बाल दोहे:
पेंग्विन सबकी मीत है
आचार्य संजीव 'सलिल'
बर्फ बीच पेंग्विन बसी, नाचे फैला पंख.
करे हर्ष-ध्वनि इस तरह, मानो गूँजे शंख..
लम्बी एक कतार में, खड़ी पढाती पाठ.
अनुशासन में जो रहे, होते उसके ठाठ..
श्वेत-श्याम बाँकी छटा, सबका मन ले मोह.
शांति इन्हें प्रिय, कभी भी, करें न किंचित क्रोध.
यह पानी में कूदकर, करने लगी किलोल.
वह जल में डुबकी लगा, नाप रही भू-गोल..
हिम शिखरों से कूदकर, मौज कर रही एक.
दूजी सबसे कह रही, खोना नहीं विवेक..
आँखें मूँदे यह अचल, जैसे ज्ञानी संत.
बिन बोले ही बोलती, नहीं द्वेष में तंत..
माँ बच्चे को चोंच में, खिला रही आहार.
हमने भी माँ से 'सलिल',पाया केवल प्यार..
पेंग्विन सबकी मीत है, गाओ इसके गीत.
हिल-मिलकर रहना सदा,'सलिल'सिखाती रीत..
***********
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
मीत लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मीत लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सोमवार, 3 अगस्त 2009
बाल दोहे: बर्फ बीच पेंग्विन बसी
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)