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मंगलवार, 22 अगस्त 2017

navgeet

*
प्रजातंत्र का अर्थ हो गया
केर-बेर का संग
*
संविधान कर प्रावधान
जो देता, लेता छीन
सर्वशक्ति संपन्न लोग हैं
केवल बेबस-दीन
नाग-साँप-बिच्छू चुनाव लड़
बाँट-फूट डालें
विजयी हों, मिल जन-धन लूटें
माल लूट खा लें
लोकतंत्र का पोस्टर करती
राजनीति बदरंग
प्रजातंत्र का अर्थ हो गया
केर-बेर का संग
*
आश्वासन दें, जीतें जाते
जुमला कह झट भूल
कहें गरीबी पर गरीब को
मिटा, करें निर्मूल
खुद की मूरत लगा पहनते,
पहनाते खुद हार
लूट-खसोट करें व्यापारी
अधिकारी बटमार
भीख माँग, पा पुरस्कार
लौटा करते हुड़दंग
प्रजातंत्र का अर्थ हो गया
केर-बेर का संग
*
गौरक्षा का नाम, स्वार्थ ही
साध रहे हैं खूब
कब्ज़ा शिक्षा-संस्थान पर
कर शराब में डूब
दुश्मन के झंडे लहराते
दें सेना को दोष
बिन मेहनत पा सकें न रोटी
तब आएगा होश
जनगण जागे, गलत दिखे जो
करे उसी से जंग
प्रजातंत्र का अर्थ हो गया
केर-बेर का संग
***
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

दोहा

दोहा सलिला
*
पाठक मैं आनंद का, गले मिले आनंद
बाहों में आनंद हो, श्वास-श्वास मकरंद
*
आनंदित आनंद हो, बाँटे नित आनंद
हाथ पसारे है 'सलिल', सुख दो आनंदकंद!
*
जब गुड्डो दादी बने, अनुशासन भरपूर
जब दादी गुड्डो बने, हो मस्ती में चूर
*
जिया लगा जीवन जिया, रजिया है हर श्वास
भजिया-कोफी ने दिया, बारिश में उल्लास
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पता लापता जब हुआ, उड़ी पताका खूब
पता न पाया तो पता, पता कर रहा डूब
*
#हिंदी_ब्लॉगिंग

रविवार, 16 अप्रैल 2017

chhatisgarhi doha


छत्तीसगढ़ी  दोहा:-- 
हमर देस के गाँव मा, सुन्हा सुरुज विहान. 
अरघ देहे बद अंजुरी, रीती रोय किसान.. 
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जिनगानी के समंदर, गाँव-गँवई के रीत. 
जिनगी गुजरत हे 'सलिल', कुरिया-कुंदरा मीत.. 
*
महतारी भुइयाँ असल, बंदत हौं दिन-रात. 
दाई! पैयाँ परत हौं. मूंडा पर धर हात.. 
*
जाँघर तोड़त सेठ बर, चिथरा झूलत भेस. 
मुटियारी माथा पटक, चेलिक रथे बिदेस.. 
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बाँग देही कुकराकस, जिनगी बन के छंद. 
कुररी कस रोही 'सलिल', मावस दूबर चंद..
१६-४-२०१० 
***

मंगलवार, 9 जून 2015

dwipadi

द्विपदी :
संजीव
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लाये मुझे पिलाने पर खुद ही पी रहे हैं 
बोतल दिखा के बोले 'बिन पिए जी रहे हैं.
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बनाये हैं रेत के महल मैंने अब मुझे भूकंप का कुछ डर नहीं
कद्र जज्बातों की जग में हो न हो उड़ न जायेंगे कि उनके पर नहीं
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