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शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

कवितायेँ: अर्चना मलैया


इस स्तम्भ में रचनाकार का संक्षिप्त परिचय, लघु रचनाएँ  तथा संक्षिप्त प्रतिक्रियाएँ  प्रस्तुत की जा सकेंगी. 
अर्चना मलैया
जन्म : कटनी, मध्य प्रदेश.
शिक्षा : एम. ए. (हिंदी).
संप्रति : हिंदी उपन्यासों में नारी विद्रोह पर शोधरत.
संपर्क : ०७६१-५००६७२३
कवितायेँ:


१. रचना प्रक्रिया:

भावना के सागर पर
वेदना की किरण पड़ती है,
भावों की भाप जमती है.
धीरे-धीरे
भाप मेघ में बदलती है
फिर किसी आघात से
मेघ फटते हैं,
बरसात होती है
और ये नन्हीं-नन्हीं बूदें
कविता होती हैं.
*
२. लडकी

वही था सूरज वही था चाँद
और वही आकाश
जिसके आगोश में
खिलते थे सितारे.
पाखी तुम भी थे
पाखी मैं भी
फिर क्यों तुम
केवल तुम
उड़ सके?,
मैं नहीं.
क्यों बींधे गये
पंख मेरे
क्यों हर उड़न
रही घायल?
*
३. आदिम अग्नियाँ
हो रही हैं उत्पन्न
खराशें हममें
हमारी सतत तराश से.
मत डालो अब और आवरण
क्योंकि अवरणों की
मोती सतह के नीचे
चेहरे न जने
कहाँ गुण हो रहे हैं?
असंभव है कि
बुझ जाएँ
वे आदिम अच्नियाँ
जो हममें सोई पड़ी हैं
बलपूर्वक दबाई चिनगारी
कभी-कभी
विस्फोटक हो जाती है.
*
अर्चना मलैया की कविताओं में व्यक्ति और समाज के अंतर्संबंधों को तलाशने-तराशने, पारंपरिक और अधुनातन मूल्यबोध को परखने की कोशिश निहित है. दर्द, राग, सामाजिक सरोकारों और संवेदनात्मक दृष्टि के तने-बाने से बुनी रचनाएँ सहज भाषा, सटीक बिम्ब और सामयिक कथ्य के कारण आम पाठक तक पहुँच पाती हैं.

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in




रविवार, 24 जून 2012

क्षणिका: कविता कैसे बनती है अर्चना मलैया


क्षणिका:


कविता कैसे बनती है 


अर्चना मलैया
*
भावना के सागर पर 


वेदना की किरण पड़ती है 


भावों की भाप 


मानस पर जमती है. 


धीरे धीरे भाप 


मेघ में बदलती है .


मेघ फटते है , 


बरसात होती है, 


ये नन्ही-नन्ही बूँदें  


कविता होती हैं. 


********