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सोमवार, 2 मई 2022

दोहांजलि

दोहांजलि
*
गुरुवर सुरेश उपाध्याय जी, होशंगाबाद

निकट पढ़े अध्याय कुछ, जब 'सुरेश' के संग।
ऐसा चढ़ा न उतरता, मन से हिंदी-रंग।।
*
स्मृतिशेष गुरुवर रामचंद्र दास जी, जबलपुर

वीतराग प्रभु भक्ति में, मिले सदा लवलीन।
शुभाशीष उसको दिया, पहले जो था दीन।।
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अग्रजवत डॉ. सुरेश कुमार वर्मा जी, जबलपुर

ठाठ कबीराना जिया, वाक् व्यास सी संग।
कर प्रयास लूँ सीख कुछ, सत्-चिंतन का ढंग।।
*
आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जी, जबलपुर

कृष्ण कांत आशीष पा, धन्य सलिल तू धन्य।
लोहे को सोना करे, चंद्रा-संग अनन्य।।
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स्मृति शेष भगवती प्रसाद देवपुरा, श्रीनाथद्वारा

हिंदी के हित समर्पित, रहे समर्पित आप।
सलिल-प्रेरणा स्रोत बन, रहे श्वास में व्याप।।
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स्मृतिशेष प्रो, भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़', अहमदाबाद

सत्य साई आशीष पा, किया सृजन पठनीय।
श्रेष्ठ शलाका पुरुष हे!, हर पुस्तक मननीय।।

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अग्रजवत अमरनाथ जी, लखनऊ

'अमरनाथ' ने रख दिया, ज्यों ही सर पर हाथ।
पग पखारते सलिल को, चढ़ा लिया निज माथ।।
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डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर', फ़िरोज़ाबाद

'राम सनेही' ने दिया, जब जी भरकर स्नेह।
संजीवित संजीव हो, झट हो गया विदेह।।
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पूर्णिमा बर्मन, लखनऊ

पा प्रवीण सत्संग में, शरत पूर्णिमा आभ।
सलिल-लहर ज्योतित हुईं, छंद-छंद अरुणाभ।।
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देवकीनंदन 'शांत' जी, लखनऊ

शांत प्रशांत निशांत सम, जैसे उजली भोर।
नूर-नूर पा रच रहे, दोहे-ग़ज़ल अँजोर।।
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मनोज श्रीवास्तव जी, लखनऊ

ओज-तेज मसि-कलम है, श्री वास्तव में मीत।
मिला तुम्हें मन ओज मय, रचे मनोरम गीत।।
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वीणा तिवारी जी, जबलपुर

नेह नर्मदा निर्मला, तुममें दिखी सदैव।
आशीषित करती रहें सदा- सदय हो दैव।।
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डॉ. छाया राय जी, जबलपुर

नमन वाग्वैदग्ध्य को, सक 'कांट' को जान।
दर्शन का दर्शन करा, तार दिया मतिमान।।
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साधना उपाध्याय जी, जबलपुर

कर्मठता-संघर्ष की, ज्योतित दीप्त मशाल।
अटल प्रेरणा-स्रोत तुम, पग छू हुआ निहाल।।
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डॉ. इला घोष जी, जबलपुर

सृजन अकुंठित कर रहीं, लुटा रहीं सद्ज्ञान।
मथकर वैदिक वांग्मय, करा रहीं सत्-पान।।
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शनिवार, 5 दिसंबर 2020

दोहांजलि

 दोहांजलि

*
जयललिता-लालित्य को
भूल सकेगा कौन?
शून्य एक उपजा,
भरे कौन?
छा गया मौन.
*
जननेत्री थीं लोकप्रिय,
अभिनेत्री संपूर्ण.
जयललिता
सौन्दर्य की
मूर्ति, शिष्ट-शालीन.
*
दीन जनों को राहतें,
दीं
जन-धन से खूब
समर्थकी जयकार में
हँसीं हमेशा डूब
*
भारी रहीं विपक्ष पर,
समर्थकों की इष्ट
स्वामिभक्ति
पाली प्रबल
भोगें शेष अनिष्ट
*
कर विपदा का सामना
पाई विजय विशेष
अंकित हैं
इतिहास में
'सलिल' न संशय लेश
***
५-१२-२०१६

बुधवार, 7 अगस्त 2019

राष्ट्रनेत्री सुषमा स्वराज के प्रति भावांजलि

राष्ट्रनेत्री सुषमा स्वराज के प्रति भावांजलि
* शारद सुता विदा हुई, माँ शारद के लोक धरती माँ व्याकुल हुई, चाह न सकती रोक * सुषमा से सुषमा मिली, कमल खिला अनमोल मानवता का पढ़ सकीं, थीं तुम ही भूगोल * हर पीड़ित की मदद कर, रचा नया इतिहास सुषमा नारी शक्ति का, करा सकीं आभास *
पा सुराज लेकर विदा, है स्वराज इतिहास सब स्वराज हित ही जिएँ, निश-दिन किए प्रयास * राजनीति में विमलता, विहँस करी साकार ओजस्वी वक्तव्य से, दे ममता कर वार * वाक् कला पटु ही नहीं, कौशल का पर्याय लिखे कुशलता के कई, कौशलमय अध्याय *
राजनीति को दे दिया, सुषमामय आयाम भुला न सकता देश यह, अमर तुम्हारा नाम * शब्द-शब्द अंगार था, शीतल सलिल-फुहार नवरस का आगार तुम, अरि-हित घातक वार * कर्म-कुशलता के कई, मानक रचे अनन्य सुषमा जी शत-शत नमन, पाकर जनगण धन्य *
शब्दों को संजीव कर, फूँके उनमें प्राण दल-हित से जन-हित सधे, लोकतंत्र संप्राण * महिमामयी महीयसी, जैसा शुचि व्यक्तित्व फिर आओ झट लौटकर, रटने नव भवितव्य * चिर अभिलाषा पूर्ति से, होकर परम प्रसन्न निबल देह तुमने तजी, हम हो गए विपन्न *
युग तुमसे ले प्रेरणा, रखे लक्ष्य पर दृष्टि परमेश्वर फिर-फिर रचे, नव सुषमामय सृष्टि * संजीव ७-८-२०१९