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मंगलवार, 11 अक्टूबर 2016

karyashala- doha/soratha

कार्यशाला 
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दोहा 
मीठी वाणी सुने बिन, मिले न मन को चैन। 
बढ़ें धड़कनें सोचकर, कब लड़ पाएँ नैन?
२ पद (पंक्तियाँ), चार भाग (चरण)
प्रत्येक पद १३ + ११ = २४ मात्राएँ
[विषम चरण पहला और तीसरा = १३ मात्राएँ
सम चरण दूसरा और चौथा = ११ मात्राएँ
सम चरण के अंत में समान तुक व गुरु-लघु (जैसे चैन, नैन) आवश्यक।
विषम चरण के आरम्भ में एक शब्द में जगण (लघु गुरु लघु) न हो।]
सम चरण के अंत में समान तुक का बन्धन नहीं है।
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सोरठा
मिले न मन को चैन, मीठी वाणी सुने बिन।
कब लड़ पाएँ नैन?, बढ़ें धड़कनें सोचकर।।
[प्रत्येक पद ११ + १३ = २४ मात्राएँ
विषम चरण पहला और तीसरा = ११ मात्राएँ
सम चरण दूसरा और चौथा = १३ मात्राएँ
विषम चरण के अंत में समान तुक व गुरु-लघु (जैसे चैन, नैन) आवश्यक।
सम चरण के आरम्भ में एक शब्द में जगण (लघु गुरु लघु) न हो।]
विषम चरण के अंत में समान तुक का बन्धन नहीं है।
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टीप -
हर दोहा सोरठा में, और हर सोरठा दोहा में नहीं बदला जा सकता।
ऐसा केवल तभी किया जा सकता है जब सार्थकता बनी रहे।
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