)
पुष्प जीवन
देवों को हो अर्पित
तभी सार्थक
(२१२)
मधु से आई
माटी की ही सुगंध
ये हैं संस्कार
(२१३)
सड़ रहा है
भोगवादिताओं में
रिश्तों का शव
(२१४)
शैया पे आते
चुग लेती है होश
थकान-पाखी
(२१५)
चिंतित हो क्यों
रोक न पाते काँटे
फूलों की गंध
(२१६)
नैन-भ्रमर
चूसते मकरंद
रूप-पुष्प का
(२१७)
नयन-ताल
कभी नहीं बुझाते
प्यास पंछी की
(२१८)
था गृहयुद्ध
दीवारें उठा बची
प्रेम की जान
(२१९)
नन्हीं कलियाँ
धूल में सन खोतीं
निज सुगंध
(२२०)
फूलों का रूप
रहा उनका शत्रु
तुड़वा डाले
(२२१)
फूलों के हिये
भ्रमरों का गुंजन
प्रीत जगाता
(२२२)
सुध-बुध खो
लहरों की ताल पे
नाचतीं मीनें
(२२३)
प्रेम-अगन
फूँक डाले पल में
दहेज-झाड़
(२२४)
प्यार-पतंग
वफा-डोर से बंधी
छूती आसमां
(२२५)
प्यार को खाती
बेवफाई की घुन
करे खोखला
(२२६)
जो भी है गिरा
अश्कों के तालाब में
डूबा निश्चित
(२२७)
हीनभावना
दानवी भयंकर
खाती विश्वास
(२२८)
तारों से भरा
नभ का कोषागार
दिखाती रात
(२२९)
चाँदी के सिक्के
रात रोज लुटाती
खिलखिलाती
(२३०)
फूल पूछते
खुशबुओं का पता
क्या विडंबना
(२३१)
गिद्धों ने माँगी
चूहों की स्वतंत्रता
खुद के लिए
(२३२)
चील चतुर
सबको भरमाते
ढँको न मांस
(२३३)
चोरों की चाल
कहते नया दौर
खोलो किवाड़
(२३४)
फैली अंधता
भेड़ियों को समझा
भेड़ों ने मीत
(२३५)
तय अंजाम
बहला ले गयी है
मुर्गे को बिल्ली
(२३६)
सारे जग को
थमा देती है भोर
कार्यों की सूची
(२३७)
भ्रम है भीड़
होता इंसान तन्हा
हर जगह
(२३८)
भौंरों से डरी
पत्तियों में जा छिपी
कली नवेली
(२३९)
भौंरों को न दो
मधुमक्खी को मिले
फूलों का रस
(२४०)
फैला तू कीच
कमल खिलाऊँगा
मैं वहीं-वहीं
(२४१)
ख्वाबों में डूबी
हकीकत की कश्ती
उसे निकालो
(२४२)
लाज ने तोड़ी
कब हुस्न से दोस्ती
पता न चला
(२४३)
घिसा न करो
अतीत के चिराग
जिन्न आते हैं
(२४४)
साँसों में लेता
यदि धुँआ न होता
तेरा वजूद
(२४५)
तू टूटा शीशा
देखना भी तुझको
अपशकुन
(२४६)
दीये न जला
तम को लाया जब
साथ शौक से
(२४७)
भटके पुष्प
मान बैठे मंजिल
भ्रमरों को ही
(२४८)
सुनो शिखरों
खड़े हो तुम सभी
जमींपर ही
(२४९)
कहाँ को चली
चींटियों की बारात
बिना दूल्हे के
(२५०)
फूलों के ताने
सुन-सुन के काँटे
हो जाते बागी
(२५१)
टूट न सका
हवाओं के झिंझोड़े
वृक्ष का तप
(२५२)
पुष्प संयंत्र
हवाएं वितरक
सुगंध माल
(२५३)
दाग पे प्रश्न
कालिख ने उठाये
उत्तर क्यों दूँ
(२५४)
वफा-प्रहरी
करते हिफाजत
प्यार-किले की
(२५५)
वफा ही जड़
कटते सूख जाता
प्यार का पेड़
(२५६)
प्रेम-जहाज
हुआ तूफान पार
वफा थी माँझी
(२५७)
जग का हाल
तितलियों से जान
मुस्काये फूल
(२५८)
तितलीरानी
बना रहा बगीचा
आना जरूर
(२५९)
मौन ने थामा
जुबानी चक्रवात
टली तबाही
(२६०)
है मुक्ताकाश
भर लो दामन में
ऊँचाईयों को
(२६१)
नैनों ने खींचा
हृदय को दिखाया
जग का चित्र
(२६२)
गूंगे नयन
बनते हैं सहारा
अंधी जुबां का
(२६३)
क्रोध कुरेदे
जुबां से लगे घाव
करे नासूर
(२६४)
गिरा जमीं पे
खा रहा है ठोकरें
टूटा शिखर
(२६५)
यादें तुम्हारी
खींचती बार-बार
आज से दूर
(२६६)
हवा सी बही
तेरी वो मोहब्बत
हाथ न आई
(२६७)
एक नमक
कहीं बने जिन्दगी
कहीं पे मौत
(२६८)
जीत की हवा
पल में हटा देती
वादों का धुँआ
(२६९)
डरे हैं पशु
जंगल में आये थे
कुछ इंसान
(२७०)
शंकित मैना
इंसानों ने डाला है
खाने को दाना
(२७१)
रोती चिड़िया
छूना था आसमान
मिला पिंजरा
(२७२)
हाट में सजी
पिंजरों की बंधक
ऊँची उड़ानें
(२७३)
यादों का मेला
घूमने गया मन
गुम हो गया
(२७४)
लोहा हो तुम
रक्षक हो सोने के
कुंठा न पालो
(२७५)
पेड़ सुनाते
किस्से बड़े निराले
सुने तो कोई
(२७६)
पूर्णमासी ने
पेड़ोंपर चढ़ाया
चाँदी का पानी
(२७७)
अरसे बाद
बरसे सुख-मेघ
ओढूँ क्यों छाता
(२७८)
दिखी चिरैया
आसपास ही होगी
जीवन-नदी
(२७९)
आओ करीब
क्यों बैठी दूर-दूर
मेरी खुशियों
(२८०)
थमा तूफान
निकल पड़ी मैना
चुगने दाना
(२८१)
दाग न बनो
पोंछ दिए जाओगे
सभी स्थानों से
(२८२)
सुख बरसा
पल में धुल गई
दुखों की धूल
(२८३)
फिजां चुनावी
खिलाती जीभर के
वादों के फूल
(२८४)
पकड़े गये
करते कई लोग
मौसमी इश्क
(२८५)
न आतीं कभी
खुद्दार बुराईयाँ
बिना बुलाये
(२८६)
स्वप्न कोमल
कहाँ रखूँ इनको
टूटें न कभी
(२८७)
आस की बूँद
जतन से है पाई
रखूँ छिपा के
(२८८)
"अबला" शब्द
सच ढँकनेवाला
पर्दा न बने
(२८९)
था समझौता
टूटा तो मिल गया
नाम लूट का
(२९०)
स्वप्न थे ऊँचे
इज्जत लगी बोझ
उतार फेंकी
(२९१)
देखते उसे
अतीत के कोने में
जा गिरा मन
(२९२)
तेरा असर
टकराये तट से
जैसे लहर
(२९३)
चुन-चुनके
दिल से मिटा दिए
तेरे निशान
(२९४)
लगे जो प्यास
मांगो न कहीं पानी
खोद लो कुँआ
(२९५)
मचल रहीं
साँसों की ये लहरें
चाँद छूने को
(२९६)
सह-सहके
पाषाण होने लगा
जैसे हृदय
(२९७)
लगता जैसे
रच-बस सा गया
शोर में मौन
(२९८)
यादें पुरानी
मन-डिब्बे में सडीं
जहर बनीं
(२९९)
मन ने मेरे
तस्वीरें वो तुम्हारी
फाड़ी कबके
(३००)
त्याग संशय
खोट नहीं तुझमें
शीशा ही झूठा
(३०१)
असहनीय
हृदय को चीरता
मौन का शोर
(३०२)
रख न पाती
शरीरों की दूरियाँ
दिलों को दूर
(३०३)
फिजां ने जोड़ी
पंछियों ने तोड़ दी
ख्यालों की डोर
(३०४)
नैनों का क्या है
सभी को बिठा लेते
पलकों तले
(३०५)
भाव हों सच्चे
पत्र हों या ई-मेल
लगते अच्छे
(३०६)
टिकने न दे
चंचलता की काई
प्रेम को कभी
(३०७)
छू नहीं पाया
वफा की गहराई
प्यार तुम्हारा
(३०८)
लगे लड़ने
सुगंध और रंग
फूल हैरान
(३०९)
तीक्ष्ण तमन्ना
काट देगी निश्चित
सिर हदों का
(३१०)
अश्कों के मोती
बेवफा की झोली में
भूले न डालो
(३११)
आँखों के लिए
बेवफा की झलक
एक चुभन
(३१२)
गर्मी में जली
रोयी स्वेद के आँसू
मानव देह
(३१३)
तेरे नैनों में
बसा हुआ है मेरा
जीवन-गाँव
(३१४)
दुखी हृदय
करने जाता स्नान
अश्रुताल में
(३१५)
डूब अश्कों में
सड़ जाते हैं सारे
ख्वाबों के बीज
(३१६)
मन-सागर
मचले बार-बार
छूने को चाँद
(३१७)
यादों के दीये
अतीत के घरों में
सजे हुए हैं
(३१८)
तेरी ही बातें
करता है अतीत
तन्हाईयों में
(३१९)
बीज अभागा
मिली न जिसे भूमि
प्यार हमारा
(३२०)
क्यों हो उदास
पाते नहीं चकोर
चाँद का साथ
(३२१)
जा नहीं पाता
समंदर बेचारा
चाँद के गाँव
(३२२)
हंसों के लिए
झील में हर रात
आता है चाँद
(३२३)
घटे जंगल
बढ़ता चला गया
जंगलीपन
(३२४)
हँसी तुम्हारी
दिल में बना देती
खुशी के किले
(३२५)
रात जलाती
नींद की मुंडेर पे
ख्वाबों के दीये
(३२६)
यादों के फूल
आसपास उड़ता
मन-भ्रमर
(३२७)
हाल बताते
तेरे नैन-दर्पण
मेरी प्रीत का
(३२८)
प्यार ये मेरा
तेरे नैनों में रोज
देखे खुद को
(३२९)
मन की गाय
यादों के खूँटे बंधी
करे जुगाली
(३३०)
मन-बालक
मचाये दिनभर
उछल-कूद
(३३१)
मन-पथिक
घूम आता है रोज
सारी दुनिया
(३३२)
मन-चादर
टँकते हरदिन
यादों के मोती
(३३३)
मन लिखता
दिल की डायरी में
अनुभूतियाँ
(३३४)
नैन छापते
दिल की पांडुलिपि
भाव-स्याही से
(३३५)
धूप के तीर
चीर देते हैं सदा
धुंध का सीना
(३३६)
नन्हीं कलियाँ
सीखतीं रंग-ढंग
संगी पुष्पों से
(३३७)
कहे तुम्हारे
शब्द वो अनकहे
सुने हैं मैंने
(३३८)
नींद लिखती
ख्वाबों की पटकथा
बैठ रात को
(३३९)
दीन मनुष्य
साँसभर हवा भी
पेड़ों से माँगे
(३४०)
शुद्धताओं को
अशुद्धि में बदलें
इंसानी साँसें
(३४१)
कैसा समय
रंगरेजों से पड़ा
फूलों को काम
(३४२)
बाग के पेड़
चुकाते हैं किराया
फल देकर
(३४३)
आम के पेड़
लगाते गर्मियों में
मीठा सा इत्र
(३४४)
देख अंधेरा
चौकन्ना हो गया है
वातावरण
(३४५)
रूप से तेरे
श्रृंगार करते हैं
नित्य श्रृंगार
(३४६)
चिड़िया लाई
कोई खुशखबरी
गा उठा पेड़
(३४७)
फँसा लेते हैं
आजकल के पंछी
सैयाद को ही
(३४८)
पूछे तोते से
नन्हीं गिलहरियाँ
मैं कैसे उड़ूँ
(३४९)
बड़ा चिढ़ातीं
एक-दूजे को रोज
मैना व मीन
(३५०)
उगे ज्यों पंख
कहने लगी पाखी
पेड़ को कैद
(३५१)
सैन्य बलों सा
शहर में तैनात
घना कोहरा
(३५२)
कैद हैं मानों
कोहरे के किले में
तपती साँसें
(३५३)
देते चुनौती
कोहरे की सत्ता को
बागी अलाव
(३५४)
सेहत-धन
चुराने की ताक में
चोर कोहरा
(३५५)
घरों में लोग
कोहरे ने बुलाया
बंद जो आज
(३५६)
आई बिटिया
ससुराल के नये
ढंगों में ढँकी
(३५७)
बेटी को देख
बिटिया को आता है
मायका याद
(३५८)
ले जाती बेटी
यादों की गठरियाँ
ससुराल में
(३५९)
ऐसे भी सोचो
दो घरों की लाडली
होगी बिटिया
(३६०)
ऐसी दो सीख
ससुराल में बेटी
बने दुलारी
(३६१)
सुनो रे माली
गुँथना भी सिखाओ
फूलों को कभी
(३६२)
बना सकता
ढलने का गुण ही
सर्वस्वीकार्य
(३६३)
ये लव-मेल्स
हैं उत्तराधिकारी
प्रेम-पत्रों के
(३६४)
प्रेम-परिन्दे
फेसबुक-पेड़ पे
पाते आराम
(३६५)
अंकुरा रहे
फेसबुक के खेत
प्रेम के बीज
(३६६)
वाहन बन
दौड़ रहा है शोर
सड़कोंपर
(३६७)
बढ़ी आबादी
एक-दूसरेपर
बैठे हैं लोग
(३६८)
सिमट रहा
सुकून का दायरा
बढ़ी बेचैनी
(३६९)
शोर-शिकारी
मार देते पल में
चैन-मैना को
(३७०)
रोक लेता है
कारखाने का धुँआ
साँसों का रास्ता
(३७१)
दानव धुँआ
करता अट्टाहास
सहमी साँसें
(३७२)
एक पहलू
बेतहाशा गति का
भटकाव भी
(३७३)
लापरवाही
सड़कों पे खोदती
मौत के कुएँ
(३७४)
माँगों को ले के
हड़ताल पे गयी
विधि-व्यवस्था
(३७५)
तेरी मिठास
रहे गुण ही तेरा
बने न बंध
(३७६)
ढूँढता फिरे
शहरों में आकर
पानी खुदको
(३७७)
बिक रही है
पानी का रूप ले के
इंसानी प्यास
(३७८)
पानी की कमी
टैंकर जमाखोर
काटते चाँदी
(३७९)
प्यास के मारे
हलकान शहर
पीता जहर
(३८०)
केरोसिन सा
बेच रहे हैं पानी
महानगर
(३८१)
गाँवों का चैन
छीनकर शहर
खुश हैं बड़े
(३८२)
गाँव-शहर
होते रहे पूरक
एक-दूजे के
(३८३)
गाँव अग्रज
शहर छोटे भाई
बेटे देश के
(३८४)
गाँवों को देते
शहरी वातायन
ताजी हवाएं
(३८५)
आते शहर
गाँवों में अक्सर ही
छुट्टी मनाने
(३८६)
बात-बेबात
भूखा रख सताती
दुष्ट गरीबी
(३८७)
खाती न कभी
बच्चों पे भी तरस
ये निर्धनता
(३८८)
जला देती है
निर्धनता की भठ्ठी
सारी इच्छाएं
(३८९)
गुणों को ढाँपे
गरीबी की चादर
दे गुमनामी
(३९०)
जहाँ गरीबी
मौसम कष्टमय
सारे वहाँ के
(३९१)
हीरा ही है वो
उपेक्षा मत करो
तराशो उसे
(३९२)
सोचो तो जरा
जो न होती दीवार
होता संग्राम
(३९३)
डूब नशे में
नाली में गिरी आस
रो रही साँसें
(३९४)
गिरी तन से
पत्तियों की चादर
ठिठुरा पेड़
(३९५)
भटकी पुनः
बुरी संगत पा के
एक उम्मीद
(३९६)
सूखा जो पेड़
जड़ों की थी साजिश
पत्तों का दोष
(३९७)
तू है पतंग
उड़ नहीं सकती
इच्छानुसार
(३९८)
कटी पतंग
रोती नसीबपर
लुटने गिरी
(३९९)
कर चित्कार
वहशी चंगुल में
मरी पतंग
(४००)
मस्ती में चूर
परिन्दों को चिढ़ाती
उड़ी पतंग
हाइकुकार - कुमार गौरव अजीतेन्दु
(४०१)
होतीं न जुदा
साँस व धड़कन
पक्की सखियाँ
(४०२)
दिल किले का
दिमाग द्वारपाल
करे सुरक्षा
(४०३)
संवेदनाएं
साँसें हैं हृदय की
रोको न इन्हें
(४०४)
दिल गवैया
धड़कनें हैं गीत
जीवन श्रोता
(४०५)
दिल गिटार
छेड़ता रहता है
जीवन धुन
(४०६)
देह-ईंजन
दिल मजदूर सा
झोंके ईंधन
(४०७)
खोलता नहीं
झूठे प्यार के लिए
दिल किवाड़
(४०८)
माँगते सदा
नयन भाव सारे
दिल से ही तो
(४०९)
जमा होते हैं
अनुभवों के मोती
दिल-कोष में
(४१०)
दिल-कलश
रहे जहाँ संचित
जीवनरस
(४११)
समूह में भी
"मैं" का ही एहसास
ले रहा साँसें
(४१२)
कायम यहाँ
अस्तित्व अमीरी का
गरीबी से ही
(४१३)
रोते मन को
तन्हाईयों की हँसी
लगती प्यारी
(४१४)
मुस्कुराहट
किसी भी चेहरे का
सच्चा श्रृंगार
(४१५)
वक्त उगाता
नयी-नयी डालियाँ
मन-वृक्ष पे
(४१६)
नयी पीढ़ियाँ
पुरानी गलतियाँ
कब तलक
(४१७)
झील हंसों की
जमा रहे हैं कब्जा
बगुले कई
(४१८)
रुष्ट पुष्पों ने
किया है समझौता
शोलों के साथ
(४१९)
दीप वो कैसा
कालिख देता ज्यादा
बुझा दो उसे
(४२०)
बिना विरोध
चल देती है धूल
हवा के साथ
(४२१)
मिलने लगा
जरूरतपूर्ति को
दोस्ती का नाम
(४२२)
चलता खेल
आदान-प्रदान का
मित्रता कहाँ
(४२३)
गौरैया जैसी
दिखती कभी-कभी
सच्ची मित्रता
(४२४)
मित्र हों ऐसे
सर्दियों में अलाव
लगते जैसे
(४२५)
तपे मन को
मित्र करे शीतल
बारिश बन
(४२६)
भीड़ वो तीर
बेध सकता है जो
कोई भी लक्ष्य
(४२७)
भीड़ नकाब
पहन बदमाश
करते जुर्म
(४२८)
आई है भीड़
राजदूत बनके
जनाक्रोश का
(४२९)
भीड़ की आज्ञा
सुन परिवर्तन
दौड़ के आते
(४३०)
डरती सत्ता
असीम अधिकार
भीड़ के पास
(४३१)
खुशी से सजी
सहमति से गुँथी
हो वरमाला
(४३२)
मन जो तेरे
अतीत का टुकड़ा
फाँस या फूल
(४३३)
तभी विवाह
मिले जब दुल्हन
दिल के साथ
(४३४)
दिल से दूर
तन न बसा पाता
नया संसार
(४३५)
चेत जवानी
जने नहीं अतीत
भविष्यहंता
(४३६)
डरता मन
दिखते जब मेघ
तेरे नैनों में
(४३७)
जानता हूँ मैं
मैंने दे दी दस्तक
तेरे दिल पे
(४३८)
बंद नैनों से
खोल दिया किवाड़
तूने दिल का
(४३९)
सच है न ये
तुम रोज बुलाती
ख्वाबों में मुझे
(४४०)
छुपा लेती हो
पलकों तले तुम
तस्वीर मेरी
(४४१)
हमदोनों को
ला रही हैं करीब
खुद दूरियाँ
(४४२)
लाती हो तुम
मु्स्कान-मिठाईयाँ
सदा ही ताजी
(४४३)
धड़कनों से
दिल तुम्हारा मुझे
पुकारता है
(४४४)
साँसें तुम्हारी
ढूँढती है खुशबू
मेरी ही सदा
(४४५)
तुम देखती
बंद कर पलकें
दिल से मुझे
(४४६)
घास न कहो
बरसात में जमी
काई है वह
(४४७)
साँस व धुआँ
मानो दो तलवारें
म्यान फेफड़ा
(४४८)
हुआ ज्यों धुआँ
साँस-मधुमक्खियाँ
भागीं तुरंत
(४४९)
फूल चाहते
तितली सा जीवन
कैसे संभव
(४५०)
दीखा काजल
फरेबी के नैनों में
डरावना सा
(४५१)
महाजटिल
अनबूझ पहेली
कुछ चरित्र
(४५२)
कौओं से छिना
एकाधिकार अब
कर्कशता का
(४५३)
कागजपर
शब्दों का रूप ले के
आया बारूद
(४५४)
बारूदी फिजां
गिरे न चिनगारी
शब्दों की यहाँ
(४५५)
ओ दिलवालों
ये महफिल भरी
दिलजलों से
(४५६)
आता बसंत
दूत चिड़ी पेड़ को
देती खबर
(४५७)
हो रहा फिर
चिड़िया सम्मेलन
बरगद पे
(४५८)
जन्मा है चिड़ा
चिड़ी रानी के यहाँ
आये संबंधी
(४५९)
खुश है चिड़ी
जाना है डेटपर
चिड़े के साथ
(४६०)
पेड़ प्यार से
थकी बैठी चिड़ी पे
झलता पंखा
(४६१)
हुई सुबह
जाग घास चेहरा
धोती ओस से
(४६२)
सर्पमणि सी
चमकती घास पे
ओस भोर में
(४६३)
ओस पीकर
दिनभर खटती
धूप में घास
(४६४)
देती है ओस
भू पे आने के लिए
घास को कर
(४६५)
घास छिपाती
लूटे ओस के मोती
भोर होते ही
(४६६)
आँधी तोड़ती
बच्चापार्टी के लिए
पेड़ों से आम
(४६७)
खट्टी अमिया
परिपक्व होने पे
देगी मिठास
(४६८)
आम सा फल
गुणों के बलपर
बनता खास
(४६९)
पेश करते
ये आम के मंजर
खास नजारा
(४७०)
तने बैठे हैं
फल-दरबार में
सम्राट आम
(४७१)
रंग से नहीं
रंगों से बनता है
सुंदर चित्र
(४७२)
बन चुके हैं
दिल में जमे आँसू
खौलता लावा
(४७३)
लाते संदेश
हृदयनगर का
दूत नयन
(४७४)
है सुरक्षित
दिल-संगणक में
सारा अतीत
(४७५)
समययोगी
फेरता रहता है
मौसममाला
(४७६)
ओढ़ कोहरा
अलसाये से लेटे
बागों में फूल
(४७७)
हुई सुबह
ले रहीं अँगड़ाई
जागी कलियाँ
(४७८)
देख कुहासा
रूठ के बैठ गये
सारे ही फूल
(४७९)
हार के लौटीं
कुहासे की टोलियाँ
माने न फूल
(४८०)
खिली ज्यों धूप
गायब हुआ गुस्सा
प्यारे फूलों का
(४८१)
गाँव लौटते
दौड़ करें स्वागत
बीते वो दिन
(४८२)
सहेजे हुए
मेरे बचपन को
मेरा ये गाँव
(४८३)
बाग के पेड़
देखते ही आज भी
लगाते गले
(४८४)
गाती चिड़िया
ताजा कराती यादें
बीते दिनों की
(४८५)
जवां है धूम
गलियों में मची जो
बचपन में
(४८६)
जालिम राहें
दिख रहीं आमादा
भटकाने पे
(४८७)
सौ कोटि साँसें
साथ-साथ जो चलें
बनेंगी आँधी
(४८८)
मन के हाथ
छोड़ना न चाहते
ख्वाबों की डोर
(४८९)
भारी पड़ते
रक्त-संबंधोंपर
धन-संबंध
(४९०)
दिखा जो हंस
मची है खलबली
कौआटोली में
(४९१)
चली बारात
लाने दूर देश से
नयी आशाएं
(४९२)
वधू के द्वार
हुआ खूब स्वागत
नवयुग का
(४९३)
अभिनंदन
वरमाला ने किया
नये रिश्ते का
(४९४)
बाँध दी गयीं
दो भिन्न श्रृंखलाएं
सप्तबंधों में
(४९५)
माँग के विदा
वंश-लता के संग
लौटी बारात
(४९६)
पानी क्या पड़ा
पल में धुल गया
नकली रंग
(४९७)
छद्म सफेदी
हो गई दागदार
लाल होठों से
(४९८)
पहना फिर
आदर्शों का मुखौटा
षडयंत्रों ने
(४९९)
देसी चोले में
विदेशी षडयंत्र
घुसे निर्भीक
(५००)
श्वेत वेश ले
अंधेरे के पुजारी
करते छल
हाइकुकार - कुमार गौरव अजीतेन्दु
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
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