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मंगलवार, 29 अगस्त 2017

doha

दोहा सलिला
*
राधा धारा भक्ति की, कृष्ण कर्म-पर्याय.
प्रेम-समर्पण रुक्मिणी, कृष्णा ले-दे न्याय
*
कर मत कर तू होड़ अब, कर मन में संतोष
कर ने कर से कहा तो, कर को आया होश
*
दिनकर-निशिकर सँग दिखे, कर में कर ले आज
ऊषा-संध्या छिप गयीं, क्या जाने किस व्याज?
*
मिले सुधाकर-प्रभाकर, गले-जले हो मौन
गले न लगते, दूर से पूछें कैसा कौन?
*
प्रणव नाद सुन कुसुम ले, कर जुड़ होते धन्य
लख घनश्याम-महेश कर, नतशिर हुए अनन्य
*
खाकर-पीकर चोर जी, लौकर लॉकर तोड़
लगे भागने पुलिस ने, पकड़ा पटक-झिंझोर
*
salil.sanjiv @gmail.com
http ://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर

सोमवार, 6 सितंबर 2010

नव गीत: क्या?, कैसा है?... संजीव 'सलिल'

नव गीत:

क्या?, कैसा है?...

संजीव 'सलिल'
*
*क्या?, कैसा है?
कम लिखता हूँ,
अधिक समझना...
*
पोखर सूखे,
पानी प्यासा.
देती पुलिस
चोर को झाँसा.
सड़ता-फिंकता
अन्न देखकर
खेत, कृषक,
खलिहान रुआँसा.
है गरीब की
किस्मत, बेबस
भूखा मरना.
क्या?, कैसा है?
कम लिखता हूँ,
अधिक समझना...
*
चूहा खोजे
मिले न दाना.
सूखी चमड़ी
तन पर बाना.
कहता: 'भूख
नहीं बीमारी'.
अफसर-मंत्री
सेठ मुटाना.
न्यायालय भी
छलिया लगता.
माला जपना.
क्या?, कैसा है?
कम लिखता हूँ,
अधिक समझना...
*
काटे जंगल,
भू की बंजर.
पर्वत खोदे,
पूरे सरवर.
नदियों में भी
शेष न पानी.
न्यौता मरुथल
हाथ रहे मल.
जो जैसा है
जब लिखता हूँ
देख-समझना.
क्या?, कैसा है?
कम लिखता हूँ,
अधिक समझना...
*****************
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.कॉम