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मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*

पीर पराई हो सगी, निज सुख भी हो गैर.

जिसको उसकी हमेशा, 'सलिल' रहेगी खैर..
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सबसे करले मित्रता, बाँट सभी को स्नेह.

'सलिल' कभी मत पालना, मन में किंचित बैर..

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सोमवार, 16 नवंबर 2020

दोहा सलिला- नीति के दोहे

नीति के दोहे 
*
बैर न दुर्जन से करें, 'सलिल' न करिए स्नेह  
काला करता कोयला, जले जला दे देह 
बुरा बुराई कब तजे, रखे सदा अलगाव 
भला भलाई क्यों तजे?, चाहे रहे निभाव 
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असफलता के दौर में, मत निराश हों मीत   
कोशिश कलम लगाइए, लें हर मंज़िल जीत 
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रो-रो क़र्ज़ चुका रही, संबंधों का श्वास 
भूल-चूक को भुला दे, ले-दे कोस न आस 
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ज्ञात मुझे मैं हूँ नहीं, यार तुम्हारा ख्वाब 
मन चाहे मुस्कुरा लो, मुझसे कली गुलाब 
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